Tuesday, November 14, 2023

अमंगल से मंगल की यात्रा

निःसंदेह, ज्योतिष विद्या हमारी भारतीय संस्कृति का एक उत्तम विज्ञान है। इस विज्ञान से ग्रह-नक्षत्रों की दशा और दिशा का अध्ययन करके भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। एक कुशल ज्योतिषी इसी वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर आपको बता सकता है कि भावी समय आपके लिए सौभाग्य के फूल पथ पर बिछाएगा या दुर्भाग्य के कंकड़-पत्थर। परन्तु जिन गत कर्म-संस्कारों से आपका यह भाग्य बना है, कोई भी ज्योतिषी या ज्योतिष विज्ञान उन कारणों को निर्मूल नहीं कर सकता है। उनको जड़ से हटाने-मिटाने का सामर्थ्य नहीं रखता। वह भाग्य की लकीरें पढ़ तो सकता है। लेकिन उन लकीरों को बदलने की ताकत नहीं रखता। इसका सामर्थ्य केवल और केवल एक पूर्ण गुरु द्वारा प्राप्त ‘ब्रह्मज्ञान’ में है। क्रियायोग द्वारा प्राप्त प्रज्ञा हमारे कर्मों को व्यवहार को और वृत्तियों को सुधारती है। उन्हें दिव्य और सकारात्मक बनाती है। यहाँ तक कि हमारे पूर्व जन्मों के संस्कारों को भी भस्मीभूत कर देती है। 

इसलिए क्रियायोग की साधना करने वाले साधक को न केवल अंतरानुभूतियों से भावी अनिष्ट का सकेत मिल जाता है; अपितु गुरु-कृपा और साधना से उसके बचाव का तरीका भी मालूम हो जाता है तथा जीवन का यह अमंगल मंगल में बदल जाता है।

Sunday, November 12, 2023

स्वर योग द्वारा सिरदर्द का निवारण

 सिरदर्द को 5 मिनट में ठीक करने वाली प्राकृतिक चिकित्सा...
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वर जिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं ,पर यह बिल्कुल अलग - अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस कर सकते हैं।
दाहिना नासिका छिद्र "सूर्य" और बायां नासिका छिद्र "चन्द्र" के लक्षण को दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है।
सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्र को बंद करें और बाएं से सांस लें
और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द "गायब" है ना आसान ?? और यकीन मानिए यह उतना ही प्रभावकारी भी है।
अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बस इसका उल्टा करें...
यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में "तरोताजा" महसूस करें।
दाहिना नासिका छिद्र "गर्म प्रकृति" रखता है और बायां "ठंडी प्रकृति"
अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिने नासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूप क्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य और चन्द्रमा की तरह।
प्रातः काल में उठते समय अगर आप बायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतर महसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूस होगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंद करें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें और तरोताजा हो जाएँ।
अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसे आजमायें ,दाहिने को बंद कर बायीं नासिका छिद्र से सांस लें बस इसे नियमित रूप से एक महिना करें और स्वास्थ्य लाभ लें।
बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थ महसूस करें।

भारतीय संस्कृति के प्रति हमारीअनभिज्ञता (Unaware of Indian Culture)

 एक सुंदर लड़की और गुप्ता जी में अफेयर चल रहा था....!
एक दिन दोनो पार्क में बैठे हुए थे कि....
लडकी ने पुछा-
क्या तुम्हारे पास मारूति कार है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
लडकी - क्या तुम्हारे पास फ्लैट है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
लडकी - क्या तुम्हारे पास नौकरी है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
और....
फिर..... ब्रेक अप....!!
इधर....प्रेमिका के इस तरह चले जाने से गुप्ता जी उदास हो गए
और सोचने लगे कि....
जब मेरे पास पाँच-पाँच
BMW कार हैं ...
तो, मुझे भला मारूति की क्या जरूरत है ?
जब, मेरे पास खुद का इतना बडा बंगला है तो मुझे फ्लैट की क्या जरुरत है ????
और...
जब, मेरे पास 500 करोड टर्नओवर का अपना बिजनेस है और 400 लोग मेरे यहाँ नौकरी करते है तो फिर मुझे नौकरी की क्या जरूरत ????
आखिर, वो मुझे क्यों छोड गयी ???
इसीलिए.... बिना पूरी बात
जाने जल्दीबाजी मे कोई फैसला नहीं करना चाहिए...!
और.... सबको अपने स्टैन्डर्ड से नहीं परखना चाहिए क्योंकि हो सकता है वो आपकी सोच से ज्यादा बडा हो...!
यही हालत आज हमारे सनातन हिन्दू समाज की है....!
हमारे सनातन हिन्दू समाज के हर परंपराओं और हर त्योहार बदलते मौसम के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति से उसमें एडजेस्ट करने और उससे परेशान होने की जगह उसमें स्वस्थ रहने के लिए बनाए गए हैं...!
झाड़ू का सम्मान करने से लेकर तिलक लगाने, हाथ में कलावा बांधने से लेकर सर पर चोटी रखने और मंदिर में घण्टा बजाने तक का वैज्ञानिक आधार मौजूद है.
क्योंकि.... हमारे हर त्योहार और परम्पराएं पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धति से बनाए गए हैं...!
लेकिन.... ज्यादातर लोगों को इसका ज्ञान नहीं है इसीलिए वे इसे सिर्फ महज एक परंपरा मानकर निभाते चले जा रहे हैं...!
जबकि.... हमें जरूरत है अपनी हर परंपरा और त्योहारों के वैज्ञानिक आधार को जानने की... ताकि, हम उसे ज्यादा हर्षोउल्लास से मना सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी उसकी जानकारी दे सकें...!
अगर हम ऐसा नहीं कर पाएंगे तो ....जानकारी के अभाव में... अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने वाले हमारी आगामी पीढ़ी .... आने वाले समय में इसे एक महज अंधविश्वास मानकर इससे किनारा कर लेंगे...!
और.... हमारी आने वाली पीढ़ी का हमारे हिन्दू सनातन धर्म से "ब्रेकअप" हो जाएगा .
इसीलिए.... मेरी नजर में हमारी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है... तथा, हमें उसे निभाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.. !!

नारी शक्ति

भ्रष्ट्राचारियों और राष्ट्रद्रोहियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, उसका उदाहरण हमारे इतिहास में घटी एक घटना से मिलता है।
यह सजा भी किसी राजा या सरकार द्वारा नही बल्कि उसके परिजन द्वारा ही दी गई।
ई.सन 1311 में जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के फलस्वरूप पारितोषिक स्वरूप मिला धन लेकर विका दहिया खुशी खुशी अपने घर लौट रहा था। इतना धन उसने पहली बार ही देखा था। चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से
रहेगा। हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे।
उसकी पत्नी हीरादे सोने चांदी के गहनों से लदी रहेगी। अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी।
घर पहुंचकर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई।
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फौज का अचानक जालौर की तरफ वापस मुड़ने का राज समझ आ गया।
वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी की है। यह धन उसे इसी गद्दारी के पारितोषिक स्वरूप प्राप्त हुआ है।
उसने तुरंत अपने पति से पुछा- क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है?
विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व खुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया।
उसे तत्काल समझ आ गया कि उसका पति भ्रष्ट्राचारी है। उसके पति ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है और अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है। हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी- अरे! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने देश के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई?
क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था?
अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई?
क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले राष्ट्रधर्म को भूल गए?
विका दहिया ने हीरादे को समझाने का प्रयास किया हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी?
पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी। विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध को और ज्यादा भड़काने का ही कार्य किया।
हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई। उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी।
उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे। इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे। जालौर दुर्ग की रानियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य, छोटे छोटे बच्चों के रोने कलपने के दृश्य।
उसे उन योद्धाओं के चेहरे के भाव, जिनकी पत्नियां उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी, स्पष्ट दिख रहे थे। साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे।
एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका भ्रष्ट्राचारी राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था।
ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई। उन वीभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी। उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इस सबका जिम्मेदार था।
हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था। उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया।
उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति। उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग।
आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि- "अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए। गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है।"
मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था। उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़प उठे। हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठाकर एक झटके में अपने गद्दार और देशद्रोही पति का सिर काट डाला।
हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर लुढक गया।
वह एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर अपने राजा कान्हड़ देव के समक्ष उपस्थित हुई और अपने पति द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी।
कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर गर्व करते हुए अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द के लिए चल पड़े।
हीरादे अनायास ही अपने पति के बारे में बुदबुदा उठी-
"हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ"
अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा।
इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व भ्रष्टाचार का दंड देने से नहीं चूकी।
देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने देशद्रोह के लिए अपने पति को मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो। देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता।
काश आज हमारे देश में भ्रष्ट्राचार में लिप्त बड़े बड़े अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हीरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम न करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से तो रोक सकती ही है।

Sunday, November 5, 2023

❤️❤️हृदय परिवर्तन ❤️❤️

गांव की एक खूबसूरत नवयुवती अपने तीन साल के बच्चे को चिड़ियाघर घुमा रही थी।
वहीं पांच-सात कॉलेज के लड़के उसे बार-बार देखते हुए आपस में कुछ बातें कर रहे थे। वो उस खूबसूरत, अकेली देहाती युवती के पीछे हो लिए। युवती अपने बच्चे को कभी गोद में तो कभी उंगली पकड़े उसे बारी-बारी से जानवरों को दिखा रही थी। पीछे लगे आवारा लड़कों से बिल्कुल बेखबर...
"चलती है क्या नौ से बारह" फिल्मी गाने गाते वो उसे कट मारकर अट्टहास करते आगे निकल गए। युवती ने उनपर ध्यान नहीं दिया। वो हिरन के बाड़े के पास अपने बच्चे को उन्हें दिखा रही थी। बच्चा चहकता हुआ उन्हें देख रहा था। आवारा लड़के उस युवती को घूर रहे थे। वो लड़के बगल में ही शेर के बाड़े के पास जोर से उसे देख फब्तियां कस रहे थे।
उनमें से एक लड़का पूरे जोश में था। बाड़े के ऊपर लगे ग्रिल पर बैठ भद्दे गाने गा रहा था। युवती बच्चे को लिए शेर को दिखाने बढ़ चली थी। युवती को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसे उन लड़कों से तनिक भी भय नहीं या वो उन्हें अनदेखा अनसुना कर रही है, युवक अतिउत्साहित हो उठा। सभी ठहाके लगा रहे थे। युवती बाड़े के पास पहुंच चुकी थी। तभी बाड़े के ऊपर चढ़ा लड़का,लड़खड़ाते हुए, बाड़े के अंदर गिर पड़ा। लोगों के होश फाख्ता हो गए।
बाड़े से दूर बैठा शेर उठ चुका था। उसने गुर्राते हुए कदम धीरे-धीरे लड़के की तरफ बढ़ा दिया। उसके दोस्त असहाय होकर खड़े थे और सिर्फ चिल्ला रहे थे। भागता हुआ एक गार्ड आकर शेर को आवाज देकर जाने को कह रहा था। एक मिनट के भीतर अफरा-तफरी मच चुकी थी। शेर को आता देख गिरा हुआ लड़का डर से कांप रहा था। उसके जोश के साथ शायद होश भी ठंढे पड़ चुके थे।
" माँ.. माँ.. बचाओ..बचाओ" की आवाज लगातार तेज हो रही थी और शेर की चाल भी।
तभी उस देहाती युवती ने, अपने बदन से साढ़े पांच मीटर लंबी साड़ी उतार बाड़े में लटका दिया। बाड़े में गिरे लड़के ने तुरंत उस साड़ी का सिरा मजबूती से पकड़ लिया फिर लोगों की मदद से उसे निकाल लिया गया। गार्ड युवक को संभालता हुआ बोल पड़ा..."पहले तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था, आज इस युवती ने तुम्हें दुबारा जन्म दिया है"
सिर्फ ब्लाउज और पेटिकोट में खड़ी वो अर्धनग्न युवती अब उन लड़कों को उनकी माँ नज़र आ रही थी...
अतः हो सके तो किसी को बेवजह सताओ नहीं, पता नहीं वह कब तुम्हारे लिए देवदूत बनकर खड़ा हो जाए..।

