Tuesday, February 23, 2021

घुटनों के दर्द में लहसुन का इस्तेमाल

 क्या "लहसुन" का इस्तेमाल घुटनों के दर्द में किया जा सकता है? अगर हाँ, तो किस विधि के द्वारा?

एक बहुत आजमाई हुई विधि है घुटनों के दर्द के लिए!

मेरे मम्मी पापा और मेरे सास ससुर, चारों लोग बुजुर्ग हैं और चारों को ही घुटनों और कमर दर्द की परेशानी है। जिसके लिए वो कई प्रकार के उपाय करते हैं जिसमें मुख्य रूप से रोज योगासन और प्राणायाम है और साथ में तेल मालिश।

मेरा परिवार वैष्णव है तो हमारे मम्मी पापा प्याज लहसुन का खाना नहीं खाते! लेकिन लहसुन का बाहरी उपयोग कर सकते हैं।

मेरी मम्मी एक तेल बनाती हैं घर पर - उसकी विधि मैं आपको बता रही हूँ। सरसों के तेल में गुडूची की लकड़ी, लहसुन और जायफल को उबालकर मम्मी यह तेल बनाती हैं।

गुडूची- गुडूची को गिलोय के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में गिलोय को अमृता भी कहा गया है। गिलोय के बारे में कहा जाता है कि इसकी बेल जिस पेड़ पर चढ़ती है उसके गुण भी अपने अन्दर समाहित कर लेती है। आयुर्वेद में नीम के पेड़ पर चढी हुए गिलोय को सर्वोत्तम बताया गया है।

लहसुन- आयुर्वेद में लहसुन को अमृत तुल्य बताया गया है। लहसुन की भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है। लशति खण्डयति रोगान अर्थात लहसुन अनेक रोगों का नाश करता है।

जायफल- इसके लिए कहा जाता है कि यह वेदनाहर है। जब तेल में इसे पकाते हैं और उस तेल से मालिश की जाये तो यह दर्द हर लेती है।

तो इतने गुणकारी चीजों के साथ बनाया गया यह तेल भी बहुत कारगर होता है।

सरसों के तेल में सूखी गुडूची /गिलोय की लकड़ी डालें और लहसुन और जायफल को कूट कर तेल में डालें। तेल को मध्यम धीमी आँच पर अच्छे से पकाना है। जब तेल पकता है तो इससे तेज महक उठती है जो अप्रिय लग सकती है। तेल को काफी पकाया जाया है जिससे सभी सामग्री का सत तेल में आ जाये।

तेल के पक जाने पर इसे ठंडा करके छान लें और बोतल में भरकर रख लें।

मम्मी सुबह शाम इस तेल से अपने और पापा दोनों के घुटनों की धीरे धीरे मालिश करती हैं। मम्मी का कहना है कि मालिश अहिस्ता और तब तक करनी चाहिए जब तक त्वचा तेल सोख ले।

यह तेल दर्द निवारक होता है। मम्मी इस तेल की बहुत तारीफ करती हैं। मम्मी के कहने पर कुछ और लोगों ने और मेरी सासू माँ ने भी इसे बनाया और मम्मी जी और पापा जी को भी इससे आराम मिला है।

आप चाहें तो इस विधि को आजमा सकते हैं।

एडिट- कई लोगों ने टिप्पणी में पुछा है कि किस चीज को कितनी मात्रा में लेना है तो मैं मोटा मोटी नाप तौल लिख रही हूँ।

लगभग आधा लीटर सरसों का तेल

1 लहसुन/ लगभग 10-12 कलियाँ अच्छे सी कूट कर डालें

2 जायफल, अच्छे से कूट कर डालें

50 ग्राम गुडूची की सूखी डंठल, छोटे टुकड़ों में तोड़ कर डालें

सभी सामग्री को मध्यम से धीमी आँच पर घंटा भर पकायें।

आशा है आपको इस तेल से आराम मिले!

With Thanks By - Suchi Agrawal

अंदर से बढ़ रहे नाखून के घरेलू उपाय

 कभी-कभी पैरों के अंगूठों के नाख़ून अंदर की तरफ मुड़ते हुए बढ़ने लगते हैं। चमड़ी में इन नाखूनों से बहुत दर्द होता है। इसका क्या इलाज है और क्या इसे ऐसे बढ़ने से रोका जा सकता है?

कभी कभी पैरों के अंगूठों के नाखून अंदर की तरफ मुड़ते हुए बढ़ने लगते हैं और चमड़ी में इन नाखूनों से बहुत दर्द होता है।

इस समस्या के कारण पैरों में दर्द, उंगलियों का लाल होना, सूजन आना और कभी-कभी खून निकलना जैसी परेशानियां हो जाती है। इसके अलावा इससे इंफेक्शन का डर भी रहता है। ऐसे में हम आपको ऐसे घरेलू उपाय बताएंगे, जिससे आप इस समस्या को बिना किसी नुकसान के दूर कर सकते है।

आधा कप सेब के सिरके को गर्म पानी में डालकर उसमें 20 मिनट तक पैर भिगो लें। बाद में पैरों को सादे पानी से साफ करें। एक सप्ताह में ऐसा करने से यह समस्या दूर हो जाएगी।

हल्‍के गुनगुने पानी में 1 चम्‍मच नमक डालकर उसमें पैरों को 18-20 मिनट के लिए डूबों दें। इसके बाद साधे पानी से पैरों को साफ करें। दिन में 2 बार हफ्ते भर इसका इस्तेमाल आपकी इस समस्या को दूर कर देगा।

गर्म पानी में लिक्विड एंटी-बैक्‍टीरियल साबुन मिलाएं। इसके बाद इसमें लगभग 30 मिनट तक पैरों को डूबाएं। इसके बाद पैरों को साफ करके नेल्‍स के बीच में कॉटन लगा दें।

नींबू का एक पतला-सा टुकड़ा लेकर उसे अंगूठे पर पट्टी के साथ बांधकर रातभर छोड़ दें। हफ्तेभर नींबू के टुकड़े से पट्टी करने पर आपको इस समस्या से राहत मिल जाएगी।

