Saturday, February 16, 2013

सम्बन्धों की परिपक्वता एवं दृढ़ता


कलयुग में सच्चे रिश्ते बन पाना और उन्हें कायम रख पाना, शायद सबसे बड़ी चुनौती भरा काम है। जरा सी गड़बड़ रिश्तो में भूचाल ला सकती हे। जिन रिश्तो को बनाने में सालों लग जाते हें, उन्हें चटकने में मिनट भी नहीं लगती। इसलिए आपको बड़ी समझदारी से इन्हें सहेजकर रखना आना चाहिए। वह कला आनी चाहिए, जो आपके हर रिश्ते को मजबूती दे सके। तो आइए, इस कला की कुछ जरूरी टिप्स जानें –
सम्बंधों में खट्टी-मीठी नोंक-झोंक होना स्वाभाविक है। पर रिश्तो में कभी कड़वाहट और कटुता न आने दें। क्योंकि कटुता ऐसी दुश्मन है, जो हमारे कोमल-शितल हृदय को भी कठोर-गर्म लावे में बदल देती है। फिर इस लावे में हमारे काफी पुराने प्रिय सम्बंध भी जलकर राख हो जाते हैं। इसलिए इससे पहले कि यह कड़वाहट आपके संबंधों को राख करे, आप इसे अपने हृदय से बाहर निकाल फेंकिए। आइए, एक कहानी के ज़रिये समझने की कोशिश करें कि कैसे रिश्तो में कड़वाहट पैदा होने से रोकी जा सकती है।
एक दम्पत्ति थे, जो एक संतान की इच्छा के लिए ईश्वर से नित्य प्रार्थना किया करते थे। सौभाग्यवश एक दिन उन्हें उनकी प्रार्थनाओं का फल मिला। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुर्इ । वह पुत्र उन दोनों की आँखों का तारा था। वे पति-पत्नी बड़े ही प्रेम-प्यार से उनका पालन-पोषण करते थे। एक सुबह बच्चे के पिता नौकरी पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। सुबह की भाग-दौड़ के बीच उन्होंने देखा कि एक दवार्इ की शीशी खुली पड़ी है। परन्तु समय-अभाव के कारण वे उसे नहीं बंद कर पाए और उन्होंने अपनी पत्नी को उसे बंद करने के लिए कहा। पत्नी भी तब रसोर्इघर के कार्यों में व्यस्त थी। उसने वहीं से कहा कि वह बाद में बंद कर देगी। पर बाद में वह भूल गर्इ। थोड़ी देर बाद, उनका छोटा सा शिशु खेलता हुआ उस शीशी के पास पहुँच गया और उसके रंग से आकर्षित हो वह सारी दवार्इ पी गया। इतनी ज्यादा मात्रा में दवार्इ पीने से वह मूर्छित हो गया। उसको उसी समय अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने उसकी जांच करने के बाद बताया कि उसकी हालत गंभीर है। ऐसा सुन माँ फूट-फूट कर रोने लगी और अपनी लापरवाही के लिए खुद को कोसने लगी। उसे अपने बेटे की चिंता के साथ यह डर भी सता रहा था कि वह अपने पति को क्या जवाब देगी? जब पति अस्पताल पहुँचा और अपने बेटे को इतनी पीड़ा में देखा, तो तुरन्त अपनी पत्नी की ओर बढ़ा।
(आगे पढ़ने से पहले आप स्वयं को इस स्थिति में रखकर देखिए। यदि आप उस व्यक्ति की जगह होते, तो आपकी अपनी पत्नी के लिए क्या प्रतिक्रिया होती? बहुत सम्भव है कि आप कुछ यूँ भड़कते- तुम इतनी गैर जिम्मेदार, लापरवाह केसे हो सकती हो? क्या तुम एक बच्चे का भी ठीक से ध्यान नहीं रख सकती?.... परन्तु आपको हैरानी होगी कि उस पति की यह प्रतिक्रिया नहीं थी। बल्कि....)
उसने अपनी पत्नी की आँखों से बह रही आँसू की नदिया को पोंछा। फिर उसके हाथों को अपने हाथों में लिया और कहा -चिंता मत करो, हमारा बेटा जल्दी ही ठीक हो जाएगा। उसे कुछ नहीं होगा।
सच में, पति की ऐसी प्रतिक्रिया प्रशंसनीय है। उसने अपनी पत्नी को दोषी नहीं ठहराया। बल्कि सकारात्मक दृश्टिकोण रखते हुए परिस्थिति का सामना किया। अपनी पत्नी की चिंता को समझा। महसूस किया उसके दर्द को, उसके पश्चात्ताप को। उसे सहारा दिया। सांत्वना दी! कटुता के स्थान पर क्षमा के भावों को प्राथमिकता दी। ऐसा करके उसने अपने संबंधों में कड़वाहट पैदा नहीं होने दी।
हम सभी जानते हैं कि आजकल Use & Throw (इस्तेमाल करो और फेंको) का जमाना है। जैसे ही किसी वस्तु में कोर्इ खामी आर्इ नहीं कि उसे फेंक दिया। परन्तु जीवन के संबंध कोर्इ वस्तु नहीं हैं, जिन्हें कभी भी छोड़ दिया जाए। इसलिए Use & Throw का सिद्धान्त कभी  सम्बन्धों पर लागू करने की भूल न करें। यदि किसी संबंध में कोर्इ खामी आ जाए, तो क्षमा का भाव रखें और अपने संबंधों की डोर को मजबूती दें।
अपनी सीमा को कभी न लांघे
आजकल हर संबंध में, चाहे वह मित्रता का हो या माता-बच्चे का, पति-पत्नी का हो या भार्इ-बहन का, सभी में अस्थिरता के लक्षण दिखार्इ देते हैं। आखिर क्यों? क्योंकि हम संबंधों की सीमाओं में नहीं रह पाते। इसे एक वैज्ञानिक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं -
वैज्ञानिक नील बोहर ने अपनी रिसर्च द्वारा यह सिद्ध किया कि एक परमाणु में भिन्न-भिन्न ऊर्जा स्तर (energy shells) होते हैं। परमाणु का प्रत्येक इलैक्ट्रॉन (electron) अपनी तय ऊर्जा कक्षा (specified energy orbit) में रहते हुए केन्द्र (nucleus) की परिक्रमा करता है। और जब एक इलैक्ट्रॉन अपनी कक्षा की सीमा को लांघने का प्रयास करता है, तो परमाणु असंतुलित हो जाता है। ठीक यही प्रक्रिया संबंधों के साथ भी घटती है। हर संबंध की एक तय सीमा होती है। परन्तु कर्इ बार ऐसा पाया जाता है कि इस सीमा को लांघने के कारण व्यक्ति अपने संबंधों में अस्थिरता और असंतुलन उत्पन्न कर देता है।
संबंधों में स्थिरता बनाए रखने के लिए व्यक्ति को हमेशा अत्यधिक आपऔर मैंकी सीमाओं से दूर रहना चाहिए। मतलब कि संबंधों में न तो जरूरत से ज्यादा खातिरदारी होनी चाहिए और न ही लापरवाही। इन दोनों ही अवस्थाओं के बीच संतुलन होना चाहिए। जेसा कि आप चित्र की स्थिति-2 में देख सकते हैं। परन्तु हमारा स्वभाव इसके उलट ही होता है। या तो हम पैंडुलम के बाँए छोर (स्थिति-1) में रहते हें, यानि अपने रिश्तों  का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखते हैं। या फिर दाँए छोर (स्थिति-3) में रहते हैं, यानि रिश्तों की तरफ बिल्कुल लापरवाह! दोनों ही परिस्थितियाँ पैंडुलम की अस्थिरता को दर्शाती हैं। इसलिए संबंधों में स्थिरता व सामंजस्य बनाए रखने के लिए हमेशा बीच की स्थिति-2 का चयन करें। रिश्तों  के प्रति आपके जो कर्तव्य  हैं, उनमें कभी भी लापरवाही न बरतें। न ही रिश्तों को अपने पर या खुद को उन पर ज्यादा आश्रित करें। अपने विवके का इस्तेमाल करें।

