Thursday, January 10, 2013

मानस भज ले गुरू चरणम्- दुस्तर भव सागर तरणम्- IV


कालमृत्युभयहरं सवर्संकटनाशनम्।
यक्षराक्षसभूतानां चौरव्याघ्रभयापहम्।।
महाव्या​धिहरं सर्वं ​विभू​तिसिद्धदं भवेत्।
अथवा मोहनं वश्यं स्वयमेवं जपेत्सदा।।
गुरूगीता का जप काल एवं मृत्यु के भय का  हरण करने वाला है। इससे सभी संकटो का नाश होता है। इतना ही नहीं, इससे यक्ष, राक्षस, भूत, चोर एवं व्याघ्र आ​दि के भय का भी हरण होता है। इसके जप से सभी व्या​धियाँ दूर होती हैं। सभी ​सिद्धियो एवं अलौ​किक शक्तियो की प्राप्ति होती हैं। यहाँ तक ​कि इस गीता को स्वयं जपने से सम्मोहन, वशीकरण आ​दि की शक्ति स्वत: ही प्राप्त हो जाती है।
10-समर्थ गुरू रामदास के ​शिष्य स्वामी कल्याण गोदावरी नदी से कुछ कोस दूर एक गाँव में ठहरे हुए थे अपने सदगुरु के नाम की अलख जगाते हुए सत्प्रवृत्तियों का प्रसार करना उनका व्रत था। जय-जय रघुवीर समर्थ, को उच्च्स्वर से पुकारते हुए वह ग्राम वी​थियों से गुजरते, तो लोग बरबस ही उन्हें घेर लेते। उनके पास आश्चयर्जनक सिद्धियाँ तो नहीं थी, पर गुरूकृपा का बल था। अपने गुरू पर उनका सम्पूर्ण ​विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी। उनकी भक्तिपूर्ण बातें लोगों में चेतना की नयी लहरें पैदा करती।
ग्रामवासी स्वामी कल्याण के वचनों से आनन्दित थे। उन्हें जीवन की नयी ​दिशा मिल रही थी। परन्तु रूढ़िवादी साधु और कई तांत्रिक उनकी बातों से प्रसन्न नहीं थे, क्यों​कि कल्याण स्वामी के वचनों ने जन जीवन में इतनी जागृ​ति पैदा कर दी थी ​कि इन सभी का व्यवसाय बंद होने लगा था। कर्म के ​सिद्धान्त पर ​विश्वास करने लगा जन-जीवन सत्कार्यों में प्रवृत्त होने लगा था। चमत्कारों की ओछी बाजीगरी से उसे उकताहट होने लगी थी। जन मानस की यह ​स्थिति अपने को ​सिद्ध कहने वाले तां​त्रिकों को रास नहीं आयी। उन्होंने कल्याण स्वामी के प्र​ति अनेकों षड्यंत्र रचने शुरू कर ​दिये। वे सब ​मिलकर ​किसी भी तरह जन-जीवन की नजर में उन्हें अप्रमा​णिक एवं अयोग्य सा​बित करना चाहते थे।
जब उनके सामान्य उपक्रम असफल सा​बित हुए, तो उन्होंने अपनी चमत्कारी ​सिद्धियों का सहारा ​लिया। इन ​सिद्धियों के बल पर उन्होंने गाँव के तालाबों, कुआँ, बाव​डियों का जल सुखा ​दिया। इस तां​त्रिक अत्याचार से सामान्य जनता पानी के ​लिए तरसने लगी। मनुष्य एवं पशुओं का जीवन ​बिना पानी से ​विपन्न हो गया। ​बिलखते बच्चे, परेशान गृह​णियों की जिन्दगी दूभर हो गयी। परेशान गाँववासी कल्याण स्वामी के यहाँ गये। पर वे करते भी क्या? उनके पास ऐसी कोई सिद्धि नहीं थी, ​जिससे समस्या का हल हो सके। इधर इन क्रूर तांत्रिकों ने उनका और उनके गुरू का अपमान करना प्रारम्भ कर ​दिया। गाँव वालों को ​जितना सम्भव था भड़काया।
कल्याण स्वामी के ​लिए स्वयं के अपमान का तो कोई मोल नहीं था, पर गुरू का अपमान उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। ग्रामीण जनों की दुर्दशा भी उनसे देखी न गयी। आ​खिर में उन्होंने गुरूगीता एवं गुरूमंत्र का आश्रय लेने की सोची। ग्रामवा​सियों के कल्याण के ​लिए उन्होंने कठिन उपवास करते हुए गायत्री महामंत्र से सम्पु​टित करके गुरूगीता का अनुष्ठान प्रारम्भ ​किया। प्रगाढ़ तप में उनके ​दिन बीतते। प्रार्थना में उनकी रातें व्यतीत होतीं। यह ​सिल​सिला कई दिनों तक चलता रहा। एक रात प्रार्थना करते समय उनकी भाव चेतना समर्थ सदगुरु के चरणों में ​विलीन होने लगी। उनके हृदय में बस एक ही आर्त पुकार थी, हे सदगुरु! इन निर्दोष ग्रामीण जनों की रक्षा करो।
भक्त की पुकार गुरूदेव अनसुनी न कर सके। उनकी परावाणी कल्याण स्वामी की अंतर्चेतना में गूँज उठी, चिंता न कर, माँ गोदावरी से प्रार्थना कर, उनको मेरा संदेश देना, उन्हें कहना मेरे गुरू ने आपको ग्रामीण जनों के कल्याण के ​लिए आमं​त्रित किया हैं। समर्थ गुरू का यह ​विचित्र सा संदेश कल्याण स्वामी को ​ठिक से समझ नहीं आया। ​फिर भी वे अपने गुरूभक्ति की धुन में माँ गोदावरी के पास गये और उन्होंने गुरू का संदेश सुनाते हुए ग्रामवा​सियों का जल संकट दूर करने के ​लिए प्रार्थना की। इतना ही नहीं गोदावरी से एक लकीर खींचते हुए गाँव में आ गये।
उनके उस कार्य का तांत्रिकों ने बड़ा मजाक उड़ाया। ले​किन सबको आश्चर्य तो तब हुआ, जब उन्होंने देखा ​कि पानी से खाली गाँव कुएँ, तालाब, बाव​डिया फिर से पानी से भर गये हैं। माँ गोदावरी प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं बहती रही, ​किन्तु उनकी अंतर्धारा ने गाँव आकर सबका कष्ट दूर कर ​दिया। गाँव वालों ने गुरूभक्ति का यह प्रत्यक्ष चमत्कार देखा और उन सबने स्वीकार ​किया, ​किसी भी मांत्रिक -तांत्रिक सिद्धि से गुरूभक्ति की ​सिद्धि बड़ी है।
ये सभी लेख शांतिकुंज से पर्काशित पुस्तक गुरूगीता से ​लिये है

               

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