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(सनातन धर्म का महत्व एंव सद्धान्तों को समझने के लिए पढे पुस्तक सनातन धर्म का प्रसाद)
Table of Content of the Book
(सनातन
धर्म का प्रसाद)
सनातन धर्म की चौदह शिक्षाएँ
1. व्रत व उपवास 10
2. वितरण व दान 22
3. तुलसी 28
4. नवयुग का आगमन ;कल्कि अवतार
30
5. कुण्डलिनी जागरण 40
6. योग एवम् पुरूषार्थ 55
7. स्वास्थय समस्याएँ व चिकित्सा पद्धतियाँ 69
8. 21 सवीं सदी का रक्षा कवच-गायत्री मंत्र 98
9. र्इश्वर विश्वास एवम् दैवी सहायता 108
10. गहना कर्मणोगति व भाग्यवाद 156
11. षोडश संस्कार 164
12. आश्रम व्यवस्था व वर्ण व्यवस्था 171
13. ऋषि संसद एवम् सांस्कृतिक जागरण के केन्द्र 177
14. पर्व व त्यौहार 180
सत्य नारायण व्रत कथा 190
उपसंहार 209
1. क्या आप सनातन धर्म के रहस्यों को समझकर धर्म सम्बन्धी अपनी उलझनों को दूर करना चाहते है?
1. क्या आप सनातन धर्म के रहस्यों को समझकर धर्म सम्बन्धी अपनी उलझनों को दूर करना चाहते है?
2. क्या
आप सनातन धर्म का पूर्ण वज्ञानिक व तर्क सम्मत प्रतिपादन पढ़ना चाहते है?
3. क्या
आप धर्म,
अध्यात्म, योगसाधना, कुण्डलिनी
जागरण, प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेद पर वज्ञानिक
दृष्टिकोण से किए गए प्रयोगों को जानना चाहते है?
4. क्या
आप हिमालय के ऋषियों का सन्देश सुनना चाहते है?
5. क्या
आप इस राष्ट को जगतगुरु/विस्वामित्र बनाना चाहते है?
6.
7. क्या
आप योग की उच्चस्तरीय स्थिति को पाना चाहते है व भोगो की अतृप्ति से भी बचना चाहते
है?
8. क्या
आप मोक्ष प्राप्त करना चाहते है?
9. क्या
आप अपने व्यक्तित्व का विकास कर अपनी प्रतिभा को बढ़ाना चाहते है?
10. क्या
आप एक निरोग, दीर्घजीवी व प्राणवान जीवन जीना चाहते है?
11. क्या
आप प्रभु को समर्पित होकर मानव की सेवा कर अपना जीवन सार्थक करना चाहते है?
12. क्या
आप अपना भविष्य उज्जवल बनाना चाहते है?
13. क्या
आप अपने जीवन में रोगों, कष्टों, दुर्घटनाओं,
निर्धनता से तंग आ चुके हैं?
14. क्या
आप अपने जीवन के दुखों समस्याओं से परित्राण पाकर सुख शान्ति का जीवन यापन करना
चाहते हैं?
यदि
हाँ
उपरोक्त
14 प्रश्नों में से प्रत्येक का विस्तृत विवरण जानने के लिए पढ़िए पुस्तक
“सनातन धर्म का प्रसाद”
इस
राष्ट्र से अज्ञानता मिटाने को, इस राष्ट्र से धर्मान्धता
मिटाने को।
दे
हमें शक्ति अपार, दे हमें भक्ति अपार।।
आज पूरा विश्व अनेक प्रकार के संकटो से गुजर रहा है। हर व्यक्ति पीड़ा पतन रोग
शोक से ग्रस्त होता जा रहा है। अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के निवारण के लिए ग्रह
नक्षत्र, पितृ दोष आदि के पता नहीं कितने उपाय करता घूमता है, परन्तु जीवन से अशांति,
अन्धकार, स्वास्थ्य, खुशियाँ छिनती जा रही है। अपनी आत्मरक्षा हेतु व्यक्ति बहुत प्रकार से उछल कूद
कर रहा है। कुछ व्यक्ति सब कुछ करके थक चुके हैं, अनेक प्रकार के देवी
देवताओं के पूजन, पितृ शांति, ग्रह दोष निवारण जिसने जो बताया वो किया परन्तु मुसीबतें ज्यों की त्यों। ऐसा
क्यों हो रहा है? खुशहाल जीवन के लिए हमारे ऋषियों ने कुछ नियम बताए थे। व्यक्ति ने हर स्तर पर
उन नियमों की उपेक्षा कर दी है। व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक, समाजिक व राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऋषियों के संविधान की उपेक्षा
करने से दिनोंदिन स्थिति दयनीय होती जा रही है। वो कौन से नियम है वो कौन सा
रास्ता है जिसको अपनाकर व्यक्ति शांत, स्वस्थ, सन्तुष्ट, सुखी व समृद्ध हो जाता है, यही खोजने का प्रयास हमने अपनी पुस्तक ‘‘ सनातन धर्म का प्रसाद ’’
में किया है। पुस्तक को डाक द्वारा मंगाने का खर्च सौ रूपया
है। Soft copy free
download कर सकते हैं।
महात्मा बुद्ध के समय में भी यही स्थिति उत्पन्न हो गयी थी कर्मकाण्ड के
आडम्बर बढ़ गए थे। उन्होंने उदघोष किया- ‘‘बुद्धि शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि’’
अर्थात विवेक-बुद्धि से सोचो श्रेष्ठ चिन्तन व आचरण ही धर्म
है, उसको अपनाओं। शुद्ध, सात्विक, संयमित जीवन ही सब सुखो का आधार है। ईश्वरीय कृपा पाने के भी तर्क सम्मत नियम
है, यों ही इधर-उधर के टण्ट-घण्ट करने से समय व धन की बरबादी के अलावा कुछ निकलने
वाला नहीं है। इस सृष्टि में सब कुछ नियमबद्ध है, तर्क सम्मत है। उन
नियामों को समझना व उन पर चलना ही एक मात्र विकल्प है।
Note that second edition is available on Feb 2013 blog
Note that second edition is available on Feb 2013 blog
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