For details read my book "साधना समर " cost Rs 100-
आगरा के पास फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के गाँव अकबरपुर में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा फर्रूखाबाद, उत्तर प्रदेश के गांव नीम करौली में कठिन तप करके स्वयं ही नीम करौली बन गए। उनकी अलौकिक शक्तियां पूरे देश में, यहां तक की विश्व में इतनी अधिक प्रकाशित हुर्इ कि उनका नाम किसी से अनजान न रह गया। पं0 गोविंद वल्लभ पंत, डॉ0 संपूर्णानंद, राष्ट्रपति वी0वी0 गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री रहे के0 एम0 मुंशी, राजा भद्री, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानंदन पंत, अंग्रेज जनरल मकन्ना, देश के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू और भी ऐसे अनेक लोग बाबा के दर्शन के लिए आते रहते थे। बाबा राजा-रंग, अमीर-गरीब, सभी का समान रूप से पीड़ा-निवारण करते थे। उनके उपदेश लोगों को पतन से उबारते और सन्मार्ग-सत्पथ पर चलाते।
आगरा के पास फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के गाँव अकबरपुर में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा फर्रूखाबाद, उत्तर प्रदेश के गांव नीम करौली में कठिन तप करके स्वयं ही नीम करौली बन गए। उनकी अलौकिक शक्तियां पूरे देश में, यहां तक की विश्व में इतनी अधिक प्रकाशित हुर्इ कि उनका नाम किसी से अनजान न रह गया। पं0 गोविंद वल्लभ पंत, डॉ0 संपूर्णानंद, राष्ट्रपति वी0वी0 गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री रहे के0 एम0 मुंशी, राजा भद्री, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानंदन पंत, अंग्रेज जनरल मकन्ना, देश के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू और भी ऐसे अनेक लोग बाबा के दर्शन के लिए आते रहते थे। बाबा राजा-रंग, अमीर-गरीब, सभी का समान रूप से पीड़ा-निवारण करते थे। उनके उपदेश लोगों को पतन से उबारते और सन्मार्ग-सत्पथ पर चलाते।
बाबा के दर्शनों के लिए साधारण गाँवों
के लोगों से लेकर शहरी लोगों, बड़
अफसरों, राजनेताओं का ताँता लगा रहता था, लेकिन बाब बड़े ही अलमस्त, मनमौजी और भाव प्रिय थे। कोर्इ उन्हें
भाव से याद करे तो अनायास ही बिना बुलाए उसके घर पहुँच जाते और यदि किसी के भाव
में कमी रह जाए तो बड़े से बड़े व्यक्तित्व से भी न मिले। एक बार वह गुलजारी लाल
नंदा, जो उस समय देश की राजनीति में
अतिविशिष्ट माने जाते थे,
उनसे भी न मिले थे।
बाबा नीम करौली ने देश के अनेक स्थानों
पर हनुमान मंदिर बनाए। इन हनुमान मंदिरों की श्रंखला में उन्होंने एक मंदिर कानपुर
में भी बनाया, जो पनकी में स्थित है। बाबा द्वारा
बनाए गए हनुमान मंदिरों की विलक्षणता से सर्वजन परिचित हैं। वह स्वयं हनुमान भक्ति
करके हनुमानमय हो गए थे। कॉपी पर राम-नाम लिखना उन्हें प्रिय था। वह कहा करते थे, खाली नहीं करोगे, तो भरेगा कैसे? सूर्य ने क्या कभी अंधकार देखा है? यह हमारे जीवन में संकीर्ण मनोवृतियों
की कालिमा है, जो हमें कमी की अनुभूति कराती है, अन्यथा उस पूर्ण के दरबार में कमी
कहाँ! वह सबको बताया करते थे कि भगवान अपनी प्रकृति में पूर्ण रूप से विद्यमान है।
वे सर्वत्र हैं और कभी भी हमारी आँखों से ओझल नहीं होते। यदि हम उन्हें नहीं देख
सकते तो दोष हमारा है। हम भेददृष्टि से काम लेते हैं। हमारी संकीर्ण मनोवृतियां
हमें इस प्रकार उलझाए रहती हैं कि हम सदा उन्हें भूल जाते हैं।
अभी भी वह ऐसी कुछ बातें भक्तों को बता
रहे थे। उनकी बातें एक पंडित बड़ी ध्यान से सुन रहे थे. उनके मन में आध्यात्मिक साधना के लिए
मार्गदर्शन पाने की कसक जाग उठी, लेकिन
मन की यह बात बाबा से कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अंतर्यामी बाबा उनके मन के
भाव जान गए और सामने खड़े लोगों से बाले- ‘‘अरे
भार्इ! तुम लोग जरा उस पीछे खड़े पंडित जी को हमारे पास आने दो।’’ बाबा की बात सुनकर लोगों ने उन्हें आगे
आने दिया। सामने आने पर बाबा उनसे बोले- ‘‘पं.
