मित्रों! अध्यात्म वहां से शुरू होता
है, जहां से आप राम का नाम लेना शुरू करते
हैं और राम का नाम लेने के बाद राम का काम करने की हिम्मत दिखाते हैं और राम की ओर
कदम बढ़ाने की जुर्रत करते हैं। आज वह
परम्पराएं समाप्त हो गई । इसलिए हिन्दुस्तान खुशहाल नहीं हो सकता । हो भी कैसे
सकता है? जिस देश में समाज को ऊँचा उठाने के लिए, मानव जाति की पीड़ा और पतन को दूर करने
के लिए आदमी कुरबानी करने के लिए तैयार न हों, वहाँ
किस तरीके से खुशहाली आ सकती हैं?
कहाँ है हिन्दुस्तान का अध्यात्म
हमारा अंतरंग जीवन भिखारी जैसा है।
जहाँ कहीं भी गए, हाथ पसारते हुए गए। लक्ष्मी जी के पास
गए तो हाथ पसारते हुए गए,
संतोषी माता के पास गए तो हाथ पसारते हुए गए। हनुमान
जी के पास गए तो हाथ पसारते हुए गए। दर-दर पर हम कंगाल होकर गए। मित्रा! क्या
अध्यात्मवादी दर-दर माँगने वाला कंगाल होता है? नहीं, अध्यात्मवादी कंगाल नहीं होता है। वह
राजा कर्ण के तरीके से दानी होता है, उदार
होता है, उदात होता है। लेकिन जब हम तलाश करते
हैं कि हिन्दुस्तान में कहीं भी क्या अध्यात्म जिंदा है, तो हमको पुजारियों की संख्या ढेरों की
ढेरों दिखाई पड़ती है, पर अध्यात्म हमको कहीं दिखाई नहीं
पड़ता है। यह देखकर हमारी आँखों में चक्कर आ जाता है कि हिन्दुस्तान में से
अध्यात्म खत्म हो गया। दूसरे देशों में अध्यात्म है। इंग्लैंड और दूसरे देशों में
जब हम पादरियों को देखते हैं, जहां
खाने-पीने और रहने की सुविधाएं हैं, जहां
सड़कें हैं, जहाँ रेलगाड़ियाँ हैं, जहाँ टेलीफोन हैं, जहाँ बिजली हैं, उन सुविधाओं को छोड़ करके अफ्रीका के
कांगों के जंगलों में, हिन्दुस्तान के बस्तर के जिलों में, नागालैंड के जंगलों में चले जाते हैं, जहां सिवाय कष्ट और तकलीफ के और क्या मिल सकता हैं? वहां कोई चीज नहीं है। मेरे मन में आता
है कि इनके पैर धोकर पीना चाहिए। क्यों? क्योंकि
इन्होंने अपनी जिंदगी में अध्यात्म को समझा है। अध्यात्म का स्वरूप और मर्म समझा
है कि अध्यात्म किसे कहते हैं और धर्म किसे कहते हैं।
मित्रो! हमने तो इनका मर्म कभी समझा ही
नहीं। हमने तो रामायण को पढ़ने का मतलब ही धर्म मान लिया। हमने तो माला घुमाने को
ही धर्म मान लिया। हमारी यह कैसी फूहड़ व्याख्या है? इन व्याख्याओं का मतलब कुछ भी नहीं है। जिस स्तर के हम लोग हैं, ठीक उसी स्तर की व्याख्या हम लोगों ने
कर लीं है। ठीक उसी स्तर के भगवान को हमने बना लिया है। ठीक उसी स्तर की भगवान की
भक्ति को बना लिया है। सब चीजें हमने उसी तरह से बना ली हैं, जैस कि हम थे।
मित्रों! हमको संसार में फिर से
अध्यात्म लाना हैं, ताकि हमारे और आपके सहित हर आदमी के
भीतर एवं चेहरे में चमक आए,
तेज आए और हम सब विभूतिमान होकर जिएँ।
हम शानदार होकर जिएँ और जहां कहीं भी हमारी हवा फैलती हुई चली जाएं, वहां चंदन के तरीके से हवा में खुशबू
फैलती हुई चली जाएं। गुलाब के तरीके से हवा में हमारी खुशबू फैलती हुई चली जाए। हम
जहां कहीं भी अध्यात्म का संदेश फैलाएं, वहां
खुशहाली आती हुई चली जाए। इसलिए मित्रों!
