पहले एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ
एक बार एक घोड़ा सड़क पर सरपट दौड़ा चला जा रहा था।
उस पर एक व्यक्ति भी सवार था।
ऐसा जान पड़ता था मानो उसे बहुत ज़रूरी काम से जल्दी कहीं जाना हो।
एक दूसरा व्यक्ति जो उसका परिचित था और उसी सड़क पर खड़ा था, उसने आवाज़ लगाई और पूछा:
"इतनी तेजी में कहां जा रहे हो?"
घोड़े पर सवार व्यक्ति ने चिल्लाते हुए कहा:
"मुझे नहीं पता ! घोड़े से पूछो"
जीवन मे कईं बार हम भी उस घुड़सवार की तरह व्यवहार करते हैं।
और वो घोड़ा होता है हमारी कोई आदत, हमारा दिमाग या मन या फिर हमारे हालात।
आदत से मजबूर यह घोड़ा हमें यत्र-तत्र-सर्वत्र दौड़ाता रहता है, हमें पता भी नहीं होता कि ये कहाँ और क्यों दौड़ा रहा है।
इसके साथ हम कितना ही क्यों ना दौड़ लें, लेकिन पहुचते कहीं नहीं है।
हमें इस घोड़े की लगाम हमारे हाथों में लेना ही होगी। घोड़े को बताना पड़ेगा कि मालिक कौन है।
तो जीवन जीने का क्या तरीका है?
यही तरीका है कि इस घोड़े की लगाम लीजिए अपने हाथों में और अपनी इच्छा अनुसार सही दिशा में दौड़िये। अपने जीवन का कंट्रोल अपने हाथों में ही रखिये।
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