प्राकृतिक चिकितसा- मिट्टी, पानी धूप, हवा। सभी मर्ज कि यही दवा।
सुर्यआत्मा जगस्तस्थुषश्च। यजु 9/42
सुर्य संसार की आत्मा है संसार का
विकास सुर्य की सत्ता पर निर्भर है, सुर्य
बिना पौधे नही उग सकते, अंडे नही बड़ सकते, जल की उपलब्धि नहीं हो सकती, वायु का शोधन नही हो सकता, अंधकार
मिट नही सकता। प्रकृति का केंद्र सुर्य है, प्रकृति
को समस्त शक्तियाँ सुर्य से ही प्राप्त होती है, जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर को कोई मोल नहीं उसी प्रकार सुर्य के
बिना इस पृथ्वी का कोई अस्तित्व नहीं, जैसे
भौंरा जीवन रस पाने के लिए फुलों के चारों ओर मंडराता रहता है उसी प्रकार पृथ्वी
अपनी जीवन रक्षा हेतु सामग्री पाने के लिए सुर्य की परिक्रमा करती रहती है, धरती हमारी माता है, सुर्य हमारे पिता है दोनों के रज वीर्य
से हम सभी जीवन धारण किये हुए है, शारीरिक
रसों का परिपाक, शक्तियों का विकास, अंगों की परिपुष्टी, मलों का निष्कासन उसी महाशक्ति पर
निर्भर है।
भगवान भास्कर में इतनी प्रचंड रोग नाशक
शक्ति है जिसके बल से कठिन से कठिन रोग दूर हो जाते है, जिन कपड़ो की गंध सर्फ या साबुन से
धोने पर भी नही जाती, उसे धूप में सुखाने से जरूर चली जाती
है। अब डॉक्टर भी इस बात को स्वीकारते है कि जो कीटाणु खौलते पानी में भी नष्ट
नहीं होते वे धूप के प्रभाव से नष्ट हो जाते है। रोग कीटो के नाश की ऐसी शक्ति है
जो जर्मासाइड़ या फिनाइल आदि किसी वस्तु में नहीं है इसलिए कहना न होगा कि सुर्य
जीवन रक्षक प्रत्यक्ष देवता है।
आधुनिक युग में जब वैज्ञानिक उनन्ति के
साथ-साथ सुर्य के प्रकाश एवं स्वास्थ्य को
अधिकाधिक समझा जाने लगा है। इस युग
में रोग छुड़ाने के लिए सुर्य रशिमयों का प्रयोग पहले-पहले डेनमार्क के डॉक्टर आर
एस फिनसेन ने 1893 ई में किया था इसके दस वर्ष बाद
स्विटजरलैन्ड में डॉक्टर रोलियर ने यक्ष्मा के रोगी के लिए पहली धूपशाला खोलीं
उनके प्रयोगों के परिणाम देख कर धूप की रोग नाशक शक्ति का कायल सारा संसार हो गया।
प्राय: उन सभी लोगों का जिन्होने धूप
कि रोग नाशक शक्ति के बारे में अनुसंधान किये हैं उन सभी का कहना है कि सुर्य किरण
में पाई जाने वाले अल्ट्रावायलेट किरणे मनुष्य के लिए विशेष उपयोगी है। सर्व प्रथम
विज्ञान वेता डेवी ने 18 वी सदी के उतरार्द्ध में अपने
महत्वपूर्ण अनुसंधानो के पश्चात यह घोषित किया कि ‘‘ सुर्य से बढ़कर रोगों को दूर दूर करने वाली और चिकित्सक नहीं है, सुर्य राश्मियों की समता संसार कि कोई
भी औषधी नहीं कर सकती, करोड़ो बिमारीयों को बहुत ही शीघ्र दूर
करन देना सुर्य शक्ति से ही सम्भव हो सकता है’’।
अनुसंधान में पाया गया है। कि प्रात:
कालीन नांरगी रंग वाली सुर्य किरणों में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणे ही
मनुष्य के लिए विशेष उपयोगी है। अधिक तादात से अल्ट्रावायलेट किरणे उपजाने वाली