हर्बल ऑयल नीलगिरी, लैवेंडर, और पुदीना के तेल से बनाया जाता है। इस तेल की कुछ बूदें नेल्‍स के बीच में और घाव के आस-पास डालें। रोजाना इसे लगाने से यह समस्या दूर हो जाएगी।

पैर को 15 से 20 मिनट के लिए गर्म पानी में डूबाकर रखें और ऐसा दिन में करीब तीन से चार बार दोहराएं।

नाखून के किनारों की त्वचा पर जैतून के तेल में भिगोई हुई रूई लगाएं।

जब नाखूनों को ट्रिम करने के लिए समय आता है, तो वही गलती न करें- उन्हें सीधे काट लें, कोनों में कोई कोने नहीं और कोई कोण नहीं। और उन्हें बहुत कम छोड़ने से बचें।

With Thanks By- Ashok Sachdeva

Monday, February 22, 2021

आत्मज्ञान की राह

 इस सत्य के उद्घाटन के पश्चात् भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-

यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते।

सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते।।32।।

शब्दविग्रह- यथा, सर्वगतम्, सौक्ष्म्यात्, आकाशम्, न, उपलिप्यते, सर्वत्र, अवस्थितः, देहे, तथा, आत्मा, न, उपलिप्यते।

शब्दार्थ- जिस प्रकार (यथा); सर्वत्रव्याप्त (सर्वगतम्); आकाश (आकाशम्); सूक्ष्म होने के कारण (सौक्ष्म्यात्); लिप्त नहीं होता (न लिप्यते); वैसे ही (तथा); देह में (देहे); सर्वत्र (सर्वत्र); स्थित ही (अवस्थित); आत्मा-निर्गुण होने के कारण देह के गुण से (आत्मा); लिप्त नहीं होता (न लिप्यते)।

भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ जटिल तत्व को समझाने के लिए अति सरल उदाहरण दिया है। हम सभी अपने जीवन में इस भत्य को अनुभूति कर सकते हैं। आकाश हुए है। सब कुछ आकाश में होता इसके बाद भी आकाश की कुछ भी नहीं होता। गंदगी के ढेर को भी आकाश रहता है, लेकिन उस गंदगी से कभी भी आकाश गंदा नहीं होला। गंदगी के उस घर के हर जाने पर आकाश पहले की तरह यथावत् बना रहता है। इसी तरह खिले हुए, मुगध विवेरते फूल को भी आकाश पैरता है, लेकिन आकाश इस खिले हुए, सुगंधित फूल के सौंदर्य से भी अप्रभावित रहता है। फूल आज है, कल नहीं होता, पर आकाश की स्थिति में कोई अंतर नहीं आता।


आकाश के इस गुण के बारे में गहरी समझ का होना आवस्यक है। क्योंकि जो गुण आकाश का है, वही आत्मा का भी है। किसी भी स्पर्श से आकाश हमेशा स्पर्शरहित और अछूता बना रहता है। हम जब पत्थर पर लकीर खींचते है, तो वह लकीर वहाँ सैकड़ों साल तक बनी रहती है। पत्थर उस लकार को पकड़ लेता है। उसके साथ उसका तादात्य हो जाता लिकीर पत्थर में अमिट हो जाती है। सभी कहने बाली कहते "पावर की लकीर'। वही लकीर पानी पर खोचने पर खिंचती तो जहर है, पर उसी क्षण मिट भी जाती है। पानी लकीर को पकड़ता नही है चिते हो चह मिट जाती है। पानी में क्षण भर भी नहीं टिक पाती।


आकाश में लकीर खींचने की कोशिश करें तो वहाँ बनती भी नहीं । पानी पकड़ता नहीं, पर बनने जरूर देता है। पत्थर लकीर को बनने भी देता है और पकड़ता भी है। आकाश न तो लकीर को बनने देता है और न ही पकड़ता है। इतने पक्षी आकाश में उड़ते लेकिन उनमें से किसी के पदचिह्न आकाश में नहीं बनते । सृजन हो या परिवर्तन अथवा विनाश, आकाश को इनमें से कोई भी नहीं छ् पाता। आकाश हमेशा सब से अस्पर्शित, अछूता बना रहता है।


श्रीकृष्ण अपने वचन में आकाश के इसी गुण की बात कहते हैं। परमात्मा का यही गुण है। जो हमें बाहर आकाश की तरह दिखता है, वही भीतरी आकाश परमात्मा है। हमारे भीतर की चेतना कुछ इसी तरह है। इसे कुछ भी छूता नहीं है। हमारे कर्मों से इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जिस पर प्रभाव पड़ता है, वह चित्त है। उसमें पत्थर की तरह कर्मों व संस्कारों की लकीरें खिंचती रहती हैं, पर आत्मा की पवित्रता व शुद्धता-शाश्वत बनी रहती है। वह हमारे पुण्य, पाप, नैतिकता अथवा अनैतिकता से अकृती बनी रहती है। आत्मा की शुद्धि शाश्वत है। हमारे करने अथवा न करने से इसका कुछ भी बनने-बिगड़ने वाला नहीं है।


हमारे भले व बुरे से मन तादात्म्य बिठाता है। चित्त में इसकी लकीरें पड़ती हैं। शुभ व अशुभ की छाप इसी में पड़ती है। पुण्य व पाप का भागीदार- साझीदार यही होता है। सुख और दुःख, दोनों मन की भ्रांतियों के सिवा कुछ भी नहीं हैं। भीतर छिपी हुई आत्मा न तो सुख पाती है और न दुःख पाती है। वह सदा अपने ही रस में, अपने ही प्रकाश में लीन रहती है। न तो वह सुख में कंपित होती है और न ही दुःख में विचलित होती है। बात विचारणीय है, सत्य चिंतनीय है-यह भीतर कौन है, जो स्वयं हमारे में ही छिपा हुआ है। इसी की खोज, इसी का अनुसंधान अध्यात्म है। एक ऐसे बिंदु को पा लेना, जो सभी चीजों से अछूता है, अस्पर्शित है।


