Wednesday, September 17, 2014

पांच दुर्लभ चीजें

पाप से अपने को बचानाः चुगली, निन्दा और अशुद्ध आहार से अर्थात् पापजनक आहार व पापजनक व्यवहार से अपने को बचाना। वास्तव में जीव खुद निष्पाप है। वास्तव में आप ब्रह्म-परमात्मा के अविभाज्य अंग हैं, शुद्ध हैं किन्तु अशुद्ध वासनाओं से मिलकर अशुद्ध हो जाते हैं, अशुद्ध कर्मां से मिलकर अशुद्ध हो जाते हैं। इसलिएः
            जानिअ तबहिं जीव जग जागा।
            जब सब बिषय बिलास बिरागा।।
परमात्मा के पद में रुचि हो। और यह रुचि कैसे हो? बार-बार उसका नाम लो, उसका गुणगान करो, उसको प्रति करो।
निरपेक्षताः किसी से हमें कुछ चाहिए नहीं। जितनी निरपेक्षता आएगी उतना मनुष्य ब्रह्मात्व में जल्दी जग जाएगा। अपेक्षा ही ब्रह्म-परमात्मा से दूर रखती है।
सहनशक्तिः सास ने कुछ कह दिया, बहू ने, भाई ने, बेटे ने कुछ कह दिया या दुश्मन ने कुछ सुना दिया तो उद्विग्न न हों, धैर्य रखें। फिर उसको समझायें कि यह ऐसा नहीं, ऐसा है।ऐसा करने वाला आदमी बड़ा प्रभावशाली हो जाएगा।
प्रिय बोलने की शक्तिः यह बड़ी दुर्लभ चीज है। जो किसी से भी मीठी बात नहीं करता, वह अशांत व्यक्ति सभी के द्वेष का पात्र बन कर रह जाता है। लोगों से मिलते समय जो स्वयं ही बात आरंभ करता है और सबके साथ प्रसन्नता से बोलता है, उस पर सब प्रसन्न रहते हैं। जो मधुर वचन बोलता है, दूसरों को मान देता है उसका आंतरिक आनन्द बढ़ जाता है। अं...अॅं...हॅंू...हूॅंह...करके जो दूसरों को नीचा दिखाता है, उसने जीना सीखा ही नहीं। अहं भरी मानसिकता, शुष्कता व अहंकारवाली वाणी नहीं, प्रेम-नम्रता, निस्वार्थता और सारगर्भित वाणी हो। आप अमानी रहें, दूसरों को मान दें।
दान देने की शक्तिः पैसा आना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन देने कि शक्ति होनी चाहिए। कंजूस ब्याज-पे-ब्याज ले-ले के, सम्भाल-सम्भाल के और अंत में छोड़ के मर जाता है। भगवान की कृपा तब देने की शक्ति आती है।

            यदि आप में ये पांच सद्गुण आ गए तो ब्रह्मत्व में प्रतिष्ठित करने में रह महापुरुष हॅंसते-खेलते आपको ब्रह्मसुख में, ईश्वरीय सुख में ले जा सकते हैं।

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