Tuesday, October 31, 2023

आज की कहानी: सबसे-बड़ा-मुर्ख

एक बहुत धनी व्यापारी था। उसने बहुत धन संपत्ति इकट्ठा कर रखी थी। उसका एक नौकर था संभु। जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता। लेकिन संभु पर कोई असर नहीं होता था।
इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने संभु को एक डंडा दिया और कहा कि जब तुझे अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इसे उसको दे देना। इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता की कोई तुझसे बड़ा मूर्ख मिला। संभु विनम्रता से इनकार कर देता।
एक दिन व्यापारी बीमार हो गया। रोग इतना बढ़ा कि वह मरणासन्न हो गया।
अंतिम समय उसने संभु को अपने पास बुलाया और कहा कि अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूँ। संभु ने कहा, “मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।” व्यापारी ने प्यार से डांटते हुए कहा, “वहां कोई किसी के साथ नहीं जाता।”
संभु ने फिर कहा, "फिर तो आप धन-दौलत, सुख- सुविधा के सामान जरूर ले जाइए और आराम से वहां रहिएगा।” व्यापारी ने कहा, "पगले! वहां कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।”
इस पर संभु बोला, “मालिक! तब तो यह डंडा आप ही रखिये। जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता। तो आपने बेकार ही पूरा जीवन धन दौलत और सुख सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। न तो दान पुण्य किया, न ही भगवान का भजन। इस डंडे के असली हकदार तो आप ही हो।”
मोरल ऑफ द स्टोरी
अधिक धन कमाए पर साथ ही साथ दान-धर्म का भी पालन करे। क्योंकि अंत समय में मनुष्य के साथ कुछ नहीं जाता..!! बस अच्छे कर्म ही जाते है।

Law of Karma

 विश्वयुद्ध के समय जापानी सेना द्वारा बंदी बनाई गई औरतों के साथ क्या किया जाता था ?
विश्वयुद्ध में जापानी सेना द्वारा बंदी बनाई गई महिलाओं के साथ जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया जाता था।जापानी सेना किसी शहर पर कब्ज़ा जमाने के बाद वहाँ की औरतों के साथ बलात्कार करते और उन्हें तड़पा तड़पा के मार डालते थे।
जापानियों ने 10 साल की बच्चियों तक को नहीं छोड़ा और एक एक लड़कियों से समूह में बारी बारी से दुष्कर्म किया जाता था जब तक वे बेसुध या मार न जाए।
कई महिलाओं को पकड़ के वे तवायफ़ खानों में डाल देते थे जहाँ वे युद्ध लड़ रहे जापानी सैनिकों की रखैल बन कर रहती थीं और विरोध करने पर मार दी जाती थीं।
इन्होंने गर्भवती महिलाओं तक को नहीं छोड़ा। जापानी इम्पीरियल आर्मी दुनिया की सबसे बदतर और नीच आर्मी थीं। ये महिलाओं को बंदी बनाकर उनपर तरह तरह के खतरनाक एक्सपेरिमेंट करते थे जैसे-
महिलाओं को रेडियोएक्टिव पदार्थ देना और उन्हें तड़पाना
महिलाओं में एचआईवी के वायरस जबरदस्ती डाल देना।
बिना बेहोश किये शरीर की चीर फाड़ करना और एक एक कर अंगों को शरीर से अलग कर देना।
इनकी बर्बरता की कहानी जाननी हो तो विकिपीडिया से
द नानकिंग रेप बाई जापानी आर्मी
यूनिट731 एक्सपेरिमेंट बाई जापानी आर्मी
कम्फर्ट वीमेन बाई जापानी आर्मी
इन तीन के बारे में पड़ने से ही आपको पता लग जायेगा कि शालीन और शांत दिखने वाले जापान का सैन्य इतिहास कितना बर्बर रहा हैं।

Surrender to God

 जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।
वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।
उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।
मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?
क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?
हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।
हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम पूर्ण पुरुषार्थ के बावजूद चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

चिन्तनीय विषय

*एक 'पाप' से सारे 'पुण्य' नष्ट हो जाते हैं*
*महाभारत के युद्ध पश्चात जब "श्रीकृष्ण" लौटे तो रोष में भरी 'रुक्मणी' ने उनसे पूछा ?*

*”युद्ध में बाकी सब तो ठीक था... किंतु आपने "द्रोणाचार्य" और "भीष्म पितामह" जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया ?"*
*"श्रीकृष्ण"ने उत्तर दिया - ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये एक 'पाप' ने उनके सारे 'पुण्यों' को नष्ट कर दिया।"*
*"वो कौन से 'पाप' थे ?"*
*"जब भरी सभा में 'द्रौपदी' का चीरहरण हो रहा था तब यह दोनों भी वहाँ उपस्थित थे... बड़े होने के नाते ये दोनों दु:शासन को रोक भी सकते थे... किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया...उनके इस एक 'पाप' से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई।"*
*"और कर्ण...! वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था... उसके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं गया... उसके मृत्यु में आपने क्यों सहयोग किया... उसकी क्या गलती थी ?"*
*"हे प्रिये..! तुम सत्य कह रही हो..वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को 'ना' नहीं कहा...किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था*
*तो....*
*उसने कर्ण से पानी माँगा... कर्ण जहाँं खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु ... कर्ण ने मरते हुए, अभिमन्यु को पानी नहीं दिया !"*
*"इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ 'पुण्य' नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फँस गया और वो मारा गया।"*
*"हे रुक्मणी...! अक्सर ऐसा होता है.. जब मनुष्य के आस पास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते...वे सोचते हैं की इस 'पाप' के भागी हम नहीं हैं...अगर वे मदद करने की स्थिति में नही है तो भी सत्य बात बोल तो सकते हैं... परंतु वे ऐसा भी नही करते..ऐसा ना करने से वे भी उस 'पाप' के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं... जितना 'पाप' करने वाला....!"*

पतिव्रता स्त्री की महिमा

 किसी नगर में कौशिक नामक एक क्रोधी और निष्ठुर ब्राह्मण रहता था। उसे कोढ़ की बीमारी थी। उसकी पत्नी शांडिली अत्यंत माँ दुर्गा की बड़ी भक्ता थी। वह बड़ी पतिव्रता थी और कोढ़ से सड़े-गले पति को सर्वश्रेष्ठ पुरूष और पूजनीय समझती थी।
एक रात वह अपने पति को कंधे पर लादकर कहीं लेकर जा रही थी। रास्ते में माण्डव्य मुनि को उसके पैरों की ठोकर लग गई।
ऋषि क्रोधित हुए और शाप दे दिया- 'मूर्ख स्त्री तेरा पति सूर्योदय होते ही मर जाएगा।'
ऋषि के शाप को सुनकर शांडिली बोली- 'महाराज, भूल से मेरे पति का पैर आपको लगा, जानबूझकर आपका अपमान नहीं किया, फिर भी आपने शाप दिया।
मैं शाप देती हूँ कि जब तक मैं न कहूँ तब तक सूर्य ही उदय न हो।'
माण्डव्य आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने कहा- 'तुम इतनी बड़ी तपस्विनी हो कि सूर्य की गति को रोक सकती हो'?
शांडिनी बोली- 'मैं तो भगवती की शरणागत हूँ, वही मेरे पतिव्रत धर्म की रक्षा करेंगी'।
उसकी बात निष्फल नहीं रही। सूर्य अगली सुबह से लेकर दस दिन तक नहीं निकले। ब्रह्मांड संकट में आ गया। देवताओं को बड़ी चिंता हुई।
वे अनुसूया जी के पास पहुँचे। अनुसूया जी सबसे बड़ी पतिव्रता स्त्री थीं। उनका प्रभाव देवों से भी अधिक था।
देवों ने कहा- 'माता, एक पतिव्रता के प्रभाव के कारण संसार में संकट आ गया है। आपसे ज्यादा योग्य संसार में कोई और स्त्री नहीं होगी जो एक पतिव्रता शांडिली को समझाकर उसका क्रोध शांत कर सके'।
अनुसूयाजी शांडिनी के पास पहुँची और उसके कारण उत्पन्न हुए संकट का प्रभाव बताकर वचन वापस लेने का अनुरोध किया।
अनुसूयाजी ने कहा, 'तुम्हारे पति की मृत्यु के बाद उन्हें फिर से जीवित और स्वस्थ करने का मैं वचन देती हूँ'। शांडिनी को भरोसा हो गया, उसने अपना वचन वापस ले लिया और सूर्य की गति को की अनुमति दे दी।
सूर्योदय के साथ ही माण्डव्य के शाप के कारण उसका पति मर गया। अनुसूयाजी ने सूर्य का आह्वान करते हुए कहा- 'मेरे पतिव्रत में यदि शक्ति है तो आप इस मृत पुरुष को पुनः जीवन, स्वास्थ्य और सौ वर्ष तक सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद करें'।
माण्डव्य ने इसे अपने अहं का प्रश्न बना लिया और बोले- मेरे शाप को कोई काट नहीं सकता। इसे जीवित करने का प्रयास करना व्यर्थ है।
अनुसूयाजी ने भगवती का स्मरण किया- 'माता मेरी लाज रखकर माण्डव्य का अहंकार चूर करें'। अनुसूया माता की स्तुति करने लगीं। माता वहाँ प्रकट हुईं और कौशिक को जीवन और स्वास्थ्य प्रदान किया। माण्डव्य का अहंकार समाप्त हो गया।
माण्डव्य बोले- 'आज मैंने दो पतिव्रता नारियों की शक्ति देख ली। पतिव्रता स्त्रियों में स्वयं भगवती का वास हो जाता है।
हे भगवती, मैं अपनी शक्तियों के अनुचित प्रयोग के लिए क्षमा माँगता हूँ।' माता ने माण्डव्य को क्षमा कर दिया। माण्डव्य तप के लिए चले गए।

