Wednesday, February 6, 2013

भारत में बढ़ते यौन अपराध व सभ्य समाज की भूमिका





फोब्र्स पत्रिका ने महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देषों की सूची में भारत को टॉप पांच देषों में ाामिल किया है। इस सूची मेुं पहले स्थान पर अफगानिस्तान है। इसके बाद कांगो, पाकिस्तान, भारत और सोमालिया। भारत को कितनी ाानदार कंपनी मिली है।

            हमने इस विषय में जो थोड़ी बहुत छानबीन करने का प्रयास किया है उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नारियों की वेशभूषा से पुरूष वर्ग बहुत परेशान होता है। यदि नारियाँ कुलीन ड्रेस्सेस (जैसे सलवार, कुर्ता आदि) पहने व मर्यादा, लज्जा का त्याग न करें तो यह उनका समाज पर बहुत बड़ा उपकार होगा। क्या कोर्इ बहन अपने भार्इ का पतन स्वीकार करेगी? परन्तु जो ड्रेस्सेस या आचरण युवतियाँ कर रही हैं उनसे भी किसी न किसी के भार्इ का पतन निश्चित हो रहा है। भारत की आत्मा तभी बच पाएगी जब यहाँ के युवा त्याग, तपोमय जीवन के आदर्श का पालन करेंगे। इस भोगवाद की आँधी को कौन रोक पाएगा? क्या भारत के धर्मगुरू इन मुद्दों पर संगठित हो पाँएगें। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। अलग-अलग बयानबाजी करने से काम चलने वाला नहीं है। सभी धर्मगुरू एक मंच पर एकत्र होकर यह निश्चय करें कि हम केवल उन्हीं लोगों को दीक्षा देंगे जो अपनी कन्याओं को शालीन ड्रैस पहनने पर मजबूर करेंगे। इस विषय में व्यापक शोध की आवश्यकता है। कुछ क्षेत्र ऐसे चुने जाएँ जहाँ महिलाये शालीन ड्रेस्सेस पहनती हो व कुछ ऐसे चुने जाएँ जहाँ ड्रेस्सेस अभद्र हों। कहाँ अपराध अधिक होते हैं, यह पता लगाया जाए।
            मुझे लगता है कि इतना मूर्ख शायद ही कोर्इ हो जो यह न जानता हो कि नारियों की शालीन ड्रेस्सेस व मर्यादापूर्ण आचरण ही भारतीय समाज की गरिमा को बरकरार रख सकता है। पश्चिम से यह बहुत ही भयानक रोग भारतीय समाज में घुसता चला जा रहा है जिसमें नारी को भोग्या के भाव से पुरूष वर्ग देखने लगा है व नारी भी यह चाहती है कि वह उल्टे सीधे वस्त्र व आचरण द्वारा लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने। कठिनार्इ तब आती है जब कोर्इ युवती किसी को आकर्षित करके अपना मनसूबा पूरा करना चाहती है। परन्तु इस चक्कर में नीयत किसी ओर की खराब हो जाती है। यदि लोग अपने-अपने घर के ताले दरवाजे खुले छोड़कर नोटों की गड्डियाँ फर्श पर बिखेरकर अपने काम धन्धों के लिए चले जाएं, तो यह धन किसी को भी चोरी के लिए प्रेरित कर सकता है। इसी प्रकार महिलाएं यदि टार्इट कपड़े अथवा हाफ ड्रेस्सेस पहन कर अभद्र आचरण करती घूमें तो यह किसकी नीयत खराब कर दे इसका क्या भरोसा?
