साधना प्रखार हम करें, दृढ़ संकल्प मन में धरें।
खिल उठे सहस्रदल कमल, सृजित हो नवयुग विमल॥
एक बार दो गरीब व्यक्ति घर से थोड़े चने लेकर
रोजगार ढूंढने दुसरे शहर की और रवाना हुए| जेब में धन नहीं था पैदल चलते-2 चने खा लिए| अब
फिर भूख लगी, जंगल से गुजर रहे थे| एक व्यक्ति ने अपने दुसरे साथी से कहा की बहुत
भूख लगी है क्या करें? दुसरे व्यक्ति ने सांत्वना देते हुए कहा कि खाली मुहं ऐसे ही
चला लेते है| जिससे की चने चबाने का अहसास हो जाये| दोनों लाचार होकर मुंह ऐसे ही
चलाने लगे| क्या इससे भूख मिट पायेगी?
यह
तो मात्र एक प्रंसग था क्या हम गायत्री परिजनों की यही स्थिति नहीं हो गयी है| सन 80-85
से हम हवन कराते हैं व पुस्तके बेचते हैं और कहते हैं कि महाकाल ने गायत्री परिवार
को युग निर्माण के लिए चुना है| 30-35 वर्षो से हम यही करते आ रहे हैं| जिससे
गायत्री परिवार का प्रचार तो रहा है गायत्री परिवार बढ़ भी रहा है| परन्तु युग
निर्माण का कार्य एक समर जैसा है जिसे युग सैनिको ने पूरा करना है| यदि सेना विशाल
हो परन्तु बन्दुक चलाना न जानती हो, युद् से डरती हो तो क्या युद् जीता जा सकेगा|
यही प्रशन चिह्न हमारे ऊपर भी लगा हैं| यदि हमने 24,000 लोगो का चयन कर उनको उच्च-साधना
के द्वारा समर्थ बनाया होता तो हम एक Milestone पार कर पाते| लोग हम पर हँसते हैं
व आक्षेप लगाते हैं कि 21वी सदी की गंगोत्री जो शांतिकुंज हरिद्वार से निकलती थी
कहाँ खो गयी। हम लाचार हाथ पर हाथ धरे बैठे चुपचाप सब कुछ सुनते व सहते रहते हैं|
गायत्री
परिवार में सब तरह के लोग हैं| एक तो वह जो खुद की इच्छायों, समस्याओं तक ही सीमित
हैं उनका परिवार सुख शांति से चलता रहे, वो गुरु जी, गायत्री माता की जय बोलते रहेंगे|
दुसरे वो जो महत्त्वकांक्षी है, स्वार्थ व सम्मान से जुड़े हैं उन्हें पद,
प्रतिष्ठा मिलती रहे वो गुरु जी का काम करते रहेंगे| मिशन के लिए चंदा जुटाते
रहेंगे| ऐसे लोग अधिक ध्यान गद्दी की सुरक्षा में लगाते हैं, गुटबाजी करते हैं व अपने
चारों और चापलूस देखना-पलना पसंद करते हैं इससे उनकी गद्दी सुरक्षित नज़र आती हैं| तीसरे
वो लोग हैं जो वास्तव में अध्यात्मिक हैं, गुरु जी की प्राण चेतना से जुड़े हैं,
राष्ट्र की मानवता की, मिशन की सचमुच सेवा करना चाहते हैं| त्याग और तप का आदर्श
लेकर विपरीत परिस्थितियों से जूझते रहते हैं| असुरी शक्तियों के घातक बार भी इन्ही
लोगो पर होते हैं परन्तु सब कुछ सहकर वीर सैनिको की भांति अपने पथ से विचलित नहीं
होते| गायत्री परिवार की भीड़ में से ऐसे समर्पित लोगो को चुनना है और उनको सावित्री
साधना द्वारा समर्थ बनाना है जिससे वो शक्ति के अवतरण को धारण करने का विज्ञान
जाने व असुरी शक्तियों का डटकर मुकाबला कर संगठन का नेतृत्त्व कर सके| जब तक नेतृत्त्व
अयोग्य, कायर व संकीर्ण लोगो के हाथ में रहेगा हम युग निर्माण की दिशा में कोई भी
सार्थक कदम नहीं उठा पाएंगे| युवाओं के सम्मलेन तो होते रहेंगे परन्तु साहसिक
अभियानों को गति नहीं मिल पायेगी| राजनेताओं से भेटें तो होती रहेगी परन्तु मात्र
गुलदस्तों व शालों का आदान-प्रदान चलता रहेगा| सरकार पर कुछ नया करने का दबाव नहीं
बना पाएंगे| धर्म-तन्त्र का कार्य है राजतन्त्र पर दबाव बनाकर उनसे राष्ट्र पर जो संकट
मंडरा रहे हैं उनके लिए ठोस कदम उठाने की बात की जाये| आज देश पर निम्न प्रकार के
संकट मंडरा रहे धर्माधिकारी व नेता इस दिशा में बोलने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे
हैं|
1. जनसँख्या
वृदि
2. बढती
अश्लीलता व कामुकता
3. कृषि
भूमि का खादों व उर्वरको द्वरा विनाश
4. गलत
