Tuesday, June 19, 2012

Five Pillars of Spiritual Revolution







हे प्रभु ऐसी कृपा कर कि मनुष्य स्वार्थ-भावना से उपर उठें, व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति में अपना समय नष्ट न करें। उन्हें जो समय मिले उसे ईश्वरोपासना में, मानव कल्याण में, परोपकार में लगायें।
वही जीवन जीने योग्य है जो  र्इश्वर  को समर्पित हों!
तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे कांटो से भी प्यार|
चाहे सुख दे चाहे दुख दे, हमें दोनों हैं स्वीकार ||”

खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा |
यह नाव तो हिलती जाएगी, तू हंसता जा या रोता जा ||” 
(From Rishi Prasad magazine)
‘‘मन रूपी पात्र को तृष्णा और अहंकार से मुक्त कर दीजिए। र्इश्वर कृपा रूपी प्रसाद से वह स्वंय भर जाएगा।"
"परमात्मा की चेतना सबकी देखभाल कर सकती है। हमको किसी चीज की चिन्ता करने की जरूरत नहीं। हमारी समस्याओं का कारण यह है कि हम उन्हें परमात्मा पर नहीं छोड़ना चाहते।"
हजारों टन सिद्धांतो की अपेक्षा ग्राम भर आचरण अधिक लाभप्रद है। प्रारम्भ में केवल थोड़े से ऐसे संकल्पों का चयन कीजिए जिनसे आपके स्वभाव और चरित्र में भले ही थोड़ा परंतु निश्चित सुधार हो’            - स्वामी शिवानन्द
धर्म का सार प्रवचन में नहीं, बल्कि समाज की समस्या का व्यवहारिक समाधान निकालने में हैं।
जीवन में सबसे महान और महत्वपूर्ण कर्म है भगवान की खोज, उनकी प्राप्ति, उनमें निवास तथा जीवन में उनके संकल्प की अभिव्यक्ति।
कठिनार्इयों का सामना करके, दु:खों को सहन करके एवम् वासनाओं का दमन करके व्यक्ति का चरित्र एवं व्यक्तित्व उसी प्रकार श्रेष्ठ, सुदृढ़ एवं प्रभावी बनता है जिस प्रकार अग्नि में तपने से स्वर्ण निखरता है।
साधक का पहला लक्ष्य है- धैर्य! धैर्य की रक्षा ही भक्ति की परीक्षा है। जो अधीर हो गया, सो असफल हुआ। लोभ और भय के, निराशा और आवेश के जो अवसर साधक के सामने आते है, उनमें और कुछ नहीं केवल धैर्य परखा जाता है। सदा प्रसन्न रहो। मुसीबतों का खिले चेहरे से सामना करो। आत्मा सबसे बलवान है, इस सच्चार्इ पर दृढ विश्वास रखो। यही र्इश्वरीय विश्वास है। इस विश्वास द्वारा आप समस्त कठिनार्इयों पर विजय पा सकते है। (Maharshi Shri Ram)
Five Pillars of Spiritual Revolution 
Swami RamKrishna Paramhansa (Source of Unity of Religions)
Maharshi Arvind (Father of Indian Freedom Movement and Conscious Scientist)
Yugrishi Shri Ram Aacharya (Messenger of Divine Himalayan Souls)
Yogavatar Lahiri Mahashya (Founder of Kriya-Yog)
Trailanga Swami (Walking Shiva of Varanasi)
जब मनुष्य भौतिक सुखो की इच्छा मे बाहरी कर्म काण्ड को ही सब कुछ मानकर पशुता के मायाजाल मे दिशाहीन होकर उन्मत्त की भांति भटक रहा था, मानवता सिसक रही थी सत्य का लोप हो रहा था ऐसे समय में देवभूमि भारत मे ज्ञान रूपी सूर्य के समान पांच देवमानवो का अवतरण हुआ जिन्होने भारतवासियो की चेतना में नवीन प्राण का संचार किया। मानव के सच्चे आध्यातम की राह दिखायी व पूरे विश्व मे ज्ञान गंगा को प्रवाहित किया। धर्म, जाति, सम्प्रदाय एंव राष्ट्रवाद से उपर उठकर हम सभी इनकी अनमोल शिक्षाओं का लाभ उठा सकते है।
‘‘वही जीवित है जिसका रक्त गर्म, मस्तिष्क ठण्डा एंव पुरूषार्थ प्रखर है।’’
सखा सोच त्यागहु बल मोरें, सब विधि घंटब काज मे तोरे
अपने आप को संकट में डालने के मामले में मनुष्य की प्रतिभा का कोर्इ अंत प्रतीत नहीं होता, पंरतु उस परम दयालु र्इश्वर के पास सहायता की युक्तियों की भी कोर्इ कमी नहीं है।
अज्ञानी रहने से जन्म न लेना अच्छा है, क्योंकि अज्ञान सब दु:खों की जड़ है - प्लेटो 
ज्ञान अग्नि की तरह हैं जो भीतर के कुसंस्कारों को भस्म देता हैं।
ज्ञान एक नौका है जिसमें बडे से बडा पापी भी पार उतर सकता है।
ज्ञान मानव को पवित्र करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं।
ज्ञान का को अर्जित करने के लिए व्यक्ति को कठिन पुरुषार्थ, मन की शुद्धि एवं परमात्मा का अनुग्रह चाहिए।
