Sunday, September 21, 2014

प्रेरणाप्रद प्रसंग

कहानी नम्बर 1
            एक बार महान सन्त दादूदयाल जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। अचानक उनकी निगाह जमीन पर पड़े एक अर्धमृत कनखजूरे पर पड़ी जिसको चीटियाॅं नोंच रही थी और वह अपने बचाव के लिए तड़प रहा था। सन्त जी कुछ पल के लिए वहाॅं रूके व ध्यान में चले गए। ध्यान की गहराईंयों में उन्होंने देखा कि वह कनखजूरा पुराने जन्म में एक कंजूस सेठ था जो अपने नौकरों से क्रुरतापूर्वक काम कराता था और छोटीं-छोटीं गलतियों पर उनका वेतन काट लिया करता था। अब वही सारे नौकर चीटियाॅं बनकर उसको नोंच-नोंच कर अपना पुराना भुगतान पूरा कर रहे हैं। इसलिए हमें कर्म करते हुए सदा सावधान रहना चाहिए किसी ने सत्य ही कहा है- ‘‘दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं’’
‘‘अपने प्रति कठोर व दूसरों के प्रति उदार रहना ही सच्चे इंसान की पहचान है’’

कहानी नम्बर दो
एक बार एक नगर में एक सेठ और एक गरीब व्यक्ति आमने-सामने रहते थे सेठ जी का सदैव प्रयास रहता था कि नगर के प्रसिद्ध शिव मन्दिर में सर्वप्रथम उनके द्वारा चढ़ाया हुआ भोग अर्पित हो जिससे कि उनको परलोक में सद्गति मिले। सेठ जी सदैव मन्दिर में दान-पुण्य पूजा-पाठ कराते रहते थे। उनके सामने रहने वाला गरीब व्यक्ति रोज श्याम को एक तेल का दीपक जलाकर अपने घर के बाहर इस भाव से रखता था कि जो भी उस मार्ग से गुजरे उसको ठोकर न लगे। कालवश उन दोनों की मृत्यु एक ही समय पर हो गई जब दोनों यमलोक पहुॅंचे तो यमराज ने अपने दूतों को आदेश दिया कि गरीब व्यक्ति को तुरन्त स्वर्ग भेज दिया जाए और सेठ जी को अभी यमलोक में ही रोक लिया जाए इनके अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब-किताब दिया जाएगा तो सेठ ने यमराज से रोष प्रकट करते हुए कहा कि यह गरीब व्यक्ति कभी किसी पूजा-पाठ में सम्मिलित नहीं हुआ आपने इसे स्वर्ग भेजा। मैनें नियमित पूजा-पाठ कराया आप मेरे कर्मों का हिसाब कर रहे हैं। यमराज ने जवाब दिया कि यह नित्य प्रति खून-पसीना बहाकर मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालता था और घर में गरीबी होते हुए भी शाम को दूसरे के भले के लिए तेल का दीपक जलाता था इसने कभी अपना स्वार्थ नहीं सोचा। परन्तु आप सदा अपने स्वार्थों में उलझे रहे जो दान-पुण्य, पूजा-पाठ कराए उसकी भी आपने गणना (Calculation) की कि क्या कराने से आपको स्वर्ग मिलेगा। यमराज ने पुनः कहा कि जब आपने सारा जीवन हिसाब-किताब किया तो हमें भी आपके कर्मों का हिसाब-किताब अवश्य करना पड़ेगा यदि आपने उस गरीब व्यक्ति की तरह अपने बारे में न सोच कर निस्वार्थ भाव से दूसरों का भला किया होता तो आपको भी सीधे स्वर्ग भेज दिया जाता। किसी ने सत्य ही कहा है
            परहित सरस धर्म नहि भाई।
            परपीड़ा सम नहि अघ माहि।।


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