Tuesday, May 12, 2015

चना & काजू


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चना



भारतीय आहार का मुख्या नायक है चना| चना उर्चा का बेजोड़ स्त्रोत है| अधिक श्रम, व्यायाम या पहलवानी के बाद बादाम की जगह अंकुरित चना खाया जाता है| यह शक्ति के प्रतिक घोड़े का मुख्या आहार है| चना शारीरक श्रम करने वाले को स्वस्थ्य रखने वाला तथा सर्वोतम टॉनिक है| यह कहावत प्रसिद है कि जो चना चबाता है वह हमेशा स्वस्थ्य बना रहता है| दुधारू मवेशियों को चना बेहद पसंद है| चना मुख्यतः दो प्रकार का होता है – काला तथा काबुली| मोटा, मध्यम तथा छोटा तीनो आकर के सभी प्रकार के चने होते है| चने में सभी प्रकार के पोषक तत्व मिल जाते है| इसमें प्रचुरता से प्रोटीन, उत्तम किश्म के कार्बोज तथा वसा मिलती है|



       अंकुरित चना विटामिन ‘ए’, ‘बी’ काम्प्लेक्स, ‘सी’, सभी प्रकार के विटामिन, एन्जाइम तथा खनिज लवन पर्याप्त मात्रा में होता है| चने का छिलका उतारकर या बेसन के रूप में नहीं खाना चाहिए| चने के छिलके में रक्तशोधक तथा कब्जनिवारक गुण होता है| चने को अंकुरित करके तथा हरा चना (छोला) खाना ही श्रेष्ट है| मेहनतकश मजदूरों तथा पहलवानों के लिये अंकुरित चना श्रेष्ट पोष्टिक आहार है| मेहनत-विरत, बैठे ठाले जीवनयापन करने वालों को चने का प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिए| मिट्टी के बर्तन में भीगे चने का पानी पिने से दस्त, खसरा, चेचक, हैजा, पेचिश, मधुमेह, तृषा में लाभ होता है| इसे आँख में डाल सकते है| आंख के रोग ठीक होते है|



       आयुर्वेद की दृष्टी से चना कषाय रसयुक्त, विष्टम्भ्क, वातकारक, शीतल एंव रुक्ष, शक्ति एंव पुष्टिकारक, स्वास्थ्यवर्द्धक एंव पित्त रक्त विकार, कफ तथा ज्वरनाशक है| ह्रदयरोगरोधक एंव निवारक होता है| आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किये गये कुछ प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि भीगा हुआ अंकुरित चना कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करता है, शर्करा पर नियंत्रण रखता है| अंत: चना ह्रदय तथा मधुमेह रोगीयो के लिये श्रेष्ट आहार है| हरा चना न गर्म होता है, न ठण्डा| इसका प्रभाव सम्यक होता है| इसलिए इसे सभी खा सकते है| 25 से 50 ग्राम तक चना रात्रि को भिगों दे| सुबह इसके पानी में निम्बू तथा शहद मिलाकर पियें| यह सभी प्रकार के चर्म रोग तथा नपुंसकता को दूर करता है| भीगे चने को कपडे में बांधकर 6-6 घंटे के अन्तराल पर पानी से तर करें| गर्मियों में ठंडी जगह पर तथा ठण्ड के दिनों में कम्बल में लपेटकर भीगे चने की पोटली को रखे| अंकुरित होने पर खूब चबा-चबाकर खाए| स्वाद के लिये गुड मिला सकते है|



       इससे ह्रदय रोग, मधुमेह, उन्माद, प्रदर, रक्तचाप, स्नायविक तथा धातु सम्बन्धी दोष दूर होते है| चने के साथ नमक न खाएं| अंकुरित चने वीर्य गाढ़ा तथा शुक्रानुओ की सक्रियता एंव संख्या बढ़ जाती है| अंकुरित चना खाने के बाद दूध पिने से वीर्य पुष्ट होता है, ब्र्ह्चार्य पालन में सहायता मिलती है| शरीर, मन एंव बुद्धि आभायुक्त, सतेज एंव स्वस्थ्य होती है| रात्रि काल में भुना चना खाकर दूध पिने से कब्ज, कफ तथा जुकाम दूर होता है|



