Sunday, December 9, 2012

कुण्डलिनी साधना की महत्ता पात्रता एवं कठिनाइयाँ-II


प्रारब्धो का भुगतान
यदि प्रारब्धो का बोझ अधिक है तो कुण्डलिनी जागरण बहुत कष्टप्रद हो जाता है। जेसे किसी ने हवन में गीली लकडियाँ लगा दी हो तो हवन करना असम्भव हो जाता है। लकड़ी जितनी कम गीली हो उतना ही अच्छा है। इसी प्रकार कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, ध्यान योग के द्वारा प्रारब्धो को जितना अधिक काट दिया जाए उतना ही उत्तम रहता है। तप, त्याग, तितिक्षा के द्वारा ही प्रारब्ध कटते हैं कुछ व्यक्तियों कि यह आदत होती है कि वो जिस योग अथवा साधना पंद्यति को अपनाते है मात्र उसी को सर्वोच्च मानते है दूसरों की पद्यतियों को हीन भावना से देखते हैं इस चक्कर में कई बार अंह के बन्धन कडे होते चले जाते है व प्रारब्ध कटने से स्थान पर जटिल होते चले जाते है। एक मरीज को एक डॉक्टर की दवा लाभ कर जाती है दूसरे को नहीं कर पाती। कौन डॉक्टर अच्छा है किस मर्ज में अच्छा है इसका निर्णय कर पाना कठिन है? अत: साधक को विनम्र रहना चाहिए एवं सबका आदर करना चाहिए। यह तो बहुत ही दयनीय है कि शिव के भक्त विष्णु के भक्तो को हीन भाव से देखे व विष्णु भक्त शिव भक्त को। इस प्रकार के दावे बड़े ही हास्यप्रद होते है कि केवल उन्हीं की लिखी भगवद गीता असली है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि इस सृष्टि पर केवल उन्हीं को भगवद साक्षात्कार हुआ अन्यों को नहीं। जो ज्ञानी उस परम सत्ता को पा लेता है वह बुद्ध के समान करूणावतार हो जाता है बेकार की बातो, दावों में नहीं उलझता। बुद्ध कभी किसी ईश्वर, देवी-देवता, पूजा पद्यति के विषय में टिपण्णी (Comment) नहीं करते थे। वो कहते थे कि उनके पास इस जगत से दुखो की निव्रती का एक मार्ग है चाहों तो उस पर चल कर देख लो। बुद्ध का सामीप्य ही इतनी शांन्ति व आंनद व्यक्ति में उत्पन्न कर देता था कि अंगुलिमाल व आम्रपाली भी उस लहर में बहते चले गए। एक आँधी आयी और एशिया के लाखो लोग बौद्ध के अनुयायी बनते चले गए। इस आँधी को हिन्दू धर्म में अवतार कहा जाता है। साधक अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाए कि उसका सान्निध्य पाने के लिए लोग ललायित हो। बुद्ध के परिव्राजको का वलय (Aura) भी ऐसा ही था। यह तभी संभव है जब व्यक्ति पर प्रारब्धो का बोझ न लदा हों। प्रारब्धों का बोझ व्यक्ति की सौम्यता, शान्ति व आन्नद का हरण करता रहता है। जो स्वंय स्थिर नहीं है वह दूसरो को क्या स्थिरता प्रदान करेगा यह विचाणीय है।
महात्मा बुद्ध निंरजना नदी के तट पर साधना में लीन थे उनको ज्ञान प्राप्त हो गया। सुजाता (जो उनकी सेवा करती थी) यह भाँप गयी व उनको कहा’’ आपके मुख मण्डल की दिव्यता यह बता रही है कि आपको कुछ विशेष उपलब्धि हुयी है’’ बुद्ध बोले ’’तुमको कैसे पता चला?‘‘ सुजाता- ’’जब भी कोई शव यात्रा यहाँ से गुजरती थी आपके चेहरे पर विशाद होता था परन्तु अब वह खिला रहता है आप स्थितप्रज्ञ हो चुके है। अत: मुझे उपदेश दें। बुद्ध बोले ’’यद्यपि तुमने मेरे साधना काल में मेरी बड़ी सेवा की परन्तु तुम्हारे प्रारब्ध ऐसे नहीं कि मैं तुम्हें प्रथम उपदेश दूँ।‘‘ सुजाता ‘‘फिर इसका अधिकारी कौन है? बुद्ध व सुजाता पास के एक गाँव में जाते है एक किसान की बेटी खेत में काम कर रही है बुद्ध उसको बुलाते है व बड़े प्रेम से उपदेश देते है। मात्र तीन दिन के उपदेश से वह सामान्य कन्या निर्वाण पा जाती हैं सुजाता को बड़ा आश्चर्य हुआ व बोली यह क्या चमत्कार है? बुद्ध बोले यह पिछले कई जन्मों से मेरे साथ साधनारत रही है व इसके प्रारब्ध कट चुके है इस उर्वरभूमि में जैसे ही बीज बोया गया तुरन्त फलीभूत हुआ। सुजाता तुम भी अपनी भूमि उपजाउ बनाओ।
