भारत में नारी को शक्ति माना गया है ।
शक्ति जितनी प्रचण्ड हो अनुशासन, सावधानी
उतनी अधिक रखनी होती है । परमाणु शक्ति का सदुपयोग करने के लिए कठोर अनुबन्धों की
आवश्यकता है थोड़ी सी भी लापरवाही बड़े विनाश को आमन्त्रण दे सकती है । नारी पुरूष
की समाज की शक्ति बने, सहयोगिनी बने इसलिए उसको train अधिक करना पड़ता है discipline अधिक follow करने पड़ते है । समाज में देवत्व के प्रसार में नारियों की विशेष
भूमिका रही है । बौद्ध मिशन के विकृत स्वरूप ने समाज को तहस-नहस कर डाला था ।
वेदों के उद्धार के लिए एक नारी सामने आयी-अश्रुपूर्ण नेत्रों व वेदना भरे हृदय से
वह सबसे पूछती- वेदों का उद्धार कौन करेगा? कुमारिल
भट्ट आगे आए । इतिहास साक्षी है कि उस समय वैदिक परम्परा के पुनरूत्थान में
कुमारिल भट्ट व उनके शिष्य मण्डन मिश्र ने अपना जीवन होम दिया। नारी का पतन व
तन्त्र मन्त्र पर आधारित समाज में वासना का नंगा नाच चल रहा था । वैदिक परम्परा को
लोग भूलते जा रहे थे। एक नारी से यह सहन न हुआ ।
समाज व राष्ट्र को ऊँचा उठाने में
नारियों की सर्वोपरि भूमिका रही हैं । मुगलों का बढ़ता अत्याचार एक नारी को सहन
नहीं हुआ उसने रास रंग का जीवन न जीकर त्याग तपोमय जीवन जिया व अपने पुत्र को वीर
शिवाजी के रूप में इतना सशक्त बनाया कि वो अकेले सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य से
टकराने का साहस कर गए । शिवाजी की माँ जीजाबार्इ चाहती तो मुगलों के साथ अच्छे
समबन्ध बनाकर बढ़िया ऐश आराम की जिन्दगी काट सकती थी । परन्तु भारत माता के
स्वाभिमान की रक्षा के लिए उसने काँटो का पथ चुना । मुगलों की दासता व विलासिला
पूर्ण जीवन उसको रास न आया । राजमहल का परित्यागं कर अपने पुत्रो को गढ़ने के लिए
अलग स्थान में चली गयी । साहय, शक्ति, भक्ति उच्च चरित्र व आज्ञाकारी पुत्र
होने का जितना सुन्दर समन्वय शिवाजी के भीतर था वह अदभुत है । बच्चे या तो डरपोक
होते है । थोड़ा साहसी हो तो दुर्व्यसनी, अंहकारी
व चरित्रहीन पाए जाते हैं । वो जीजाबार्इ ही थी जो ऐसे महान शिवा का गठन कर पायी ।
शिवा को सहायता व दैव अनुग्रह देने के लिए तुकाराम जैसे सन्त व समर्थ गुरू रामदास
जैसे महायोगी प्रस्तुत हुए । व्यक्ति अपने बल पर बहुत कुछ नहीं कर सकता जब तक दैव
कृपा का आसरा न हों । समर्थ वास्तव में सब कुछ करने में समर्थ थे । शिवाजी को उनका
संरक्षण मिला व मुगलों की दुर्जेय समझी जाने वाली विशाल सेना को भी अनेक बार मुँह
की खानी पड़ी ।
नारी की महिमा का कहाँ तक वर्णन किया
जाए । नारी की संवेदना, करूणा, त्याग तपोमय जीवन भारत का हीं नहीं पूरे विश्व में संतयुज्ञी वातावरण
ला सकती हैं । परन्तु दुर्भाग्य से वही नारी गलत वातावरण को सह पाकर कामुकता, विलासिता, फैशन पररस्त व निकम्मेपन की शिकार हो
गयी हैं ।
भारतीय संस्कृति नारी को गुणों की खान
कहती है । यदि वह उन श्रेष्ठ गुणों की खान है तो कोर्इ दुष्ट उसको आँख उठाकर भी
नहीं देख सकता । मौत को जीतने वाला रावण देवी सीता का बाल भी बाँका न कर सका । यह
है नारी का सामर्थ्य, जिसका उसे बोध ही नहीं हैं ।
नारी स्वतन्त्रता के नाम पर आज
लड़कियाँ अपने boyfriends
के साथ अवारा की तरह घूम रही हैं ।
कानो में ear bugs हाथों में मोबाइल, फिल्मी गानों की धुन में मस्त होकर
समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रही हैं ये स्वंय नहीं जानती ।
कहाँ लुप्त हो गयी नारी की करूणा? क्या उन्हें सिर्फ फिल्मी गाने, boyfriends, होस्टस, पार्टियाँ ही नजर आ रही हैं? क्या