आरक्षण नीति द्वारा समाज में असंतोष
5. सरकारी कार्यलयों में भ्रस्टाचार
6. गो
सरंक्षण
7. कचरा
प्रवन्धन
8. विवाहों
पर अंधाधुन्द खर्च
9. प्रदुषण
क्या
केवल मीठी-2 बाते बनाने से काम चल जाएगा? क्या केवल दीपक की बात करने से रोशनी हो
जाएगी? इसके लिए किसी को दीपक जलने की पहल करनी होगी|
एक
दृष्टांत से बात समझायी जा रही है| पहाड़ के उस पार दुश्मन की सेना खड़ी है| कायर
सेनापति से सेना पूछती है क्या करें| सेनापति आदेश देता है जाओ 10 लोग चोटी पर
चढ़कर देखो कि शत्रु सेना में क्या हलचल है| सैनिक चोटी पर चढ़कर देखते हैं कि शत्रु
सेना युद्ध की तैयारी कर रही है| सेनापति से पूछा जाता है कि अब क्या करें तो
सेनापति कहता है कि पुन: ठीक प्रकार से देखकर आओ कि शत्रु सेना क्या कर रही है? तो
सैनिक चोटी पर चढ़कर देखते हैं व कहते हैं कि शत्रु सेना ने भी पहाड़ी पर चढ़ना
प्रारम्भ कर दिया है| सेना ने फिर पूछा क्या करें तो सेनापति कहते हैं कि जाओ
अनुमान लगाओ कि शत्रु सेना कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है| सैनिक ऊपर चढ़ते हैं तो
पता चलता है कि शत्रु सेना भी चोटी के निकट पँहुचने वाली है| अंत: सेनापति अपने
सैनिको को कहता है कि शांति प्रस्ताव लेकर जाओ सम्भव हैं वो मान जाये| सैनिक शांति
प्रस्ताव लेकर जाते हैं तो शत्रु सेना अस्वीकार कर देती है| सेनापति कहता है कि
उनको कुछ धन आदि देकर वापिस भेजने का प्रयास करो|
क्या
यही कार्य हम भी तो नहीं कर रहे हैं? 40 वर्षो से मिशन का प्रचार-प्रसार में जुटें
हैं| आज भी उसी पर जोर दे रहे हैं| सद विचारो का प्रचार आज समाज में खूब हैं
ज्ञान की अच्छी बात आपको हर कोई सुना देगा परन्तु सद विचारो की स्थापना नहीं हैं|
सदाविचारो की बलपूर्वक स्थापना करने के लिए शक्ति चाहिए जिसका हम मे अभाव है| इसी
कारण हम केवल मेले ठेले लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान बैठते हैं| ठीक है
गुरुदेव ने कहा था कि विचारो को घर-घर पंहुचाओ लेकिन गुरुदेव ने अभियान के समय
सीमा 2000 तक निर्धारित की थी| इस अभियान से बड़ी भीड़ हमारे पास आयी अब उसमे से
योग्य लोग चुनकर उनको समर्थ युग सैनिक बनाने से हम क्यों कतरा रहे हैं? क्या हमारी
थाली में छेद हैं जो दुसरो को ऊपर उठता देख डर लगता है? यह तो इस तरह हुआ कि खुद में
कुछ करने का साहस नहीं दुसरो को भी आगे बढ़ने नहीं देंगे|
यदि
गुरदेव के सच्चे सपूत हैं तो इस मानसिकता को हमें छोड़ना होगा नहीं तो आने वाली
पीढ़ी हमारी छाती पर पैर रखकर रास्ता बनाने जा रही है जो हमारे लिए बड़ा दुखदायी
होगा| यदि हम स्वेच्छा से उनको ऊपर उठाते हैं तो हमारा भी सम्मान होगा| यदि उनको
डाउन करने का प्रयास करते हैं तो एक दिन तो सब्र का बांध टूटेगा ही व पानी सिर के
ऊपर से गुजरेगा| युग निर्माण महाकाल का संकल्प हैं| वैसे तो हम स्वयं को गुरु जी के
करीब समझते हैं परन्तु इतनी छोटी बात समझ नहीं पाते| स्वार्थ और पद के लोभ में जो
अन्धे हो चुके हैं उनके लिए ब्रह्मदंड ही एक मात्र उपाय शेष है| महाकाल भी क्या
करे जिनको अपने हाथ से पाल-पोस कर बड़ा किया अरमान सजाए उनको दंड कैसे दें? परन्तु
महाकाल धर्मयुद में केवल सत्य के साथ रहेगा किसी की भी अन्याय अनीति सहन नहीं
करेगा चाहे वो उसका कितना प्रिय पात्र रहा हो| अभी तक गुरु जी अपने सोम्य रूप से कार्य कर रहे
थे परन्तु अब महाकाल अपने रूद्र रूप को धारण करने जा रहा है| गायत्री परिजनों से
यही अनुरोध है कि सदा सत्य का साथ देना सीखें, पद प्रतिष्ठा का लोभ त्यागकर
उच्चस्तरीय तप व त्याग बलिदान के भावो को अपने भीतर विकसित करें| इस जीवन में कुछ