            क्या यह प्रश्न केवल नारियों के यौन शोषण तक ही सिमट कर रह जाएगा? युवतियों के उल्टे सीधे कारनामों से पुरूषों का जो यौन शोषण हो रहा है उसकी सजा किसको मिलेगी? यौन शोषण का अर्थ है समय से पूर्व ही व्यक्ति की यौन शक्ति अथवा युवा शक्ति का ह्रास हो जाना। यदि ऐसा नहीं रोका गया तो संवेदनशील युवाओं का एक बड़ा वर्ग विक्षिप्तता के कगार पर पहुँच जाएगा। संवेदनशील युवा आसानी से काम वासना के कुचक्र में उलझ सकते हैं। वासनाओं के दबाव की मार सह रहा युवा वर्ग उससे मुक्ति पाने हेतु बहुत उल्टे-सीधे हथकंडे अपना रहा है। भारतवर्ष में अश्लील वैबसार्इट्स, फिल्मों व साहित्य पर तुरन्त शिकंजा कसा जाना चाहिए। इस तरह के security tools की खोज हो जो Pornographic sites को ban करें। इस दिशा में कुछ राष्ट्रीय व कुछ अंतर्राष्ट्रीय नियमों को बनाने व पालन करने की महती आवश्यकता है।
            स दिशा में तुरन्त राष्ट्रीय कानून बनाये जाऐं। MHRD, UGC AICTE इस दिशा में ठोस कदम उठाएं जिससे भारत के युवाओं के चरित्र पतन को रोका जा सके।
            नि:सन्देह इस दिशा में कानून बनाना सराहनीय कदम है, परन्तु इससे समस्या का समाधान होने वाला नहीं है। रिश्वत लेना कानूनी जुर्म है परन्तु फिर भी नैतिक पतन के चलते इसका खूब प्रचलन है। जब तक शिक्षा जगत में भारतीय मानसिकता वाले अध्यापक, प्राध्यापक, निदेशक नहीं आऐंगे तब तक सुधार होने वाला नहीं है। जैसे रिश्वत-प्रधान समाज में र्इमानदार भी रिश्वत लेने-देने को मजबूर है अन्यथा लखनऊ में र्इमानदार इन्जीनियर की जान से खिलवाड़ किया जाता, इसी प्रकार इस भोगवादी समाज में हर कोर्इ उस आंधी में अपने को स्थिर रख पाने में विवश पाता है।
            हमारी वैदिक परम्पराओं की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी गर्इ हैं। किसी को क्या कहा जाए जब अपना ही सिक्का खोटा हो? जहाँ की नारियां धर्म, कर्म, मर्यादा, सदगुणों की खान हुआ करती थी, आज वो न तो पाक कला में निपुण है, न गृह व्यवस्था में। बस एक छिछोरपना उनके ऊपर हावी है जिसके घातक परिणामों से वो स्वयं परिचित नहीं हैं। अभी तो जवानी के नशे में उन्हें कुछ भी दिखायी नहीं देता परन्तु 40 वर्ष की उम्र पार करते ही जब नर्वस सिस्टम के कमजोर होने से Neuraljia, Lucoria के आक्रमण होते हैं तब व्यक्ति बहुत छटपटाता है। अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गर्इ खेत?
            प्रारम्भ में जवानी के दस पन्द्रह वर्ष सिगरेट-राब व्यक्ति को खूब आनन्द देते हैं परन्तु 40 के उपरान्त जो Lungs, Liver disorders diabetes की मार झेलनी पड़ती है उस समय व्यक्ति पश्चाताप करता है कि काश उसको ये दुर्व्यसन न लगे होते। इसी प्रकार कामुक आचरण जो 14-15 वर्ष की उम्र से भारतीय विद्यार्थियों को खोखला कर रहा है। प्रारम्भ में बड़ा रसीला प्रतीत होता है, परन्तु बाद में व्यक्ति अपना सिर धुनता है कि काश उसने संयम का जीवन जिया होता।
            परन्तु आज तो दुर्भाग्य इस बात का है जो संयम का जीवन जीना चाहते हैं वो भी नहीं जी सकते। जैसे यदि वातावरण में विषैली गैसों का प्रकोप हो जाए तो करे कोर्इ ओर दण्ड भरे सब कोर्इ वाली हालत होती है। इसी प्रकार भोगवादी वातावरण हर किसी को अपनी ओर खींच रहा है। जो व्यक्ति उच्च आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं उन्हें उस विष से स्वयं को बचाने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ रहा है।
