Friday, May 22, 2015

युग निर्माण का महाभियान !!

युग निर्माण के महाभियान में नया जोश उत्पन्न करने के लिये ब्रहमचर्य संपन्न 24,000 महान सेनानायको की आवश्यकता है| इनको पुस्तक में विश्वामित्र की संज्ञा दि गयी है| इनका चयन भगवान संव्य कर रहे है, यह पुस्तिका मात्र एक माध्यम है जो मुर्गे की बांग की तरह, घडी के अलार्म की तरह उनको जगाने में सहायक होगी| अनेक मिशन भारत के नव-निर्माण के लिये अपनी और से प्रयास कर रहे हैं परन्तु श्रेष्ट व शक्तिशाली नायको के अभाव में अभियान में तेजी नहीं आ रही है| यदि दूध को तीव्र गति से न विलोया जाये तो मक्खन नहीं निकलता| धीरे-धीरे पूरा दिन बिताते रहें लाभ नहीं होगा| यही स्थिति युग निर्माण मिशन की हो चुकी है कोई भी ऐतिहासिक कदम हम नहीं उठा पा रहे हैं| कारण कि हमारी सेना ही सशक्त व संगठित नहीं है|

       जो कठोर आत्म विश्लेष्ण नहीं करते वो कभी आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर पाते| इसी प्रकार जो मिशन अपनी प्रगति का, लक्ष्य का उचित विश्लेष्ण निर्धारित नहीं करते वो कभी बड़े अभियानों में सफलता प्राप्त नहीं कर पाते| युग निर्माण महाकाल का संकल्प है, वह पूर्ण होकर रहेगा इतना कहकर हम चैन की नींद सोते रहें तो क्या यह उचित है| सोमनाथ के मंदिर पर विदेशी आक्रमण की सम्भावना को लेकर राजा ने पुरोहितो की सभा की| पुरोहितो ने राजा को यह विश्वास दिलाया कि चिंता की कोई बात नहीं| भगवान के मंदिर का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता राजा निशिचिंत हो जाएं| इस मुर्खता का भयानक परिणाम सामने आया|

       युग निर्माण के लिये उचित सेना व सशक्त सेनानायको का गठन समय की आवश्यकता है| 24,000 सेनानायको की बात इसलिए की जा रही है कि यह अभियान विश्वव्यापी है वह इससे अनेक प्रकार के मोर्चो पर फतह हासिल करनी है| इस कारण दो चार अथवा दस बीस पुराने चेहरे मोहरों से काम चलने वाला नहीं हैं| एक विशाल सशक्त फौज का निर्माण आवश्यक है जिसमे आपस में उचित ताल-मेल हो| यह पुस्तिका इसी उदेश्य के पूर्ण करने के लिये लिखी गयी है|

       इसका उदेश्य किसी की भावनायों को आहात करना अथवा अपना कोई निजी मिशन खड़ा करना नहीं है| अपितु यह एक प्रकार का प्रोजेक्ट अथवा विचारधारा है जो इसमें व्यक्त की गयी है| रोगी को कडवी दवा पीनी पड़ती है| युग निर्माण अभियान की सफलता से आज कितने परिजन संतुष्ट हैं? यह अभियान भी रुग्ण अवस्था में संव्य को घसीट रहा है| अंत: कटु विश्लेष्ण करना अनिवार्य ही गया है| आज शातिकुन्ज नवयुग की गंगोत्री को खड़े हुए 40 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं| अपने ही देश में लग-भग एक लाख गायों की प्रतिदिन 60,000 क़त्ल खानों में दर्दनांक हत्याएं हो रही हैं| हमने कभी सरकार पर इस दिशा में दबाव बनाने का प्रयास नहीं किया| मुठ्ठी भर मराठा मुगलों से भीड़ गए थे परन्तु हम सवा करोड़ गायत्री परिवार के लोग क्या कर पा रहे हैं| यह एक विचारणीय प्रश्न है| क्या आने वाली पीढ़ी हमारे मुंह पर नहीं थुकेगी कि हम केवल मंच से अच्छी-2 बाते करते हैं परन्तु नव-निर्माण की दिशा ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठा पाते| कारण स्पष्ट है कि रचनात्मक व संघर्षत्मक मोर्चो पर हम बहुत कमजोर हैं| मात्र प्रचार-प्रसार कर व युग-निर्माण अभियान महाकाल के भरोसे छोड़कर निश्चिन्त है|

       युग-निर्माण मिशन को इस स्थिति से उबारने के लिये व युग शक्ति को कुछ साहसिक अभियानों की दिशा में मोड़ने के लिये वरिष्ट परिजनों को एकत्र होकर ठोस निर्णय लेने होंगे| डुल-मूल नीतियों से युग-निर्माण नहीं होने वाला है| जब तक पोलीथिन का प्रचलन है, कांग्रेस घास सब जगह विधमान है, स्वच्छ व स्वस्थ्य भारत का सपना देखना निरर्थक है| जब तक 24,000 विश्वामित्र हम नहीं तैयार कर लेते तब तक अभियानों को गति कैसे मिलेगी| युग-निर्माण अभियान एक समर की भांति हैं जो मीठी-मीठी बातों से नहीं जीता जा सकता| इसके लिये कुशल योद्दाओं की आवश्यकता हैं| हमारा ध्यान इन युग के विश्वामित्रो के चयन, संगठन, एंव सशक्तिकरण की और होना चाहिए यही आहवान पुस्तक के माध्यम से किया जा रहा है| 

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