Instead of using medicine, rather fast a day –
थोडा सा भूखा रहना बीमार व्यक्ति का वो इलाज कर सकता है, जो कि उत्तम दवाइयां या उत्तम चिकित्सक भी नहीं कर सकते|
डॉ. जैक अमरीका के
Food Specialist (भोजन विशेषज्ञ ) थे| सन 1958 में, जब वे 28 साल के हुए, उन्हें डायरिया और intestinal spasm (आंत सम्बंधी ऐठन) जैसी बीमारी ने घेर लिया| उन्होंने चिकित्सक की राय ली| उसने बहुत जाँच-पड़ताल के बाद पता लगाया कि डॉ. जैक बड़ी आंत से सम्बंधित एक बहुत ही गंभीर बीमारी के शिकार हैं| तब जैक के डाक्टर ने उनके इलाज के लिए बहुत सी आधुनिक दवाइयों का सहारा लिया| पर इन दवाइयों से डॉ. जैक गोल्डस्टीन की हालत इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि उन्हें हस्पताल में दाखिल करना पड़ा| नयी दवाइयों से उनकी हालत में कुछ सुधार तो हुआ, पर साथ ही बहुत से side effect (दुष्प्रभाव), जैसे अपच, पेट ख़राब होना आदि भी होने लगे| उसके बाद सन 1960 की सर्दियों में उनके शारीर में कुछ ऐसी प्रकिर्याँ हुई कि डाक्टरों को उनकी दवाइयों की मात्रा कम करनी पड़ी| इसी के चलते अब उन्हें सिर दर्द, कमजोरी, हल्का बुखार रहने लगा और उनकी दृष्टि भी धुंधली हो गयी| आख़िरकार ढाई साल के इलाज के बाद उनके चिकित्सक ने हाथ खड़े कर दिए|
सन 1961 की शुरुआत में, डॉ. जैक गोल्डस्टीन ने एक दुसरे डाक्टर से राय ली| एक बार फिर उनकी दवाइया बदल दी गई| उन्हें खाने में दूध, आटे वाली ब्रेड, अंडा, मांसाहार दिया जाने लगा| जबकि यह सब पचाना उनके लिए बहुत मुस्किल था| अब उन्हें प्रतिदिन 12-15 बार दस्त लगने लगे| साथ ही, उन्हें बबासीर की समस्या भी रहने लगी|
सन 1962 में उनकी बड़ी आंत में इन्फेक्शन हो गया| इसके करण उन्हें लगातार बुखार भी रहने लगा| इन सब से परेशान होकर उन्होंने अपना फिर डाक्टर बदला| अब फिर उन्हें पांच हफ्तों के लिए हस्पताल में दाखिल कर लिया गया| पर दवाइयों के side effect (दुष्प्रभाव) अभी भी बरकरार थे| इस समय उनकी दवाइयों में
steroid prednisolone भी प्रयोग की जाने लगी| इससे उनकी हालत में कुछ सुधार तो दिखा, पर यह केवल दो महीने तक रहा| दोबारा से उन्हें बुखार रहने लगा| अभी भी एक दिन में लगभग 15 बार दस्त लगते थे| यह देख, डाक्टर ने स्टेरॉयड की मात्रा को कम किया| परन्तु उनकी मासपेशियों और अंगो में जकड़न रहने लगी| साथ ही उनका वजन भी बढना शरु हो गया| इससे उनका चेहरा फूल गया और गर्दन के पीछे भी चर्बी जमा होने लगी| इन सबके चलते उन्हें दस्त लगने की मात्रा बढाकर 20 प्रतिदिन हो गई|
सन 1963 में, जब वे 33 साल के हुए, तो वे अपनी उम्र से दुगने दिखते थे| अब तक उनके दस्त बढकर 30 प्रतिदिन हो चुके थे और ऐठन व रक्त स्त्राव की समस्याएं भी बढ गई थी| वे इतने बीमार हो चुके थे की इंजेक्शन भी उन पर नाकाम हो रहे थे| इन सबके चलते उनके भीतर आत्महत्या करने का बिचार आने लगा| बहुत सोच-बिचार कर, सन 1964 में, उन्होंने प्राक्रतिक स्वास्थ्य विज्ञान से सम्बंधित एक संस्थान में जाने का फैसला किया| उस संस्थान में वह चिकित्सकों के दिशा-निर्देशानुसार 6 हफ्ते तक बिना कुछ खाए सिर्फ पानी पर रहे| 10 दिनों के अंदर ही उनका बुखार और intestinal inflammation (आंत सम्बंधी सुजन) ठीक हो गई| दस्त लगने की प्रक्रिया भी घटकर प्रतिदिन 5 रह गई| उपवास के 22वें दिन तो उनका पेट साफ होने लगा| अब वह हर स्तर पर स्वास्थ्य और अच्छा महसूस कर रहे थे| सबसे बड़ी बात तो यह थी की ये सब बिना दवाइयों के संभव हुआ था| उनकी त्वचा और मसूड़े भी वापिस तन्द्रुस्त हो गए थे| अब वे इतना अच्छा महसूस कर रहे थे, जितना कि उन्होंने पिछले 6 सालों में इतने इलाज के बाबजूद भी नहीं किया था| 43वें दिन उन्होंने उपवास तोडा| अगले 4 हफ्तों तक उनको निरीक्षण में रखकर हल्का शाकाहार दिया गया| अब तक वे 60% ठीक हो चुके थे| जब वे घर वापिस लौटे, तो उनके परिवार ने भी शाकाहार को अपना लिया| तब से वे हर साल सस्थान जाकर 4-5 हफ्तों का उपवास करने लगे| ऐसा करते-करते सन 1976 तक वे 95% सामान्य हो गए|
कठिन उपवास केवल किसी कुशल चिकित्सक या वैध के परामर्श व निरीक्षण में करना ही उचित हैं|
कठिन उपवास केवल किसी कुशल चिकित्सक या वैध के परामर्श व निरीक्षण में करना ही उचित हैं|
wow! its amazing. But true. I have heard this type of incident just today morning of my real sister. She also believe in naturopathy and hemeopath treatment.It is true. these Indian treatements are the best treatment in the world I can say.
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