             यदि समाज में वासनाएं अनियन्त्रित, अमर्यादित होने लगें तो जन्म होता है- सूर्पनखा का जिसने अपनी वासना पूर्ति हेतु देवी सीता के प्राण लेने की कोशिश की। परिणामस्वरूप लक्ष्मण जी ने उसके नाक-कान काट लिए। उसने अपने भार्इ खर-दूषण को बताया तो उन्होंने सही कारण जानकार सूर्पनखा को डाँटना चाहिए था। ऐसा न कर उन्होंने अपने घमण्ड में चूर होकर दोनों वनवासी भार्इयों पर आक्रमण कर दिया। खर-दूषण अपनी सेना समेत मारे गए। सूर्पनखा ने बजाए अपनी गलती मानने के रावण के कान भरे। रावण ने गुप्तचरों द्वारा पता लगाया कि बनवासी की पत्नी बड़ी सुन्दर है। रावण की वासना जाग उठी, रावण को खर-दूषण की ताकत का पता था, इसलिए बजाए सीधे राम लक्ष्मण का सामना करने के देवी सीता को छल से हरना उचित समझा। सूर्पनखा व रावण की वासनाओं ने पूरी लंका, पूरे कुल का सत्यानाश कर डाला। अपनी शक्ति के मद में जहाँ वासनाओं का नंगा नाच प्रारम्भ होता है वह समाज शीघ्र ही पतन, विनाश को प्राप्त होता है। गलत को गलत कहना हमें आना चाहिए। अपने-अपने स्वार्थ हेतु हम रावण के दरबारियों की भाँति अपनी आँख पर पट्टी बांध लें, यह भयावह स्थिति है।
                        यदि वासनाओं का नियन्त्रण अथवा मन हो जाए तो जन्म होता है सावित्री जैसी महान साधिका का, जो सत्य की रक्षा के लिए एक रोगी व्यक्ति से विवाह करने का संकल्प करती है। विवाह उपरान्त भी वासनाओं पर नियन्त्रण कर तपस्वी जीवन जीकर अपनी प्राणशक्ति से पति को निरोग कर सामर्थ्यवान बनाती है, जिससे वह अपना खोयी प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त करते हैं। ऐसी ही नारी को पुरूष की शक्ति कहा जाता है। हमारे यहाँ इसीलिए नारियों के लिए क्तिस्वरूपा, देवी स्वरूपा, माता, बहनों के नाम से उच्चारण होता है। लेकिन आज की युवतियाँ इन आदर्शों की ओर मुँह उठाकर देखना भी पसन्द नहीं करती। क्यों? उन्हें चाहिए लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ाना, Boyfriends बनाकर उन्हें पटाना, उनसे अपने उल्टे सीधे काम निकलवाना। क्या 20-25 वर्ष पूर्व नारियाँ इस प्रकार का स्वछन्द आचरण करती घूमती थी? कम उम्र से ही लड़के लड़कियाँ एक दूसरे से घनिष्टता बढ़ाना प्रारम्भ कर दइेते हैं परन्तु माता-पिता  से छिपाऐ रहते हैं। लड़के लड़कियों के घर के चक्कर काटते हैं लडकियाँ भी मजे लेती है समस्या तब खड़ी होती है जब लड़के सीमा पर करने लग जाते है अथवा लड़की के माता-पिता को पता लग जाता है। लड़की अपनी जान बचाने के चक्कर में (अपनी बेइज्जती से बचने के लिए) सारा ठिकरा लड़के के ऊपर फोड़ देती है कि वह ही उसे तंग करता है। ऐसे में लड़के क्रोध में आकर उल्टे सीधे कदम लेते हैं कि कल तक जो उसको हास-परिहास मौज-मस्तियों के लिए उकसाती थी आज वहीं उसकी शिकायत कर रही है। कम उम्र में परिपक्वता न होने से उल्टे सीधे हादसों की संख्या समाज में दिनोदिन बढ़ रही है।
            आश्चर्य इस बात का है कि जड़ को ठीक करने की बजाए फूल पत्तों का उपचार किया जा रहा है। जो यौन अपराध में संलग्न पाया गया उसे कड़ी सजा दी जाए। परन्तु इन सारी परिस्थितियों की जड़ें कहाँ हैं, यह देखते-जानते हुए भी आदमी उसकी अनदेखी कर रहा है। क्यों नहीं माँ-बाप अपनी लड़कियों को सामान्य वेषभूषा पहनने पर जोर देते? क्यों चुपचाप सब कुछ देखते रहते हैं? जब किसी के साथ कुछ हादसा हो जाए तो कानून या प्रशासन जिम्मेदार है?
