कटे जन्मों-जन्मों के संस्कार, ब्रह्मज्ञान की तलवार चाहता हूँ,
विकारों से हो मन का बचाव, तुम्हारी कृपा की ढाल चाहता हूँ,
पीछे न हटूँ इस रणभूमि से, अन्त तक युद्ध करना चाहता हूँ,
गुरुदेव! मैं एक योद्धा बनना चाहता हूँ!
हर पल रहे आपकी निगाहें मुझ पर,
ऐसा दिव्य साथ चाहता हूँ,
जो हो तेरी रजा , उसी में राजी रहना चाहता हूँ,
मिटा दूँ अपने आपको सेवा में, ऐसा जुनून चाहता हूँ,
“श्वांस -श्वांस हो आपका आराधन, ऐसा सुमिरन चाहता हूँ,
आपके रंग में रंग जाऊँ, ऐसा पात्र बनना चाहता हूँ,
मेरे रोम-रोम से छितरे, आपके दिव्य तेज की ज्योति,
गुरूदेव, मैं आपका भक्त बनना चाहता हूँ,
मस्तक पर अपने आपके चरण नखों की ज्योति,
भाल पर अपने प्रखर प्रज्ञा का अनुदान चाहता हूँ,
जो भी देखे मुझको दीदार तेरा हो जाए, ऐसा व्यक्तित्व चाहता हूँ,
हे गुरूदेव! मैं तो बस आपकी अभिव्यक्ति बनना चाहता हूँ।
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