तरह-तरह की बेतुकी बातें कर साधु-बाबा अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। डबलरोटी-सामोसे-जूते आदि को कर्म-चक्र से जोड़कर ये अपनी अविकसित सोच का प्रमाण देते हैं। परंतु दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अशिक्षित ही नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग भी आज उनकी इन उलजलूल बातों में फंसकर उनका भक्त बन रहा है। उनके चरणों में बैठकर श्रद्धा और विस्वास के पुष्प चढ़ाता है आँख मूँद कर वही करता है, जो वे उससे करने को कहते हैं। इस कारण अंत में गति क्या होती है, वही जो इस प्रसंग में वर्णित शिष्यों की हुर्इ। एक बार एक ढोंगी गुरू ने अपने सभी शिष्यों से कहा-’’ मैं तुम्हें परमात्मा के सामा्रज्य तक पहुँचा दूँगा, बशर्त तुम मेरी बात का अक्षरश: पालन करो। बिना प्रश्न किए मेरी आज्ञा मानो! क्या तुम ऐसा वायदा करने को तैयार हो? क्या तुम मेरा अनुसरण करने को तैयार हो? सभी शिष्यों ने एक स्वर में हामी भर दी। अब ढोंगी गुरू ने अपना पहला आदेश शिष्यों को दिया- सीधे बैठो! करीब 200 शिष्यों का एक साथ स्वर उभरा-सीधे बैठो! ढोंगी गुरू ने हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमार्इ। आज्ञाकारी शिष्यों ने भी हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमा दी। परेशान हुए ढोंगी गुरू ने गुस्से में कहा- तुम वो करो, जो मैं कह रहा हुँ। फिर 200 शिष्य चीखे-तुम वो करो, जो मैं कह रहा हुँ।
ढोंगी-मुर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
200 शिष्य-मुर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
ढोंगी गुरू जो-जो कहता गया, जैसा-जैसा करता गया, उसके शिष्य ठीक वैसा-वैसा कहते गए, करते गए। आखिरकार ढोंगी गुरू ने झुंझलाकर सामने बैठे एक शिष्य के मुख पर तमाचा जड़ दिया। बस, अब क्या था! पूरा वातावरण तमाचों के शॊर से गूँज उठा। सब एक-एक तमाचा उस ढोंगी के चेहरे पर जड़ने लगे। अब वह ढोंगी जान-बचाकर वहाँ से भागा। उसके शिष्य भी उसके पीछे-पीछे दौड़ पडे़। इस भागदौड़ में गुरू कुएँ में जा गिरा और उसके पीछे-पीछे वे 200 शिष्य भी कुएँ में कूद पड़े। इस तरह सब एक साथ ईश्वर के साम्राज्य में पहुँच गए!!
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