रामापुरा मुहल्ले में पण्डित शिवप्रसाद मिश्र
रहते थे वे नित्य स्नान करने के लिए दशाश्वमेध घाट आते थे। तैलंग स्वामी के निकट
लोगों की भीड़ देखकर उनके मन में आशा का संचार हुआ। उनका एक मात्र पुत्र काफी
दिनों से लकवा रोग से पीडि़त था। एक नि उसे गोद में लेकर तैलंग स्वामी के पास आये।
तैलंग स्वामी के चरणों के पास उसे रखते हुए
उन्होंने बताया िकइस लड़के का इलाज काफी
जगह कराया। झाड़-फूंक, टोटका, जिसने जो कहा, सब किया, पर जरा-सा लाभ
नहीं हुआ। यह स्वयं कष्ट पा रहा है और हम सबको कष्ट दे रहा है। इसका कष्ट अब हम
लोगों से देखा नहीं जा रहा है। स्वामीजी, इसे ऐसा आर्शीवाद दीजिए ताकि यह ठीक हो जाय या इसे मुक्ति मिल जाय।
इतना कहते-कहते मिश्रजी फफककर रो पड़े।
करुणामय तैलंग स्वामी ने बालक को नीचे से ऊपर
तक कई बार देखा। इसके बाद उसके सिर पर हाथ फेरने के बाद बोले-‘‘इस बालक को अब तुम घर ले जाओ। इसका भोगदण्ड
समाप्त हो गया है। कुछ दिन और प्रतीक्षा करो। भगवान् इस बालक पर अवश्य कृपा
करेंगे।’’
आशा की क्षीण-रेखा पाकर मिश्रजी आनन्द से
विभोर हो उठे। तैलंग स्वामी के चरणों की धूल बच्चे के तथा अपने सिर से लगाने के
पश्चात् घर चले आये। इस घटना के एक सप्ताह बाद बालक पूर्णरूप से स्वस्थ हो गया।
लेकिन यह घटना तैलंग स्वामी के लिए मुसीबत बन गयी। अनेक पीडि़त लोग आपके पास आने
लगे।
इस मुसीबत से बचने के लिए उन्होंने मौन व्रत
धारण कर लिया। इसके बावजूद पीडि़त अभावग्रस्त लोग आते रहे। आनेवाले लोगों में एक
व्यक्ति स्वभाव का क्रूर था। जब उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं हुई तब उसने तैलंग
स्वामी को तड़पाकर मारने की युक्ति निकाली।
एक हडि़या में चूने का घोल बनाकर लाया और
कहा- ‘‘स्वामीजी, आपके लिए भैंस का गाढ़ा दूध लाया हँू। कृपया इसे ग्रहण कीजिए।’’ यह व्यक्ति जब
कीाी स्वामीजी के पास आता तब देखता कि आगन्तुक लोग स्वामीजी को काफी भोजन देते
हैं। स्वामीजी प्राप्त सभी भोजन को अनायास खा जाते हैं। एक बार एक सेठ ने लगभग आधा
मन खाद्य पदार्थ खिलाया था। दूसरी ओर स्वामीजी बिना भोजन के चार-पांच दिन तक
अनाहार रह जाते थे।
इस व्यक्ति का क्या उद्देश्य है, स्वामीजी समझ गये। वह व्यक्ति भी पक्का धूर्त
था। अपने सामने स्वामीजी को घोल पी जाने के लिए आग्रह करता रहा ताकि इनका मौन भंग
हो जाय। पीड़ा से चिल्लाने लगें। स्वामीजी बिना हिचके सारा घोल पी गये। इस व्यक्ति
का अन्दाजा था कि थोड़ी देर बाद स्वामीजी छटपटाने लगेंगे।
थोड़ी देर बाद स्वामीजी अपने स्थान से उठकर
एक स्थान पर पेशाब करने लगे। पेशाब के साथ सारा चूना निकल गया। इशारे से उस
व्यक्ति को बुलाकर उन्होंने यह दृश्य दिखाया।
उस दृश्य को देखते ही भय से उसकी आँखें फटने
लगी। बिना कुछ बोले वह तेजी से घर की ओर भाग गया। घर पर आते ही पेट-पीड़ा से
छटपटाने लगा। उसकी चिन्ताजनक स्थिति देखकर परिवार के लोग घबड़ा गये। अचानक इसे
क्या हो गया। पूछने पर उसने अपने पाप की कहानी सुनायी। परिवार के वृद्ध पुरुष ने