उन्हें समाज में बढ़ता दु:ख दर्द अन्धकार नहीं दिख रहा है? ऋषियों की सन्तान इतनी सवेंदनहीन कैसे
हो सकती है । काला बादल अधिक समय तक सविता को नहीं ढ़क सकता । अब समय आ गया हैं
नारी को अपनी भूमिका पहचाननी ही होगी । अपनी करूणा, संवेदना, स्नेह, ममता से सम्पूर्ण समाज के नवीन दिशा देनी हैं ।
नारी पशुवत आचरण न करने लगे इसलिए उसे
मर्यादा में, अनुशासन में, संयम में रहने का निर्देश गोस्वामी जी
देते है । जब-जब भी नारी स्वच्छन्द हुर्इ समाज में विलासिता बढ़ी पूरी की पूरी
जातियाँ नष्ट हो गयी । इसलिए नारी जाति पर अंकुश रखना अत्यधिक आवश्यक हैं जिसमें
समाज की ऊर्जा अधोगामी न हो पाए।
हमने समाज में दो तरह के व्यक्तित्व
देखे हैं एक वो जो संवेदनशील है दूसरे वो जिनमें संवेदना कम हैं । लेखक स्वंय एक
संवेदनशील व्यक्ति रहा हैं । हास्टल लाइफ में लेखक को स्वंय को अच्छे साहित्य से
जोड़कर रखना पड़ता था । थोड़ा सा भी यदि लेखक गलत संगत या गलत साहित्य के सम्पर्क
में आता तो उसके लिए समस्या बन जाती । जबकि हास्टल के लड़के आराम से यह सब करते
हुए मजा लेते थे । मेरे जीवन से जुड़ी एक घटना का वर्णन यहाँ आवश्यक प्रतीत होता
हैं । हम दो लड़के (राजेश अग्रवाल व संजय गोयल) सहारनपुर से 600 Km. दूर KNIT सुल्तानुपर Engg.
करने गए । दोनों अच्छे दोस्त थे दोनों
भावनाशील सवेंदनशील व अच्दे कुलीन परिवारों से थे । दोनों को Literature पढ़ने का शौक था व दोनों Ist year में एक रूम में रहे ।
मैं (राजेश) तो एक ऐसे अध्यापक के
सम्पर्क में आया जो रामकृष्ण के भक्त थे व मेरा दोस्त (संजय) आचार्य रजनीश के
शिष्यों के सम्पर्क में आया । हमारे रूम में रामकृष्ण व्यकामृत व सम्भोग से समाधि
की ओर दोनों पुस्तके बराबर पढ़ी जाती थी । मुझको मेरा प्रारब्ध स्वामी रामकृष्ण जी
की ओर खींच ले गया व संजय को उसका प्रारब्ध आचार्य रजनीश की ओर खींच ले गया । मैं
दुर्गा, हनुमान जी, राम जी की पूजा करने लगा व संजय रजनीश
की मालाएँ गले में डाले कहीं-कहीं भटकने लगा ।
सम्वेदनशील व्यक्ति पर अच्छार्इ अथवा
बुरार्इ दोनों ही बहुत वेग से हावी होती हैं । मैं भक्ति मार्ग में आगे बढ़ता गया, संजय गलत मार्ग पर बढ़ते-बढ़ते आवारा
लड़को का सरताज बन गया । 2nd year से हमने अलग-अलग room partner चुन लिए व मार्ग अलग-अलग हो गए । यह
बड़ा दुखद समाचार रहा कि संजय की डिग्री समय पर पूरी न हो पायी व उसका 30 वर्ष से ऊपर का जीवन बहुत दर्दनाक रहा
। उसके वो दोस्त जो उसके साथ होस्टलों में दारू पीते थे अच्छी पोस्टो पर भी निकल
गए थे पर बुरे वक्त में कोर्इ काम न आया । मात्र 35 वर्ष की आयु में उसका बड़ी दयनीय अवस्था में देहान्त हो गया । मैं
बच गया क्योंकि मैं उस समय बहुत सीधा, भोला
व रिजर्व प्रकृति का बालक था मुझे इधर-उधर घूमने का शौक नहीं था ।
इसलिए सम्वेदनशील हृदय को अधिक अनुशासन
चाहिए वह दूसरो की नकल करके बुरार्इयों की तरफ न आकर्षित हैं । नारी का हृदय भावुक
व सम्वेदनशील होता हैं इसलिए उसकी स्वच्छन्दता पर अंकुश लगाया गया है जिससे उसको
कोर्इ गलत direction में motivate न कर दें उसकी सरलता का misuse न कर ले जाए । भावुक व सीधे व्यक्ति किसी पर जल्दी विश्वास कर लेते
है व बुरार्इ के चक्कर में फँस सकते है । मैने अपने बहुत से भावुक मित्रों का जीवन
बरबाद होते देखा है अत: मैं गोस्वामी जी के इस कथन से पूर्णतया सहमत हूँ कि नारी
जैसे भावुक हृदय के सही दिशा देने के लिए अनुशासन संयम (अर्थात् लाइन) की अनिवार्य
आवश्यकता हैं ।
No comments:
Post a Comment