मशीन बन गई है पर देखा गया है कि इन द्वारा प्राप्त किरणे उतनी लाभदायक नहीं होती
जितनी सुर्य की प्रात: कालीन किरणे, इनके
द्वारा हृदय रोग, पांडु रोग, सिर के रोग, हृदय शुल, सिर दर्द, खांसी, शरीर के जोड़ों में दर्द आदि दूर हो जाते है। शरीर के जोड़ों में
छुपे हुए दर्द को भी धूप की ढूंढ निकालती है और मार भगाती है। यह शरीर की गंदगी को
अपान मार्ग के द्वारा बाहर निकाल देवी है, पसीने
द्वारा भारी मात्रा में गंदगी बाहर निकल जाती है। अब डॉक्टर भी मानते है कि हमेशा
धूप में ही रहा जाए यह आवश्यक नहीं, परंतु
कोशिश की जानी चाहिए कि 15 से 20 मिनट धूप लिया जाये इसके लिए खुले बदन धूप में लेटना चाहिए, व चारो तरफ घूम-घूम कर धूप स्नान करना
चाहिये।
वेद का सार गायत्री भी सुर्य की ही
पूजा है और उसके जप का विधान है कि कमर के उपर नंगे/शरीर पर सुर्य की आरोग्य वर्धक
किरणे पडनें दी जाए अंतर में प्रात: कालीन सुर्य का ध्यान किया जाए, प्रात: कालिन सुर्य की किरणों का
पवित्र स्नान मुफत में मिलने वाली स्वास्थ्य, सुख
व आन्नद का अनुपम साधन है इस से रक्त तो शुद्ध होता ही है बल और उत्साह की भी
प्राप्ति होती है।
डॉक्टर मुर का कथन है कि जिस बालक को
धूप से बचाकर रखा जाता है वह सुन्दर और बुद्धिमान बनने की बजाय कुरूप और मुर्ख
बनता है स्विटजरलैन्ड में जहाँ सुर्य की सीधी किरणे नहीं पहुँचती वहाँ कोठरीया में
जो लोग निवास करते है उनकी मुर्खता पूर्ण बाते देख सुनकर वहाँ पहुँचने वाले यात्री
आशर्चय चकित होकर रह जाते है। उनमें अनेक लोग साफ-साफ बोल नही पाते, सुन नही पाते, अंधे होते है तथा कुरूप भी होते है।
आज भी गाँवों की बुद्धिमान माताऐं
बच्चो को तेल की मालिश धूप में रहकर करने के पश्चात बच्चों के सहने योग्य धूप में
सुला देती है जिससे बच्चों को पर्याप्त विटामिनंस मिल जाया करती है। गाँवों में
रहने वाले किसानो का स्वास्थ्य शहर की कोठरियों में रहने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक अच्छा है इसे कौन नहीं जानता।
अंधेरी कोठरियों में रहने वाले मनुष्य खुले में रहने वालो की अपेक्षा अधिक बीमार
पड़ते है और मरते है। इसलिए यह कहावत है कि ‘‘
ूीमतम जीम ेनद कवेम दवज मदजमत कवबजवत उनेज ‘‘ अर्थात
जहा जिस घर में सुर्य का प्रकाश नही आता वहा डॉक्टर को आना ही होगा। ‘‘नर्क’’ इस शब्द को ही ले न अर्क मिलक बनता है जिसका भावार्थ है न हो अर्क
(सुर्य) जहा यानी जहा सुर्य नही वहाँ नर्क है।
भोजन में जिन तत्वों की कमी रहती है वह
सुर्य किरणो से हमें मिल जाती है। मनुष्य वात, पित्त, कफ जनीत सभी व्याधियों को नाश कर सौ
वर्ष तक जीवित रह सकता हैं हमारे देश के अलावा पारसी, मिश्र, युनान के निवासी भी सुर्य देवता को पूजते है। युनान का सुर्य मंदिर
तो प्रसिद्ध था। 2000 वर्ष पूर्व युनान के प्रसिद्ध वैद्य
हिपोक्रेटिज सुर्य की किरणों द्वारा भंयकर रोगों की चिकित्सा किया करता था। अब तो
