Thursday, January 3, 2013

प्रज्ञावतार

केमिकल के घोल से; धरती माँ परेशान 
अब तो रक्षा करो मेरी; हे करूणा निधान।।

मिट्टी में कीटनाशाक और रासायनिक खाद; सारी फसल हो गर्इ बरबाद।
खाद्य पदार्थ हो गए बेजान; अब कहाँ रह गर्इ तन में जान।।

नदियों में उद्योगों का कचरा; स्वच्छ पेयजल का हो गया खतरा।
शुद्ध वायु कहाँ से आए; वाहनों ने है धुएँ उड़ाए।।

भोगवाद की आँधी आयी, मयार्दा-शालीनता की कर दी सफाई।
स्वार्थ-दुर्भावो का बढ़ता जोर; अग्नि तत्व पड़ गया कमजोर।।

डायबिटीज, सर्वाइकल, गठिया का दौर; कैंसर, हार्ट अटैक का है जोर।
स्वस्थ रहना बन गर्इ समस्या; कुछ  सूझे तो कर लो आत्महत्या।।

मनुज बेचारा मारा-मारा है फिरता; कैमिकल के चक्रव्यूह से घिरता।
बड़े-बड़े अस्पतालों का हुआ निर्माण; पर न होता रोगों का निदान।।

कालनेमि ने रंगमंच सजाया; मन्त्रों-तन्त्रों का जाल बिछाया 
पितृ, शनि, कालसर्प का भय दिखाया; झोला भर-भर धन कमाया।।

दुख पीड़ा पतन का सब जगह साया; धरती माँ का दि घबराया।
बैकुण्ठ लोक में जा शो मचाया; क्षीर सागर से प्रभु को जगाया।।

धरती माँ की सुन पुकार; बने विष्णु जी प्रज्ञावतार।
युग निर्माण का अलख जगाया; देव पुरुषो का मन हर्षाया।।

अपना सोया भाग्य जगा लो; दिव्य चेतना का संरक्षण पा लो।
धरती पर संकट है छाया; क्या तुमको समझ  आया।।

अपने स्वार्थ में हो गया अन्धा; पैसे जोड़ने का पाला धन्धा।
लखपति-करोड़पति बनने की चाह; नहीं सुनी दीन दुखिया की आह।।

युगधर्म का पालन कर ले; अंश दान, समय दान का क्रम बना लें।
मानव जीवन को धन्य बना लें; कुछ तो मनवा पुण्य कमा लें।।

अपने संकट में मन्दिर को दौड़ा; पर मानवता से मुख है मोड़ा।
कोन देगा तुझे सहारा; फिरता रह अब मारा-मारा ।।

कहता स्वयं को बड़ा समझदार; कर  पाया प्रभु का दीदार 
दुखों कष्टों की जब मार पड़ेगी; मति तेरी क्या तभी सुधरेगी ।।

ऋषि मुनियों की तू है सन्तान; अपने गौरव को कुछ तो पहचान 
आत्म कल्याण का पथ अपना ले; ज्योति से ज्योति तू जगा ले।।

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