       काला चना 35 ग्राम तथा त्रिफला चूर्ण 20 ग्राम एक साथ भिगोकर चने को अंकुरित कर खाएं, बचे पानी को पी जायें| 3 माह तक प्रयोग करने से सफ़ेद कुष्ट तथा अन्य हठीले चर्म रोग दूर होते है| काले चने का काढ़ा गर्भपात, यकृत, प्लीहा तथा गुर्दे के रोग में उपयोगी होता है| गर्भपात को रोकने के लिये अंकुरित गेंहू तथा चना उपयोगी है|







                        काजू


(वानस्पतिक नाम—Anacardium Occidentale, अंग्रेजी नाम---Cashew Nut)

एक मिथक के अनुसार थक कर ब्रहाजी गहरी नींद में सो गये| सरस्वती स्रष्टिसृजन का काम करने लगी| उन्होंने आम का रंग, नाशपाती, का आकर तथा संतरे की कोमलता को लेकर नया फल बनाया| तभी ब्रहाजी जागे| जल्दी में सरस्वती ने नाशपाती के ऊपर गड्ढा कर मेवे के टुकड़े को चिपकाकर पेड़ से लटका दिया| इस प्रकार काजू का जन्म हुआ| काजू समुंदर तटीय जमीन में खूब पनपता है तथा इसकी गहरी जड़े मानसूनी कटाव से समुंद्र तट की रक्षा करती हैं| काजू को फूलने-फलने में 5 वर्ष लगते हैं| हरेक पेड़ प्रत्येक मौसम में 25 किलो काजू देता है| पोषण विज्ञानियों में अनुसार 6 माह से 6 साल तक के बच्चे को प्रतिदिन 100 ग्राम तथा धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते हुए बारह साल के बच्चे को 200 ग्राम काजू देने से सभी प्रकार के एमिनो एसिड्स (प्रोटीन) की पूर्ति हो जाती है| काजू पर फफूँदी आदि नहीं लगती|



      काजू के वृक्ष की छाल में एनाकर्डियक एसिड तथा कार्डोल नामक टॉनिक पाया जाता है, जिसका बाहर् का लेप खुजली, दृष्ट व्रण, कुष्ट पर किया जाता है| इसका तेल अतिदाहक है| इसके पेड़ से प्राप्त गोंद क्रमिध्न होता है| इसे ग्रंथियों एंव सूजन पर बांधने से लाभ होता है| काजू से एनाकर्डियक एसिड बनाया जाता है| आयुर्वेद की दृष्टी से काजू लघु, मधुर, सिनग्ध, उष्ण, वातशामक, मष्तिक तथा नाड़ी बाल्य, जठराग्नि प्रदीपक, शुक्रवर्धक, केश्य, संग्रहनी, अर्श, गुल्मोदर, व्रण, कर्मी आदि रोगों को दूर करने वाला तथा पितनाश्क है| इसका तेल पोषक एंव सिनग्ध तथा प्रतिदाहक है| इसके तेल से एनाकर्डियक एसिड बनाया जाता है| इसका तेल कुष्ट, दर्दु तथा दृष्ट व्रण को ठीक करता है|



