एक बार यूनान के शहँशाह गम्भीर रूप से
रूग्ण हो गये। उनके दवा दारू अनेक वैद्य तथा हकीमों के इलाज करवाये पर बीमार घटने
के बजाय बढ़ती गई । आखिर,
शाही हकीम जो अत्यन्त बुजुर्ग तथा
अत्यन्त अनुभवी थे, ने कहा – जहाँपनाह। अब एक इलाज बचा है। बहुत गम्भीर परिस्थिति में ही ऐसा इलाज
सुझाया जाता है । पर यह यूनान के मालिक की बीमारी का प्रश्न है। ऐसा नेक तथा दयालु
शहंशाह हम सदियों में नहीं पायेंगे। अत: बीमारी की गम्भीरता को देखते हुए अब वह
इलाज बताना जरूरी हो गया है। शहंशाह ने पूछा, ऐसा
क्या इलाज है जिसे बताने में आप इतनी भूमिका बाँध रहे है तथा कहने में हिचकिचा रहे
है। शाही हकीम ने कहा, हुजूर आप नेक दिल और दयालु है, इलाज क्रूर-प्रकृति का है। अत: कहने
में हिचक हो रही है। शहँशाह ने कहा आप बताये हम अपनी जान बचाने के लिये कुछ भी
करने को तैयार है। हकीम ने बहुत नपे-तुले शब्दों में कहा, इस नामुराद रोग का इलाज अष्ट लक्षण
युक्त मानव के कलेजे का सेवन है। बादशाह सुनकर स्तब्ध रह गया पर जान का सवाल था।
अत: कुछ सोचकर बोले कि हकीम साहब मैं यह इलाज तभी ग्रहण करूंगा जब कोई मुँह मांगा
ईनाम लेकर स्वेच्छा से इन लक्षणों का बालक या युवक हमें सुपुर्द करें।
आज्ञा मिलते ही शहर में तथा राज्य भर
में डोडी पिटवा दी गई कि रूग्ण बादशाह के इलाज हेतु उन लक्षणों का बालक या युवक का
कलेजा चाहिये। जो ऐसा युवक या बालक उपलब्ध करेगा उसे मुंह मांगा मोल दिया जायेगा।
एक व्यक्ति जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त कमजोर थी तथा जिसके आठ बच्चे थे, उसने पत्नी से राय कर गरीबी से निजात
पाने के लिए, अपने पांचवे पुत्र जिसमें आठों लक्षण
मौजूद थे बादशाह को एक लाख दीनार के बदले स्वेच्छा से बेचने का सौदा कर लिया।
लड़का बहुत गिड़गिड़ाया, पर माता-पिता ने कहा, एक तेरे कारण हम सब भूख के कारण मौत के
मुंह में जाने से बच जायेंगे। तुझे परिवार के लिये इस त्याग का शबब मिलेगा तथा
हमें दरिद्रता से निजात मिलेगी।
माता-पिता में से किसी ने बच्चे की
पुकार कर ध्यान नहीं दिया। इस पर लड़का काजी के पास न्याय मांगने गया तो काजी ने
फतवा दिया कि शहंशाह की जान बचाने को यदि किसी बेकसूर कि जान ली जावें तो वह गुनाह
नहीं है। बादशाह से पुकार का प्रश्न ही नहीं था क्योंकि उन्हीं की आज्ञा से सारे
कार्य को अंजाम दिया जा रहा था। एक लाख दीनार चुका कर लड़का खरीद लिया गया तथा
बादशाह के सामने लाया गया । सभी वहां उपस्थित थे क्योंकि बादशाह को हकीम की
निगरानी में बच्चे को मारते ही उसका कलेजा निकाल बादशाह को सेवन करवाना था। हकीम
तैयार हो गये। काजी ने भरे दरबार में फतवा सुना दिया कि यह बादशाह की जान बचाने
हेतु किया जाने वाला नेक कार्य है अत: इसमें कोई गुनाह नहीं बनता। बच्चे को बलि
बेदी पर खड़ा कर दिया गया तथा जल्लाद ने आदेश पाकर बच्चे का सिर कलम करने हेतु
तलवार उठा ली। उसी वक्त बच्चा अचानक आसमान की तरफ सिर उठा कर खिलखिला कर हंस पड़ा।
बादशाह उसके इस कृत्य से चकित हुए। जल्लाद को इशारे से रोक बच्चे को उसके इस तरह
हँसने एवं वह भी गम्भीर मौके पर खिल-खिलाकर हंसने का कारण पूछा। लड़ने ने पूरी
गम्भीरता तथा संजीदगी के साथ निवेदन किया कि जहाँपनाह! माता-पिता सन्तान की
रक्षार्थ जान दे देते है पर मेरे माता-पिता अपना कर्तव्य भूलकर लोभवश मुझे बेच
बैठे। काजी न्याय की मूर्ति होते हैं। वे नीर-क्षीर का उपयोग करते है पर बादशाह की
चापलूसी तथा उन्हें खुश करने को उन्होंने यह अन्यायपूर्ण फतवा दे दिया कि बादशाह की
जान बचाने को किसी बेकसूरों की भी जान ली जा सकती है। बादशाह जो रैयत का मालिक है
तथा उसके जान-माल का रक्षक है वह स्वार्थवश स्वयं का सिर कलम करने जल्लाद को आदेश
दे चुका है तथा अपनी जान के खातिर रैयत का कलेजा खाने को तैयार एवं आमादा है। अत:
मैं इसलिए हँसा कि हे दीन दुनिया के मालिक! तेरे बन्दों की कारगुजारी तो देख ली अब
तेरी भी देख लूं कि तू इस जल्लाद की उठाई तलवार का क्या करता है बादशाह का दिल पर
उस बच्चे की चुभती तथा बेबाक बात गहरे तक असर कर गई। उसका दिल दहल गया। वह सम्भला
तथा चित को स्वस्थ कर बोला,
बेटा! मुझे क्षमा कर दें। अब इस जल्लाद
की तलवार दुबारा तेरे पर नहीं उठेगी। यह मेरा आदेश है।
लड़का फिर हँसा तो बादशाह ने पूछा अब
क्यों हँस रहे हो? उस लड़के ने कहा कि जहाँपनाह दुनिया
में तीन बातों की अपेक्षा की जाती है-
1. माँ-बाप से प्यार की,
2.
काजी (न्यायाधीश) से न्याय की, और
3. राजा से संरक्षण की।
पर जब यह तीनों निराश कर देते है तो ‘‘हारे को हरि की लाज’’ के अलावा कोई सहारा नहीं रह पाता। मैं
इसलिये हँसा कि हे अल्ला-ताला! हे खुदा बन्द! जब मैं सब ओर से निराश हो गया तो
तूने लाज रखी है, कहा है-
जाको राखे सांइया मार सके न कोय।
बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय।।
जिसे वो रखे, उसे कौन मार सकता है। तभी कवि शायर ने
ठीक ही कहा है ‘‘होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है।’’ उसकी रजा बिना कुछ भी सम्भव नहीं
है।
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