गाड़ी चलने पर गाड़ी का पहिया घूमता है, मीलों की यात्रा करता है, लेकिन गाड़ी के पहिये में जो कील है, वह बिलकुल भी नहीं चलती, बस, स्थिर रहती है। पहिया अच्छे बुरे सभी रास्तों पर चलता है। साफ रास्तों पर भी चलता है, गंदगी कीचड़ से भरे रास्तों पर भी चलता है, परंतु पहिये की कील प्रत्येक स्थिति में स्थिर रहती है। बस, कुछ इसी तरह से शरीर को कष्ट मिलता हैं, सुविधा भी मिलती है। मन दुःख का भी अनुभव करता है और सुख का भी अनुभव करता है, परंतु आत्मा सदा स्थिर रहती है।


शरीर के साथ यदि हमारा तादात्म्य गहरा होता है तो अनेकों शारीरिक कष्ट हमारे दुःख का कारण बनते रहते हैं। अगर हमारा तादात्म्य मन से गहरा होता है तो बहुत तरह की मानसिक व्यथाएँ, चिंताएँ हमें घेरे रहती हैं। यदि हम अपने को शरीर से अलग करने में सफल हो जाएँ तो शारीरिक कष्ट हमारे दुःख का कारण नहीं बनेंगे। इसी तरह से अपने को मन से अलग कर लेने पर हम भावों के तूफानों एवं वैचारिक झंझावातों को दूर खड़े रहकर देखते रहेंगे। शरीर और मन दोनों के पार खड़े होने पर पता चलता है कि यहाँ तो कभी कुछ हुआ ही नहीं। यहाँ तो सब कुछ अछूता, अस्पर्शित है। अगर कोई सृष्टि का पहला क्षण रहा होगा, तो उस दिन जितनी शुद्ध थी चेतना, उतनी ही शुद्ध आज भी है।


अभी तक हमने इस सच की कभी कोई अनुभूति नहीं की है। इसे जाना नहीं है, देखा नहीं है जिसकी हमें जानकारी है, जिसकी हमें अनुभूति है, वह शरीर अथवा मन है। यहाँ तक कि हम मन के संबंध में बहुत कुछ नहीं जान पाए हैं। शरीर के संबंध में अवश्य जानकारी इकट्ठी हो सकी है। मन की कुछ ही परतों का हमें पता चल सका है। अचेतन की परतें तो अभी तक अनजानी, अनछुई हैं। साक्षी होने का तो मतलब यह हुआ कि हम शरीर से भी अपने को तोड़ लें और मन से भी अपने को तोड़ लें। यह जोड़ ही दरअसल गलत है, वास्तविकता में तो हम जुड़े हुए हैं ही नहीं। इसीलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि अनादि होने से और गुणातीत होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होकर भी अकर्ता और निर्लेप है। जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त होने पर भी आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता, ठीक वैसे ही सर्वत्र देह में स्थित होने पर भी आत्मा गुणातीत होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता है । प्रत्येक स्थिति में यह शुद्ध और अस्पर्शित है।

जीवनलक्ष्य की प्राप्ति का राजमार्ग पुरुषार्थ चतुष्य

             मानव जीवन बड़ा दुर्लभ है। मानव जीवन में ही हम जीवन के चरम को छू सकते हैं। जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। मानव जीवन में ही चेतना की शिखर यात्रा संभव है। अतः मानव जीवन मनुष्य के लिए ईश्वरप्रदत्त एक अमूल्य, अतुलनीय व अनुपम उपहार है।


            यह तो एकमात्र मानव जीवन ही है जिसमें भोग नहीं, बल्कि योग की प्रबल संभावना है और जीवन के परम लक्ष्य को पाने का अलौकिक अवसर भी है, पर ऐसा हो पाने के लिए आवश्यक है- जीवन में पुरुषार्थ।


            धर्म- प्रथम पुरुषार्थ है। धर्म अर्थात् धारण करना। जैसे, एक विशाल वटवृक्ष को उसकी जड़ धारण किए होती है, वैसे ही धर्म मानव जीवन की जड़ है, बुनियाद है, नींव है। उस धर्मरूपी जड़ से ही मनुष्य को मानवीय गुणों का, संस्कारों का खाद-पानी मिलता है। फलस्वरूप उसमें सद्गुणों व संस्कारों के मधुर पुष्प व फल लगते हैं।


            धर्म ही वह तत्व है जिसके कारण मनुष्य, मनुष्य बन पाता है और अपने स्वभाव में स्थित हो पाता है। जैसे- जल का स्वभाव है बहना, सूर्य का स्वभाव है तपना वैसे ही मानवता- मनुष्य का स्वभाव है, मनुष्य का स्वधर्म है। मानवता को आत्मसात् करना व मनुष्य का मनुष्य के स्वभाव में रहना ही मनुष्य का स्वधर्म है। यह धर्म ही है जिसके कारण मनुष्य आकृति के साथ-साथ प्रकृति से भी मनुष्य बन पाता है। सत्य, प्रेम, करुणा, सेवा, संवेदना, क्षमा आदि उसके आभूषण बन जाते हैं।


            धर्म के अभाव में मनुष्य, मनुष्य के जैसा दिख अवश्य सकता है, पर मनुष्य हो नहीं सकता। धर्म को धारण करना वाला व्यक्ति सदा-सदा के लिए अभय व अजेय होता है। दुर्गणों की दलदल से पार होकर वह व्यक्ति पुण्यपुरुष व प्रकाशपुरुष बन जाता है। ऐसे व्यक्ति चाहे अध्यापक, चिकित्सक, उद्योगपति, कलाकार, जवान, किसान व विज्ञानी कुछ भी हों, इनकी प्रतिभा व पुरुषार्थ से सारी वसुधा निहाल होती व धन्य-धन्य होती है। वे व्यक्ति व समाज को ऊँचा उठाने में अपनी सारी शक्तियाँ लगा देते हैं।


            द्वितीय पुरुषार्थ है- अर्थ। अर्थ अर्थात् धन। जीवन निर्वाह के लिए अर्थ की उपयोगिता है और आवश्यकता भी है। इसके बिना जीवन की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति संभव नहीं है, परन्तु सत्य यह भी है कि धन एक पवित्र शक्ति है। धन का स्त्रोत भी शुभ होना चाहिए और उसका व्यय भी शुभ-सात्विक कार्यों में होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो फिर धन या अर्थ, अनर्थ का कारण भी बन सकता है।


