क्या समोसे के साथ चटनी खाने से दु:ख दूर हो जाएँगे?
आजकल मीडिया में ऐसे बहुत-से बाबा-गुरू छाए हुए हैं, जो न तो शास्त्र-ग्रथों पर आधारित कथाएँ या प्रवचन करते हैं, न ही कोर्इ आध्यात्मिक चर्चा। वे तो अपने भक्तों को कुछ ऐसे मंत्र या बेतुके सूत्र बताते हैं, जिनसे भक्तों की तिजौरियाँ भर जाएँ, दु:ख-क्लेष खत्म हो जाएँ, नौकरी लग जाए आदि।
जैसे जब कोर्इ कंपनी नया प्रोडक्ट बाजार में उतारती है, तो मीडिया में खूब विज्ञापन देती है, ताकि अधिक से अधिक लोगों केा आकर्शित कर सके। ठिक ऐसे ही आजकल के ये तथाकथित गुरू मीडिया का प्रयोग कर घर-घर तक पहुँच रहे हैं, जिन्हें अध्यात्म का ‘ क ख ग भी नहीं आता, बस बेतुकी बातें करके लोगों को ठग रहे हैं। कहते है कि आप समोसे के साथ फलां चटनी खाएँ, तो आपकी नौकरी लग जाएगी। आप डबलरोटी दो की जगह चार खाएँ, तो कैंसर ठिक हो जाएगा। आज जूता इस कंपनी का न पहनकर, इस कंपनी का पहनें, तो आपको बेटा हो जाएगा क्या कोरी बकवास है! निरी मूर्खता है! ये गुरू नहीं व्यापारी है।
यह देखकर एक रोचक घटना याद आती है। एक बार एक इंस्पैक्टर निरीक्षण करने के लिए एक स्कूल पहुँचा। उसने एक कक्षा में जाकर विद्यार्थियों से पूछा- ‘दिल्ली से मुंबर्इ जाने में 12 घण्टे लगते हैं। अब बताओ कि मेरी उम्र क्या है?’ दोनों पंक्तियों में कोर्इ तालमेल ही नहीं था। इसलिए बच्चों को प्रश्न समझ में नहीं आया, तो भला वे उत्तर क्या देते! सब विद्यार्थि मौन रहे। तभी एक बालक ने हाथ उठाया, बोला - सर मैं इस प्रश्न का उत्तर जानता हुँ।
इंस्पैक्टर खुश हो गया, बोला-’बताओ, मेरी उम्र कितनी है?
विद्यार्थि-सर पचास साल।
इंस्पैक्टर-शाबाश बेटे! तुम सबसे बुद्धिमान हो।
उसके जाने के बाद हैरान-परेशन शिक्षक ने उस विद्यार्थि से पूछा- इंस्पैक्टर का प्रश्न तो एकदम बेतुका था। भला दिल्ली से मुंबर्इ पहुँचने तक के समय और उसकी उम्र में क्या संबंध हो सकता है? फिर तुमने सही उत्तर कैसे दिया?
विद्यार्थि- सर, मेरा एक बड़ा भार्इ है। उसकी उम्र पच्चीस साल है। वह अर्धपागल है। इस हिसाब से मैंने अनुमान लगाया कि इन इंस्पैक्टर की उम्र अवष्य ही पचास साल होगी, क्योंकि ये तो पूरे पागल थे।
कहते हैं कि एक बार एक व्यक्ति दूध लेने दुकान पर गया। दूध लेकर हँसी-खुशी वापिस लौटा। उसकी पत्नी ने उस दूध को गर्म किया और फिर पति का दे दिया। दूध पीने के कुछ ही देर बाद पति की मृत्यु हो गर्इ। पत्नी जोर-जोर से रोने चिल्लाने लगी। अड़ोसी-पड़ोसी सब इकट्ठे हुए। मृत्यु का कारण पता चलने पर सभी डंडे लेकर दुकानदार के पास पहुँच गए। उसे खुब मारा-पीटा। इधर यमदूत उस व्यक्ति की आत्मा को लेकर यमराज के पास पहुँचे और पूछा-हे यमदेव! इसकी मृत्यु का दोषी किसे ठहराया जाए? क्या उस दुकानदार को, जिसने इसे जहर भरा दूध दिया?
यमराज-उस बेचारे का क्या दोष? उसे तो पता भी नहीं था कि दूध में जहर है। वह जहर तो सांप के मुख से उस दूध में गिरा था।
यमदूत-तो फिर सांप इस व्यक्ति की मृत्यु का दोषी हुआ।
यमराज-नहीं, सांप तो चील के पंजों में दबा था उसने जानकर तो विष नहीं घोला।
यमदूत-तो फिर क्या चील इसकी दोषी है?
यमराज-नहीं, चील तो अपना शिकार ले जा रही थी, विष और दूध से उसका क्या लेना-देना!
यमदूत- तो फिर दोषी कौन?
यमराज-इस व्यक्ति के स्वंय के कर्म। इसके कर्मों की गठरी ने ही इसकी मृत्यु के लिए यह मंच रचा। दुकानदार, सर्प, चील आदि तो सब केवल निमित्त् मात्र बने।
ठीक इसी तरह आज यदि हमारे जीवन में भी कोर्इ दु:ख-संकट है, तो उसका कारण हमारे कर्म-संस्कार हैं। और इन कर्म-संस्कारों को नष्ट किए बिना दु:ख नष्ट नहीं हो सकते। यदि कोर्इ तथाकथित संत आपसे कहता है कि वह आपके दु:खों को नष्ट कर देगा,तो जान लीजिएगा कि वह आपको छल रहा हैं कर्म-संस्कारों को नष्ट कर ही दु:खों का निवारण हो सकता है।
अखण्ड ज्ञान से साभार
No comments:
Post a Comment