            प्रबुद्ध वर्ग कड़े कानूनों की वकालत तो कर रहा है पर कड़े अनुशासन की बात कोर्इ नहीं करता। बिना अनुशासित किए, बिना मर्यादित हुए हमारी युवा पीढ़ी को वासना के दलदल से कैसे बचाया जा सकता है? जैसे राबी को नशे की लत में अच्छा-बुरा कुछ नहीं सूझता, वैसे ही कामुकता के नशे में व्यक्ति को नियम-कानून, मानवता कुछ भी समझ नहीं आता। भारत में जहाँ कभी ब्रह्मचर्य, संयम, त्याग, तप, सन्यास के पथ को श्रेष्ठ माना जाता था, वहाँ चारों ओर अश्लीलता का नंगा-नाच बढ़ता चला जा रहा है। क्यों हम हर जगह विदेशियों की नकल करके अपने को आधुनिक दिखाने का ढोंग करते घूमते हैं। नकलची बन्दरों की संख्या इतनी बढ़ गर्इ है कि जो सरल, सच्चा व ऊँची विचारधारा देखने वाला इन्सान है उसका समाज उपहास उड़ाता है। गान्धारी की तरह यदि हम अपनी आँख पर पट्टी बांधकर अपनी सन्तानों को बिगड़ता न देख पाए तो आने वाला कल हमें माफ नहीं कर पाएगा। धृतराष्ट्र तो जन्मान्ध थे परन्तु यदि गान्धारी ने कुछ समझदारी दिखायी होती, दुर्योधन व शकुनि को उनकी गलतियों पर पहले ही डाँटा होता तो अपने कुल का विनाश न देखना पड़ता। जब भरी सभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था तो क्यों नहीं गान्धारी की आत्मा काँपी? क्यों नही तब उसने अपनी आंख की पद्दी खोलकर दुयोधन को शाप दिया (रोका)? आज भी हमारे समाज में बहुत बड़े शक्तिशाली सन्त, ज्ञानी, नेता, सुधारक हैं परन्तु सब विवश हैं विश्व-विद्यालयों के प्रांगणों में अश्लीलता का नंगा नाच देखने के लिए। पश्चिमी सभ्यता रूपी दुर्योधन हमारा सब कुछ समाप्त करने पर तुला है और हम भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, धृतराष्ट्र, गान्धारी की भाँति मौन रहकर एक महाभारत को निमन्त्रण दे रहे हैं। वातावरण में कामुकता-अश्लीलता को बढ़ने से न रोगा जाए, परन्तु जब यौन अपराध बढ़े तो अपराधी को फाँसी के फन्दे पर लटका दिया जाए। यह तो इस तरह का हुआ कि टंकी के पानी में राब मिलाकर सप्लार्इ की जाए और जब शराब के नशे में कुछ गलत हो जाए तो कड़ा दण्ड अपराधी का दिया जाए। लेखक कड़े कानूनों का पक्षधर है। परन्तु जो फाँसी पर चढ़ेगा आखिरकार वह भी तो इन्सान ही है और समाज ही इन्सान के उत्थान और पतन के लिए दोषी है। व्यक्ति, अकेला तो बड़ा निर्दोष बालक पैदा होता है। यह समाज ही तो उसको पवित्रता, दिव्यता, महानता प्रदान करता है। यह समाज ही उसको लुच्चा, लफंगा, चोर, भ्रष्ट, अपराधी बना सकता है। इसीलिए लेखक समाज को अनुशासित, मर्यादित करने पर जोर देता है, जिससे भारत में चरित्रवान नागरिकों का निर्माण हो सके। यदि बच्चों को आठवीं, दसवीं कक्षाओं से अश्लील साहित्य, फिल्में वातावरण मिलने लगेगा तो कहाँ से वो चरित्रवान बन पायेंगे बढती कामुकता को शान्त करने के लिए उल्टे सीधी साधनों का प्रयोग करेंगे तो यौन अपराधों की ओर उन्मुख हो जाएँगे।
            दुर्भाग्य है कि देश के शासक धृतराष्ट्र की भाँति अन्धे हैं जिन्हें केवल अपनी कुर्सी, अपनी सत्ता के अतिरिक्त कुछ दिखायी नहीं पड़ता। समाज सुधारक, सन्त, राजनेता, लेखक, विचारक सभी मिलकर यदि समाज में अनुशासन के लिए कड़े कदम उठाएं, तभी बढ़ते यौन अपराधों पर लगाम लगाना सम्भव होगा। भारत माँ की सन्तानें कब वस्तुस्थिति को समझकर अपना सुधार करेंगी, किस प्रकार समाज को पतन से बचाना सम्भव हो पाएगा यह आज सबके लिए विचारणीय प्रश्न है, एक खुली चुनौती (challenge) है।


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