सुर्य की किरणों द्वारा चिकित्सा का खुब प्रचलन है, पाचन क्रिया के रोग, चर्म
रोग, मज्जातंतु के रोग तो ठिक किये ही जाते
हैं यहाँ तक की क्षय रोग तपेदिक जैसे
भयानक रोग दूर होने के उदाहरण मौजुद है। डॉक्टर रोलियर तो शारीरिक विकृति के लिए
भी ऑपरेशन के बजाय सुर्य स्नान का ही प्रयोग करते है उनका कहना है कि बालकों के
सम्पूर्ण विकास के लिये सुर्य की किरणे/सुर्य स्नान की अनिवार्य आवश्यकता है।
स्कुल में पाँच कक्षा से हार्इजिन पढ़ाई जाती है यह आठवी तक जारी रहती है। बच्चे
सिर्फ किताबो में पढ़ते है अध्यापक किताबो से पढ़ाते है यही उन्हें प्रारम्भ से ही
धूप लेने की बात भी बच्चो के गले उतार दी जाये तो हमारी पौध बढ़ जाये और यक्ष्मा
की बढ़त ही न रूक जाये बल्कि उसकी जड़ भी कट जाये।
ऐनिमा प्राकृतिक चिकित्सा- चिकित्सा की
ढेर सारी पद्धतियाँ प्रचलित है उन सभी पद्धतियों में प्राकृतिक चिकित्सा सबसे
प्राचीन है। यह पद्धति ऋषियों की वाह्मभ्यन्तर शुचि पर आधरित है। वास्तविक रोगों
का कारण कीटाणु विषाणु नही है अपितु शरीर में विजातिय द्रव्यों का ठहराव ही रोगों
का कारण है। भोजन से रस तैयार होता है। यह सत्य है परंतु अपच होने पर विष तैयार
होता है। यह भी सत्य है। भोजन करने से शरीर को शक्ति मिलती है यह सत्य है परंतु
भोजन पचाने के लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है। यदि भोजन सही समय अपनी शक्ति के
अनुसार भोजन की ‘कैलोरी’ को ध्यान में रखा जाना चाहिए यानी ‘युक्ताहार विहारस्य’ को
ध्यान में रख कर भोजन किया जाए तो कभी बीमारी हो ही नही सकती। सावधानी हटी
दुर्घटना घटी स्वाद में आकर कब सीमा लाँघ गये पता ही नहीं होता पता तब चलता है जब
विजातिय द्रव्यों का उत्पात शुरू होता है। प्रकृति पवित्र है। और वह हर क्षण हर पल
गन्दगी को दूर करने के लिए प्रयासरत रहती है। शरीर प्रकृति जन्य हैं वह शरीर में
संचित मल को निकालने की कोशिश करती है। शरीर में इतनी शक्ति नहीं होती जो उस मल को
बाहर निकाल सकें यही हमें रोग दिखाई पड़ता है। इसी को प्राकृतिक ढंग से यानी (
मिट्टी, पानी, धूप, हवा ) के माध्यम से सहयोग कर आसानी से
मल निष्कासन की क्र्रिया को प्राकृतिक चिकित्सा कहते हैं इससे लाभ यह होता है कि
जो शक्ति मल निष्कासन में खर्च होनी थी वह बच जाती है। मल का निष्कासन अपने आप
वैज्ञानिक विधी से हो जाता हैं धीरे-धीरे रोगी रोग मुक्त ही नही बल्कि पूर्णता
प्राप्त कर लेता है। वास्तविकता यह है कि ‘‘दवा
दवाये रोग को करे नहीं निर्मूल, चतुर
चिकित्सक ठग रहे क्यों करते हो भूल’’ प्राकृतिक
चिकित्सा इतनी सरल व हानि रहित पद्धति है। हर जगह शुलभ ‘‘ मिट्टी, पानी धूप, हवा सब रोगों की यही दवा ‘‘। इस चिकित्सा का सबसे बड़ा फायदा यह
है कि इसमें रोगी ही डॉक्टर बन जाता है। रोगी ने अपने स्वस्थ्य होने के लिए जो-2 क्रियाए की वही दूसरो का करनी होती