देश भक्ति

 एक बार महाराणा प्रताप पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे। बस्ती के भील बारी बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुँचाया करते थे।

इसी कड़ी में आज दुद्धा की बारी थी। लेकिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं था।
दुद्धा की मांँ पड़ोस से आटा मांँगकर ले आई और रोटियाँ बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली, "ले! यह पोटली महाराणा को दे आ।"
दुद्धा ने खुशी खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते भागते रास्ता नापने लगा।
घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों को दुद्धा को देखकर शंका हुई।
एक ने आवाज लगाकर पूछा, "क्यों रे! इतनी जल्दी जल्दी कहाँ भागा जा रहा है?"
दुद्धा ने बिना कोई जवाब दिये, अपनी चाल बढ़ा दी। मुगल सैनिक उसे पकड़ने के लिये उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उस चपल चंचल बालक का पीछा वह जिरह बख्तर में कसा सैनिक नहीं कर पा रहा था।
दौड़ते दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा, इस क्रोध में उसने अपनी तलवार चला दी।
तलवार के वार से बालक की नन्हीं कलाई कटकर गिर गई। खून फूट कर बह निकला, लेकिन उस बालक का जिगर देखिये, नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और फिर सरपट दौड़ने लगा। बस, उसे तो एक ही धुन थी, कैसे भी करके राणा तक रोटियाँ पहुँचानी हैं।
रक्त बहुत बह चुका था, अब दुद्धा की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा।
उसने चाल और तेज कर दी, जंगल की झाड़ियों में गायब हो गया। सैनिक हक्के बक्के रह गये कि कौन था यह बालक?
जिस गुफा में राणा परिवार समेत थे, वहांँ पहुंँचकर दुद्धा चकराकर गिर पड़ा। उसने एक बार और शक्ति बटोरी और आवाज लगा दी, "राणाजी !"
आवाज सुनकर महाराणा बाहर आये, एक कटी कलाई और एक हाथ में रोटी की पोटली लिये खून से लथपथ 12 साल का बालक युद्धभूमि के किसी भैरव से कम नहीं लग रहा था।
राणा ने उसका सिर गोद में ले लिया और पानी के छींटे मारकर होश में ले आए, टूटे शब्दों में दुद्धा ने इतना ही कहा, "राणाजी!... ये... रोटियाँ... मांँ ने... भेजी हैं।"
फौलादी प्रण और तन वाले राणा की आंँखों से शोक का झरना फूट पड़ा। वह बस इतना ही कह सके, "बेटा, तुम्हें इतने बड़े संकट में पड़ने की कहा जरूरत थी? "
वीर दुद्धा ने कहा, "अन्नदाता!... आप तो पूरे परिवार के साथ... संकट में हैं... माँ कहती है आप चाहते तो अकबर से समझौता कर आराम से रह सकते थे... पर आपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये... कितना बड़ा... त्याग किया उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नही है...।"
इतना कह कर वीरगति को प्राप्त हो गया दुद्धा।
राणा जी की आँखों मेंं आंँसू थे। मन में कहने लगे... "धन्य है तेरी देशभक्ति, तू अमर रहेगा, मेरे बालक। तू अमर रहेगा।"
अरावली की चट्टानों पर वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है।

आज की कहानी: कीमत

 एक कुम्हार को अपने गधे को लेकर रास्ते पर चलते समय, अपनी मटकियां बेच कर बाजार से लौटते समय, एक हीरा पड़ा मिल गया। बड़ा हीरा! उठा लिया सोच कर कि चमकदार पत्थर है, बच्चे खेलेंगे। फिर राह में ख्याल आया उसे कि बच्चे कहीं गंवा देंगे, यहां-वहां खो देंगे, अच्छा हो गधे के गले में लटका दूं। गधे के लिए आभूषण हो जाएगा।
कुम्हार के हाथ हीरा पड़े तो गधे के गले में लटकेगा ही, और जाएगा कहां! उसने गधे के गले में हीरा लटका दिया। एक जौहरी अपने घोड़े पर सवार आता था। देख कर चैंक गया। बहुत हीरे उसने देखे थे, पर ऐसा हीरा नहीं देखा था। और गधे के गले में लटका! रोक लिया घोड़ा।
समझ गया कि इस मूढ़ को कुछ पता नहीं है। इसलिए नहीं कहा कि इस हीरे का कितना दाम; कहा कि इस पत्थर का क्या लेगा? कुम्हार ने बहुत सोचा-विचारा, बहुत हिम्मत करके कहा कि आठ आने दे दें। जौहरी तो बिल्कुल समझ गया कि इसे कुछ भी पता नहीं है।
आठ आने में करोड़ों का हीरा बेच रहा है! मगर जौहरी को भी कंजूसी पकड़ी। उसने सोचा: चार आने लेगा? चार आने में देगा? आठ आने, शर्म नहीं आती इस पत्थर के मांगते। कुम्हार ने कहा कि फिर रहने दो। फिर गधे के गले में ही ठीक। चार आने के पीछे कौन उसके गले में पहनाए हुए पत्थर को उतारे!
जौहरी यह सोच कर आगे बढ़ गया कि और दो आने लेगा, ज्यादा से ज्यादा; या आगे बढ़ जाऊं तो शायद चार आने में ही दे दे। मगर उसके पीछे ही एक और जौहरी आ गया। और उसने एक रुपये में वह पत्थर खरीद लिया।
जब तक पहला जौहरी वापस लौटा, सौदा हो चुका था। पहले जौहरी ने कहा: अरे मूर्ख, अरे पागल कुम्हार! तुझे पता है तूने क्या किया? करोड़ों की चीज एक रुपये में बेच दी!
वह कुम्हार हंसने लगा। उसने कहा: मैं तो कुम्हार हूँ, मुझे तो पता नहीं कि करोड़ों का था हीरा। मैंने तो सोचा एक रुपया मिलता है, यही क्या कम है! महीने भर की मजदूरी हो गई। मगर तुम्हारे लिए क्या कहूँ, तुम तो जौहरी हो, तुम आठ आने में न ले सके।
करोड़ों तुमने गंवाए हैं, मैंने नहीं गंवाए। मुझे तो पता ही नहीं था।
तुम्हें भी पता नहीं है कि तुम कितना गंवा रहे हो! और वो लोग जो तुम्हे जानते है पर लालच या अहंकार के कारण सस्ते में सौदा करना चाहते हैं, वो तुमसे भी ज्यादा वे गंवा रहे हैं। तुम तो नहीं जानते कि तुम क्या गंवा रहे हो, वो तो जानते है तुम्हारी कीमत, कम से कम उन्हें तो बोध होना चाहिए।
कुम्हार तो मुर्ख है ही, पर उसकी मूर्खता अज्ञानता के कारण है.. पर जौहरी... वो तो महामूर्ख निकला..

चेतना का दिव्य प्रवाह भाग - 69

जिसने सुख प्राप्ति का विज्ञान जान लिया, वही संसार में सुखी हो सकता है ।

संसार में मानव दुःखों में तब पड़ता है जब वह सुखों के लिए हर पल बेचैन होकर उनके पीछे दौड़ता है, ऋषियों ने मनुष्य के, सुखी होने का, ज्ञान विज्ञान तथा जो रहस्य बताया है वह है तप का मार्ग ।

 शास्त्रों में लिखा है जो तप नहीं करता वह सुख प्राप्त नहीं कर सकता है यह इस संसार का एकदम कटु सत्य है, संसार में तप का सबसे बड़ा देवता सूर्य है जो व्यक्ति सूर्य की ओर चलता है उसकी छाया उसके पीछे दौड़ती है और जो सूर्य को पीठ दिखा करके, उससे कतरा करके, उससे बचकर के चलता है उसकी छाया उसके आगे दौड़ती है । इस संसार में सुख भी एक छाया की तरह है जो इसे पकड़ने का यत्न करता है उससे वह दूर चली जाती है, जो सुखों का त्याग कर देता है उसके पीछे सुख जबरदस्ती दौड़े चले आते हैं ।

वृक्षों की शीतल छाया का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी धूप में तपता है, श्रम करता है ।

🔅भोजन का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी मेहनत करने के बाद भोजन ग्रहण करता है ।

🔅 नींद का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कठोर परिश्रम से शरीर को थका देता है ।

🔅स्वाद का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी भूख लगने पर कुछ ग्रहण करता है ।

🔅 धन का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कठोर परिश्रम और ईमानदारी से कमाता है ।

🔅 सेवा का सुख उसे ही मिलता है जो निस्वार्थ भाव से सब की सेवा व सहायता करता है ।

🔅स्वास्थ्य का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो अपनी इंद्रियों पर संयम रखता है ।

🔅 सद्भाव व प्रेम का सुख उसे मिलता है जो विनम्र होता है ।

🔅धर्म का सुख उसे मिलता है जो आदर्शों व सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने हितों का त्याग कर देता है ।

🔅 आत्मा का सुख उसे मिलता है जो नीति पर चलते हुए असफलताओं को शिरोधार्य कर लेते है ।

🔅परमात्मा का सुख उसे मिलता है जो संसार के सारे प्राणियों में अपनी ही आत्मा का दर्शन करता है या ईश्वर का दर्शन करता है ।

🔅 जन सहयोग का सुख उसे मिलता है जो निस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व विश्व मानवता के हित में समर्पित कर देता है ।

🔅स्वतंत्रता का सुख उसे मिलता है जो अपनी आत्म पुकार का अनुसरण करता है तथा स्वतंत्र चिंतन के आधार पर युग धर्म को पहचान कर अपने जीवन के पथ का निर्धारण करता है ।

🔅 ईश कृपा तथा गुरु कृपा का सुख उसे मिलता है जो नैतिक मूल्यों ,आदर्शों व सिद्धांतों से समझौता नहीं करता बल्कि इनकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग देने को कृत संकल्पित हो जाता है तथा असूरता से संघर्ष का पथ अपनाता है । संसार में सुख प्राप्ति का यही शाश्वत मार्ग है जिन्होंने इस मार्ग को अपनाया, इन सिद्धांतों को अपनाया, वे ही संसार में सुखी हो सकते हैं बाकी संसार जिन साधन सुविधाओं को, आराम तलबी को, भोगों को, सुख का आधार समझता है वह महान मूर्ख और अज्ञानी है क्योंकि ये सब मानव को दारुण दुख देने वाले होते हैं ।

🙏 रामकुमार शर्मा 📞9451911234

🌎 *युग विद्या विस्तार योजना* 

( मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना) 

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारतवर्ष)

Monday, October 9, 2023

Control of Mind and Senses

एक राजा का जन्मदिन था। सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते मे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।

उसे एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।

सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया। भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।

भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।

भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।

राजा को बहुत खराब लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।

उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो ?