            काम- तृतीय पुरुषार्थ है। कार्म अर्थात् कामनाएँ, इच्छायें। भौतिक कामनाओं की, इच्छाओं की पूर्ति भी एक पुरुषार्थ है, परन्तु यह एक पडाव मात्र है, लक्ष्य नहीं। यह हमें हमेशा स्मरण रहना चाहिए। कामनापूर्ति में संयम व नैतिकता का अंकुश अवश्य होना चाहिए।


            मोक्ष- अंतिम पुरुषार्थ है, जीवन का चरम व परम लक्ष्य है। मोक्ष अर्थात् अज्ञान का संपूर्ण अभाव। वासनाओं, कामनाओं का संपूर्ण अभाव। आसक्ति का संपूर्ण अभाव व परमानंद की प्राप्ति। धर्म से मोक्ष तक की यह यात्रा काम, क्रोध, मद, मोह, दंभ, दुर्भाव, द्वेष आदि कई दुर्गम घाटियों व समुद्री तूफानों से होकर गुजरती है। इसमें दुर्घटना की काफी संभावना है। जीवन का बेड़ा बीच मझधार में फंस सकता है, डूब सकता है। धर्म की उपेक्षा कर इस मार्ग पर चलने वाले मुसाफिर बहुधा इन्हीं घाटियों में आकर दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। कामनाओं, वासनाओं के भंवर में विलीन हो जाते हैं, फिर हताश-निराश होकर जीवन के परम लक्ष्य को पाए बिना ही इस संसार से विदा हो जाते हैं। मनुष्य के लिए सचमुच यह कितना अफसोसजनक है! कितना शरमनाक है! कितना दुर्भाग्यपूर्ण है! परन्तु अब पछताने से क्या लाभ? जैसा कि कहा गया है-


            अब पछताए होत क्या


                        जब चिड़िया चुग गई खेत।


            अतः विवेकवान लोग अपने जीवन के प्रारंभ से ही सदा अपने जीवन लक्ष्य के प्रति सजग रहते हैं। जीवनलक्ष्य को पाने के लिए सदैव तत्पर व उस दिशा में शनैः-शनैः आगे बढ़ते ही रहते हैं। पेट, प्रजनन व परिवार की चहारदीवारी को तोड़ किसी सत्पुरुष के मार्गदर्शन में, धर्मपथ पर, योगपथ पर, अध्यात्म पथ पर चल पड़ते हैं और अंततः अपने दृढ़ संकल्प व प्रचंड पुरुषार्थ के बल पर जीवनलक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं। यही है चेतना की शिखर यात्रा, जो धर्म से शुरु होकर मोक्ष तक पहुँचती है। यही है जीवन का शीर्ष, जीवन का परम लक्ष्य।

महर्षि अरविन्द का साधकों को सन्देश

साधक- जब हम साधना में बैठते हैं, तो बहुत बार हमारा ध्यान ही नहीं लगता। साथ ही, साधना से जो अपेक्षित फल है- सुख, शांति, आनंद की अनुभूति, विचार रहित होना. ऐसी कोई अवस्था भी प्राप्त नहीं हो पाती है। हालाँकि में साधना में बैठने की बिल्कुल वही प्रक्रिया अपनाता हूँ, जैसी बताई गई है। फिर ऐसा क्यों होता है?

महर्षि अरविंद- बहुत बार ऐसा होता है, जब हम सोते हैं और सोकर उठते हैं, तो भी हमें सोने का लाभ नहीं मिल पाता। हमारा सिर भारी होता है, हमारी धकान दूर नहीं होती, हम अपने आपको ऊर्जावान महसूस नहीं करते। इसका सीधा सा कारण होता है कि हम ठीक तरह से सोये ही नहीं होते। सोने के लिए अनुकूल वातावरण, सही बिस्तर, पर्याप्त स्थान. सोने की अवधि, दिशा, मुद्रा सब मायने रखता है।

ठीक ऐसे ही खाना स्वास्थ्य वर्धन के लिए खाया जाता है। पर कई बार ऐसा होता है कि हम खाना खाकर रोगग्रस्त हो जाते हैं। हमें खाने से पूर्णतः लाभ नहीं मिलता। कारण? हमने खाने से सम्बन्धित जो सारे नियम हैं, उनका पालन ठीक से नहीं किया। क्या खाना है, कब खाना है और कितना खाना है- इनका पालन न करने से जुड़े फायदे नहीं ले पाते। आप खाने

उसी तरह से ध्यान-साधना भी एक आचार संहिता के साथ आती है। इसकं भी बहुत सारे नियम होते हैं, जिनका हमें पालन करना होता है। हम सोचें कि साधना में बस हम कमर-गर्दन सीधी और आँखें बंद करके बैठ जाएँ, तो उससे ध्यान सध जाएगा; ऐसा नहीं है। आपकी सम्पूर्ण दिनचर्या में आपका आचरण, आपका व्यवहार, आपकी संगति क्या रही इन सबका आपकी साधना पर असर पड़ता है। अगर आपने पूरे दिन तो तामसिक भोजन किया, तंबाक-सिगरेट-मदिरा का सेवन किया, लोगों से अपशब्द कहे, नकारात्मक सोच रखी, अश्लील चलचित्र देखो, वासनात्मक किताबे पढ़ीं या कुसंगति में रहे..। फिर रात को आंख बंद करके चौकड़ी लगाकर बैठ गए और कहें कि मेरा तो ध्यान ही नहीं लग रहा। मैं तो विचार रहित ही नहीं हुआ, मेरी एकाग्रता ही नहीं बन रही.... तो ऐसा संभव नहीं है। यह नामुमकिन है। साधना एक पैकेज की तरह है। आपको पूरे दिन अपने आहार-विहार-व्यवहार को शुद्ध रखना है; स्वयं को पल-पल सुमिरन व प्रार्थना से जोड़े रखना है- तभी साधना से अपेक्षित फल को प्राप्ति संभव है।


साधक- गुरुदेव, कई बार अध्यात्म का मार्ग बहुत नीरस लगता है और संसार में सरसता दिखाई देती है। तो ऐसे में क्या करें?