हैं भोजन में मल शोधक भोजन व रसाहार व मल शोधक फलाहार दिए जाने की हिदायत दी जाती
हैं वस्तुत: प्राकृतिक चिकित्सा पर बड़े ग्रन्थ लिखे हूए है परंतु लेखक अपने निजी
अनुभव की बात थोड़े से शब्दों में बताना चाहता है। ताकि प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ
सभी ले सके। जिस प्रकार हम नित्य कुल्ला, मंजन, ब्रुश करते है यदि मलाशय की सफाई भी ‘ऐनिमा’ द्वारा कर ले तो को कोई नुक्सान नहीं अपितु भारी लाभ होगा। साथ ही
समय की भारी बचत भी। कब्ज से परेशान लोग घंटो शौचालय में लगा देते है। जबकि एनिमा
से शीघ्र पेट साफ हो जाता है। यदि मलाशय साफ रहा तो किसी प्रकार की गैस नहीं बनेगी
न ही रक्त दुषित होगा न किसी प्रकार के रोग की समस्या बनेगी। यदा कदा वमन कर दें।
कुछ लोग सोचते है कि यदि एनिमा लेने लगेगें तो फिर एनिमा की आदत हो जाएगी यह कहना
बिल्कुल गलत है।
जलोनिति-इस क्रिया के बारे में बड़े
विस्तार में जाए तो ग्रंथ तैयार हो जायगा बड़ी सरल व सुगम प्रक्रिया है इससे ‘ ब्रेन वाश ‘ ही नहीं अपितु पूर्ण शरीर की शुद्धि हो
जाती है सैकड़ो रोगों का इलाज हो जाता है हमारा एक्सीडैन्ट हो गया था। सिर पर भारी
चोट लगी थी। बड़े-2 एलोपैथि डॉक्टरों से इलाज कराया
डॉक्टरो के अनुसार मात्र ब्रेन र्सजरी ही इलाज है, र्सजरी से ठीक ही होगा यह जरूरी नही। उसी हस्पताल के डॉक्टर सिद्दीकी
ने परामर्श दिया की हम भी एलोपैथी के ही डॉक्टर है। यदि आप हमारी सलाह माने तो
प्राकृतिक चिकित्सा ले लें। उनके परामर्शनुसार हमारे दामाद जो खुद डॉक्टर है -
मुझे आन्नद प्राकृतिक चिकित्सालय ले गए। वहाँ हमारा उपचार शुरू हुआ यथा- एनिमा पेट
की लपेट, स्टीमबाथ, जलोनिती, कुनजरक्रिया,
आदि-2 डॉक्टर राजेंदर कुमार योगी एवं अरविंद कुमार योगी जी के मार्ग दर्शन
में इलाज चला। बीस दिन में हम अपना इलाज स्वंय करने लगे और पूर्ण स्वस्थ हो गए। इस
चिकित्सा के अनुसार ही चिकित्सक बन जाता हैं। परम पुज्य गुरूदेव ने सभी चिकित्सा उपचार
के विविध आयम व जीवेम शरद: शतम आदि -2
ग्रंथो में सब कुछ लिख दिया हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा सरल व शीघ्र लाभ के
लिए है इससे अच्छी और कोई पैथी नहीं हैं इसी के साथ प्राकृतिक औषधियों को अनुभवी
वैद्य की सलाह के साथ-2 प्रयोग करने से लाभ और जल्दी होता हैं
वस्तुत: प्राकृतिक चिकित्सा समपूर्ण स्वास्थ प्रदान करती हैं ‘‘तन शुद्धि तो मन शुद्धि’’ क्योंकि शरीर और मन एक दूसरे से जुड़े
हुए है, ऐसा कदापि नहीं हो सकता की शरीर रोगी
रहे और मन प्रसन्न हो जाए। शरीर के रोग से मन के रोग भयंकर है इसलिए शरीर को शुद्ध
रखे मन शुद्ध हो जाऐगा शरीर को शुद्धि हो जाने पर मानसिक रोग भी समाप्त हो जाते है
जिससे बल्डप्रेशर, मधुमेह, हृदय रोग जैसे रोग शीघ्र
अच्छे होते देखे गए है।
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