ऐसा कर पाए कि आने वाली पीढ़ी हम पर सदा गर्व करे व हम जहाँ भी हो जिस भी लोक में
हो दिव्या जीवन व सद्गति को प्राप्त हों|
जो
बाते इस लेख में लिखी गयी हैं वो बाते बहुत से लोग जानते हैं परन्तु आपनी कमियों
को छुपाने के लिए स्पष्ट चिंतन नहीं करते| आज हमारे गुरु जी इज्जत दाँव पर लगी है,
हमारे प्राण भले ही चले जाएँ परन्तु हम अपने जीते जी युग निर्माण से पीछे नहीं
हटेंगे ऐसा साहस हमारे भीतर होना चाहिए| सच्चाई को जानते हुए भी सच्चाई उजागर करने
का साहस हममे नहीं है क्योकि इसके दुष्परिनाम हम सभी जानते हैं, इसलिए चुप रहते
हैं व अन्दर ही अन्दर घुटते रहते हैं| परन्तु जब सवेरा महसूस कर एक मुर्गा बांग
देता है तो बाकी मुर्गे भी बोलने लगते हैं| युग निर्माण का सूर्य उदय होने जा रहा
है अतः सत्य कहने का साहस, सच्चाई पर चलने का साहस हमें बटोरना होगा| क्या हमारे
गुरु ने विपरीत परस्थितियों में कार्य नहीं किया, समाज की गलतियों का विरोध नहीं
किया, उसके लिए खतरों से नहीं खेला| यदि हम महाकाल से वास्तव में जुड़े हैं तो हमें
निर्भय होना सीखना होगा| हम कुत्ते के पिल्लै नहीं हैं जो जगह-जगह पूंछ हिलाते
घुमे वरण सिंह की सन्तान हैं जो अपने स्वाभिमान के लिए जियेंगे व अपनी संस्कृति की
रक्षा के लिए कोई भी मूल्य चुकाने से पीछे नहीं हटेंगे| हमें भले ही गीता पर
बड़े-बड़े भाषण करना न आता हो परन्तु गीता हमारी आत्मा में बसी हैं| हमे भले ही गुरु
पर बड़ी शोध करना न आता हो परन्तु गुरु हमारी आत्मा में बसा हैं| उपदेशो का समय
समाप्त हो रहा है, कुछ कर गुजरने का समय आ रहा है जो इस मानसिकता को रखते है,
संस्कृति की रक्षा के लिए, युग सेना के लिए जीवन दान दे सकते हों, ऐसे महान सपूतो
को मेरा नमन् |
इस लेख का मूल प्रयोजन यह है की मधुमक्खी के छत्ते में सिर्फ मधुमक्खियाँ ही न रहें अपितु शहद का भी प्रयोजन पूरा हो | इसी प्रकार गायत्री परिवार में हम भीड़ देख कर खुश न हों केवल पुस्तकों व हवनों तक सीमित न रहें अपितु युग निर्माण की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जायें जिन्हें ऐतिहासिक कहा जा सके| यह तभी संभव है जब सवा करोड़ की विशाल गायत्री परिवार की सैन्य का नेतृत्त्व २४००० कुशल सेनापति करें| अधिक से अधिक युवाओं का भागीदारी हो उन्हें तेजस्वी तपस्वी व समर्थ बनाया जाए| जगह जगह शक्तिपीठों पर पांच सात वृद्ध एकत्र हिसाब किताब को लेकर तू तू मैं मैं करते रहें इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं हैं| रचनात्मक व संघर्षात्मक मोर्चों की उचित भूमिका युग सैनिकों के द्वारा निभाई जाये यही इस लेख का उद्देश्य हैं .
:- विश्वामित्र राजेश इस लेख का मूल प्रयोजन यह है की मधुमक्खी के छत्ते में सिर्फ मधुमक्खियाँ ही न रहें अपितु शहद का भी प्रयोजन पूरा हो | इसी प्रकार गायत्री परिवार में हम भीड़ देख कर खुश न हों केवल पुस्तकों व हवनों तक सीमित न रहें अपितु युग निर्माण की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जायें जिन्हें ऐतिहासिक कहा जा सके| यह तभी संभव है जब सवा करोड़ की विशाल गायत्री परिवार की सैन्य का नेतृत्त्व २४००० कुशल सेनापति करें| अधिक से अधिक युवाओं का भागीदारी हो उन्हें तेजस्वी तपस्वी व समर्थ बनाया जाए| जगह जगह शक्तिपीठों पर पांच सात वृद्ध एकत्र हिसाब किताब को लेकर तू तू मैं मैं करते रहें इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं हैं| रचनात्मक व संघर्षात्मक मोर्चों की उचित भूमिका युग सैनिकों के द्वारा निभाई जाये यही इस लेख का उद्देश्य हैं .
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