प्रारब्धो के भुगतान क संबंध में एक साधक की आपबीती का जिक्र करना यहाँ बहुत ही प्रांसगिक होगा। एक व्यक्ति के भीतर ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि भरा पड़ा था। अपने दु:खों, कष्टों से उबकर उसने साधना वाली लाइन पर चलने का मन बनाया। परन्तु जब भी वह जप ध्यान का प्रयास करता तो उसका तमस बढ़ जाता और सफलता न मिलती। एक बार देव सत्ताओं ने उसके सत्त्कर्मो से प्रसन्न होकर उस पर शक्तिपात कर दिया। कुण्डलिनी शक्ति के जाग्रत होते ही उसके भीतर भरी Negative Energy के कारण उसके शरीर को  Nervous System Disturb हो गया। हाल इतना बिगड़ा कि उसको जान बचानी भी कठिन दिखने लगा। बड़े-बड़े न्युरोलोजिस्ट से उसने इलाज कराया। उसके सारे Test कराए गए परन्तु रिर्पाटस सही आयी। हालत यहाँ तक पहुँच गई कि साँस फूली-फूली रहने लगी व साँस लेने में भी कष्ट का अनुभव होने लगा। लेकिन मंत्र जप 6 से 8 घण्टे प्रतिदिन होने लगा कभी-कभी अतयन्त आनन्द की स्थिति भी बनने लगी। साधक नींद की दवाइयाँ खाकर इस उर्जा को समाप्त नहीं करना चाहता था। कई वैद्यो को भी दिखाया गया उन्हें भी कुछ समझ में नहीं आया। अत: एक वैद्य ने कहा कि धातुएँ कमजोर पड़ गयी हैं सबसे मूल्यवान धातु वीर्य ही दुर्बल पड़ गयी है। वीर्य पुष्ट करने के लिए मूसली-पाक व बसंत कुसुमाकर रस लेने की सलाह दी गई। उसके लेते ही साधक को राहत मालूम दी। साधक बड़ा ही आश्चर्य चकित था जो काम बड़े-बड़े न्यूरोलोजिस्ट न कर सके वह राह चलते एक वैद्य ने कर दिया। साधक बड़े डॉक्टरर्स की फिसों व टेस्टो में एक लाख से अधिक खर्च कर चुका था। परन्तु किसी परिणाम पर न पहुँच पाया। एक वैद्य ने मुफ्त में ही रोग का समाधान बता दिया। पुराने जन्मों के गलत कर्म ( Negative Energy ) के रूप में व्यक्ति के भीतर एकत्र हो जाते है व समय-समय पर अपना दुष्प्रभाव दिखाते रहते है जिस Negative Energy से साधक कई जन्म तक परेशान हो सकता था वही कुछ वर्षो में साधक ने कुण्डलिनी महाशक्ति की कृपा से भुगतान कर लिया। साधक को कई बातो की सीख मिली :-
1-सदैव सबका शुभ सोचा जाए, किसी से भी ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, न पाली जाए। यहाँ तक कि अपने विरोधियों से भी प्रेम ही किया जाए।
2-ऋषियों के दिए आयुर्वेद के सिद्धांत बहुत गहराई तक जाकर रोग को पकड़ते है। शरीर सात धातुओं से मिलकर बना है यदि कोई धातु कमजोर पड़ती है तो व्यक्ति का (Physical Mantel Balance) बिगड़ना प्रारम्भ हो जाता है।
3-इन्द्रिय संयम द्वारा धातुओं को पुष्ट करके दीर्घायु व निरोग जीवन की उपलब्धि की जा सकती है।
4- Negative Energy को परास्त करने के लिए निष्काम कर्म योग अपनाना आवश्यक है। दीर्घकाल तक सबके लिए सद्भावना का अभ्यास करें। पुराने झगड़ों की फाईलों को बन्द करके रखा जाए।
5-साधना की सफलता के लिए शान्त व प्रसन्न मन रखना अनिवार्य है। उद्वित मन: स्थिति वाला व्यक्ति को सफलता नहीं मिल सकती। साधना में कई बार जो उल्टी सीधी परिस्थिति बनती है उनसे निडरता व धैर्य पूर्वक निबटना होता है। इश्वर कृपा/ गुरू कृपा से कोई न कोई रास्ता निकल आता है।

(यह लेख पुस्तक 'सनातन धर्म का प्रसाद' से लिया गया है जो कि इस ब्लॉग के लेखक राजेश अग्रवाल जी द्वारा प्रकाशित की गई है। पुस्तक डाउनलोड की जा सकती है बिना किसी मुल्य के:-
http://vishwamitra-spiritualrevolution.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
छपी पुस्तक मांगने की कीमत मात्र सॊ रूपए है, डाक द्वारा भेजी जाएगी)

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