भिखारी बोला, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।

हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। हमें भगवान ने आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है।

व्यक्ति के गलत संस्कार (Traits) उसको नाली अथवा कीचड़ की गंदगी में जाने के लिए विवश कर देते हैं। एक बार एक संत भ्रमण कर रहे थे। उन्हें गंदगी से लिपटा एक छोटा-प्यारा सुअर का बच्चा दिखा। वो उस बच्चे को उठा कर अपनी कुटिया में ले गए। उसको नहलाकर साफ-सुथरा किया व खाने के लिए अच्छी-अच्छी चीजें दी। फिर पास ही रस्सी से बाँध दिया। एक बार जब उसकी रस्सी ढीली हुई तो वह छुड़ाकर वापिस कीचड़ में जा घुसा। मानव की भी यही कहानी है। अपने मन को समझा-बुझाकर वह उच्च आनन्द की ओर उठाता है। परन्तु मौका मिलते ही यह मन वापिस बुराईयों में डूब जाता है व सारा प्रयत्न व्यर्थ हो जाता है। फिर किस प्रकार इस मन को नियन्त्रित (Control)  किया जाए। इस विषय पर हमारे शास्त्रों में बहुत प्रकाश डाला गया। 

Wednesday, October 4, 2023

हिंदू समाज की विडम्बना

भारतीय हिन्दू समाज परिस्थितियोंवश, मजबूरीवश संस्कारविहीन होता चला गया व उसमें समय के साथ-साथ ये तीन दुर्गुण पनपते चले गए। 

1. स्वार्थ कूट-कूट कर भरता चला गया। 

2. चापलूसी का भाव आता गया। 

3. अंधभक्ति अथवा अंधश्रद्धा पनपती चली गयी। 

इन तीन दुर्गणों ने हिन्दू समाज की कमर तोड़ कर रख दी। दुर्गुणों के द्वारा जब दुर्बलता एवं गन्दगी बढ़ती जाती है तो समाज कायर एवं वीर्यहीन (निस्तेज) होता चला जाता है। ऐसे समाज पर रोग के कीटाणु एवं विकृतियाँ हावी होती चलती है। हम दोष भले ही रोग को दे लें कि रोग फैल गया परन्तु मल तो (Toxins) हमारे शरीर में ही जमा हो गया था। जिसको हमने समय रहते नहीं शोधन किया। ऐसे ही जो भी समाज अथवा मिशन विकृतियाँ अपना लेता है समय के साथ उसके पतन को कोई नहीं रोक सकता। हम अपना उद्देश्य क्यों नहीं हासिल कर पा रहे क्योंकि हमारा जीवन दुर्बलताओं से पूर्ण है। जिस वजह से हमारी इच्छा शक्ति कम होती गयी। ज्ञान व शक्ति दोनों की उपासना करिए। गायत्री व सावित्री दोनों का आह्वान करिए।  अपना कठोर आत्म विश्लेषण करिए। अन्यथा परिवार, समाज, राष्ट्र व पूरी मानवता पर आज विनाश के संकट मंडरा रहे हैं। जिसके पास प्रज्ञा (Yogic Widom) होगी वही सुखी व स्वस्थ रहेगा अन्यथा खून के आँसू रोएगा। कोई आचार्य देव दानव उसको बचा नहीं पाएगा। 

बाबरी गिरते ही शाम तक UP सरकार गिरी और 2017 तक UP मे बहुमत नहीं मिला व उसी दिन 4 BJP शासित राज्यों मे कॉंग्रेस ने राष्ट्रपति शासन लगाया

मोदी जी और योगी जी खुल कर क्यों नहीं बोलते आज उसका उत्तर इस पोस्ट से मिल जाएगा । जिसके लिए हम उनके आभारी हैं । हिन्दुओं की कायरता के कारण ही मोदी जी और योगी जी खुल कर नहीं बोलते हैं वो जानते हैं कि हिन्दू पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारता बल्कि कुल्हाड़ी पर अपना सिर ही मार लेता है ।

नब्बे के दशक में कल्याण सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने, भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरे भारत में रथ यात्राएं निकाली थी ।

उत्तर प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश की सत्ता दी; यानी खुल के कहा की जाओ मंदिर बनाओ ।

कल्याण सिंह बहुत भावुक नेता थे, सरकार बनने के बाद तुरन्त विश्व हिन्दू परिषद को बाबरी मस्जिद से सटी जमीन कार सेवा के लिए दे दी, संघ के हज़ारों कार सेवक साधू संत दिन रात उस जमीन को समतल बनाने में लगे रहते थे।

सुप्रीम कोर्ट ये सब देख के बहुत परेशान था, सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह से साफ़ कह दिया की आपको पक्का यकीन हैं ना की ये हाफ पैंट पहने लोग सिर्फ यहाँ की जमीन समतल करने आये हैं ?

मतलब की अगर आपके लोगों ने बाबरी मस्जिद को हाथ लगाया तो अच्छा नहीं होगा । कल्याण सिंह ने मिलार्ड को समझाया और बाकायदा लिख के एक हलफनामा दिया की हम लोग सब कुछ करेंगे लेकिन मस्जिद को हाथ नहीं लगायेंगे ।

तो साहब अयोध्या में कार सेवा के लिए दिन रखा गया 6 दिसंबर 1992 और केंद्र की कांग्रेसी सरकार से कहा कि केवल 2 लाख लोग आयेंगे कार सेवा के लिए लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख लोगों को कार सेवा के लिए बुला लिया प्रशासन को ख़ास हिदायत थी की भीड़ कितनी भी उग्र हो कोई गोली लाठी नहीं चलाएगा ।

5 लाख लोग एक जगह जुट गए जय श्री राम और मदिर वहीं बनायेंगे के नारे लगने लगे । लोगों को जोश आ गया और लोग गुम्बद पर चढ़ गए 5 घंटे में उस 400 साल पुरानी मस्जिद का अता पता नहीं था, ऐसा काम कर दिया एक एक ईंट कार सेवकों ने उखाड़ दी । केंद्र सरकार के गृह मंत्री का फोन कल्याण सिंह के C.M. ऑफिस में आया, गृह मंत्री ने कल्याण सिंह से पूछा ये सब कैसे हुआ ?

कल्याण सिंह ने कहा की "जो होना था वो हो गया अब क्या कर सकते हैं" ? एक गुम्बद और बचा है कार सेवक उसी को तोड़ रहे हैं, लेकिन आप जान लीजिये कि मै गोली नहीं चलाऊंगा (ये वाकया खुद कल्याण सिंह ने एक भाषण में बताया है) उधर सुप्रीम कोर्ट में मिलॉर्ड कल्याण सिंह से बहुत नाराज थे ।

6 दिसंबर की शाम कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उधर काँग्रेस ने भाजपा की 4 राज्य की सरकार को बर्खास्त कर दिया, कल्याण सिंह को एक दिन की जेल हो गयी, केंद्र में नरसिम्हा राव जी सरकार थी; तुरंत में एक झटके से देश के 4 राज्यों में बीजेपी की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया ।

उत्तर प्रदेश में दुबारा चुनाव हुए, बीजेपी को यही लगा की हिन्दुओं के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी देने के बाद उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें फिर से चुनेगी लेकिन हुआ उलटा ।

बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव हार गयी और फिर 2017 तक उसे पूर्ण बहुमत ही नहीं मिला । कल्याण सिंह जैसे बड़े और साहसिक फैसले लेने वाले नेता का कैरियर बाबरी मस्जिद विध्वंश ने खत्म कर दिया,

400 साल से खड़ी किसी मस्जिद को 5 लाख की भीड़ से गिरवाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए होता है जो वाकई में कल्याण सिंह के पास था ।

आज हम कहते हैं की मोदी और योगी हिंदुओं के पक्ष में खुल के नहीं बोलते ना ही खुल के मुसलमानों का विरोध करते हैं, क्यों करें वो ये सब खुल के ? ताकि उनका भी राजनैतिक कैरियर खत्म हो जाये ।

आप बताइये कि ऐसे स्वार्थी हिन्दू समाज के पक्ष में मोदी जी और योगी जी जैसे लोग खुल के कैसे बोलें क्या बोले और कहाँ तक इनके लिए लड़े ?

सोच समझकर ही वोटिंग करें

एक बार एक वोटर लाइन में ही मर गया। मृत्यु उपरान्त वो ऊपर यमराज के दरबार में पहुंचा। वहां चित्रगुप्त उसके कर्मो का खाता खोले बैठा था।

उसके कर्मो का खाता देखने के बाद चित्रगुप्त ने यमराज से कहा श्रीमान ये तो 50, 50 का मामला है। पलड़ा दोनों तरफ बिलकुल बराबर है। ऐसी स्थिति पहली बार हुई है। आप आदेश दें कि क्या किया जाए। इसे कहां भेजा जाए। स्वर्ग या नर्क

यमराज- ऐसी स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार इसी का है। जो भी ये चुनना चाहे।

उन्होंने उसे एक दूत के साथ एक दिन नर्क और स्वर्ग में बिताने के लिए भेज दिया।

पहले दिन नर्क में पहुंचते ही उसने खुद को एक गोल्फ कोर्स में पाया। चारो तरफ हरियाली , खूबसूरत दृश्यावली के बीच उसे दूर एक छोटा सा एक क्लब नजर आया। वहां पहुंचते ही उसे उसके सभी पुराने मित्र मिल गए । जो सभी बेहद खुश और मजे ले रहे थे। मित्रों के साथ दिन भर उसने ढेर सारा आनंद उठाया, अच्छा खाना खाया थोड़ी बढ़िया शराब भी पी।

आखिर उनसे विदा लेकर वो दूत के साथ स्वर्ग में पहुंचा। वहां सभी संत टाइप के संतुष्ट व्यक्ति भजन कीर्तन में लीन थे। दिन बीतता दिखा नहीं उसे। आखिर उसका जाने का समय हो गया।

दूत के साथ वो यमराज के पास पहुंचा।

यमराज ने उसका निर्णय जानना चाहा।

उसने कहा - महाराज स्वर्ग बहुत अच्छा है। वहां शान्ति भी है। लेकिन मैं तो नर्क में ही रहना चाहूंगा। असल आनंद वही पर है।

यमराज ने दूत को उसे नर्क में छोड़ कर आने के लिए कहा।

नर्क के द्वार के अंदर घुसते ही वो चौंक गया। चारों तरफ उजाड़ बियाबान रेगिस्तान नजर आ रहा था। और उसके सभी मित्र फटेहाल अवस्था में वहां बिखरे पड़े कूड़े करकट में अपना भोजन तलाश रहे थे।

उसने दूत से कहा- ये क्या कल तो यहां दूसरा ही दृश्य था।

दूत ने हँसते हुए कहा - कभी पृथ्वी पर चुनाव प्रचार नही देखा क्या?? कल अभियान का दिन था। तुम्हे लुभाने का दिन था। तुम्हे फसाने का दिन था।

आज तो तुम अपना वोट दे चुके हो।

Tuesday, September 26, 2023

चेतना का दिव्य प्रवाह भाग - ३७

शक्ति के बिना, संसार समर में कैसे विजयी बनोगे ?

