इस कहावत को प्रायः बड़े सामान्य अर्थ में ले लिया जाता है और मजाक तक ही सिमित कर दिया गया है। पर ऐसा नहीं है, अपितु इसका हम सब के जीवन से बहुत ही गहरा और चिकित्स्कीय सम्बन्ध है। यह कहावत कह सकते हैं कि आयुर्वेदिक नुश्खा है :
'गया नर जो खाय खटाई, गई नर जो खाय मिठाई'
गया नर जो खाय खटाई : वह नर मरे हुवे के सामान है जो अत्यधिक मात्रा में खट्टे का सेवन करता है। तात्पर्य यह कि, बहुत ही ज्यादा खट्टी वस्तुओं का सेवन करने से पुरुष को शुक्रमेह अर्थात धातु रोग का शिकार हो जाने की सम्भावना रहती है। और शुक्रमेह से पीड़ित ब्यक्ति का स्वास्थय क्रमशः क्षीण होता जाता है। चेहरा निश्तेज और शरीर धीरे धीरे कृशकाय हो जाता है। उनका पूरा जीवन का ढांचा ही बदल जाता है।
इसी प्रकार, गई नर जो खाय मिठाई : वह स्त्री मरे हुवे के सामान है जो अत्यधिक मात्रा में मिठाई का सेवन करती है। क्योंकि, अत्यधिक मात्रा में स्त्री द्वारा मिठाई का सेवन करने के उपरांत श्वेत प्रदर नामक बीमारी लग जाने की सम्भावना होती है। बोलचाल की भाषा में इसे सफ़ेद पानी आना भी कहते हैं और प्रायः यह देखा जाता है कि इसे एक सामान्य प्रक्रिया मान कर नजर अंदाज कर दिया जाता है। जबकि यह स्राव बढ़ने पर वे अत्यंत क्षीण और दुर्बल हो जाती है जिससे जीवन कष्टकर हो जाता है।
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