Saturday, March 2, 2013

छोटी-छोटी परन्तु अति महत्वपूर्ण नियम-I



(1) सूर्य प्रणाम (2) ऊशा पान (3) सूर्योदय से पूर्व स्नान (4) नेत्र प्रक्षालन (5) नीम की दातुन व जीभ की सफार्इ (6) कटु रस का सेवन (7) गुप्त इन्द्रिय सफार्इ (8) यज्ञ में भागीदारी।
1.सूर्य प्रणाम
     क्या हम सूर्य प्रणाम करते हैं? उगते हुए स्वर्णिम सूर्य से बहुत positive energy व प्राण शक्ति (Life Force) निकलती है। यह वैज्ञानिक भी अपने अनेकों प्रयोग से प्रमाणित कर चुके हैं जिनके जीवन में निराशा हो, नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो, ग्रह नक्षत्रों से पीड़ित हो। वो स्वर्णिम सूर्य को प्रणाम करें व नियमित ध्यान करें। स्वर्णिम सूर्य को शास्त्र सविता देवता कहते हैं। इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है, पुराने किए पापों का शमन होता है मन में प्रसन्नता का संचार होता है। शनि देव को भी सूर्य पुत्र कहा गया है अर्थात सविता सभी ग्रहों के सिरमौर माने जाते हैं उनका नमन व ध्यान जीवन में हर प्रकार की सुख शांति समृद्धि लाने वाला है। लोग व्यर्थ में पण्डितों व ज्योतिशियों के चक्कर काट-काट कर धन व समय गंवाते हैं। इस प्रयोग को कम से कम 40 दिन करें अवश्य लाभ होगा। विधि यह है कि जैसे ही सविता देवता प्रकट हो, हाथ मुँह धोकर किसी ऊँचे स्थान (छत आदि पर) खड़े होकर अथवा बैठकर उनके दर्शन करें खुले नेत्रों से उनकी स्वर्णिम आभा निहारें, श्रद्धा भरे अन्त:करण से उन्हें प्रणाम करें ओउम सूर्याय नम:ओउम आदित्याय नम:ओउम भास्कराय नम:।  उनसे प्रार्थना करें -
     ‘‘ओउम विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद भद्रं तन्न आसुव।।
हे सम्पूर्ण विश्व के आदि देव हमारी सब बुरार्इयों को हमसे दूर करें व जो कुछ श्रेष्ठ है वह हमें प्रदान करें।
हे सम्पूर्ण विश्व के आदि देव हमारी सब बुरार्इयों को हमसे दूर करें व जो कुछ श्रेष्ठ है वह हमें प्रदान करें। हे प्रभु हमारे अन्दर आशा, साहस, ज्ञान व तेज का संचार करें व हमें पाप ताप रोग दु:खों से छुड़ाएं।
पाँच बार इस मन्त्र का उच्चारण करने के उपरान्त पाँच गायत्री मन्त्र का जप करें।
     ओउम भूर्भव: स्व: तत्सुवितुरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।
हे प्राणस्वरूप, दु:खनाशक व सुख स्वरूप प्रभु! आपका यह सविता स्वरूप ही वरेण्य वरण करने योग्य है। आपके इस पाप नाशक व देवतुल्य स्वरूप को अन्त:करण में धारण करते हैं। आप हमारे बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
प्र. बिना स्नान खायें क्यों नहीं?

आज के सभ्य व शिक्षित समाज में बिस्तर में ही चाय-बिस्कुट एवं बिना स्नान किये नाश्ता-भोजन करने की आदत-सी पड़ गई है। अत: पाश्चात्य संस्कृति में आकण्ठ डूबे लोग ही प्रश्न करते हैं कि बिना स्नान किये खा लिया तो क्या हुआ?
इसका वैज्ञानिक महत्व है। शरीर विज्ञान कहता है कि जब तक स्वाभाविक क्षुधा अच्छी तरह से जागृत न हो जाए, तब तक हमें भोजन नहीं करना चाहिए। स्नान करने पर शरीर में शीतलता आती है एवं नई स्फूर्ति जागृत होती है। जिससे स्वाभाविक भूख भी जागृत होती है। उस समय किए गए भोजन का रस हमारे शरीर में पुष्टिवर्धक साबित होता है।
स्नान के पूर्व यदि हम कोई वस्तु खाये तो हमारी जठराग्नि उसे पचाने के कार्य में लग जाती है। उसके बाद स्नान करने पर, शरीर के शीतल हो जाने के कारण, उदर की पाचन-शक्ति मन्द हो जायगी। जिसके फलस्वरूप हमारा आन्त्रशोध कमजोर होगा, हमें कब्ज की शिकायत होगी, मलत्याग कठिनता से होगा एवं मनुष्य नाना प्रकार के अन्य रोगों से ग्रस्त हो उठेगा।

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