Tuesday, August 21, 2012

आयुर्वेद - एक अद्भुत चिकित्सा पद्धति


भारतीय ऋषियों ने मानव जीवन के सभी पक्षों की बड़ी गहराई  से खोजबीन की है। दो क्षेत्रों में उनकी विशेष पकड़ रही है - संस्कार एवं चिकित्सा। मानव के आत्मा को उंचा उठाने के लिए संस्कार पद्धति जहां ऋषियों की अनमोल देन है वही स्वस्थ जीवन जीने के लिए आयुर्वेद का विशद भण्डार हमें प्रदान किया गया है।
आज के समय में चारों और symptomatic treatment का प्रचलन है रोग के अनुसार चिकित्सा की जाती है। परन्तु ऋषियों ने बड़ी गहराई में जाकर देखा कि मानव शरीर के तीन मूल आधार है वात, पित्त और कफ। यदि इन आधारों से कोई लड़खड़ाने लगे तो शरीर में रोग अथवा विकृतियां उत्पन्न होने लगती है। यदि इन आधारों के मजबूत किया जाए तो रोग स्वत: भागने लगते हैं।
उदाहरण के लिए यदि किसी के हाथ पैरों, जोड़ो का दर्द हो तो लहसुन दिया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि दर्द प्राय: वात विकार से होता है व लहसुन वात के लिए उपयोगी है। परन्तु यदि वात के साथ पित्त कुपित हो जाएं तो यही लहसुन नुकसानदायक हो जाएगा। दूसरा उदाहरण है वात किशोरों के महावात विध्वंसन रस एक औषधि मानी जाती है परन्तु यदि वात के साथ पित्त कुपित हो तो सूतशेखर रस दी जानी चाहिए।
ऋषियों का दिया हुआ यह विज्ञान आज अधिक कामयाब नहीं हो पाया है इसलिए सबसे बड़े दुख की बात है न तो मरीज न वैद्य, न सरकार, न दवा निर्माता कम्पनियां उन सिद्धान्तों के अपनाते हैं जिस पर आयुर्वेद टिका हुआ था।
पहले वैद्य लोगों के अपने औषधालय होते थे। अपनी देख रेख में वे ध्यानपूर्वक व श्रमपूर्वक दवाईया तैयार करते थे। परन्तु आज बड़ी-बड़ी दवा निर्माता कम्पनियां उन Protocols को follow ही नही करती जोकि आयुर्वेद के ग्रन्थों में वर्णित है।
यदि कोई बड़ा Group इसके लिए तैयार हो जो लाभ के लिए नही अपितु जनकल्याण के लिए आयुर्वेदिक परम्परा को पुर्नजीवित करे, तो मानवमात्र के लिए एक बहुत बड़ी सेवा होगी। पुराने जानकार वैद्य धीरे-धीरे आयु पूरी करते जा रहे हैं। नए वैद्यों को इस प्रकार की न तो मनोभूमि है न प्रयास। कहीं आयुर्वेद का यह अदभुत भण्डार यों ही विलुप्त न हो जाएं।
लोग बड़े-बड़े Engineering College शिक्षा संस्थान खोलते है क्या कोई  आयुर्वेद के उत्थान के लिए अपनी पूंजी, अपना समर्पण प्रस्तुत करना चाहेगा?
Anxiety  nervous weakness के लिए अश्वगन्धा अति उत्तम है परन्तु यदि यही समस्या पित्त कुपित होने के कारण हो रही है तो शतावर उत्तम औषधि हैं अश्वगन्धा नहीं।
यद्यपि लेखक को आयुर्वेद का अधिक ज्ञान नही है परन्तु जब लोगों को रोगों के कुचक्र में तडफता हुआ पाता हूं तो आत्मा बैचेन हो उठती है उनके लिए जड़ी बूटियां ढूंढता हूँ वैद्यों से सम्पर्क कर ज्ञानवर्धन कर पाता हूँ, यह एक ऐसा उपयोगी विज्ञान है जिसके बचाना अत्यावश्यक है।


                             हेतौ लिड़्गे प्रशमने रोगणाम पुनर्भवे।

ज्ञानं चतुर्विधं यस्य राजार्हो भिषक्तम:।। - चरक सूत्र 9-19

अर्थात रोगों की उत्पत्ति के कारण, रोगों को पहचानने के लक्षण, उत्पन्न हुए रोगों के प्रशमन और रोगों को पुन: होने देने का उपाय - इन चारों बातों का जिसे ज्ञान है वह राजाओं की चिकित्सा करने योग्य सर्वश्रेष्ठ वैद्य होता है।

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