 शास्त्रों में कहावत है "देवो दुर्बल घातक :" यानी दुर्बल के ऊपर देवता भी घात लगते हैं, इसलिए संसार में दुर्बलता अभिशाप है और शक्ति की हमेशा पूजा की जाती है ,शक्ति का आह्वान किया जाता है, शक्ति के लिए साधना की जाती है ।

 हे मानव ! यदि तुमने शक्ति का अर्जन नहीं किया, शक्ति की उपासना व साधना नहीं की तो तुम किसी भी कार्य को सिद्ध नहीं कर पाओगे , चाहे वह भौतिक जगत की शक्ति हो चाहे आध्यात्मिक जगत की, शक्तियों तुम्हें दोनों ही चाहिए ।

 तुम्हें अपने कर्म क्षेत्र को सफलता पूर्वक सम्पादित करने के लिए स्वस्थ व शक्तिशाली शरीर चाहिए ,सबल प्राण ऊर्जा चाहिए क्या तुम जागरूक होकर इसका ध्यान रखते हो , क्या तुम स्वस्थ शरीर के लिए आहार विहार का ध्यान रखते हो, क्या तुम शक्तिशाली प्राण के लिए गायत्री महामंत्र की साधना व अग्निहोत्र का प्रयोग करते हो ?

 तुम्हें मन में उच्च स्तरीय चिंतन करने के लिए , सकारात्मक विचारों को प्रवाहित करने के लिए, सृजनात्मक चिंतन का प्रवाह गतिशील करने के लिए तुम्हें उच्च स्तरीय ज्ञान की शक्ति चाहिए , क्या तुम उच्च स्तरीय सत् साहित्य की गहन स्वाध्याय साधना उसके लिए करते हो ?

 तुम्हें संसार की विकृतियों से लड़ने के लिए भौतिक जगत के झंझावातों से निपटने के लिए , सामने आई हुई विपरीत परिस्थितियों से जूझने के लिए अकूत धैर्य व आत्मविश्वास की शक्ति चाहिए, क्या तुमने इसको पाने के लिए अपने आप को संघर्षों में डालकर चुनौतियों को स्वीकार किया है ?

तुम्हें आदर्शों व सिद्धांतों तथा नैतिक जीवन मूल्यों की रक्षा करने के लिए आत्म शक्ति चाहिए , क्या तुमने अनाचार से समझौता न करने के लिए, हार न मानने के लिए नीति पर चलते हुए असफलताओं को शिरोधार्य करने का अपने भीतर साहस पैदा किया है ?

 तुम्हें प्रकृति को अनुकूल बनाने व अदृश्य जगत से शक्ति प्राप्त करने के लिए ब्रह्मबल की आवश्यकता है उसके लिए समर्पण योग व ध्यान योग की उच्च स्तरीय साधना की तुमको आवश्यकता है क्या तुमने उसको प्राप्त करने के लिए कभी साधनाएं की या कोई प्रयास किया ?

 यही सब शक्ति प्राप्ति के सृष्टि में शाश्वत मार्ग है, यही तुम्हारे शरीर बल, प्राणबल ,मनोबल , बुद्धिबल, आत्मबल व ब्रह्मबल प्राप्ति के मूल आधार है इन्हीं साधनाओं के पथ का अनुगमन करने से शक्ति उत्पन्न होगी और इसी शक्ति के सहारे तुम संसार समर में विजय प्राप्त कर सकोगे व जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर सकोगे ।

 रामकुमार शर्मा 9451911234

 *युग विद्या विस्तार योजना*

( मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना) 

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारतवर्ष)

चेतना का दिव्य प्रवाह ३१.

अपनी श्रद्धा सीधे धर्म- संस्कृति, राष्ट्र व जीवन मूल्यों से जोड़िए।

 जो वस्तु जितनी बहुमूल्य होती है उस पर लुटेरों की दृष्टि भी उतनी तीव्र रहती है , श्रद्धा संसार की सर्वोपरि देवी संपदा है, अगर मानव के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कोई चीज है तो वह श्रद्धा है, श्रद्धा हृदय के भावों की अभिव्यक्ति है,और जहां भाव जुड़ता है वहां व्यक्ति का अपनापन जुड़ जाता है , श्रद्धा आत्मा का प्रकाश है, यह जहां भी पड़ता है वहां सब कुछ अपना बना लेता है । 

 इसी श्रद्धा के गुण का लाभ उठाने बुद्धिमान लोग तत्काल सक्रिय हो जाते हैं और हर तंत्र में सक्रिय हो जाते हैं, चाहे राजतंत्र हो, चाहे समाज तंत्र या धर्म तंत्र हो, हर जगह श्रद्धा का ही दोहन होता है । श्रद्धा वह सीधी दुधारू गाय हैं जिसको हर कोई पकड़ कर बांध लेता है तथा इसका दूध पी - पी कर पुष्ट होता रहता है उसका बछड़ा (लोक कल्याण) बेचारा भूख रह जाता है तथा दुर्बल ही बना रहता है ।

 राजतंत्र की तरह धर्म तंत्र का कलेवर श्रद्धा के आधार पर ही चलता है जिसका आर्थिक आंकलन किया जाए तो वह राजतंत्र से कम नहीं अधिक बैठता है लेकिन इस श्रद्धा का दोहन करने के लिए बुद्धिमान लोग, विभिन्न तंत्रों में सक्रिय रहते हैं जिनको सामान्य जनमानस पहचान ही नहीं पाता है । उन सब के आवरण राष्ट्रभक्त, धर्मशील और आदर्शवादी दिखाई देते हैं और इसी की आड़ में युगों - युगों से श्रद्धा का दोहन होता आया है और आज भी हो रहा है । जब कभी सत्य उजागर होता है तो श्रद्धा अंधी हो जाती है और सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं होती या फिर श्रद्धा टूटती है तो मनुष्य नास्तिक बनता चला जाता है ,उसका विश्वास सबसे हटता चला जाता है । श्रद्धा का अंधा हो जाना या टूट जाना दोनों स्थितियों में जीवन की व समाज की भारी क्षति होती है ।

 हमारी श्रद्धा महान पुरुषों से, संतो व महात्माओं से तथा लोक सेवकों से जुड़ती है, धर्म के कार्यों से जुड़ती है , धर्म यानी सृष्टि का हित करने वाले महान मिशनों से जुड़ती है, उन सब के लिए काम करने वाले लोगों से जुड़ती है और जहां इन क्षेत्र में हल्के स्तर के लोकेषणा ,(यानी नाम यश के भूखे), वित्तेषणा (यानी धन का लोभ लाभ करने वाले), पुत्रेषणा(यानी अपने परिवार को, खून के रिश्तों को पद,प्रतिष्ठा व धन का लाभ पहुंचाने वाले) बुद्धिमान , चालक व धुर्त लोग प्रवेश कर जाते हैं तो उन अभियानों को, योजनाओं को, मिशनों को, विकृत कर देते हैं ऐसी स्थिति में आप व्यक्तियों से जुड़ने की बजाय अपनी श्रद्धा को ,धर्म- संस्कृति, राष्ट्र व जीवन मूल्यों से सीधे जोड़िए , आदर्शों और सिद्धांतों से जोड़िए और इस कसौटी पर आप प्रत्येक उस व्यक्ति को कस कर देखिए जिनके प्रति आप श्रद्धा कर रहे हैं । अगर आपकी श्रद्धा व्यक्तियों के साथ जुड़ी हुई है तो धोखा हो सकता है , जिन महान पुरुषों से हमारी श्रद्धा जुड़ती है आप जरा गौर करें उन महान पुरुषों ने हमेशा मानवता के उत्थान के लिए, धर्म-संस्कृति के लिए, राष्ट्र के लिए, जीवन मूल्यों के लिए काम किया है । अगर हमारे बीच में ऐसे महान पुरुष नहीं है पर उनकी योजनाएं और विचार विद्यमान है अतः हम व्यक्तियों के प्रति की जाने वाली श्रद्धा से ऊपर उठकर सीधे अपनी श्रद्धा को महानता के साथ जोड़े इसीमें हमारा, परिवार, समाज और राष्ट्र का कल्याण है ।

 रामकुमार शर्मा  9451911234    

  *युग विद्या विस्तार योजना* 

(मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)।              

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारत)


चेतना का दिव्य प्रवाह ३२.

  *अंध श्रद्धा वह दरिया है जिसमें घातक मगरमच्छ उत्पन्न होते हैं ।* 

 इस संसार में प्रकृति की एक शाश्वत व्यवस्था है कार्य के परिणाम स्वरूप तमाम सम्पत्तियां व विपत्तियां उत्पन्न होती है जैसे कहीं फूलों का बगीचा लगाया जाएगा तो चारों तरफ सुगंध व सौंदर्य ही दृष्टिगोचर होगा, वहां कोयल, मोर, भौंरे ,मधुमक्खियां व तितलियां गुंजन करते हुए,फूदकते हुए ,उड़ते हुए स्पष्ट दिखाई देंगे तथा वातावरण स्वर्गीय आनंद देने वाला बनेगा ।

ऐसे ही कीचड़, गंदगी, कूड़ा करकट चारों तरफ भरा होगा तो वहां चारों तरफ बदबू फैलेगी, मक्खी,मच्छर, खटमल , पिस्सू, घातक वायरस व बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे ही होंगे ,उनसे बचने के लिए दवाइयां कारगर नहीं है बल्कि वातावरण की स्वच्छता ही उसका कारगर उपाय है ।

 ऐसे ही जहां अंध श्रद्धा उत्पन्न होती है वहां पर अराजक स्तर के व्यक्ति धर्म, अध्यात्म का आवरण ओढ़ कर, संत महात्माओं का चोला पहनकर , समाज सेवा का लबादा ओढ़कर, प्रचार तंत्र का प्रयोग करके, अराजक तत्वों को समाज सेवा का चोला पहनकर, संगठनों में ,संस्थाओं में, धार्मिक तंत्रों में, सामाजिक तंत्रों में जहां भी उनको अपना आर्थिक लाभ, नाम यश की पूर्ति का योग दिखता है वहां छल-छद्म , झूठ-कपट व पाखंड का सहारा लेकर प्रविष्ठ कर जाते हैं और अंध श्रद्धा के वातावरण में ये खूब फलते फूलते है ।