महर्षि अरविंद- मान लीजिए, एक शोध का कार्य है उस गहन शोध में एक वैज्ञानिक को रस आता है। वह उसमें इतना डूब जाता है कि उसे भूख-प्यास की भी होश नहीं रहती। उसके आसपास क्या घट रहा है, इसका भी भान नहीं रहता। वहीं एक नया छात्र यदि उन शोध पृष्ठों का अध्ययन करने लगे या प्रयोगशाला में उस शोधकर्ता के साथ खड़ा हो जाए, तो उसे कुछ ही मिनटों के बाद बेचैनी और घबराहट महसूस होने लगेगी। कारण? उसका बौद्धिक स्तर उतना नहीं है, जिस स्तर पर पहुँचकर शोध से रस मिलता है। पर यदि वह छात्र उस कार्य को नीरस और उबाऊ कहकर छोड़ देता है, तो? वह एक साधारण इंसान ही रह जाता है। कभी वैज्ञानिक नहीं बन पाता। इसके विपरीत यदि वह शोध कार्य में लगातार लगा रहता है, तो एक दिन उसके स्तर में वृद्धि हो जाती है और उसे उस शोध में आनंद आने लगता है। अन्ततः एक दिन शोध को पूरा करके वह इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है।

ठीक ऐसे ही, अध्यात्म मार्ग पर चलते हुए यदि हमें रस नहीं आ रहा, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मार्ग नौरम है। इसका अर्थ यह है कि अभी हमने उस स्तर को नहीं पाया, जिस पर पहुँचकर रस को ग्रहण किया जाता है। क्योंकि इसमें तो कोई दो राय है ही नहीं कि अध्यात्म का मार्ग अत्यंत सरस है। हमारे ऋषि-मुनियों ने, तत्ववेताओं ने गधों में ऐसी अनेक चाणियाँ दर्ज की हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि ज्ञान का गार्ग परम सुन्दर और आनंदकंद है।

दरअसल, अध्यात्म का मार्ग सर्वोत्तम शोध का मार्ग है। ब्रह्मज्ञानी संत परम वैज्ञानिक होते हैं। उन्होंने ईश्वरीय शोध से उस अमृत रस को चखा होता है। परन्तु जिस स्तर पर इसकी प्राप्ति होती है, उस तक पहुँचना साधारण मनुष्यों के लिए सहज और सरल नहीं है। इसलिए आरम्भ में आपको यह पथ उबाऊ और नीरस लग सकता है। पर ऐसे में आप यदि इस पथ को छोड़कर चले जाएंगे, संसार के आकर्षणों में उलझ जाएंगे और अन्य माध्यमों में रस को खोजना शुरु कर देंगे, तो क्या होगा? आप भी एक साधारण मनुष्य की तरह जीवन जीकर, जीकर भी क्या वरन् व्यर्थ करके चले जाएँगे। यदि आपको इस जीवन की पूर्णता को पाना है, तो आपको भी एक पुरुषार्थी वैज्ञानिक की भांति प्रयासरत रहना होगा। जब आप डटे रहेंगे, तो एक दिन उस उच्च स्तर को पा ही लेंगे जिस पर पहुँचकर आपको यह मार्ग रस पूर्ण लगेगा। आप आनंद सागर में गोता लगा पाएँगे।

Wednesday, February 17, 2021

जीने का तरीका क्या है?

 पहले एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ 

एक बार एक घोड़ा सड़क पर सरपट दौड़ा चला जा रहा था।

उस पर एक व्यक्ति भी सवार था।

ऐसा जान पड़ता था मानो उसे बहुत ज़रूरी काम से जल्दी कहीं जाना हो।

एक दूसरा व्यक्ति जो उसका परिचित था और उसी सड़क पर खड़ा था, उसने आवाज़ लगाई और पूछा:

"इतनी तेजी में कहां जा रहे हो?"

घोड़े पर सवार व्यक्ति ने चिल्लाते हुए कहा:

"मुझे नहीं पता ! घोड़े से पूछो"

जीवन मे कईं बार हम भी उस घुड़सवार की तरह व्यवहार करते हैं।

और वो घोड़ा होता है हमारी कोई आदत, हमारा दिमाग या मन या फिर हमारे हालात।

आदत से मजबूर यह घोड़ा हमें यत्र-तत्र-सर्वत्र दौड़ाता रहता है, हमें पता भी नहीं होता कि ये कहाँ और क्यों दौड़ा रहा है।

इसके साथ हम कितना ही क्यों ना दौड़ लें, लेकिन पहुचते कहीं नहीं है।

हमें इस घोड़े की लगाम हमारे हाथों में लेना ही होगी। घोड़े को बताना पड़ेगा कि मालिक कौन है।

तो जीवन जीने का क्या तरीका है?

यही तरीका है कि इस घोड़े की लगाम लीजिए अपने हाथों में और अपनी इच्छा अनुसार सही दिशा में दौड़िये। अपने जीवन का कंट्रोल अपने हाथों में ही रखिये।

Monday, February 15, 2021

क्या मधुमेह का कम होना संभव है?

 मधुमेह का कम होना संभव है? अगर हाँ तो कैसे?

मधुमेह आज एक आम बीमारी बनती जा रही है, और बहुत सारे लोग इससे ग्रसित हो रहे हैं।

पहले देखते हैं कि मधुमेह क्या है?

मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जो तब होती है, जब इंसान के शरीर के रक्त में शुगर की मात्रा अधिक हो जाती है ।

ग्लूकोज ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है और यह खाए गए भोजन से आता है। इंसुलिन, एक हार्मोन है, जो किसी इंसान के शरीर में स्थित पैन्क्रियाज द्वारा बनाया जाता है।

इन्सुलिन, भोजन से बने ग्लूकोज को शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा के रूप में पहुँचाने में मदद करता है।

कभी-कभी पैन्क्रियाज पर्याप्त इन्सुलिन नहीं बनाता है, तब ग्लूकोज शरीर के रक्त में ही रह जाता है और कोशिकाओं तक नहीं पहुंचता है। इस वजह से शरीर में शुगर का लेवल बढ़ जाता है और मधुमेह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

मधुमेह दो तरह का होता है।

टाइप -1 डायबिटीज़ या इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज़ मेलिटस, इसी को जुवेनाइल डायबिटीज़ भी कहते हैं। यह अधिकांश बच्चों में पाया जाता है।

टाइप -1 मधुमेह वाले मरीज का मघुमेह कम नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसे लोगों के शरीर में पैन्क्रियाज, इन्सुलिन नामक हार्मोन नहीं बनाता है, इसलिए इन्हें हमेशा बाहर से इन्सुलिन लेने की जरुरत होती है।

टाइप -2 डायबिटीज़ या नॉन इन्सुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज़।

टाइप -2 वाले मधुमेह रोगी का मधुमेह कम होने के या रिवर्स होने की संभावनाएँ प्रबल होती हैं।

किन लोगों का मधुमेह कम किया जा सकता है, आइए यह देखते हैं?

1 प्रीडायबिटिज लोगों का - जिन लोगों का HbA1c स्तर 6.4 से ज्यादा न हो उनका मधुमेह रिवर्स हो सकता है।

उच्च एचबीए 1 सी मधुमेह से संबंधित जटिलताओं जैसे कि स्ट्रोक, हृदय और गुर्दे की बीमारी, आंखों की रोशनी कम होना के बीच एक सिद्ध लिंक है।

HbA1c स्तर जितना नियंत्रित होगा, इन जटिलताओं के विकसित होने की संभावना उतनी ही कम होगी।

ऐसे लोगों का मधुमेह नियंत्रित हो सकता है। उसके लिए कुछ बातों का जानना जरुरी है।

  • यह जानना जरुरी है कि डायबिटीज कितना पुराना है। मधुमेह होने की अवधि कितनी है।
  • अगर यह पाँच साल या उससे कम है तो खान-पान संबंधी बदलाव, व्यायाम और वजन कम करने (जिनका वजन ज्यादा हैसे बहुत हद तक मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है और बिना दवाई के आप मधुमेह को नियंत्रित रख सकते हैं।
  • क्योंकि जैसे- जैसे मधुमेह पुराना होता जाएगा पैन्कियाज से इन्सुलिन बनने की मात्रा कम होती जाएगी।
  • डायबिटीज एक प्रोग्रेसिव डिसऑर्डर है जो शरीर में धीरे- धीरे विकसित होता है।

तो समय अवधि बहुत मायने रखती है। पाँच साल या उससे कम समय से किसी को डायबिटीज है और‌ प्रीडायबिटिज स्टेज‌ में हैं तो उपर्युक्त लिखे उपायों द्वारा उनका शुगर कम किया जा सकता है।

2. जिनकी फैमिली हिस्ट्री में मधुमेह न हो - जिन लोगों के परिवार में माता, पिता, दादा जी किसी को मधुमेह है तो उनमें मधुमेह ‌वंशानुगत रूप से आ सकता हैं।

किसी को परिवार में मधुमेह न हो।

लेकिन जिनके परिवार में किसी को मधुमेह नहीं है, तो ऐसे लोगों में मधुमेह कम होने की बहुत संभावना है क्योंकि यह उनके स्वयं के शरीर का डिसऑर्डर है, जिसे समय रहते आसानी से कम किया जा सकता है।

3 स्टेरॉयड दवाइयों का सेवन न करते हों - कई बार मधुमेह किसी अन्य खाई जाने वाली दवाइयों के कारण भी नियंत्रण से बाहर हो जाता है।

स्टेरॉयड दवा नहीं लेना है।

मधुमेह के कारण जोड़ों में दर्द या त्वचा की बीमारी भी होने लगती है। जब भी किसी ऑर्थोपेडिक डॉक्टर ( हड्डी के दर्द के डॉक्टर) के पास जाने की नौबत आए तो उन्हें डायबिटीज के बारे में बताना जरुरी है ताकि वो आपको स्टेरॉयड दवा न दें।

हड्डी की बीमारी में स्टेरॉयड दवा नहीं लेना है।

यह मधुमेह को कम करने की बजाय मधुमेह को बढ़ाता है।

अत: ऐसे दवाइयों से दूरी बनाकर ही मधुमेह को कम किया जा बनता है।

4 तनाव से दूरी बनाए रखें - आज के समय में तनाव किसे नहीं है? कारण कई हो सकते हैं। पारिवारिक, व्यक्तिगत, काम से सबंधी, पैसों से संबंधी, कई वजह होती है, जिसके प्रतिकूल रहने से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

अगर तनाव पर काबू पा सकें तो मधुमेह को बहुत हद तक नियंत्रण में लाया जा सकता है।

इसके लिए तेज गति वाले डांस, तेज गति से दौड़ना बहुत लाभदायक होगा।

इसमें सबसे ज्यादा फायदा युवाओं को हो सकता है।

5. कम उम्र के लोगों में मधुमेह रिवर्स होना आसान है- उम्रदराज लोगों की अपेक्षा कम उम्र के लोग अपना मधुमेह आसानी से कम कर सकते हैं क्योंकि वो औरों की अपेक्षा अधिक व्यायाम कर सकते हैं।

अब यह देखना है कि मधुमेह कम करने के लिए किस तरह से सही प्रयास की जरुरत है?

इन्ही तीन चीजों पर मेहनत करनी है।

सही डायट प्लान - एक सामान्य इंसान को पूरे दिनभर में 2000 कैलोरी की जरुरत है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, बसा, प्रोटीन, आयरन तथा अन्य सभी जरुरी चीजें शामिल होनी चाहिए।

इसके लिए करना यह है कि ऐसा डायट प्लान करना चाहिए जिसमें 2000 की जगह 1700 ले 1800 कैलोरी के अंदर सभी चीजों का समावेश हो सके।

मतलब 200 से 300 कैलोरी कम करना है। कई सारे डायट प्लान ऐसे होते हैं, जिसे कोई भी लगातार नहीं कर सकता है, लेकिन इसे अपनाना संभव है। इससे शरीर के अंदर इनटेक कम होगा तो मधुमेह घटाने में मदद मिल सकती है।

किसी भी डायटिशियन की मदद ली जा सकती है कि एक अच्छा डायट प्लान क्या होगा?

