पवित्र एवं औषधीय वनस्पति
पीपल - गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है 'वृक्षाणां अश्व्त्थोऽहं' - यानि 'वृक्षों में मैं अश्वत्थ अर्थात पीपल
हूँ'. पीपल का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
इतना अधिक है कि उसे शब्दों में बता पाना कठिन है.
पीपल का पेड़ सर्वाधिक मात्रा में
ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता है और यहाँ तक कि रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी अति न्यून मात्रा में करता है।
विज्ञान में इस प्रक्रिया को क्रासलेसियन एसिड मेटाबोलिज्म के नाम से जाना जाता
है। एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि पीपल के पेड़ से भारी मात्रा में
आयसोप्रिन नामक रासायनिक तत्त्व का उत्सर्जन होता है।यह रसायन वायुमंडल की ओजोन
परत को नियंत्रित करता है। प्रयोग से पता चलता है कि ओजोन परत के विनाश को बचाने
के लिए पीपल के पेड़ों को लगाना एक कारगर समाधान है। पीपल के पेड़ के आसपास का
वातावरण अत्यंत शुद्ध, सात्त्विक एवं स्वच्छ होता है।
दिन में एनएरोविक (वात अनपेक्षी)
श्वसन क्रिया तथा रात में एरोविक (वातापेक्षी) श्वसन क्रिया के कारण चौबीस घण्टे
आक्सीजन देता है। अल्जाइमर के एंजाइम की गतिशीलता रोक सकता है पीपल का पेड़!
आदमी की याददाश्त को लुप्त कर देने
वाली बीमारी अल्जाइमर से जूझ रहे लोगों के लिए चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय की
छात्रा के शोध से उम्मीद की किरण जगी है। शोध में सामने आया है कि अल्जाइमर के
एंजाइम की गतिशीलता को रोकने में पीपल कारगर साबित हो सकता है। पेटेंट की कागज़ी
कार्यवाही पूरी हो चुकी है। इसके बाद अल्जाइमर की नई दवा का रास्ता खुल जाएगा।
विश्वविद्यालय के बायोटेक विभाग ने
पीपल के पेड़ की मेडिसिन प्रॉपर्टी पर शोध किया है। पीपल के तने से लिए गए टिश्यू
में ऐसा तत्त्व खोजने में कामयाबी मिली है, जो
अल्जाइमर रोग के एंजाइम की गतिशीलता को थाम सकता है। 'एसिटाइल कोलिनएस्तरेज' नामक यह एंजाइम अल्जाइमर रोगी के शरीर
में लगातार गतिशील रहता है। पीपल में इस एंजाइम की गतिशीलता रोकने वाले तत्त्व को
खोजा है शोधार्थी अनीता रानी गिल और उनकी गाइड एसोसिएट प्रोफेसर प्रियंका सिवाच
ने।
अनीता रानी गिल |
अनीता ने बताया कि पीपल के तने से एक
सेंटीमीटर लम्बे टिश्यू से लैब में कई पीपल तैयार किये गए। इससे छह महीने में
चार-पांच फुट लम्बे कई पीपल तैयार हो गए। लैब में तैयार किये गए बैक्टीरिया व फंगस
रहित पीपल के टिश्यू से दो तरह के सोर्स बनाये गए। एक, कैलेस कल्चर व दूसरा हेयरी रूट कल्चर।
इन सोर्स का अल्जाइमर के एंजाइम पर इस्तेमाल करके देखा तो आश्चर्यजनक नतीजे सामने आये। पीपल के सोर्स से एंजाइम की
गतिशीलता और वृद्धि पर 50 और इससे भी ज्यादा प्रतिशत रोकने में
कामयाबी मिली। शोध को इस मुकाम तक पहुँचाने में करीब चार साल लगे। सब ठीक रहा तो
अल्जाइमर-रोधी दवा का रास्ता साफ़ हो जाएगा।
डॉक्टर प्रियंका ने बताया की केलेस
कल्चर और हेयरी रूट कल्चर नाम से दोनों शोध का पेटेंट करा दिया गया है। इनका
पेटेंट नंबर क्रमश: 4027/डीईएल/2012 और 4028/डीईएल/2012 है।
इसलिए लैब में तैयार किये पीपल
अनीता का मानना है कि पीपल आस्था से
जुड़ा है, इसलिए इसे काटा नही जा सकता। भारतीय
संस्कृति में पीपल का वृक्ष बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में टिश्यू से लैब
में पीपल तैयार किये गए। आयुर्वेद में पीपल की मेडिसिन प्रॉपर्टी 50 से ज्यादा रोग के निदान में कारगर
बताई गयी है।
तेज़ी से बढ़ रहा है अल्जाइमर
स्मरण शक्ति खत्म होने और सामान्य
उच्चारण में दिक्कत पैदा कर देने वाला यह रोग विश्व में तेज़ी से फैल रहा है। यह
रोग अमूमन 60 साल और इस से ज्यादा आयु में होता है। 65 साल से ज्यादा की उम्र वाले हर दसवें
आदमी में से एक अल्जाइमर से पीड़ित है।
No comments:
Post a Comment