हम अध्यात्म को जिंदा करेंगे। उस अध्यात्म को जो ऋषियों के जमाने में था। उन्होंने
लाखों वर्षो तक दुनिया को सिखाया, हिन्दुस्तान
वालों को सिखाया, प्रत्येक व्यक्ति को सिखाया, लेकिन वह अध्यात्म अब दुनिया में से
खत्म हो गया, अब नहीं है। हिन्दुस्तान में तो नहं ही
रह गया है और दुनिया में कहीं रहा होगा तो रहा होगा। हिन्दुस्तान में हम फिर से
उसी अध्यात्मक को लाएंगे जिससे कि हमारी पुरानी तवारीख को इस तरीके से साबित किया
जा सके। फिर हम दुनिया को वही शानदार लोग देने में समर्थ हो सकेंगे, जैस कि वैज्ञानिकों ने दिए हैं।
मित्रों! वैज्ञानिकों को धन्यवाद है कि
उन्होंने हमारे लिए पंखे दिए, बिजली
दी, टेपरिकार्डर दिए, घड़ी दी। ये चारों चीजें लिए हम यहां
बैठे हैं। उनको बहुत धन्यवाद है और अध्यात्मक विज्ञान का? अध्यात्म विज्ञान का एहसान इससे लाखों
गुना बड़ा था। उसने हमारे बहिरंग जीवन के लिए सुविधाएं दीं और आध्यात्मिक जीवन में
मनुष्य के भीतर दबी हुई खदानें, जिनमें
हीरे भरे हुए हैं,
रामतनु लाहिड़ी कलकत्ता के प्रसिद्ध
समाजसुधारक थे। एक बार वे अपने मित्र के साथ कहीं जा रहे थे कि उनकी नजर सामने से
आते एक व्यक्ति पर पड़ी। अभी तक उस व्यक्ति ने लाहिड़ी जी को नहीं देखा था। वे
तुरंत एक पेड़ की आड़ में छिपए गए और उस व्यक्ति के गुजर जाने के बाद ही वहां से
निकले। उनके मित्र को उनका यह व्यवहार कुछ विचित्र लगा। उसने उनसे ऐसा करने का
कारण पूछा तो वे बोले - ‘‘उन सज्जन ने मुझसे कुछ रूपयों का उधार
लिया हुआ है, हर बार मेरे सामने पड़ने पर वे अनेक
प्रकार के झूठे बहाने बनाते हैं, जिससे
मेरा मन बड़ा दुखी होता है। धर्म सिर्फ स्वयं द्वारा किए गए सत्कर्मो को नहीं कहते, वरन दूसरे के अनीतिपूर्ण आचरण को न
होने देना भी धार्मिकता की सच्ची पहचान है।’’ उकना
उत्तर सुन उनके मित्र बड़े प्रभावित हुए।
अध्यात्म इस छोटे से इनसान को, नाचीज इनसान को जाने क्या से क्या बना
कर रख देता है। ऐसा है अध्यात्म, जो
एक जुलाहे को कबीर बना देता है, एक
छोटे से व्यक्ति को संत रविदास बना देता है, नामदेव
बना देता है। यह छोटे-छोटे आदमियों को, बिना
पढ़े-लिखे आदमियों को जाने क्या से क्या बना देता है। यह बड़ा शानदार अध्यात्म है
और बड़ा मजेदार अध्यात्म हैं।
No comments:
Post a Comment