कहते है कि एक प्रतापी राजा थे । एक बार उनको रूनक सूझी कि वो जीवित स्वर्ग में चले जाएँ । ऋषियों के पास गए अपनी इच्छा लेकर । ऋषि वशिष्ठ समेत सभी ने उनकी इच्छा को पूर्ण करता असम्भव बताया । ऋषि विश्वामित्र उन दिनों प्रचण्ड तप में संलग्न थे । उन्होंने राजा की इच्छा को पूर्ण करने का आश्वासन दे दिया । अपने तपोबल से राजा को स्वर्ग की ओर बढ़ा दिया । द्वन्द्व ने देखा कोर्इ जीते जी स्वर्ग की ओर चला आ रहा हैं वो सावधान हो गए कि यह नियमविरूद्ध कार्य नहीं होना चाहिए । जैसे ही राजा स्वर्ग के द्वार पर पहुँचे, इन्द्र ने उन्हें नीचे धकेल दिया । इधर से विश्वामित्र ने अपने नपराित्त् से उन्हें नीचे नहीं आने दिया । बेचारे राजा त्रिशंकु बीच में ही लटके रह गए ।
यही स्थिति आज भारतवासियों की हैं । बन्दरो की भाँति हर बात में वो ूमेज की नकल करते है और कोर्इ न कोर्इ मुसीबत मोल ले लेते हैं । अपनी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ व चिकित्सा पद्धति के छोड़कर ऐलोपेथी दराओं को ।कवचज कर लिया । जिससे भारी स्वास्थ्य संकट पैदा हो गया । आज भारत बहुत सारे रोगों का केन्द्र ;भ्नइद्ध बनता जा रहा है । डायबिटीज व हृदय रोगो की बाढ़ सी आ गयी हैं । विदेशी लोगों की मजबूरी है वहाँ भारत जैसी मूल्यवान जड़ी बूटियाँ नहीं उगती इसलिए उन्हें स्वस्थ रहने के लिए ब्ीमउपबीं लेने पड़ते हैं । बहुत देर बाद हमें होश आया कि हम गलती कर गए । आज बड़ी सख्याँ में लोगों का रूझान पुन: देशी पद्धति की ओर बढ़ रहा हैं ।
अभी भी हम गुलाम मानसिकता से जूझ रहे हैं । अंग्रेजों के शासन काल में उन्हें ैनचपतमत समझता जाता था । आज भी लोग उन्हीं के जैसे वस्त्र पहनकर, उनकी जैसी भाषा बोलकर स्वंय को ैनचपतमत समझते हैं । ॅमेज का डनेपबए ैवदहे व सपिमेजलसम लोगों की पसन्द बनते जा रहे हैं ।
पश्चिमी को हम आसुरी सभ्यता मान सकते हैं । पश्चिम में लोगों को जीवन अंह प्रधान है जबकि भारत देवभूमि होने के कारण यहाँ लोग भाव प्रधान हैं । अहं प्रधान व्यक्ति अपने अहं को तुष्ट करने हेतु खूब मेहनत करता है व शराब कवाब में मजा ढूँढ़ता है । जबकि भाव प्रधान व्यक्ति अपनी भावनाओं के द्वारा ही आनन्दित होता रहता है उसे मजे के लिए किसी ओर साधन की आवश्यकता नहीं होती । परन्तु ॅमेज की नकल करके हम अपनी भावनाओं के वासनाओं में रूपान्तरित करने पर तुले है जोकि अति भयावद्ध हैं ।
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