ढ़ोल ग्वार शुद्र पशु नारी, सकल ताडन के अधिकारी।
गोस्वामी तुलसीदास जी की इस उक्ति को
अनेक विद्वान नकारात्मक संदेश के रूप में ले जाते है । परन्तु यदि इसको ठीक से
समझने जानने का प्रयास किया जाए तो यह चौपार्इ समाज के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण
तथ्य सामने प्रस्तुत करते है ।
सर्वप्रथम हम नारी की भूमिका पर विचार
करते हैं । भारतीय संस्कृति नारी का चित्रण दो रूपों में करती आयी है एक ओर तो ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते निवसति तत्र
देवता’ अर्थात यहाँ नारी का पूजन हो वहाँ
देवता निवास करते हैं । इसी प्रकार आचार्य श्री राम जी का उदघोष हैं ‘नारी का सम्मान जहाँ है, संस्कृति का उत्थान वहाँ हैं’ । परन्तु दूसरी ओर आचार्य शंकर ‘नारी नरकस्य द्वार’ कहकर लोगो को सावधान करते हैं । इसी
प्रकार गोस्वामी जी एक ओर माता जानकी का पूर्ण सम्मान के साथ पूजन करते है- ‘जाके युग पद कमल मनावँऊ, तासु कृपा निर्मल मति पावँऊ’ । दूसरी ओर नारी को ताडन की अधिकारी
बताते हैं । रामायण काल में चार नारियों का मुख्यत: वर्णन आया है- देवी सीता, कैकयी, मन्दोदरी व सूर्पणखा ।
देवी सीता का चरित्र त्याग, तप और कर्त्तव्य पालन की पराकाष्ठा हैं
। जीवन के विविध प्रकार के खतरनाक पड़ावों को धैर्य व शालीनता के साथ स्वीकार करते
जाना कितना कठिन हैं । यदि आज की नारियों के चरित्र में इसका 2 प्रतिशत में समावेश हो जाए तो भारत की
80 प्रतिशत समस्याएँ सुलझ जाएँ । परन्तु
आज नारियों में टीवी, मोबार्इल, इन्टरनेट, किटी पार्टियाँ, फेंशन परस्ती के दुर्व्यसन पनपते जा
रहे हैं । यदि आप खाने के साथ कभी हरी मिर्च ले लें तो वह लाभप्रद हैं । लेकिन सदा
तीव्र मिर्च का सेवन करें तो वह द्रव्र्यसन हो जाता हैं । इसी प्रकार टीवी, मोबार्इल आदि में घण्टो लगे रहना एक
द्रव्र्यसन से कम नहीं हैं । रसोर्इ में गैस पर दूध अथवा कूकर रखा हैं औरत फोन पर
लगी है सब्जी जलकर कूड़ा बन गर्इ परन्तु औरत को जूँ न रेगीं । नारी को मोज मस्ती, फेंशन परस्ती को छोड़कर त्याग तपोमय
जीवन की और बढ़ना होगा । जब गलत आदतें बच्चों में पनपती हैं तो सब परेशान होते हैं
परन्तु हम लोग अपनी आदतें सही नहीं करना चाहतें । हमारे से ही अच्छे बुरे संस्कार
बच्चों में Transfer होते हैं । यह हम क्यों भूल जाते हैं ।
नारी को गोस्वामी जी ने इसलिए ताडन के
लिए कहा हैं । ताडन अर्थात् ढ़ीला न छोडना (Loose न छोड़ना) अर्थात् स्वच्छन्द आचरण की अनुमति न देना । नारी से
जैसे-जैसे बन्धन् अनुशासन हट रहे हैं वैसे-वैसे समाज में नाना प्रकार की समस्याएँ
बढ़ रही हैं । नारी के संस्कार दिनोदिन खराब होते जा रहे हैं । गृह कार्यों में
निपुणता, आत्मीयता, सरलता, धैर्य, कष्ट सहिष्णुता का विलोप होता जा रहा
हैं । परिवार निर्माण, नवपीढ़ी के गठन की महत्वपूर्ण
जिम्मेदारी नारी की मानी गयी हैं । क्या आज की नारियाँ जिन्हें मोबाइलो, टीवी के सीरियलों से फुरसत नहीं है
देवी सीता की तरह लव कुश का निर्माण कर पाँएगी? बालको
का चरित्र निर्माण बड़ा ही सवेंदनशील मुद्दा है जिसमें नारी की अहम भूमिका हैं ।
यदि इस कार्य में लापरवाही बरती गयी तो आने वाली पीढ़ी कैसे जीवन जिएगी इसकी
कल्पना करने से भय लगता हैं ।
गोस्वामी पहले कैकयी की भूमिका देखते
हैं अपने स्वार्थ के चलते अपनी मूर्खतापूर्ण जिद से उसने एक हँसते खेलते परिवार
में आग लगा दी । यदि राजा दशरथ ने कैकयी को सिर पर न चढ़ाया होता जरूरत से अधिक
छूट न दी होती तो यह नौबत न आती । फिर गोस्वामी जी सूर्पणखा का खेल देखते है ।
सूर्पणखा एक अवारा औरत रही होगी जो
व्यर्थ में यहाँ वहाँ मुँह मारती फिरती रहती थी । यह सोचकर कि यदि वनवासी लोगों के
साथ आयी स्त्री को समाप्त कर दिया तो ये लोग मुझसे ही अपनी वासनात्मक इच्छाँए पूरी
करेगें उसने देवी सीता पर आक्रमण कर दिया । वासनापूर्ण व्यक्ति यह सोचता है कि