 समाज की अंध श्रद्धा एक प्रकार की दरिया है,नदी है जिसमें ऐसे ही घातक मगरमच्छ उत्पन्न होते हैं जो कुछ भी श्रेष्ठ है उसको निगल जाते है यदि कोई उस नदी में जल आचमन करने, अर्घ्य लगाने, स्नान करने व जल पान करने हेतु उतर जाता है तो ये मगरमच्छ व उनका कुनबा घात लगाकर आक्रमण कर देते है।अंध श्रद्धा में उनको उपयुक्त वातावरण व पोषण मिलता रहता है अंध श्रद्धालुओं की भीड़ में उनका व उनके कुकृत्यों का प्रतिकार करने वाला कोई होता बल्कि यह भीड़ तो उनको गुरु, भगवान, देवता व महान अवतारी चेतना मानकर उनकी चरण वंदना करके अपने को परम सौभाग्यशाली समझती है और इस स्थिति में वे निरंकुश होकर अपने कार्यों को अंजाम दे सकते हैं इसलिए जब तक संसार में अंध श्रद्धा रहेगी, विकृत लोग मगरमच्छों की तरह संगठनों व संस्थानों में उत्पन्न होते रहेंगे और उसे अंध श्रद्धालुओं की शक्ति के बल पर ,सामर्थ्य के बल पर व धन के बल पर अराजकता करते रहेंगे व अवसर का लाभ उठाते रहेंगे ,यह अनादि से होता रहा है और वर्तमान में भी खुली आंखों से इसकी झांकी सर्वत्र की जा सकती है ।

 आप अपना चिंतन करें आपकी श्रद्धा कहीं अंधी तो नहीं है ? श्रद्धा को हमेशा जिनके प्रति आरोपित करना होता है उनको आदर्शों , सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों तथा चरित्र निष्ठा,त्याग, तप ,सादगी, सज्जनता , विनम्रता , जिम्मेदारी , बहादुरी की कसौटी पर कसकर देख लेना चाहिए अगर इस कसौटी पर व्यक्ति खरा नहीं उतरता है तो वह श्रद्धा व विश्वास का पात्र नहीं हो सकता है वह चाहे जितने बड़े विशाल तंत्र का अधिपति क्यों न बन गया हो या लंकाधिपति रावण जैसे बलशाली ,सिद्ध व प्रतापी ही क्यों ना हो । आप अपना आत्म विश्लेषण करें,चिंतन व मंथन करें और आप कहां खड़े हैं ? अंध श्रद्धा की छांव में या विवेकशीलता युक्त श्रद्धा की छांव में ।

 रामकुमार शर्मा   9451911234    

  *युग विद्या विस्तार योजना* 

(मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)।              

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारत)


Thursday, September 14, 2023

चेतना का दिव्य प्रवाह भाग 27

जो सबके लिए भोजन बनाता है वह कभी भूखा नहीं रह सकता है ।

जो माता पूरे परिवार के लिए भोजन बनाती है क्या कभी वह भूखी रह सकती है ? उत्तर होगा नहीं ! जो सबका पेट भरता है क्या कभी भूखे पेट रह सकता है ? उत्तर होगा नहीं ! इसके अलावा उसको बनाने और खिलाने का जो आनंद मिलता है , सेवा का अवसर मिलता है जिससे आत्मा प्रसन्न होती है, श्रद्धा सम्मान और धन भी मिलता है ।

ठीक इसी तरह से समाज को सुख देने वाला कभी दुःखी नहीं हो सकता है ।

समाज को ज्ञान देने वाला कभी भी अज्ञानी नहीं रह सकता है । 

समाज को सद्भावना देने वाले के जीवन में कभी भी सद्भावनाओं की कमी नहीं पड़ सकती है। 

समाज को सत् प्रेरणा देने वाला अपने जीवन में ईश्वरीय सत् प्रेरणाएं निरंतर प्राप्त करता है ।

समाज को समय देने वाले का जीवन काल (आयु) प्रकृति व ईश्वर के आधीन हो जाता है । 

समाज को धन देने वाला, सामाजिक उत्कर्ष में लगाने वाला , समाज की पीड़ा व पतन को मिटाने में धन लगाने वाला कभी भी अभावग्रस्त नहीं रह सकता है यह सृष्टि का शाश्वत नियम है । 

संसार में बोओ व काटो का नियम काम करता है आप जो कुछ भी दूसरों के हित के लिए करोगे सृष्टि की व्यवस्था में परमात्मा के द्वारा बनाई गई व्यवस्था में उसका प्रतिफल मिलना सुनिश्चित है ।

ऐसे ही जो अपनी समस्त क्षमताओं (ज्ञान, प्रतिभा, पुरुषार्थ, समय ,श्रम ,धन व साधनों )को संसार के उत्कर्ष के लिए ,मानवता के विकास की लिए लगाता है उसके समग्र व्यक्तित्व का विकास हो जाता है , उसकी आत्मा का विकास हो ही जाता है ,उसको अखंड स्वास्थ्य ,अखंड शक्ति, अखंड आनंद ,अखंड ज्ञान व अखंड प्रेम सृष्टि व्यवस्था के अनुसार उपलब्ध होता ही है और यही जीवन की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है आप यहां पाने की कोशिश मत करो, आप संसार को देने की कोशिश करो जो कुछ दोगे वह अनंत गुणा होकर लौटेगा ।

हे मानव जीवन के त्रितापों अज्ञान ,अभाव व अशक्ति से मुक्ति का यह शाश्वत तथा निरपध राजमार्ग है ।

रामकुमार शर्मा  9451911234    

*युग विद्या विस्तार योजना* 

(मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)।              

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारत)


Tuesday, September 12, 2023

दवाओं के अनावश्यक प्रयोग से बचें

 रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाने के लिए सबसे अधिक कौन-कौन सी आयुर्वेदिक दवाइयां खाई जाती हैं?

  • ये सभी ताकतवर जड़ी बूटी एक प्रकार लकड़ियां हैं, जो आसानी से नहीं पचती और फायदे के स्थान पर भयंकर हानि होती है।
  • आप कुछ भी खाएं, उसे पचाना अत्यंत आवश्यक है। हजम नहीं कर सकें, तो जल्दी दम निकल जायेगा।
  • आजकल के लोग एक दिन में 3 से 4 चमच (30/40 ग्राम) अश्वगंधा, शतावरी, सफेद मूसली, मुलेठी, हरड़, आंवला, कोंच के बीज आदि के चूर्ण बिना इस्तेमाल कर रहे हैं।
  • चिंतन मंथन जरूर करें क्या कभी आपने पचाने, हजम करने के बारे में भी विचार किया है। सोचेंगे, तो अहसास होगा कि आए दिन पट की खराबी, कब्ज, बी पी हाई, मधुमेह, बैचेनी का कारण यही निकलेगा।
  • चरक संहिता के चिकित्सा सुत्र का निर्देश है कि जो भी आप भक्षण कर रहे हैं उसका 75 फीसदी हिस्सा माल विसर्जन द्वारा निकलना जरूरी है अन्यथा आप कुछ सालों बाद अनेक भयानक बीमारियों से परेशान होने लगेंगे।
  • सावधान ये तकतवार जड़ी बूटियां आपको नामर्द, नपुंसक बना सकती हैं।
  • अतः आप वही खाएं, जिसे हजम कर सकें नहीं, तो दम निकल जायेगी।
  • द्रव्यगुण विज्ञान, भाव प्रकाश और आयुर्वेदिक निघंतुयों में, तो स्पष्ट लिखा है की अगर आप परिश्रमी हैं।
  • जड़ी बूटी रूपी लकड़ियों को पचाने का सामर्थ्य रखते, हों तभी इनका चूर्ण के रूप में सेवन करें अन्यथा इनका काढ़ा पीना ही लाभकारी रहेगा।
  • प्राचीन काल का मनुष्य बहुत मेहनती होता था और 20 से 30 किलोमीटर पैदल चलना उसके लिए आम बात होती थी। इसलिए ये समस्त ओषधि लकड़ियां आसानी से पीछा जाती थीं।

नहीं पचने के कारण चूर्ण विष हो जाते हैं।

  • आयुर्वेद के एक रहस्य को अच्छी तरह समझ लीजिए कि ये सब जड़ी बूटियों की लकड़ियां ताकतवर बहुत हैं। इन्हे पचाने के लिए विशेष परिश्रम की आवश्यकता होती है।
  • आज का आदमी मेहनत बिलकुल नहीं करता। इसलिए ये सब जड़ी बूटियों के चूर्ण या पाउडर फायदे की जगह नुकसान करेंगे। क्योंकि ये चूर्ण पचते नहीं हैं और शरीर में वात पित्त कफ को असंतुलित कर शरीर का पाचन तंत्र बिगाड़ देते हैं।
  • द्रव्यगुण विज्ञान के मुताबिक शक्ति वर्धक जड़ी बूटियों का चूर्ण पचाना आसान नहीं है।
  • अगर आपको ये सब ताकतवर चूर्ण खाने का शौक हो, तो किसी भी चूर्ण या समस्त चूर्ण के मिश्रण को 10 से 15 ग्राम लेकर शाम को 200 मिलीलीटर पानी में गलाकर सुबह एक चौथाई रहने तक उबालें और खाली पेट गुड़ मिलाकर पिएं।
  • निवेदन इतना है कि गुगल आदि सोशल मीडिया पर पड़ी हुई गलत जानकारी को अपना आधार न बनाकर स्वयं ही आयुर्वेद को पढ़ें और सबका भला करें।

Health is most Important

 


Saturday, September 9, 2023

श्री तैलंग स्वामी…

 

वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं, वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में बंद करने का आदेश दिया गया।

पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए “श्री तैलंग स्वामी” नामक योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य?

पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए ओर वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गये पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं हाँ चारों तरफ से घेरा डाल दिया कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा, लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे अब अस्ताचलगामी हो चले किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए कहते हैं उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिये उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगायें जल के भीतर ही बैठे रहते हैं।

उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया इसीलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गये इस बीच अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।

प्रातः काल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा सम्पादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्ला को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस प्रकार मेढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों। नाव उस पार नहीं पहुँच पाई स्वामी जी पहुँच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।

स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म पाश फेंका तो वे प्रसन्नता पूर्वक बँध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्तियों से बहुत चढ़ बढ़ कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी की गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।

प्रस्तुत घटना “मिस्ट्रीज आँफ इंडिया इट्स योगीज” नामक लुई द कार्टा लिखित पुस्तक से अधिकृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्राँसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक “आटो बाई ग्राफी आँफ योगी” के 31 वे परिच्छेद में किया है।

प्रातः काल ठंडी हवा बह रही थी थानेदार जी हवालात की तरफ की तरफ आगे बढ़े तो पसीने में डूब गया, जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला भी लग रखा था। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बेद ताला बाकायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।

श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुये तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएं तो तेल की ऊष्मा बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसी झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को लेजाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा महात्मन्! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ स्वामी जी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुये थे कि कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं है यह तो कुदरत का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य है।

मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन आवा शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योग विद्या, योग साधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्द लाभ प्राप्त करते है…

Wednesday, August 30, 2023

जिंदगी में क्या सीखना सबसे जरूरी है?