सही व्यायाम - सप्ताह में पाँच दिनों तक 30 मिनट की वॉक मधुमेह को आसानी से घटाने में मदद करती है।

वजन कम करना - जिनका वजन ज्यादा है, उन्हें अपना वजन कम करके मधुमेह रिवर्स करने में सफलता मिल सकती है।

भले ही कोई अपने आइडियल वजन को मेंटेन‌ न कर सके, लेकिन वजन कम करने का प्रयास करते रहना जरुरी है।

इसके लिए जरुरी है कि शरीर में भोजन के रूप में जितना कैलोरी अंदर जाता है उससे ज्यादा कैलोरी व्यायाम, कसरत, योगा, डाँस या अन्य तरीकों से बाहर निकलना चाहिए। [1]

ये सारे तरीके अपनाकर मधुमेह को कम किया जा सकता है।

बाकी कुछ घरेलू उपाय जैसे :-

  • मेथी फुलाकर उसका पानी पीना,
  • करेले का जूस पीना
  • फल में जामुन और अमरुद खाना
  • कम तेल घी की चीजें खाना
  • कार्बोहाइड्रेट की मात्रा सीमित रखना,

ये सारे प्रयास किए जा सकते हैं।

BY Sangeeta Mehta

[1] https://youtu.be/ka4K3hitaWI

Saturday, February 13, 2021

मधुमेह का घरेलू उपचार

अगर आपका मधुमेह शुरआती है तो आप इसे बहुत आसानी से कण्ट्रोल कर सकते है , जो की एक जड़ी बूटी बारे में बताता हूं उसका नाम चरायता है

  • यह बहुत सस्ता और उपयोगी है
  • आप इसे किसी भी पंसारी दुकान से आसानी ले सकते हैं
  • यह मधुमेह के लिए बहुत उपयोगी है
  • इसका उपयोग करके कई रोगी लाभ उठा रहे हैं
  • मधुमेह के अलावा, यह मोटापे को कम करने में मदद करता है
  • इसका उपयोग करके, सभी जिगर से संबंधित रोगों को दूर करता है
  • एसिडिटी को भी कम करता है,
  • यह शरीर को detoxfy और इसके साथ शरीर सक्रिय ऊर्जावान ऊर्जा बना रह्ता है
  • इसके और भी कई अन्य लाभ हैं
  • इसका कोई side effect नही है।

अगर आप की टेबलेट चल रही है तो उसे बंद मत कीजिये, क्योंकि ये धीरे काम करता है,

अगर आपकी शुगर ज्यादा रहती है तो टेबलेट बिल्कुल बन्द नही करनी है।

लेने की विधि — रात को इसकी दो डंडीया एक गिलास पानी मे भिगो दे सुबह वो पानी को पीलें. one week प्रयोग करे

यह स्वाद में थोड़ा सा कडवा है लेकिन यह बहुत उपयोगी है. इससे मधुमेह में काफी फायदा मिलता है ।

Friday, February 12, 2021

न्यायधीश का दंड

अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया।

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, "तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"?

लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। ;- हाँ'।

जज,:- 'क्यों ?'

लड़का,:- मुझे ज़रूरत थी।

जज:- 'खरीद लेते।

लड़का:- 'पैसे नहीं थे।'

जज:- घर वालों से ले लेते।' लड़का:- 'घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी

जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?

लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।'

जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते?

लड़का:- सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और खासकर ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। 'अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।'

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया।

अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।'

जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है।

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।

क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं?

चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।

यह रचना बहुत ही प्यारी है दिल को छू गयी तो सोचा आप से भी शेयर कर लूं 

Wednesday, February 10, 2021

हिलते हुए दांत और कमजोर मसूड़े को खत्म करने के घरेलू उपाय

हिलते हुए दांत, कमजोर मसूड़े और मुंह के संक्रमण को खत्म करने के घरेलू उपाय क्या हैं?

हिलते हुए दांत, कमजोर मसूड़े और मुंह के संक्रमण को खत्म करने के लिए हमें सब से पहले मुंह कि सफाई पर ध्यान देना होगा।

फिटकरी को पानी में डालकर उससे कुल्ले करें या सैंधा नमक पानी में डालकर उससे कुल्ले करें ।

3–4 बूंद सरसों के तेल में एक चुटकी सेंधा नमक मिलाकर दांतों और मसूड़ों पर मालिश करने से दांत का दर्द ठीक होता है और मसूड़े मजबूत होते हैं ।

लोंग का तेल मसूड़ों पर मलें ।

एक कली लहसुन को छील कर नमक में डूबो कर चबाएं इससे भी दांत मजबूत होते हैं।

अगर मसूड़े कमजोर हैं और दांत भी हिल रहे हैं तो हमें बबूल या नीम की दातुन करनी चाहिये, ब्रश बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

खाने में मीठा,ज्यादा नमक, खट्टा न खाएं।

अंत में मैं आप को सिर्फ दो छोटे छोटे उपाय बताने वाली हूं अगर आप इसको उपयोग में लाएंगे तो आप को जीवन पर्यन्त कभी भी इस प्रकार का कोई भी दांत सम्बन्धित रोग नहीं हो सकता।ये सब मै आपको अपने तजुर्बे के आधार पर बता रही हूं।

एक तो सवेर उठकर बिना दातुन करे ,पानी पीने के बाद मुंह में तिल या सरसों का तेल भरके गंडूष करें जिसे आजकल ऑयल पुलिंग कहते हैं।इसका बहुत ज्यादा फायदा होता है। गंडुष 10–15 मिनट तक करें। तेल को मुंह में भरकर जीभ से हिलाना होता है फिर ये तेल थूक दें तथा गरम पानी से कुल्ला करें ।फिर दातुन कर सकते हैं ।

दूसरा प्रयोग खाना खाने के बाद हमें थोड़े से तिल रोज चबाना चाहिए। इन को अपनाकर सौ साल तक हमारे दांत बिल्कुल नहीं हिलेगे।

Seema Sharma 

Ayurvedic practitioner

Tuesday, February 9, 2021

मधुमेह (Diabetes)

 

क्या मधुमेह से दाम्पत्य जीवन प्रभावित होता है?