सामने वाला भी उसके जैसा ही हैं वह किसी के त्याग तप को क्या समझेगा ? सूर्पणखा ने भी यही सोचा कि सीता के डर
से ये तो दो युवक उससे सम्बन्ध नहीं बना रहे हैं । जैसे यदि लड़का किसी लड़की से
प्रेम करता है तो वह यही सोचता रहता है कि लड़की भी उसे बहुत चाहती है । सूर्पणखा
के सिर वासना हावी हुर्इ तो वह राम लक्ष्मण के सामने ही सीता जी को मारने दौड़ी ।
आम्रपाली ने वेश्यावृत्ति का धन्धा कर
हजारो परिवार बरबाद कर डालें । महात्मा बुद्ध ने देखा जब तक आम्रपाली नहीं धन्धा
बन्द करेगी लोगों में सुधार होना कठिन है । इसलिए उन्होंने सीधा आम्रपाली को ही transform कर दिया । एक पुरूष, मात्र एक परिवार को ही परेशान कर सकता
है परन्तु एक नारी तो हजारो परिवार बिगाड़ सकती हैं ।
यह कौन मूर्ख कहता है कि अनुशासन
निभाने से समाज की उन्नति एक जाएगी । योगी तपस्वी, महापुरूषों ने सदा कठोर अनुशासनों, बंधनो का पालन किया व स्वंय भी आनन्दमय जीवन जिया और इस राष्ट्र को
ऊँचा उठाया । आज समाज की विडम्बना यही है कि वैज्ञानिक उन्नति तो खूब हुयी परन्तु
समाज में पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण होने से अनुशासनहीनता की प्रवृत्ति लोगों
में पनपी । न सोने का ठीक समय, न
खाने का समय न नहाने का समय । इस कारण आज कोर्इ भी सुखी नहीं हैं । सुख का आधार
क्या है- अच्छा स्वास्थ्य?
क्या अब लोगों का स्वास्थ्य अच्छा है-
नहीं । अब से 50 वर्ष पूर्व लोग बड़े तगड़े, हट्टे कटे होते थे । क्या इसके लिए वातावरण जिम्मेदार हैं ? लड़कियाँ कम उम्र में ही उल्टे सीधे
खानपीन, अनुशासनहीन जीनव व कामुक वातावरण की
चपेट में आकर Lucoria जैसे रोगों की गिरफ्त में आ जाती हैं ।
वो युवावस्था में ही स्वस्थ नहीं रह पा रही हैं कहाँ से स्वस्थ सन्तान उत्पन्न
करेगीं । कामुकता का नशा शराब के नशे से ज्यादा घातक हैं । शराब का नशा तो व्यक्ति
को 20 वर्ष में समाप्त करता है परन्तु
कामुकता का नशा तो 2 वर्ष में ही उसकी रीढ़
तोड़ देता है । आँख पर चश्मा, सफेद
बाल, पिचके गाल, चट-पट करती हड्डियाँ- कौन जिम्मेदार है
इसका-मात्र कामुकता से पूर्ण वातावरण ।
सुनते है भीम जैसे ताकतवर युवा इस
राष्ट्र में थे जो भूमि पर गौडा मारकर पानी निकाल देते थे । एक बार एक विद्यार्थी
के पैर में प्लास्तर था मैनें कक्षा में पूछा यह क्या हुआ? सर बाथरूम में नहा रहा था पैर Slip हुआ व हड्डी टूट गयी । यह सब क्यों हो
रहा हैं ? हमारी मूर्खता का परिणाम हैं । बन्दरों
की तरह हम लोग हर चीज में west
की नकल करते हैं । वहाँ की
परिस्थितियाँ दूसरी है हमारे यहाँ की अलग हैं । यदि हम बिना सोचे समझे उनकी नकल
करेगें तो हमारी वह हालत होगी धौबी का कुत्ता न घर का न घाट का । अपनी महान
संस्कृति को भी गँवा दिया और उनके जैसे भी बन न पाए । हर जगह की कुछ अच्छाइयाँ है
कुछ बुरार्इयाँ हैं । बुरार्इयाँ व्यक्ति जल्दी adopt कर लेता है । एक तगड़ा व्यक्ति सिगरेट पीता था दसरे कमजोर व्यक्ति ने
भी उसकी नकल में सिगरेट पिने का प्रयास किया कुछ ही दिनों में उसके फेफडे़ खराब हो
गए । भारत में व्यक्ति की चेतना अधिक सवेदंनशील है यदि इसको वासनात्मक मोड़ मिल
गया तो पूरा समाज बरबाद हो जाएगा । इस संवेदनशील चेतना को आध्यात्मिक मोड़ देना
अनिवार्य है ।
यही बात नारी चेतना के साथ हैं । नारी
की संवेदनशील चेतना को यदि अनुशासित रखा गया तो उसका आत्मीयता, करूणा, कलाप्रेम, संगीत, सहयोगिनी के रूप में विकास होगा । यदि उसे अनुशासित न किया तो
फैशनपरस्ती, वेश्यावृत्ति, भ्रष्टाचार जैसे दोष बढ़ते चले जाँएगे।
बहुत अच्छा लिखा है सचाई को लिखा है मोबाइल और टीवी का जरूरत से ज्यादा प्रयोग घातक होता जा रहा है ! आज अचानक इंटरनेट खोला तो vishavmitr से रु बरु हुआ !धन्यवाद राजेश जी !जय hind
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