एक गधा पेड़ से बंधा हुआ था।
शैतान आया और उसने उस गधे की रस्सी खोल दी।
वो गधा खेत में घुसा और उधम मचाना शुरू किया।
उस खेत के मालिक की बीवी ने उस गधे को बंदूक चला कर धराशाई कर दिया।
गधे के मालिक को ये देख कर प्रकोपकारी गुस्सा आ गया। उसने बड़ा सा पत्थर उस खेत के मालिक के बीवी के सिर में डाल कर उसे ढेर कर दिया।
खेत का मालिक घर आया, अपनी बीवी को खून से लथपथ देख कर उसने उस गधे के मालिक को मार डाला।
अब गधे के मालिक की बीवी ने अपने बच्चो को उस किसान के घर को आग लगाने का कहा।रात के अंधेरे में उस किसान के बचने के कोई आसार नहीं रहेंगे इस खुशी में वो दोनो बच्चे घर आए।
पर उस आग में से को किसान बच गया और घर आ कर उसने उस गधे के मालिक की बीवी बच्चो को गोली से उड़ा दिया।
जेल की सलाखों के पीछे अपना पूरा घर परिवार, पड़ोसी, जमीन जायदाद सब खो चुका किसान सोच में पड़ा रहा। उसने शैतान से पूछा, ये सब कैसे हुआ?
शैतान बोला," मैंने कुछ भी नहीं किया इस बार, मैंने सिर्फ गधे को संखल से मुक्त किया। तुम उस पर क्रिया प्रतिक्रिया करते रहे और अपने अंदर के शैतान को मुक्त किया।"
तो अब किसी बात का जवाब देते वक्त, प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, किसी को कुछ जानकारी देते हुए, बदला लेते हुए, किसी को कोसते हुए….., रुकिए और विचार कीजिए।
खयाल रखिए, क्युकी आज कल शैतान क्या करता है….कुछ भी नहीं करता, वो सिर्फ आप के अंदर के गधे की सांखल खोलता है।

रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना

 7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों।
उन्होंने अपनी दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए “छापोली” में पड़ाव डाल दिये। कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी।
सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं। गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज “देवड़े” पर आई है। वे चौंक पड़े। कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है?
जवाब आया “युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है। कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा। निर्णय हो चुका था।
एक ही पल में सब कुछ बदल गया। शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था। जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपनी सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे। तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 लोगो की सेना थी।
तब रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए। करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे।
अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी। क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो।
वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली की तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी। मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी का कर्तव्य निभा रही थी, मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था।
सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे।
लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।
8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किया और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया।
सुजान सिंह दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और मुगल सेना के 40 लोगो को मौत के घाट उतार दिया। ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान ने पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नहीं थे। जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था। सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों।
इस बीच कुछ लोगों की नजर सुजान सिंह पे पड़ी, लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं…
लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं। सबों ने मन ही मन अपना शीश झुकाकर इष्टदेव को प्रणाम किये।
अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे। उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी। जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये।
इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा दिख था, एक अजीब विश्मित करने वाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी।
ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सब ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर की प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया।
माँ भारती के इस शूरवीर योद्धा को कोटि कोटि नमन।

Monday, August 28, 2023

भगवान व मौत को याद रखें

 राबिया बसरी एक महशूर फ़क़ीर हुई है! जवानी में वह बहुत खूबसूरत थी | एक बार चोर उसे उठाकर ले गए और एक वेश्या के कोठे पर ले जाकर उसे बेच दिया | अब उसे वही कार्य करना था जो वहाँ की बाक़ी औरते करती थी |

इस नए घर में पहली रात को उसके पास एक आदमी लाया गया | उसने फौरन बातचीत शुरू कर दी | ' आप जैसे भले आदमी को देखकर मेरा दिल बहुत खुश है " वह बोली | ' आप सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ जाये , में में थोड़ी देर परमात्मा की याद में बैठ लूँ | अगर आप चाहे तो आप भी परमात्मा की याद में बैठ जाएँ | 'यह सुनकर उस नवजवान की हैरानी की कोई हद न रही | वह भी राबिया के साथ ज़मीन पर बैठ गया | फिर राबिया उठी और बोली ' मुझे विश्वास है की अगर में आपको याद दिला दूँ की एक दिन हम सबको मरना है तो आप बुरा नही मानोगे | आप यह भी भली भाँति समझ ले की जो गुनाह करने की आपके मन में चाहा है , वह आपको नर्क की आग में धकेल देगा | आप खुद ही फैसला कर ले की आप यह गुनाह करके नर्क की आग आग में कूदना चाहते है या इससे बचना चाहते है|'
यह सुनकर नवजवान हक्का बक्का रह गया| उसने संभलकर कहा, ऐ नेक और पाक औरत, तुमने मेरी आँखे खोल दी , जो अभी तक गुनाह के भयंकर नतीजे की और बंद थी | मै वादा करता हूँ की फिर कभी कोठे की तरफ कदम नही बढ़ाऊंगा |
हर रोज नए आदमी राबिया के पास भेजे जाते | पहले दिन आये नवजवान की तरह उन सबकी जिंदगी भी पलटती गयी | उस कोठे के मालिक को बहुत हैरानी हुई की इतनी खूबसूरत और नवजवान औरत है और एक बार आया ग्राहक दोबारा उसके पास जाने के लिए नही आता, जबकि लोग ऐसी सुन्दर लड़की इए दीवाने होकर उसके इर्दगिर्द | ऐसे घूमते है जैसे परवाने शमा के इर्दगिर्द | यह राज जानने के लिए उसने एक रात अपनी बीवी को ऐसी जगह छुपाकर बिठा दिया, जहां से वह राबिया के कमरे के अंदर सब कुछ देख सकती थी | वह यह जानना चाहता था की जब कोई आदमी राबिया के पास भेजा जाता है तो वह उसके साथ कैसे पेश आती है?
उस रात उसने देखा की जैसे हीं ग्राहक ने अंदर कदम रखा, राबिया उठकर खड़ी हो गई और बोली,आओ भले आदमी, आपका स्वागत है | पाप के इस घर में मुझे हमेशा याद रहता है की परमात्मा हर जगह मौजूद है | वह सब कुछ देखता है और जो चाहे कर सकता है | आपका इस बारे में क्या ख्याल है ? यह सुनकर वह आदमी हक्का बक्का रह गया और उसे कुछ समझ न आई की क्या करे ? आखिर वह कुछ हिचकिचाते हुए बोला, हाँ पंडित और मौ।लवी कुछ ऐसा ही कहते है |राबिया कहती गई, 'यहाँ गुनाहो से घिरे इस घर में, में कभी नही भूलती की ख़ुदा सब गुनाह देखता है और पूरा न्याय भी करता है वह हर इंसान को उसके गुनाहो की सजा देता है | जो लोग यहाँ आकर गुनाह करते है, उसकी सजा पाते है | उन्हें अनगिनत दुःख और मुसीबत झेलनी पड़ती है | मेरे भाई, हमे मनुष्य जन्म मिला है भजन बंदगी करने के लिए दुनिया के दुखो से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिये, ख़ुदा से मुलाकात करने के लिए, न की जानवरो से भी बदतर बनकर उसे बर्बाद करने के लिए |
पहले आये लोगो की तरह इस आदमी को भी राबिया की बातो में छुपी सच्चाई का अहसास हो गया | उसे जिंदगी में पहली बार महसूस हुआ की वह कितने घोर पाप करता रहा है और आज फिर करने जा रहा था | वह फूटफूट कर रोने लगा और राबिया के पाव पर गिरकर माफ़ी मांगने लगा|
राबिया के शब्द इतने सहज, निष्कपट और दिल को छु लेने वाले थे की उस कोठे के मालिक की पत्नी भी बाहर आकर अपने पापो का पश्चाताप करने लगी | फिर उसने कहा ऐ नेक पाक लड़की, तुम तो वास्तव में फ़क़ीर हो | हमने कितना बड़ा गुनाह तुम पर लादना चाहा | इसी वक्त इस पाप की दलदल से बहार निकल जाओ ' इस घटना ने उसकी अपनी जिंदगी को भी एक नया मोड़ दे दिया और उस पाप की कमाई हमेशा के लिए छोड़ दी |
उस मालिक के सच्चे भक्त जहां कही भी हो, जिस हालात में हो, वे हमेशा मनुष्य जन्म के असली उद्देश्य की ओर इशारा करते है और भूले भटके जीवो को नेकी की रह पर चलने की प्रेरणा देते है।
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शिक्षाप्रद कहानी

एक दिन बहू ने गलती से यज्ञवेदी में थूक दिया!!!
सफाई कर रही थी मुंह में सुपारी थी पीक आया तो वेदी में थूक दिया पर उसे आश्चर्य हुआ कि उसका थूक स्वर्ण में बदल गया है।
अब तो वह प्रतिदिन जान बूझकर वेदी में थूकने लगी और उसके पास धीरे-धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा
महिलाओं में बात तेज़ी से फैलती है इसलिऐ कई और महिलाएं भी अपने-अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूक कर सोना उत्पादन करने लगी!
धीरे-धीरे पूरे गांव में यह सामान्य चलन हो गया।
सिवाय एक महिला के !
उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया... समझाया...!
“अरी तू क्यों नहीं थूकती?”
“जी, बात यह है कि मैं अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हर्गिज नहीं करूंगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वह अनुमति नहीं देंगे!”
किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि आख़िर उसने एक रात डरते-डरते अपने ‎पति‬ को पूछ ही लिया।
“खबरदार जो ऐसा किया तो...!
यज्ञवेदी क्या थूकने की चीज़ है?”
पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस...
वह महिला चुप हो गई पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएं होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी।
ख़ास कर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियां अपने नए-नए कण्ठ-हार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी!
पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते।
“यह शायद मेरा दुर्भाग्य है...
अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप...
कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ रहा है”
“शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है”
“ओह, इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है?”
“जिस नियम के पालन से ‎दिल‬ कष्ट पाता रहे उसका पालन क्यों करूँ?”
और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी।
पतिदेव‬ इस रोग को ताड़ गए और उन्होंने एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया।
गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए। सूर्योदय से पहले पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।
किन्तु...
अरे, यह क्या...???
ज्यों ही वे गांव की कांकड़(सीमा) से बाहर निकले!
पीछे भयानक विस्फोट हुआ।
पूरा गांव धू-धू कर जल रहा था!
सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए।
और उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया।
वास्तव में... इतने दिन गांव बचा रहा,
तो केवल इस कारण...
कि उसका परिवार गांव की परिधि में था।
धर्मांचरण करते रहें...
कुछ पाने के लालच में इंसान बहुत कुछ खो बैठता है...
इसलिए लालच से बचें...😎😊😍
भजन सिमरण करते रहे सतगुरु हमे सही राह चलाए

हमारे दांत मजबूत और चमकदार दांत हो, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?