जगदेव प्रसाद तिवारी नाम है न तुम्हारा?’’ ‘‘हाँ’’ बस, एक
शब्द कहा उन्होंने। ‘‘तुम गायत्री जप करते हो न?’’ इस सवाल का उत्तर भी उन्होंने अपनी
संक्षिप्त ‘हाँ’ से दिया। तब बाबा ने फिर उनसे पूछा ‘‘अखण्ड ज्योति पत्रिका भी तो पढ़ते हो?’’ अबकी बार वह थोड़ अचरज में पड़े और बोले- ‘‘हाँ बाबा’’।
इस पर बाबा नीम करौली ने कहा- ‘‘तुम गायत्री मंत्र का जप करते हो, अखण्ड ज्योति भी पढ़ते हो, फिर कमी क्या है?’’ फिर उन्होंने स्वयं ही अपने प्रश्न का
उत्तर दिया - ‘‘कमी यह है कि तुम जो करते हो, उसके महत्त्व से परिचित नहीं हो। जो
करते हो उसके महत्व को भी समझो। गायत्री ब्रह्मविद्या का मंत्र है। जो इसे श्रद्धा
व मनोयोगपूर्वक करता है, उसे किसी अन्य साधना की जरूरत नहीं है।
गायत्री-साधना यदि निरंतर होती रहे, तो
आगे के रास्ते स्वयं खुलते हैं। अंतर्यात्रा का पथ स्वयं प्रकाशित होता है। इसलिए
जो कर रहे हो, उसे करते चले जाओ। अविराम, निर्बाध, श्रद्धा-भाव से, दीर्घ
काल तक, फिर तुम देखोगे कि सब कुछ स्वयं प्रकट
हो जाएगा।’’ नीम करौली महाराज जब ये बाते बता रहे
थे, तब बीच में पं0 जगदेव प्रसाद तिवारी ने अपनी शंका
जाहिर करते हुए कहा- ‘‘करते-करते मन में किसी संत का
प्रत्यक्ष मार्गदर्शन पाने की चाहत होती है।’’
इस बात पर बाबा बोले- ‘‘आध्यात्मिक साधनाओं का मार्गदर्शन करने
के लिए तेरे पास अखण्ड ज्योति है न, उसके
लेखों से प्रकाश प्रवाहित होता है, उसी
से तेरा कल्याण होगा। ब्राह्मण हो, साधना
करते हो, फिर भी अखण्ड ज्योति की महिमा से अनजान
हो। अरे! सच को जानो, देखो मैं किसका नाम अपनी कापी में
लिखता हूँ।’’ यह कहते हुए बाबा ने अपनी कापी उन्हें
दिखार्इ, उस कॉपी में राम-राम-राम यही लिखा था।
इतना कहकर उनसे वह धीरे से बोले- ‘‘जिनका
नाम इस कापी में मैं लिखा करता हूँ, वहीं
स्वयं अखण्ड ज्योति लिखते हैं। अगर वह स्वयं को इतना छिपाकर न रखें तो लोग उनकी
चरणधूलि को ताबीज बनाकर पहनने लग जाएंगे, फिर
उनका धरती पर रहकर काम करना कठिन हो जाएगा। तुम साधना करते हो, इसलिए मैंने तुमको सचार्इ बता दी।
अखण्ड ज्योति के प्रति श्रद्धा तुम्हारी चेतना को उनसे जोड़ देगी, फिर सब कुछ स्वत: मिलता रहेगा। मैं जो
कह रहा हूँ, उसे स्वीकारोगे तो अखण्ड ज्योति का
जीवन दर्शन तुम्हें स्वयं जीवन के सत्य स्वरूप का दर्शन करा देगा।’’
Can you please tell from where you got this story? I have read MIRACLES OF LOVE by Ram Das but never came across this episode.
ReplyDeleteJay.ho.neeb.karori.baba
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