1-आयुर्वेद विश्व की सर्वोत्तम चिकित्सा
पद्यति के रूप में आने वाले समय में जानी जाएगी। ऋषियों का कथन है कि यदि रस को
सिद्ध करने का विज्ञान जान लिया जाए तो विश्व की किसी भी भीषण स्वास्थय संकट का
सामना किया जा सकता है। नि:सदेह आयुर्वेद एक बहुत ही सशक्त पद्यति है। जिनमें
ऋषियों ने एक से बढ़कर एक जड़ी-बूटियाँ, भस्में
व रस का अविष्कार किया। भस्में व रस तैयार करने के लिए नैनो टैक्नोलोजी का उपयोग
किया जाता था। लेखक एक बार किसी भयानक रोग के चंगुल में फंसकर बहुत कमजोर हो गया
था। चलते-फिरते भी काफी कष्ट अनुभव करता था। लेखक की कुछ वैद्यो से अच्छी मित्रता
रही है। एक वैद्य ने लेखक को (लोकोपकारक कम्पनी का) बसन्त कुसुमाकर रस लाकर दिया। अल्प मात्रा में
उसका सेवन जीवन दायी सिद्ध हुआ।
जैसे पावर हाउस, परमाणु शक्ति का उपयोग करते हुए
सावधानी रखनी होती है वैसे ही रसों के
निर्माण व सेवन में भी सावधानी की जरूरत है। यदि रस का विधिवत् निर्माण
अथवा सेवन न किया जाए तो यह गुर्दो पर गलत असर डालता है। जैसे बसन्त कुसुमाकर रस
को गौ के दुध की मलार्इ में घोलकर लेना होता है। यदि मलार्इ गाय के दुध की न हो
अथवा मलार्इ की जगह कुछ ओर ले लिया जाए तो यह लाभ के स्थान पर हानिप्रद हो जाता
हैं।
2-अधिकाँश लोग यह सोचते है कि आयुर्वेद व
होम्योपैथ का कोर्इ नुक्सान (side effect) नहीं
है। इसलिए दवाँए लेने के तौर तरीकों में लापरवाही करते हैं। इन दोनों ही पैथियों
में दोनों तरह की दवाइयाँ है। जैसे होम्योपैथी में यदि कम potency की दवा प्रयोग कर रहे हैं। उदाहरण के
लिए 6 गुणा, 30 गुणा तो यह नुक्सान नहीं देगी परन्तु यदि उच्च पोटेसी (higher potency) जैसे 200 गुणा, 1m गुणा की दवा ली जाए तो इसके इसके
नुक्सान का खतरा सिर पर मँड़राने लगता है। ऐसे ही आयुर्वेद में सामान्यत:
जड़ी-बूटियाँ जैसे आँवला,
तुलसी, अमृता (गिलोय), हरड़
घृतकुमारी, अश्वगंध, शतावर आदि हानि रहित हैं परन्तु कुछ जड़ी-बूटियाँ (जैसे-वच, कुटज) बहुत कम मात्रा में लेना होता
है। लेखक अपने यहाँ कर्इ तरह की जड़ी-बूटियाँ रखता है। एक बार गलती से वच को
अश्वगंध के डिब्बे में ड़ाल दिया गया। लेखक एक चम्मच वच को अश्वगंध समझकर खा गया।
उसके एक घण्टे बाद भयानक उल्टियों का क्रम प्रारम्भ हुआ। लेखक यह जान नहीं पाया कि
ऐसा क्यों हो रहा है? लेखक जल्दी से ऐलौपैथी दवा नहीं लेता।
जब लगभग पाँच घण्टे में चालीस बार उल्टियों हो गयी तो लेखक ने दिमाग पर जोर डाला
कि जो दवा (अश्वगंध समझकर) दूध के साथ ली गयी थी उसके स्वाद में परिवर्तन था।
तत्पश्चात Perinorm का इंजेक्शन लगवाकर ही जान बची।
इसी प्रकार भस्म को बनाने में खतरनाक chemicals व औषधियाँ प्रयुक्त होती है। कुचला व
पारद एक विष है जो शोधन के उपरान्त बहुत लाभप्रद होते है। Shortcut या लाभ कमाने के चक्कर में यदि standard procedures का पालन न किया जाए तो यह लाभ से स्थान
पर नुक्सान भी पहुँचा सकते हैं। पहले चिकित्सा कर्म ऋषियों व तपस्वियों के पास
होता था वो जनकल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करते थे व उनके पास समर्पित शिष्यों
की अच्छी टीम होती थी। उनके संरक्ष्ण में आयुर्वेद खुब फलता फूलता था। मरीजों को
लुभाने के लिए नए-नए तरीकें खोजे जा रहे है कैप्सूलस में भरकर दवाँए दी जा रही है
ताकि मरीज को कडवेपन का अहसास न हो। शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए कटु रस की
अपनी महत्ता है यदि व्यक्ति कटु रस के सेवन से बचेगा तो कभी स्वस्थ नहीं रह पाएगा।
3- क्यों हम होम्योपैथ की दवा जीभ को
साफकर लेते है? क्यों प्याज, लहसुन के सेवन से रोका जाता है? सीधे दवा पेट में उतारइयें। इसी प्रकार
आयुर्वेद दवा में जो प्राणशक्ति (सूक्ष्म शक्ति) होती है उसके अवशोषण के लिए जीभ
द्वारा ग्रहण करना आवश्यक है। दवा जीभ के सम्पर्क में न आने देने से उसका पाचन व
अवशोषण (आँतों द्वारा) ठीक से नहीं हो होता जिससे उसके लाभ से व्यक्ति वंचित रह
जाता है। कर्इ बार तो यह खेल गुर्दे (kidney) की पथरी आदि उत्पन्न करता देखा गया हैं।
आजकल बाजारों में sex problems या ताकत बढ़ाने के लिए एक से एक दवाँए
मौजूद हैं जो लोग इन दवाओं का सेवन गाजर, मूली
की तरह करते है वो अक्सर पथरी व अन्य रोगों को आमंत्रित करते हैं।
लेखक जनता से अनुरोध करता है कि दवाओं
का सेवन सोच समझकर ही किया जाए। आयुर्वेदिक दवाँए यदि लाभ नहीं करेगीं तो कोर्इ
नुक्सान भी नहीं होगा यह धारणा कर्इ बार बड़ी मंहगी सिद्ध होती है।
इस संबंध में अन्य महत्वपूर्ण
जानकारियों के लिए पढें पुस्तक ‘‘ सनातन धर्म का प्रसाद‘‘
No comments:
Post a Comment