ओ पुरोहित
राष्ट्र के! जगो स्वंय सबको जगाओ,
‘धर्म को जागृत रखेंगे’, धर्म यह अपना निभाओ।
थे तुम्हीं, जिनने सिखाया, राम को शर
-धनु चलाना,
और युग की
असुरता से, प्राणपण से जूझ जाना,
बनो विश्वामित्र
फिर, दुष्प्रवृत्ति
से लड़ना सिखाओ,
ओ पुरोहित
राष्ट्र के! जगो स्वयं सबको जगाओ।
है जरूरत एक अर्जुन की, पुन: इस भरत-भू को,
दे सके सम्मान वापस जो, कि पांचाली वधू को,
जागो युग के द्रोण! सोया राष्ट्र का पौरूष जगाओ,
ओ पुरोहित राष्ट्र
के! जागो स्वयं सबको जगाओ।
राष्ट्र को नवचेतना दो, साधना दो, स्वंय तपकर,
लोकमंगल की
सुरक्षा का बड़ा दायित्व तुम पर,
लोकहित तप की पुनीत परंपरा, फिर से चलाओ,
ओ पुरोहित राष्ट्र के! जागो स्वंय सबको जगाओ।
भूल बैठे हैं
सभी अध्यात्मविद्या , आत्मदर्शन ,
जागृत
उसको करो, सब व्यक्ति हों ईश्वर परायण,
तुम रहे भूसुर धारा के , मान मत अपना गँवाओ,
ओ पुरोहित राष्ट्र के! जगो स्वंय
सबको जगाओ!
माया वर्मा
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