हमारी निज की अनुभूति है कि असुरता द्वारा उत्पन्न हुर्इ विभीषिकाओं को सफल नहीं होने दिया आएगा। परिवर्तन इस प्रकार होगा कि जो लोग इस महाविनाश में सगंलन है, इसकी संरचना कर रहे है, वे उलट जाएँगे या उन्हें उलट देने वाले नए पैदा हो जाएँगें। विश्वशांति में भारत की निश्चित ही कोर्इ बड़ी भूमिका होने जा रही है। सभी विनाश की बात कर रहे हैं। हमारा अकेले का कथन यह है की उलटे को उलटकर ही सीधा कर दिया जाएगा। हमारे भविष्य-कथन को अभी भी बड़़ी गंभीरतापूर्वक समझ लिया जाए। विनाश की घटाओं का प्रचंड़ तूफानी प्रवाह अगले दिनों उड़ाकर कहीं ओर ले आएगा और अँधेरा चीरता हुआ प्रकाश से भरा वातावरण दृष्टिगोचर होगा। यह ऋषियों के पराक्रम से ही संभावित हैं। इसमें कुछ दृश्यमान व कुछ परोक्ष भूमिका हमारी भी हो सकती हैं।
अगले दिनों संसार का एक राज्य, एक धर्म, एक अध्यात्म, एक समाज, एक संस्कृति, एक कानून, एक आचरण, एक भाषा और एक दृष्टिकोण बनने जा रहा है। इसलिए जाति, भाषा, देश, संप्रदाय आदि की संकीर्णताएँ छोड़े और विश्वमानव की एकता की, वसुधैव कुटुंबकम् की भावना स्वीकार करने के लिए अपनी मनोभूमि बनाएँ।
हँस-हँस कर किया पाप रो-रोकर भोगना पड़ता हैं। हाथो से लगाई गाँठो को एक दिन दाँतों से खोलना पड़ता है। कष्ट सहकर किया गया तप एक दिन सुख-शांति का कारण बनता है। धीरे-धीरे किया गया अभ्यास और ध्यान एक दिन अवश्य ही फलता है। दृढ संकल्प से किय गय कठोर परिश्रम से दुर्भाग्य अवश्य ही बदलता हैं। 
अंधा वह नही जिसकी आँखे नहीं। वास्तव में अन्धा वह है जो अपने दोषों का अवलोकन नही करता, बल्कि ढकता और छिपाता है।
सबसे बड़ा भ्रम यह है कि जिसके पास जितना ज्ञान हैं वह उसी को सत्य मान लेता हैं। उसी के अनुसार आचरण करता है
हमारी दुर्गति का अर्थ है हमारी दुर्बलताओं का बढ़ जाना।
जो दूसरो के लिए गड्डा खोदता है़ वह एक दिन खुद ही उसमें गिर जाता हैं। जो दुसरो के लिए दीप जलाता हैं। उसके जीवन में उजाला स्वंय हो जाता है।।
‘‘सत्प्रवृतियों का करें, जग में पुण्य प्रसार।
इससे होगा मनुज की, गरिमा का विस्तार।।’’
‘‘यदि विभूतियों का एक अंश, सत्प्रवृतियों में लग जाए।
मिट जाए जग से पीड़ा पतन, खुशहाली छा जाए।।’’
‘‘ऋषि संस्कृति यही सिखाती, हम भी इसका अभ्यास करें।
रखकर विवेक को सर्वोपरि, जीवन का सहज विकास करें।।
जो विकसित करें समझदारी, वे भ्रम में कभी न फँसते है।
बच जाते है भटकावों से, आदर्श उन्हीं में फलते है।।
मानव तो निज भाग्य का, निर्माता है आप ।
ऐसे दृढ विश्वासमय, हो निज क्रियाकलाप।।
श्रेष्ठ बनाँए दूजो को, बने स्वंय उत्कृष्ट।
युग परिवर्तन के लिए, यह है सूत्र विशिष्ट।।
निश्चित ही अपने कर्मो का, अधिकारी मानव होता है।
वैसा ही फलता भाग्य अरे, जो कर्म बीज वह बोता है।।
सब ऋषियों संतों पीरों ने, यह सत्य हमें समझाया है।
जिनने मानी उनकी सलाह, उनने निज भाग्य जगाया है।।
अन्यों को श्रेष्ट बनाना है, तो खुद पहले उत्कृष्ट बने।
यह रीति सनातन अपनाएँ, बन अग्रदूत हम स्वत: चलें।।
यह वातावरण नहीं अच्छा, सब लोग शिकायत करते है।
लेकिन यह कैसे बनता है, इस पर विचार कम करते है।।
हम ही हैं इसके निर्माता, जब यह विश्वास जगा लेंगे ।
शालीन, स्वच्छ, सादा, सुन्दर, हम उसे अवश्य बना लेगें।।
हम और के साथ में, करें न वह व्यवहार।
जिसकों अपने लिए हम, कर न सकें स्वीकार।।
दुर्जन दुनिया में अधिक नहीं, पर सदा संगठित रहते है।
बिखरे बहुसख्यक सज्जन गण, भारी अनीतियाँ सहते है।।
सज्जन भी अगर संगठित हो, दृड़ हो अनीति से लड़ जायें।।
तो अनीति के-दुर्जनता के, इस जग से पाँव उखड़ जायें।
फिर रूचि बदलेगी जन-जन की, सब सृजन कार्य में रस लेगें।।
तब पतन-पराभव से बचकर, हम श्रेष्ट लक्ष्य तक पहुँचेंगे।।
दुर्बुद्धि और दुर्जन ही तो, सब भेद-भाव भड़काते हैं।
वे पड़ोसियों को बहकाकर, आपस में वैर बढ़ाते है।।
हम भेद-भाव के उपर उठ, यदि राष्ट्र भाव जाग्रत कर लें।।
तो आपस में सहकार बढ़ा, अपनी अद्भत उन्नति कर लें।।
भ्रम हमें न भटका पायेंगे, सबमें भार्इचारा होगा।
जब राष्ट्र एक परिवार लगे, तो हर सदस्य प्यारा होगा।।




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