सुंदर सशक्त दांत हमारे चेहरे को सही आकार देते हैं ,भारत व अन्य विकासशील देशों में अभी दांतो की केयर पर उतना खर्च प्रति व्यक्ति नहीं जितना युरोप व अमेरिका में करते हैं. यदि दांतों की सफाई बचपन से न की जाय तो 15/20 वर्ष की आयु में दंतक्षय शुरू हो जाता है और एक महत्व पूर्ण बात , दांतों का संपूर्ण इलाज ओपन हार्ट सर्जरी से अधिक मंहगा है उदाहरण एक दांत की फिलिंग व रूट कनाल (दांत की जड़ को सजीव रखने की क्रिया) एक दांत का खर्च 3 से 7 हजार तक है और इस पर सेरामिक या मेटालिक कैप का खर्चा भी 3से 7हजार अलग से, और यदि दांत हटाकर नया जबड़े की हड्डी में बोल्ट से सेरामिक दांत लगाया जाय तो 20 से 40 हजार प्रति दांत खर्च हो सकते हैं ,अब गिन लें यदि 15 /20 दांतों में यह किया तो 6 से 9 लाख खर्चा तक हो सकता है साथ ही इस प्रक्रिया को अलग अलग एक एक दांत के लिऐ अलग अलग करवाया तो डेंटल सर्जन के पास आपको 30 बार जाना पड़ सकता है और प्रति विज़िट 2 घंटे साथ दर्द वाली संभावना व खाने की दवाओं का खर्च भी होगा.अब गिन लें ओपन हार्ट सर्जरी में दर्द इससे आधा भी नहीं होता और पेशेंट 4 से 8 दिन में स्वस्थ हो घर वापिस इसका कुल पैकेज का खर्च 3.5 से 6 लाख है.
अब आते हैं दांतो को हमेशा सुरक्षित कैसे रखें . खुराक ,हड्डियों व दांतों की मजबूती के लिये कैल्शियम , विटामिन डी युक्त भोजन ,दूध से बने आहार मछली या काड् लिवर आयल सुनहरे जैली भरे कैप्सूल दो रोज़ ले और वर्ष में कम से कम 100 दिन 35 मिनट धूप का सेवन आपके खाऐ विटामिन डी व कैल्शियम को शरीर में घोलने का काम करेगा . 40 की आयु पश्चात भोजन के अतिरिक्त बाहरी रुप से गोली या एक ग्राम पाऊच, शायद calciferol या ऐसे नाम से 1 ग्राम का पाऊच मिलता है वर्ष भर में 25/ या 30 तक पाऊच अवश्य लें और सही एकदम सटीक जानकारी चाहिए तो बस एकबार हड्डी रोग विशेषज्ञ से मिल कर पूछें प्रति सप्ताह एक दूध में डालकर लेना है इसका पूरा असर दूध में लेने साथ साथ धूप में रोज 30 मिनट बैठने से शरीर इसको शोषित करता है नहीं तो आधा अधूरा असर होता है , हो सके तो जो खा सकते हैं वो दो उबले अंडे रोज़ व सप्ताह में दो बार मछली व अखरोट बादाम अलसी के भुने बीज भी खाऐं नहीं तो सबको 40/45 की आयु पश्चात सबको हड्डियों का क्षरण (घिसना व नये हड्डी के ऊतक नहीं बनना ) होता है विशेषकर महिलाओं को मेनोपॉज के बाद इसकी अधिक आवश्यकता पड़ती है. आपने मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) आयू के बाद देखा होगा कि महिलाओं में घुटनों में दर्द व चलने सीढ़ी चढ़ने में दर्दे या दिक्कतें आती हैं वह इसी की कमी से इसी आयु में शारीरिक परिवर्तन से होता है और सारी आयू इस दर्द को झेलना एक मजबूरी बन जाती है।
केवल सुबह 5 - 7 मिनट ब्रश पेस्ट घिसना जितना लाभ देता है उतना ही नुकसान भी , पहली बात और समझ : हम हमेशा दांतों को घिसकर सारी आयु मूर्खता करते , समझते हैं कि हो गई सफाई जबकि वस्तु स्थिति यह है कि यदि मसूढ़े वृक्ष हैं तो दांत तना व टहनियां हैं अत: जब तक जड़ मजबूत नही तब तक तना भी स्वस्थ नहीं अतः मसूड़ों जीभ , तालू की उंगलियों से मालिश और अधिक जरूरी है , ब्रश को साबुन से मसल धो कर रखें ये नहीं कि एक ही झूठे ब्रश व रोज के बैक्टीरिया से भरे ब्रश से सफाई हो और अब पढ़ें दांतों की सफाई की आसान और सही प्रक्रिया

  1. सुबह की बजाय रात को दांत साफ कर सोयें ,रात में दांतों व मुंह की सफाई न होने से बैक्टीरिया 10 गुना जल्दी से फैलता है,रात को दांत साफ करें तो यह बैक्टीरियल हमला नहीं होता.
  2. सबसे पहले साबुन से हाथ धोकर उंगली से मसूड़ों की 1 या डेढ़ मिनट अंदर बाहर हल्की मालिश करें इससे मसूढों मे रूका तरल बाहर निकलता है , साथ ही जीभ भी दो उंगलियों से साफ करे ,टंग क्लीनर से न करें यह जीभ को छीलता है और जीभ पर जो बिंदिया नुमा टेस्ट बडस् होते हैं उन्हें नुकसान पहुंचता है और खाना खाते समय मिर्चें अधिक लगती हैं
  3. अब टुथपेस्ट उंगली पर लगा कर (ब्रश से नहीं) फिर से मसूड़े व दांत दोनों की 2 मिनट मालिश करें व जीभ पर और जीभ नीचे के अंदर की साईड की भी मालिश और एक या दो मिनट का समय छोड़ दें मुँह में असर होते होते समय लगता है ,इससे पेस्ट का सही असर दांतो व मसूढो़ पर होता है , अब इसके बाद एक मिनट मात्र मीडियम नरम ब्रश से नीचे से उपर व उपर से नीचे ,अंदर बाहर सफाई करें, यदि दो दांतो के बीच कुछ गैप है तो एक स्पेशल ब्रश (नीचे चित्र में फोटो देखें) से उस गैप में यदि कुछ फंसा है तो निकालें यह हरेक के लिऐ नहीं केवल दांतों में गैप है तो वही इसे प्रयोग करें. आप बिना भूले यदि इस तरह से नियमित दांत साफ करते रहें तो मेरा दावा है कि प्रोढ़ायू तक दांत मजबूत चमकदार व मसूढ़े स्वस्थ्य रहेंगे ,रात में यह करने से सुबह आप चाहें तो ब्रश न कर केवल टुथपेस्ट से मात्र डेढ़ मिनट साफ करें इससे सुबह का समय भी बचता है . इसके अतिरिक्त सप्ताह में एक बार फिटकरी का टुकड़ा पानी में सात बार हिलाकर उसकी दो कुल्ली करें या इसके स्थान पर डेंटल ऐंटिसेप्टिक लोशन (चित्र संलग्न है यह मात्र जानकारी के लिए है जरुरी नहीं कि यही लें किसी भी अच्छी कंपनी का लें ) की 8/10 बूंदें मुंह मे मलकर एक कुल्ली कर लें याद रहे यह प्रक्रिया रोज़ाना नहीं केवल सप्ताह में दो बार करनी है ,यदि रोज़ करेंगे तो दांतो के एनामल घिस सकता है और ठंडा गरम लगने की शिकायत हो सकती है. इसके अतिरिक्त हर बार खाने के बाद हर बार पानी से कुल्ली करने की आदत बनाऐं , आजकल कई प्रकार के लिक्विड रंग बिरंगे माउथवॉश भी बाजार में हैं ,पर यदि आप इस लेख के बताऐ तरीके से दांत साफ रखें तो माऊथवाश एक खर्चीली आदत से अधिक कुछ विशेष नहीं वैसे जो कर रहे हैं या करने की क्षमता है तो करें कोई हर्ज नहीं और यह भी ध्यान रहे कि ओरल माउथवॉश तरल मंहगे व पूर्णतया कैमिकल्स ही हैं ये हमारे मुँह के अंदरूनी भाग में खराब बैक्टीरिया के साथ मुँह में कुछ मित्र (लाभकारी) बैक्टीरिया को भी मारता है जिससे पेट के गुड बैक्टीरिया कम होने से पाचनतंत्र कमजोर हो सकता है . ,कुछ व्यक्तियों को मसूढ़ों की सूजन का रोग होता है इसे पायोरिया नाम से जाना जाता है.जिसका स्वंय को महसूस नहीं होता पर दूसरे व्यक्ति उस व्यक्ति के अति नजदीक अपना मुंह करने में असहज महसूस करते हैं यह स्थिति जानने के लिये घर के मेंम्बर से कह कर पूंछें कि वह आपका मुँह सूंघें ओर बताऐं कि तेज बदबू तो नहीं है और यदि ऐसा है तो तुरंत डेंटल सर्जन से चेकअप करा पूरा इलाज कराना जरूरी है अन्यथा घर पर कितने ही दांत साफ कर लें जब तक मसूढे पूर्ण स्वस्थ नहीं होते तो 50/55की आयु में सब दांत गिरने शुरू हो सकते हैं।
अपने अनुभव व क्षमता के अनुसार मैंने बहुत डिटेल्ड उत्तर दिया है ,यदि अपनाया जाये तो गारंटी है कि सत्तर हों या अस्सी साल दांत सही मजबूत रहेंगे. उत्तर पसंद आया तो सोच में न पड़ें आज रात्रि से शुभ प्रारंभ करें ,और विशेष यह कि एक अपवोट भी चाहें तो करें धन्यवाद . तिथि :- 23.सेप्टेंबर.2021…….
विशेष नोट:- लेखक के पास कोई मेडिकल डिग्री या विशेषज्ञता नहीं है ,यह स्वंय के सहज ज्ञान व अनुभव आधारित लिखा गया है , किसी भी सामान्य या टिपिकल रोग निदान हेतु डाक्टर की राय प्रथम लें. चित्र में दिये उत्पाद केवल उदाहरण व पाठकों की जागृति हेतु हैं व लेखक का इन उत्पादों या इनके निर्माता से किसी प्रकार का संबध नहीं. 🙏 भारतमाता की जय .वंदेमातरम