Wednesday, February 13, 2013

साधना से सिद्धि के लिए प्रायश्चित अनिवार्य


एक साधक अपना सामान्य जीवन जी रहे थे उनके पास अपना निजी मकान नहीं था। बडी कठिनार्इ से कुछ धन जोड़कर कुछ लोन लेकर उन्होंने एक मकान का सौदा किया। जो मकान बेच रहा था वह थोड़ा प्रभावशाली व अंहकारी व्यक्ति था। बयाने की रकम दे दी गयी। अपनी आदत के अनुसार मकान बेचने वाले ने व्यर्थ की रौबदारी व धमकी देना प्रारम्भ किया कि वह न मकान देगा न बयाना वापिस करेगा।
सम्भवत: वह मजाक ही कर रहा होगा परन्तु साधक अपना सन्तुलन खो बैठा उसने भी गर्मागर्मी में कहा कि वह गायत्री साधक है उसका धन हजम करना आसान नहीं है। यदि उसे तंग किया तो इसके दुष्परिणाम भुगतने होगें। साधक के अन्र्तमन में मकान मालिक के प्रति दुर्भावना ने जन्म ले लिया। उसी दिन साँयकाल मकान मालिक का जोरदार एक्सीडेन्ट हुआ। उसको साधक की दी चेतावनी का स्मरण हो गया और उसने साधक को बुलाकर कहा कि वह तो मजाक कर रहा था। जिस दिन चाहे रजिस्ट्री करा लें। मकान की सही सलामत रजिस्ट्री हो गयी।
साधक कच्चा था उसे इस बात का घमण्ड हो गया कि उसकी बददुआओं से मकान मालिक का इतना नुक्सान हो गया। साधक यह बात बड़े गर्व से अपने मित्र बन्धुओं को बताया करता था। अब तो स्थिति यह हुई कि जब कोर्इ साधक को थोड़ा सा भी तंग करता साधक के अन्त:करण में उसके प्रति दुर्भावना जन्म ले लेती। दूसरों का नुक्सान हो जाता व साधक घमण्डी होता गया। धीरे-धीरे साधक की साधना की उर्जा दुर्भावो में परिवर्तित होने लगी।
वह साधक जिसकी प्रार्थना पर बड़े-बड़े रोगी ठीक हो जाया करते थे अब स्वंय ही बीमार रहने लगा। बीमारी बढ़ती गयी। एक दिन साधक ने अपने भीतर झाँक कर जब कठोर आत्मविषलेशण किया तो पूरी वस्तुस्थिति उसके सामने स्पष्ट हुई लेकिन अब तक काफी देर हो चुकी थी व काफी नुक्सान हो गया था।
अब साधक ने प्रण लिया कि आने वाले तीन वर्षो तक वक किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखेगा जो उसे तंग करेगा भगवान से उसकी सद्बुद्धि की भी प्रार्थना करेगा व उसके प्रति सदभाव बनाने का प्रयत्न करेगा।
साधक को सावधान रहना होता है जैसे यदि बच्चा बाप के कान मरोड़ दे तो क्या बाप बच्चे का पीट डालेगा। नहीं मात्र हँस कर छोड़ देगा क्योंकि वह जानता है कि बच्चे को पता नहीं वह क्या कर रहा है।
साधको का दृष्टिकोण भी दुनियावी लोगों के साथ ऐसा ही होता है। वे उन्हें बालक समझकर नजरंदाज करते रहते है र्इसा मसीह को जब क्रूस पर लटकाया गया तो उनके मुख से दो वाक्य निकलें।
‘‘ हे प्रभु तेरी इच्छा पूर्ण हों।
‘‘ हे प्रभु इन्हें माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है। ‘‘
र्इसा मसीह को पता था कि पूर्व जन्म में कोर्इ ऐसा प्रारब्ध बचा है जिसको भोगना अभी शेष है और क्रुस के माध्यम से परमात्मा उसका भुगतान करना चाहते है। इसलिए उन्होंने पहला वाक्य बोला। यदि उनकी दुर्भावना लोगो के प्रति बढ़ जाती तो नए कर्मो को बोझ लदना प्रारम्भ हो जाता। इसलिए कोर्इ नया कर्मफल न जुडे उन्होंने दूसरा वाक्य बोला।
बोध (जागृति) होने से पहले जो दुष्कर्म किए उनका भुगतान अनिवार्य है। अंगुलिमाल अब बौद्ध भिक्षु बन चुके थे। सड़क पर भिक्षा के लिए निकलते तो लोग उन पर क्रोधित होकर पत्थर मारते। बहुत मार खाते-खाते वो बुरी तरह घायल हो जाते लेकिन कहते किसी को कुछ नहीं। अपने कर्मो का प्रायश्चित मानकर सब कुछ सह जाते।
ऋषि वाल्मीकि डाकू से साधक बने तो उन्हें पश्चाताप हुआ कि इतने लोगो को लुटा, मारा, अनाथ किया। उन्होंने अपने कर्मों का प्रायश्चित करने के लिए निराश्रितों के लिए एक आश्रम खोला। देवी सीता ने अपने वनवास काल में उन्हीं के आश्रम में जाकर शरण ली व लव-कुश को जन्म देकर पालन किया।
उच्चस्तरीय साधना में भावनाओं के अंधड़ चलते है। जरा सा भी व्यक्ति चुका और ट्रेन पटरी से उतरी। वैराग्य,  सदभाव, करूणा, क्षमा, साहस, अनुशासनसंयम इसलिए साधक सदैव आत्मविष्लेशण करता रहें कि वह त्याग, तप व तितिक्षा के पथ पर लम्बे समय तक चलने के लिए अपनी मानसिकता परिपक्व कर चुका है अथवा नहीं। कुछ उँचा पाने के लिए प्रयास की कीमत भी उँची देनी होती है।
परमात्मा हम सबको इस लायक बनाए कि हम साधना पथ पर दृढता पूर्वक आगे बढ़ते रहे व माँ भारती की सेवा करते रहे।
                                   जय भारत, जय हिन्द।

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