Sunday, February 17, 2013

खाँसी (बच्चों व बड़ों की) - कास


खाँसी दो प्रकार से उठती है - एक कफ वाली जिसमें बलगम पड़ता है व दूसरी खुश्क (शुष्क) खाँसी जिसमें वेगपूर्ण खाँसी होती है पर बलगम कम या न के बराबर पड़ता है। इस प्रकार की खाँसी पित्तज कास के अन्तर्गत भी आ सकती है। कफज कास में गर्म औषधियों का सेवन लाभप्रद होता है परन्तु पित्तज कास में गर्म औषधियाँ नुकसानदेह हो जाती हैं। कुछ औषधियाँ हर प्रकार की खाँसी में लाभप्रद है। जैसे - मुलहेठी, काले बाँसे की राख (पुराने पंसारी व वैद्य इस्तेमाल करते हैं)। कफ प्रकृति वालों को कफज कास का उपचार करना होता है व पित्तज प्रकृति वालों को पित्तज कास का उपचार लाभपद है। यदि व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार रोगों का उपचार किया जाए तो यह बहुत लाभप्रद होता है।
किसी भी प्रकार की खाँसी में दो तीन चम्मच मुलहठी का चूर्ण अथवा मुलहठी कूट कर (15 ग्राम) जल (100 मि.ली.) में उबालें जब पानी आधा रह जाए तो उसे उबालना बन्द करें। कुनकुना (Lukewarm) मुलहटी का काढ़ा दिन में चार बार पीएं (एक बार में 50 मि.ली.)। एक बार पकाया क्वाथ छ: से आठ घण्टे तक ही सही रहता है। पित्तज कास के लिए : मुनक्का 10, पिप्ली (बड़ी पिप्पल) 10 एवं दो तोला कूजे वाली मिश्री मिलाकर इसका मिश्रण मिलाकर इसका मिश्रण दिन में दो बार मधु के साथ चाटना चाहिए।
(466, आयुर्वेद का प्राण: वनौषधि विज्ञान पुस्तक से लिया है)
1.बच्चों में कुक्कर खाँसी (काली खाँसी अथवा हुपींग कफ भी कहते हैं) के लिए एवं शुष्क कास के लिए - द्राक्षा (मुनक्का), आँवला, खजूर, पिप्पली व काली मिर्च सबका समभाग लेकर पीस लें। इस चटनी को सुबह शाम चाटें।
2. काले बाँसे की राख (1 से 3 ग्राम) सुबह शाम शहद के साथ चाटें।
पित्तज प्रकृति वालों को अडूसा (वासा) का रस बहुत लाभप्रद होता है। अडूसा उत्तर भारत में सड़कों के किनारे-किनारे बहुत उगता है व वसन्त ऋतु में सफेद रंग के फूल आते हैं। पित्तज कास में अडूसा के पत्तों का ताजा स्वरस (5-10 मि.ली.) तथा मुलहटी का चूर्ण (2-5 ग्राम) बहुत लाभप्रद होता है। कफज कास में कुनकुना (Lukewarm) अथवा गर्म पानी लिया जा सकता है। परन्तु पित्तज कास में पानी गर्म न पिएं मात्र पानी की शीतलता निकाल दें अर्थात  लें। पित्तज कास में भी सादा अथवा ठंडा पानी न पिएं।
अडूसा, घीक्वार (एलोवेरा), अमृता (गिलोय), तुलसी जैसी औषधियाँ हर व्यक्ति को अपने घर में अवश्य उगानी चाहिए। इनको उगाना बहुत सरल है व गुण बहुत हैं।
खाँसी और दमे के रोग में धतुरा दूसरी सब औषधियों की अपेक्षा उत्तम है। श्वास नलिका की श्लेष्मा त्वचा को शिथिल करके यह दमे की पीडा को दूर करता है। इसलिए खाँसी की बहुत दवाये इसके रस में घोटकर गोली के रूप में बनार्इ जाती है, फिर भी इसका विशेष लाभ धुम्रपान करने से होता है। दमे का चाहे जैसा उग्र वेग चढ़ा हुआ हो, वह भी इसके पत्ते की धुम्रपान से तत्काल शांत हो जाता  है। श्वास को दूर करने के लिए और उसके उपद्रवपूर्ण वेग को कम करने के लिए धतूरे के समान औषधि शायद ही कोर्इ दूसरी हो। इसमे पाए जाने वाले Hyoscyaminye & Hyoscine मे नींद लाने व शूल को नष्ट करने के गुण उपस्थित है ऒर वयुशुल माय मुफीद व आक्षेप निवारक होते है ।
-वनोषधि चन्द्रोदय
कास में दूध में उबाला आँवले का चूर्ण घृत मिलाकर सेवन कराना चाहिए।
रक्तपित्त में आँवले के स्वरस में या चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करना चाहिए।
पित्त में सूखे आँवले का चूर्ण, दुगने शर्करा तथा इससे भी दुगना घी मिलाकर सेवन करे।
वायविडगं
वायविडगं चूर्ण मधु के साथ गोली बनाकर मुख मे रखे (सेवन करें) मात्रा- 3 से 5 ग्राम। कृमि नाश, ज्वर, अजीर्ण, श्वास तथा खाँसी में लाभकारी, चर्म रोग, सामान्य दौर्बल्य में विडंग एक दिव्य औषधि है इसके सेवन से पाचन क्रिया सुधरती है, शिशुओ को विडंग का चूर्ण दूध में मिलाकर, उबालकर पिलाना लाभकारी है। सोते समय एक ग्राम मुलहठी चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर चूसा, चबाया जाए इससे प्रात: गला साफ होता है

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