भारतीय देसी गाय में बर्दाशत करने की
हैरनीजनक शक्ति पार्इ जाती है। सूखे की स्थिति में जब सही ढंग से हरा-हरा चारा
नहीं मिल पाता, तब एक साधिका की भांति यह गाय सूखे
तिनको को ही खाकर अपना गुजारा कर लेती है। स्वंय को जिंदा रखती है और अपने बछडे़
के लिए भी दूध पैदा कर लेती है। शायद इसने भी संतों-महापुरूषों की तरह प्रभु की
रजा में रहने की कला सीखी है। देसी गाय को संयम में रहना भी भली-भांति आता है। यह
कभी संयम का बांध नहीं तोड़तीं ऐसा नहीं कि खरल में जितना चारा है, यह उसे खत्म करके ही दम ले। उधर यदि
विदेशी गायों की बात करें,
तो वे बहुत खाती हैं। खाती ही रहती हैं
खा-खाकर उनका पेट ही क्यों न फट जाए, वे
बस नहीं करतीं!
देसी गाय की सबसे बड़ी विशेषता है कि
यह जितना प्यार अपने बछड़े/बछिया से करती है, उतना
ही प्यार अपने मालिक/सेवक से भी करती है। मालिक जैसे ही इसके पास से गुजरता है, यह चारा खाना छोड़कर उसके पास दौड़कर
चली जाती है। मालिक जब भी प्यार से इसे सहलाता है, इसकी पीठ और सिर पर हाथ फेरता है, तो
यह भी अपना प्यार लुटाने के लिए तत्पर हो जाती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जब
इसका मालिक बड़े प्रेम से इसका पालन-पोषण करता है, तो इसकी आँखों से अश्रु गिरने लगते हैं। यह अपनी जीभ से उसके सिर व बाहों को चाटती है। इसके ऐसे व्यवहार से
हमें अपनी माँ के प्यार का अहसास होता है। दूसरा, यह बात भी सिद्ध हो चुकी है कि यदि एक अधरंग या चर्मरोग का मरीज इसे
हर रोज सहलाता है, तो उसका चर्मरोग बहुत बहुत जल्दी ठीक
हो जाता हैं देसी गाय का आभामंडल भी बहुत लाजवाब होता है। इसके नजदीक आने से कोर्इ
भी सकारात्मक रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
परन्तु ये सारे अनुभव विदेशी गाय के
पास जाकर नहीं होते। क्योंकि विदेशी गाय में संवेदना बहुत कम होती है वह प्यार के
बदले प्यार नहीं करती। उसकी आँखों में आपको माँ का प्यार देखने को नहीं मिल सकता।
उसकी चमड़ी छूने से आपको कोर्इ आंतरिक अहसास या शारीरिक लाभ भी नहीं होता। चुंकि
विदेशों में रिश्तों की अधिक गरिमा नहीं और विदेशी गाय भी वहीं से है, तो उससे भारतीय गाय जैसी भावानाओं की
अपेक्षा नहीं रखी जा सकती।
सुन्दरता के दृष्टिकोण से भी देखें, तो भारतीय गाय संसार की सभी गायों से
अधिक सुन्दर है। देसी गाय की आँखों केा ध्यान से देखने पर लगता है, जैसे कि इसकी आँखों में सुरमा डला हों
सबसे सुन्दर आँख हिरण की मानी जाती है। हिरण की आँख के बाद यदि किसी पशु की आँख को
सुन्दरता का दर्जा मिले, तो देसी गाय को ही मिलेगा।
देसी गाय की स्मरण-शक्ति भी बेमिसाल है।
इसे आप चरने के लिए कहीं भी कितनी ही दूर
ले जाओ, शाम को यह अपने आप घर पहुँच जाती हैं
सभी गाय इकठ्ठी होकर चरने के लिए मैदानों में जाती है। ऐसा नहीं कि एक पूर्व दिशा
में चली जाए, दूसरी पश्चिम में! सभी अनुशासन का पालन
करती है। मालिक के छोटे से निर्देश को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेती है। अंग्रेजी गाय
में ऐसा कोर्इ अनुशासन नहीं होता। उनमें एकता की भी कमी है। देसी गाय के लिए हर
रोज 2-4 किलोमीटर चलना जरूरी है। ऐसा करने से
इसके हाथ-पैर मजबूत रहते है। देसी गाय को 3-4
घंटे सूरज की रोशनी में रहना भी जरूरी है क्योंकि इसकी पीठ पर बने कुकुंद में
सूर्यकेतू नाड़ी पार्इ जाती है। सूर्य की रोशनी पड़ने से यह नाड़ी क्रियाशील हो
जाती है। यह नाड़ी गाय के शरीर में स्वर्ण (सोने) को पहुँचाती है। इसलिए देसी गाय
केा दूध पीली होता है । जबकि विदेशी गाय की पीठ पर कुकुंद नहीं होती और न ही
सूर्यकेतू नाड़ी होती हैं।
अत: भारतीय नस्ल की गायों के गुण इतने
विलक्षण व अधिक है कि उनकी तुलना विदेशी गायों से की ही नहीं जो सकती।
अखण्ड ज्ञान से साभार Dec. 2012
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