दिव्य सन्ताओं का ऐसा मानना है कि जब से सृष्टि की रचना हुयी है| मानव स्वस्थ्य की दृष्टि से इतनी जर्जर अवस्था में कभी नहीं पंहुचा जितना की आज पंहुच गया हाउ| भारत में व्यक्ति की आयु 100 वर्ष से घटकर 75 वर्ष ही रह गयी है यह बहुत ही दुखद बात है| आने वाली पीढ़ी के लिए 60-70 वर्ष तक स्वस्थ्य जीवन जीना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है| ऐसा किन कारणों से हो रहा है इसकी विवेचना करना आवश्यक है| परन्तु इससे भी अधिक आवश्यक है यह जानना कि इस विषम समय में हम अपने स्वस्थ्य की रक्षा किस प्रकार करें|
क्यों व्यक्ति भौतिक सुखो के चक्कर में
सर्वोपरि समझे जाने वाले स्वस्थ्य रूपी अनमोल धन के साथ खिलवाड़ कर रहा है| यह एक
यक्ष प्रशन है| स्वस्थ्य के प्रति सचेत न रहना अथवा उसकी उपेक्षा करना भारतवर्ष के
लिए एक बहुत बड़ा संकट उत्त्पन कर सकता है| सृष्टि में सबसे समझदार माना जाने वाला ‘मानव’ शीघ्र ही अपनी भूल को सुधारे व हम लोग मिल-जुलकर ‘स्वस्थ्य
भारत’ की और बढ़ सकें| इसी आशा के साथ पुस्तक को लिखा गया है व जागरूक आत्माओं तक
पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा है| इस अभियान में हम सभी अपनी भागीदारी अवश्य
सुनिश्चित करें| यह हमारा प्रथम कर्तव्य है|