Saturday, March 19, 2016

कर्मफल से सावधान


     मधु के नाम से जाना जाने वाला एक युवक ‘मधु विद्या’ की खोज में बद्रीनाथ के ऊपर हिमालय की कन्दराओं में साधनारत है। ‘मधु विद्या’ अर्थात् जिसको पाकर जीवन में मधुरता व आनन्द की कमी नहीं रहती। उपनिषदों में उच्चस्तरीय साधना को मधु विद्या, पंचाग्नि विद्या आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है। उग्र साधन में भीषण शीत को सहन करते हुए पाषाण की भाँति अडिग यह युवक अकेला अपने गुरु ‘श्री गुरु बालाजी’ के निर्देशनुसार ध्यान मगन है। तभी एक करुण पुकार उसके कानों से टकराती है। ‘त्राहि माम’ मुझे अपनी शरण दें प्रभु मुझे आपका सहारा चाहिए। बद्रीनाथ के कपाट बन्द हो चुके थे। यात्री अब नहीं आते फिर यह कौन भटक कर यहाँ आ पहुँचा। यह विचारकर नेत्र खोलते देखा कि अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति भूख, प्यास से निहाल, ठण्ड से काँपल युवा के समक्ष दण्डवत है। वेशभूषा से सूफी प्रतीत हो रहा था।
     युवक ने गुफा के भीतर से कम्बल, फल आदि लाकर उसके समक्ष रखे व कहा कि उसके पास आज यही है। खाओ व जहाँ से आए हो वहीं लौट जाओ। वह व्यक्ति बोला ‘‘मुझे शरण दे प्रभ, मुझे वचन दें कि आप मेरी साधना में मार्गदर्शन गुरु की भूमिका निभाएगें।’’ साधक कहता है- ‘‘तुम्हे यहाँ किसी ने भेजा, देखों तुम्हारे पैर ठण्ड से अकड रहे है, लहुलूहान है यह स्थान भयावह है भयानक हिमपात हो रहा है, जान प्यारी है तो वापस भाग जाओ।
     वह व्यक्ति पुनः निवेदन करने लगा- ‘मैं एक फकीर का शिष्य हँू। शरीर छोड़ते हुए उस फकीर ने मुझसे कहा कि उनके मरने के उपरान्त में बद्रीनाथ के ऊपर जो युवक साधना कर रहा है उनसे दीक्षा ग्रहण करूँ। वही युवक आगे का मार्ग दिखा सकता है। ‘‘कृपया मुझे अपनाकर कृतार्थ करें।’’
     अब युवक साधक बहुत कठोर हो गया ‘‘मतेच्छ! तुम तो माँसाहारी हो, तुम को क्या जानों? मैं तुम्हे स्वीकार कर अपना अमूल्य समय नष्ट नहीं कर सका ‘‘ऐसा न करे भगवन! बड़ी कठिनाई से आपको ढूढा है, मार्ग में प्राणों का मोह छोड़ कर आपकी द्वार आया हँू।’’ युवक चिल्लाया- ‘‘पर मैं तुम्हारी सहायता नही करुँगा, नीचे जाकर कोई और गुरु तलाश कर लो।’’ 
     ‘‘यदि आप मुझे ठुकरा देंगे तो अलकनन्दा में कूदकर अपनी जान दे दँूगा।’’ ‘‘तो मर जाओ मेरी बला से’’ वह युवक कठोरता से बोला। वह व्यक्ति पुनः निवेदन करने लगा’’ मैं आपके गुरु स्वीकार कर चुका हँू। आपकी आज्ञा शिरोधार्थ कर में अलकनन्दा में प्राणहुति दे रहा हँू। यह कहकर उस व्यक्ति ने छोछकर अलकनन्दा में कूद कर जीवन लीला समाप्त कर डाली।
     साधक के होश हवाश उड गए कि यह क्या हो गया। सही हुआ या गलत कुछ समझ नहीं आ रहा था। भारी मन से अपने गुरु ‘श्री बाबा जी’ को स्मरण करने लगा। शिष्य की करुण पुकार ‘बाबाजी’ के कानो में पहुँची। बाबाजी आकाश मार्ग से कुछ घण्टो पश्चात् वहाँ प्रकट हुए। ऐसे लगा मानो घिरती सांझ के झुटपुटे में उनकी उपस्थिति से अचानक उजाला हो गया। लंबे, गोरे लगभग यूरोपीय लोगों जैैसी रंगत वाले, बाबाजी के लम्बे फहराते बाल थे लगभग 16 वर्ष के युवा प्रतीत होते थे। एक धोती के अलावा उनका दृष्ट षृष्ट गठीला शरीर नंगा था। वे नंगे पैर बड़ी मनोरहता से चलते थे। आते ही वो स्थिति को भाँप गए। उनकी चमकती हुए बड़ी-बड़ी आँखें अपने युवा शिष्य मधु पर पड़ी, ‘‘बेटे। यह तुमने क्या भयकर कृत्य कर डाला। वह केवल ‘‘बाबाजी’’ कह सका व उसकी आँखों से आँसू बह निकले और वह उनके चरणों में गिर पड़ा ‘‘मेरे बच्चे अपने पर सयंम रखो, चलो तुम्हारी गुफा में चले है’’ दोनों ऊपर चढ़कर गुफा में पहुँचे ‘‘तुम्हे थोड़ा धैर्य दिखाना चाहिए था वह वृद्ध जो कहना चाह रहा था उसे ध्यान से सुनना चाहिए था। क्या एक पवित्र व्यक्ति की पहचान उसके बाहरी रंग रूप से की जा सकती है? एक क्षण में तुमने अपने इतने सातों के तप के पुण्य को गँवा दिया अब इसकी भरपाई करनी होगी।’’ बाबा जी आगे बोले-‘‘तुमने अपने अहंकरपूर्ण व्यवहार से उस व्यक्ति के दुख दिया है अब तुम भी उन दुःख दर्द और परेशनियों कठिनाईयों से गुजरो जिसका सामना उस फकीर ने किया था। खेचरी मुद्रा की अंतिम क्रिया करो ओर आज्ञा चक्र से अपने प्राणों के निकल जाने दो।’’
     आपकी इच्छा सदैव मेरे लिए आज्ञा रही है बाबाजी पर मेरी एक अन्तिम ईच्छा है।’’
     युवा शिष्य ने निवेदन किया। ‘‘बताओ मेरे बच्चे’’ बाबाजी ने पूछा।
     मैं अपने समस्त हृदय से आपको प्यार करता हँू। मैं आपसे मांगता हँू कि आप मेरी देखभाल करेंगे और अपने पावन चरणों में वापस ले आएँगें।
     ‘‘मैं यह वचन देता हँू’’ बाबाजी ने आश्वासन दिया।
He got his next birth in a Muslim family and his name is Mumtaj Ali Khan.
He is a great Yogi of International fame now a days using a nick name Shri M.

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