धन-दौलत की जगह उच्च आदर्शो व मूल्यों रूपी सम्पत्ति को स्थान दें।
यह एक कटु सच्चार्इ है कि आज सभी रिश्तों का आधार केवल धन-दौलत और स्वार्थ है। मनुष्य उसी से मित्रता करना चाहता है, जो धनवान और समृद्ध है। आज किसी से भी संबंध जोड़ने से पहले व्यक्ति उसके चरित्र से ज्यादा उसके बैंक बैलेंस को महत्त्व देता है। एक बार शेखचिल्ली के पास एक धनाढ्य व्यक्ति आया। उसने शेखचिल्ली से कहा- तुम बीस साल के नौजवान हो। यह तुम्हारी शादी की उम्र है। इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ। मेरी तीन बेटियाँ हैं। तीनों ही किसी न किसी कारण से अभी तक अविवाहित हैं। सबसे छोटी बेटी की उम्र तीस साल है। यदि तुम उससे विवाह कर लोगे, तो मैं तुम्हें 10 लाख रूपये दहेज में दूँगा। मंझली बेटी 35 साल की है। यदि तुम उससे विवाह कर लोगे, तो मैं तुम्हें 20 लाख  रूपये दहेज में दूंगा। सबसे बड़ी बेटी 40 साल की है, उससे विवाह करने पर 30 लाख का दहेज दूँगा....शेखचिल्ली झट से बोला- आपकी कोर्इ बेटी 50 साल की नहीं है क्या?
यह है आज के इंसान की सोच और रिश्तों की सच्चार्इ! परन्तु याद रखें कि धन-दौलत पर खड़े किए गए संबंध कभी आपको स्थायी प्रसन्नता नहीं दे सकते। बल्कि धन-दौलत के कारण तो संबंधों में मतभेद, विवाद और क्लेश पैदा हो जाते हैं। महाभारत का युद्ध एक ऐसा ही उदाहरण है। केवल धन के लालच के कारण ही तो उसे युद्ध में संबंधों की बलि चढ़ी थी। यह दुर्योधन की राज्य-लिप्सा ही तो थी, जिसकी वजह से भाइयों (कौरवों और पांडवों) के बीच ही इतना विनाशकारी युद्ध घट गया। बात केवल इतिहास की नहीं है, आजकल भी रोज़ अखबारों में सुर्खियाँ पढ़ने को मिलती हैं कि फलां इंसान ने प्रोपर्टी के लालय में अपने पिता का बेरहमी से खून कर दिया। भार्इ ने भार्इ को गोली मार दी। पति ने पत्नी को ज़हर दे दिया। युवा चंद पैसों के लिए अपने दोस्त तक का अपहरण करवाने से नहीं हिचकचाते.... सो, धन-दौलत के कारण तो संबंधों में अस्थिरता पैदा होती ही है। इसलिए यदि आप जीवन में अपने संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं, तो उन्हें सदाचार, त्याग, निष्काम भावना आदि सद्गुणों का आधार दें।

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