Friday, March 6, 2015

साधना के रंग-होली के संग

घोड़े को जौ बेहद पसंद होती है| यदि उसके सामने अधिक मात्रा में जौ परोस दिया जाए, तो वह उसे खाता चला जाता है| ज्यादा जौ खा लेने पर उसे प्यास लगती है| प्यास बुझाने के लिए जब वह पानी पिता है, तो पानी के सम्पर्क में आकर जौ फूल जाती है| इसका परिणाम क्या होता है? जौ के फूल जाने से घोड़े का पेट फटने की स्थिति में आ जाता है| अक्सर ऐसे में घोडा बीमार पड़ जाता है| यदि उसे सही उपचार या मदद न दी जाए, तो बहुत संभावना रहती है कि वह अपनी जान गवां बैठे|


     हू-ब-हू ऐसा ही हमारे साथ भी हो सकता है| कैसे? हमारे मन को भी सांसारिकता बहुत लुभाती है| परन्तु यदि इसमें नियंत्रण न बरता जाए और हम सांसारिकता को अपने भीतर भरते चले जाएँ..... तब फिर हमारी हालत भी घोड़े की तरह होती है| इतनी सांसारिकता समेट लेने के पश्चात्, हमें विषय-विकारों की प्यास लगने लगती है| फिर उसे बुझाते-बुझाते अत्तंत: हम ऐसी स्थिति में आ खड़े होते है, जब हमारी साधकता मरने लगती है| अंत: साधकों, सावधान रहे कि आप ऐसी स्थिति की चपेट में आएँ ही न! साधना से मन पर भक्ति का रंग चढाते रहें, जिससे कि उसे संसार आकर्षित ही न कर सके| यदि साधना से मन पर नियंत्रण बना रहेगा, तो साधकता कभी बीमार नहीं होगी!


                  आप सभी को होली मुबारक हो 

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