कहा-‘‘इसे डाक्टर वैद्य ठीक नहीं कर सकेंगे। इसे तुरत
स्वामीजी के पास ले जाओ। अगर वे क्षमा कर देंगे तो ठीक होगा, वर्ना सन्तों के साथ छल करने का पाप भोगेगा।’’
इस सुझाव को मानकर लोग उसे तैलंग स्वामी के
पास ले आये। परिवार के सदस्यों के अलावा उसने स्वयं स्वामीजी के पैर पकड़कर
क्षमायाचना की।
करुणामय की करुणा जागी। उन्होंने उसके पेट और
मस्तक पर हाथ फेरा। थोड़ी ही देर में कष्ट दूर हो गया।
दशाश्वमेध घाट के जिस स्थान पर स्वामीजी रहते
थे, वहाँ वे हमेशा पूर्ण रूप से नंगे रहते थे। अपने
स्थान से अन्यत्र जाते समय कोपीन जरूर पहन लेते थे।
एक बार कुछ सैलानी यात्रियों की शिकायत पर
पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गयी। मुगलों का शासन समाप्त हो गया था। जिलाधीश
अंग्रेज था उसकी अदालत में स्वामीजी को पेश किया गया।
सारी बातें सुनने के बाद जिलाधीश ने कहा- ‘‘स्वामीजी, समाज में इस तरह रहना कानूनन अपराध है। मैं यह जानता हँू कि भारतीय
संन्यासी अधिकतर नंगे रहते हैं। पर वे मठ में रहते हैं। खुले आम सड़क पर नंगे रहने
पर सजा होगी। अगर आपको लोगों के बीच रहना है तो कपड़े पहनकर......।
कहते-कहते जिलाधीश रुक गया। उसने यह देखा कि
स्वामीजी मेरी बातों पर ध्यान देने की जगह वह दूसरी ओर देख रहे हैं। यह उपेक्षा
उसके लिए असहनीय हो उठी। उसने आदेश दिया-‘‘बाबाजी को पकड़कर जेल में बन्द कर दिया जाय।’’
स्वामीजी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस
ज्योंही कठघरे के पास आयी त्योंही वे गायब हो गये। सारी आदलत भौचक्क रह गयी।
‘स्वामीजी पकड़े गये है’, सुनकर काशी के अनेक नागरिक अदालत में आये थे। जिलाधीश के फैसले पर लोग
अप्रसन्नता प्रकट कर रहे थे। तभी यह घटना घटी और लोग खुशी से नाच उठे-‘‘हर-हर महादेव! बाबा साक्षात् भोलेनाथ हैं। उनकी
नगरी में उन्हें कौन गिरफ्तार कर सकता है?’’- कहने लगे।
जिलाधीश के आदेश पर अदालत के बाहर उनकी खोज
की गयी, पर कहीं कुछ पता नहीं चला। इस अपमान से जिलाधीश
बौखला गया।
बाबा के एक बंगाली भक्त इसी अदालत में जज थे।
जब उन्हें बाबा की गिरफ्तारी की सूचना मिली तब वे तुरन्त जिलाधीश की अदालत में
आये। सारी घटना सुनने के बाद उन्होंने जिलाधीश से कहा- ‘‘भारत में अधिकांश संन्यासी निर्वस्त्र रहते हैं।
धार्मिक स्थलों के नागरिक इनकी इस आदत को बुरा नहीं मानते। फिर तैलंग स्वामी सिद्ध
योगी हैं। आपको उन्होंने अपनी योग-शक्ति दिखाई है। मेरा अनुरोध है कि आप इस मामले
को डिसमिस कर दीजिए।’’
बात समाप्त होते ही स्वामीजी प ुनः उसकी कठघरे में दिखाई दिये, जहाँ वे पहले खड़े थे। जिलाधीश इस चमत्कार से
प्रभावित हो गया। उसका सारा क्रोध पल भर में शान्त हो गया।
बंगाली जज ने पुनः कहा-‘‘पूज्य स्वामीजी के लिए वास-भवन और कारागार समान
है। क्रोध, हिंसा, अपमान, भय से आप ऊपर उठ गये हैं। ऐसे महान् विभूति के साथ हमें श्रद्धा का
व्यवहार करना चाहिए।’’
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