Tuesday, September 17, 2013

जप व ध्यान का समन्वय

भारतीय साधनाओं में जप योग अपना विशिष्ट स्थान रखता है। अधिकतर धर्मो व मठो के लोग माला लिए किसी न किसी मंत्र का जप करते मिलते हैं। जप व ध्यान की समान्वित विधि (अर्थात दोनों एक साथ) मानवीय चेतना को विकार रहित बनाकर ऊचांर्इयों तक सरलता पूर्वक ले जाती हैं। इस प्रक्रिया में ध्यान अपने आराध्य के पूर्ण चित्र या शरीर के किसी विशेष भाग पर अथवा मंत्र के अर्थ या शब्दों पर किया जाता है। मंत्र का अर्थ है मनन करने से त्राण दिलाने वाला, अर्थात जिसके मनन से दुख, कष्ट क्लेश से व्यक्ति मुक्त हो उसे मंत्र कहा जाता हैं। शास्त्र कहते है कि शब्द में बहुत शक्ति होती है और मंत्र स्वर की लहरियाँ सम्पूर्ण आकाश मण्डल में प्रवाहित होकर साधक के तीनों शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, व कारण) पर प्रभाव डालती है। यदि व्यक्ति मंत्र के अर्थ को जानता है व भावना पूर्वक उस अर्थ को ध्यान में रखते हुए जप करता है तो उसका प्रभाव अधिक होता हैं परंतु यदि व्यक्ति मंत्र के अर्थ से अनजान है तब भी मात्र यान्त्रिक ढंग से जप करने पर भी वैज्ञानिक आधारों पर मंत्र से समबन्धित स्वरुप साधक के अंत:करण में प्रविष्ट होकर आत्म प्रकाश फैलाएगा। उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति गायत्री मंत्र का जप करता है तो उसे सविता के तेज का ध्यान करना होता है और भावना करनी होती है कि वह प्रकाश साधक के पापों, कषाय कल्मषों, दोष दुर्गुणों को काटकर देवत्व का संचार कर रहा है। यदि व्यक्ति ऐसा ध्यान अथवा भावना नहीं भी कर पाता, तब भी स्वत: यह प्रक्रिया धीमी गति से चलती रहती हैं। साधक कुछ वर्षो में ही विकार रहित होना आरम्भ हो जाता है।

मंत्र उच्चारण तीन प्रकार का होता हैं। पहला बैखरी जो यज्ञ में बोला जाता हैं एक बोलता है सभी सुन सकते है, दूसरा उपांशु जिसमें साधक के जीभ होट हिलते है परन्तु आवज मुँह से बाहर नहीं आती, तीसरा मानसिक जप अंदर ही अंदर चलता है। जप में समान्यत: उपाँशु प्रक्रिया अपनायी जाती है। मानसिक जप बहुत शक्तिशाली होता है काफी अभ्यास के बाद ही सफल हो पाता है। जप में ज्यों ज्यों आगे बढ़ते जाँएगे, ध्यान की सघनता और आराध्य में सलंग्नता बढ़ती जाएगी और कालान्तर में मानासिक जप के साथ स्वत: ध्यान चलेगा जो समाधि या ब्राही स्थिति में परिवर्तित हो जाएगा।

गीता के दशम अध्याय में अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि यज्ञों में जप यज्ञ मैं हूँ। वीर शिवाजी के गुरु रामदास जी को आध्यात्मिक उचाइँया 'श्री राम जय राम जय जय राम' के जप से मिली जो उन्होनें गोदावरी कें जल में खड़े होकर तेरह करोड़ बार जपा। जय राम आश्रम के संस्थापक श्री जय राम जी महाराज ने गंगा जी में खड़े होकर सवा करोड़ गायत्री जपा। जिससे वो अदभुत शक्तियों व सिद्धियों से स्वामी हो गए।

जप किस मंत्र का करे इस संदर्भ में श्री कृष्ण जी सर्वाधिक महत्व गीता में गायत्री को देते है। (छन्दों में गायत्री मैं हूँ) सामान्य परिस्थितियों में गायत्री मंत्र सर्वाधिक लाभप्रद हैं। परंतु यदि कोर्इ व्यक्ति रोग के चंगुल से मुक्ति चाहता है तो मृत्युजंय महामंत्र का जप भी कर सकता है। इसके अतिरिक्त अनेक मंत्रों का शास्त्रों में वर्णन आता है। कोर्इ भी लिया जा सकता है। आज सब कुछ अस्त व्यस्त है। वैदिक काल में सभी गायत्री जपते थे। यदि एक मंत्र भारत के लोग पकड़ ले तो वह बहुत शक्तिशाली हो जाएगा क्योंकि उसकी शक्ति आकाश मण्डल में एकत्र होती चली जाएगी। भारतीय दर्शन के ज्ञाता U.S.A. टाइम्स पत्रिका के सम्पादक श्री कंरजिया भारत आए। भारत के पत्रकारों ने उनसें पूछा कि एटम बम से दुनिया की रक्षा कौन करेगा। उन्होने बताया गायत्री मंत्र पत्रकारों ने पूछा-वह कैसे? उन्होने बताया गायत्री मंत्र से सद्बुद्धि व सद्भावना का विकास होता है। यदि कोर्इ देश एटम बम से हमला करना चाहे और भारत की चौथार्इ जनता भी एक समय में एक साथ गायत्री मंत्र का जप करें तो हमलावर की बुद्धि पलट जाएगी वह अपने हाथ से इतने बडे विनाश को संरजाम नहीं दे पाएगा।

व्यक्ति के भीतर एक प्रश्न और उठता है क्या मंत्र का कोई नुक्सान भी हो सकता है। सात्विक मंत्रों से कोर्इ हानि नहीं होती चाहे उसे कैसे भी क्यों न जपा जाए। यदि ठीक से विधि विधान से नहीं किया जाएगा तो लाभ पूरा नहीं होगा। परंतु हानि भी नहीं होगी। हानि केवल तांत्रिक मंत्रों से पहुँचती है इसलिए उनके लिए सावधानी रखना अनिवार्य है।

उदाहरण के लिए गायत्री मंत्र पूर्ण सात्विक है परतु यदि इसका उल्टा कर दिया जाए तो यह अग्नि बाण बन जाता है व वाममार्गी हो जाता है।

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