जी हां , मधुमेह से पुंसत्व शक्ति में कमी आती है । आयुर्वेद के अनुसार प्रमेह ( मधुमेह का प्रारंभिक रूप ) के कारणों में आराम तलबी की जिंदगी बसर करना , सोने में अधिक रुचि रखना , अधिक दही का सेवन , किसी भी प्रकार के मांसरसों का अधिक सेवन , अधिक पानी पीना , नया अन्न सेवन , कोल्डड्रिंक का अधिक प्रयोग , अधिक मीठा खाना है । सभी प्रमेह अंत में मधुमेह बन जाते हैं , जिनकी चिकित्सा करना बहुत कठिन है ।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मधुमेह में अग्न्याशय ( पैंक्रियाज ) की आइजलैट्स आफ लैंगरहैंस नामक ग्रंथियों में संक्रमण हो जाता है , जिससे रक्त शर्करा के स्तर का नियंत्रण कम हो जाता है । इससे मधुमेह होता है ।

आयुर्वेद के सिद्धांत में थोड़ा अंतर है । इसके अनुसार मूत्रमार्ग से बार बार रुककर मूत्र का आना प्रमेह है । इसमें मूत्र में क्रियेटिनिन , बाइल साल्टस , फास्फेट आदि तत्व आते हैं । मधुमेह में मूत्र से केवल शर्करा निकलती है । यह संक्रमण बढ़ते बढ़ते शुक्र को भी मूत्रमार्ग से निकालता है । इससे पौरुष शक्ति में कमी हो जाती है ।

आयुर्वेद ऐसा भी मानता है कि भगवान गणेश जी को मधुमेह था , क्योंकि वह लंबोदर थे , मोदक प्रिय थे । २ पत्नियां होने पर भी सन्तान सुख से वंचित थे । उनके लिए जम्बु चारु फल भक्षणं जैसी व्यवस्था की गई थी ।

With Thanks Dr Bhagender Thakur

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Monday, February 8, 2021

पित्त की थैली में पथरी

 

पित्त की थैली में पथरी है, क्या मुझे ऑपरेशन करवाना चाहिए, या दवा से ठीक हो सकता हूँ?

यदि 10 mm तक है तो आयुर्वेदिक दवा से गल सकता है।

पित्ताश्मरी वटी का सेवन कुमारीआसव तथा रोहितकारिष्ट के साथ।

शोधित शिलाजीत का सेवन ताजे जल से।

जैतून तेल 10 ml सुबह-शाम पीना, नींबू रस 5 ml पीने के 5 मिनट बाद।

सेव फल का सेवन व इसका जूस पीना, रोज।

5 mm तक का 2 महीने में, 10 mm तक का 4 महीने में गलेगा। इससे बङा हो biggest stone size तो नहीं गलेगा, आपरेशन करवा लें।

Vaidya Ajeet Karan

आयुर्वेदिक दवा- साइड इफ़ेक्ट

 

क्या आयुर्वेदिक दवा से कोई साइड इफ़ेक्ट होता है, विस्तार से बतायेंगे?

नमस्कार।आप ने प्रश्न किया है कि क्या आयुर्वेदिक दवा से कोई साइड इफ़ेक्ट होता है, विस्तार से बतायेंगे?

आपने बहुत अच्छा सवाल किया है इस से कई लोगों को फायदा होगा। अकसर हमने लोगो को ये ही कहते सुना है कि आयुर्वेदिक दवाओं के कोई साइड इफेक्ट नहीं होते हैं और वे खुदहीआयुर्वेदिक दवाओं को खरीद कर इलाज शुरु कर देते हैं। उन्हें आयुर्वेदिक दवा कि सही मात्रा का ज्ञान नहीं होता, कई बार शुरू में दवा बहुत अच्छा प्रभाव दिखाती है परन्तु बाद में उसके साइड इफेक्ट नजर आने लगते हैं l जब कि ये बात सब को पता है कि आयुर्वेद वात, पित्त और कफ के सिद्धांत पर आधारित है । एक आयुर्वेदिक औषधि प्रत्येक मनुष्य के लिए लाभप्रद नहीं हो सकती । आगे मै आपको उदहारण से समझाती हूं---

करेला का सेवनआयुर्वेद में बहुत अच्छा माना जाता है । लेकिन ये सब जानते हैं कि करेला ज्यादा सेवन करने से पाचनतंत्र खराब हो जाता है और एलर्जी कि समस्या हो जाती है, करेले के ज्यादा सेवन से पित्त के रोगी को नुकसान होता है ।

इसी प्रकार दालचीनी जो हमारे किचन के मसालों में प्रयोग कि जाती है उसे भी हम कई प्रकार कि समस्याओं को दूर करने के लिए प्रयोग में लाते हैं, जैसे चाहे वजन नियंत्रित करना हो या पाचन तंत्र ठीक करना हो या डायबिटीज़ को नियंत्रित करना हो,पर क्या आप जानते हैं कि अगर ज्यादा मात्रा में सेवन करें तो यह हमारे लिवर को खराब कर सकती है, पित्त को बहुत बड़ा देती है तथा मुंह में छाले भी ही जाते हैं।

ऐसे ही मेथीदना हमारी सेहत के लिए अमृत से कम नहीं है।मेथी दाना हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ तथा पेट सम्बन्धी समस्याओं में फायदेमंद होता है। लेकिन ये ज्यादा मात्रा में सेवन करने में पित्त को बड़ा देती है ,गैस करती है, दस्त और खून पतला कर देती है।

कई दवा को भिन्न भिन्न अनुपान से लेने से अलग अलग प्रकार से फायदा होता है। कोई दवा हमें सवेरे लेनी होती है, कोई खाली पेट,कोई दिन में, कोई खाना खाने के बीच में ऐसे अलग अलग समय से हमें दवा अलग अलग असर करती है।

आयुर्वेदिक दवा जैसे गोली ,चूर्ण ,पिष्टी तथा भस्म आसव आरिष्ट इन सब का बहुत ध्यान से सावधानी से किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक कि देख रेख में प्रयोग करना चाहिए।

with thanks Seema Sharma