      कनाडा के मोंट्रियल विश्विधालय के वैज्ञानिकों ने खोज की है कि काजू मधुमेह की रोकथाम में काफी मदद करता है| इन वैज्ञानिकों का शोध लेख प्रमुख जर्नल ‘मोलेक्युलर न्यूट्रीशन एंड फ़ूड रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ है| मुख्या शोधकर्ता पियरे एस हडाड के अनुसार काजू खाने से शारीर में इंसुलिन का लेवल बढ़ जाता है, इंसुलिन का लेवल बढ़ने से शारीर की मांशपेशिय कोशिकाएं शर्करा का भलीभांति जज्ब कर उपयोग करने लगती हैं| इतना ही नहीं इंसुलिन मष्तिक बैरियर को पर करके अपने साथ काजू, खरोटआदि में मौजूद ट्रीप्टोफेन को दिमाग में पंहुचा देता है जिससे सेरोटोनिन का उत्तपादन बढ़ जाता है| सेरोटोनिन हैप्पी हार्मोन है जो डिप्रेशन तनावादि को दूर करता है| एक अन्य प्रयोग से प्रमाणित हुआ है कि अल्झीमर्स की प्रारम्भिक अवस्था में दिमाग में इंसुलिन का लेवल कम हो जाता है| दिमागी कार्यकुशलता, याददाश्त एंव बुद्धिमता के लिये इंसुलिन बेहद जरुरी जैव रसायन है, इसी के द्वारा दिमाग के सूचना संसार का नेटवर्क संचालित होता है| काजू इंसुलिन के लेवल को बढाता है



       काजू स्नेहन, अनुलोमन, मूत्रल, कुष्ट, वेदनास्थापक, रक्तशोधक तथा ह्रदय होता है| यह श्रेष्ट कोटि का पौष्टिक मेवा है| इसमें पूर्ण तथा प्रथम श्रेणी का प्रोटीन होता है| काजू का प्रोटीन यूरिक एसिड तथा यूरिया का निर्माण नहीं करता| इसलिए यह सामिष आहार से भी उच्च कोटि का प्रोटीन आहार है| इसमें श्रेष्ट किस्म की वसा (46.9 प्रतिशत) होती है| जो जैतून एंव जन्तुज वसा से श्रेष्ट है| इस वसा को खाने से वजन टो बढता है परन्तु रक्त में कोलेस्ट्रोल नहीं बढता| इसमें प्रचुरता से विटामिन ‘बी’ कोम्पलेक्स थायमिन होता है जो नाड़ी मण्डल एंव पाचन संस्थान को शक्तिशाली बनाता है| यह मन्दाग्नि, अवसाद तथा स्नायु दौर्बल्य को दूर करता है| इसका लोहा शीघ्र अवचूषित होकर रक्तहीनता को दूर करता है| काजू को किशमिश, खजूर आदि सूखे मीठे फलो के साथ खाने से कब्ज, जनरल डेबिलिटी आदि अनेक प्रकार की बिमारिया दूर होती है तथा यह काफी स्वादिष्ट होता है| काजू में श्रेष्ट किस्म का ऑलिइक एसिड (73 प्रतिशत), लिनोलिक एसिड, स्टियरिक तथा पामिटिक एसिड नामक ग्लिसराइड्स वसाम्ल पाए जाते है| काजू का तेल घी से भी श्रेष्ट होता है| इसमें कैरोटिन विटामिन ‘ए’ होने से इसका रंग हल्का पीला होता है| काजू की गिरी कच्ची ही खाए| वैसे इसे भुन-तलकर तथा तलने के बाद नमक-मिर्च लगाकर भी खाते है| तलने-भूनने से इसके पोषक तत्व कम हो जाते है| 5-10 काजू के दाने रात्रि को भिगोकर सुबह उसे सिलबट्टे पर छोटी इलायची तथा खजूर डालकर पिसें| यह बहुत ही स्वादिष्ट, बल, वीर्य, स्वस्थ्य एंव सौन्दर्यवर्द्धक पेय है| प्रतिदिन 5 काजू खूब चबा क्र खाने के बाद एक चम्मच शहद चाटें| यह मष्तिक तथा नाड़ीमंडल को ताजगी प्रदान करता है तथा सभी प्रकार की कमजोरी को दूर करता हैं|

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