Thursday, April 25, 2013
Wednesday, April 24, 2013
जनहित में जारी....
आजकल नए बने
ताज एक्सप्रेस वे पर रोजाना गाड़ियों के टायर फटने के मामले सामने आ रहे हैं
जिनमें रोजाना कई लोगों की जानें जा रही हैं.
एक दिन बैठे
बैठे मन में प्रश्न उठा कि आखिर देश की सबसे आधुनिक सड़क पर ही सबसे ज्यादा हादसे क्यूँ हो रहे हैं? और हादसों का तरीका भी केवल एक ही वो भी टायर फटना ही मात्र, ऐसा कोन सी कीलें बिछा दीं सड़क पर हाईवे
बनाने वालों ने?
दिमाग ठहरा खुराफाती सो सोचा आज इसी बात का पता किया जाये. तो
टीम जुट गई इसका पता लगाने में.
अब सुनिए हमारे प्रयोग के बारे में.
सबसे पहले हमनें ठन्डे टायरों का प्रेशर चेक किया और उसको
अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ठीक किया जो कि 25 PSI है. (सभी विकसित देशों की कारों में यही
हवा का दबाव रखा जाता है जबकि हमारे देश में लोग इसके प्रति जागरूक ही नहीं हैं या
फिर ईंधन बचाने के लिए जरुरत से ज्यादा हवा टायर में भरवा लेते हैं जो की 35 से 45 PSI आम बात है).
खैर अब आगे चलते हैं.
खैर अब आगे चलते हैं.
इसके बाद ताज एक्सप्रेस वे पर हम नोएडा की तरफ से चढ़ गए और
गाडी दोडा दी. गाडी की स्पीड हमनें 150 - 180 KM /H रखी. इस रफ़्तार पर गाडी को पोने दो घंटे
दोड़ाने के बाद हम आगरा के पास पहुँच गए थे. आगरा से पहले ही रूककर हमने दोबारा
टायर प्रेशर चेक किया तो यह चोंकाने वाला था. अब टायर प्रेशर था 52 PSI .
अब प्रश्न उठता है की आखिर टायर प्रेशर इतना बढ़ा कैसे सो उसके
लिए हमने थर्मोमीटर को टायर पर लगाया तोटायर का तापमान था 92 .5 डिग्री सेल्सियस.
सारा राज अब खुल चुका था, कि टायरों के सड़क पर घर्षण से तथा
ब्रेकों की रगड़ से पैदा हुई गर्मी से टायर के अन्दर की हवा फ़ैल गई जिससे टायर के
अन्दर हवा का दबाव इतना अधिक बढ़ गया. चूँकि हमारे टायरों में हवा पहले ही
अंतरिष्ट्रीय मानकों के अनुरूप थी सो वो फटने से बच गए. लेकिन जिन टायरों में हवा
का दबाव पहले से ही अधिक (35 -45 PSI) होता है या जिन टायरों में कट लगे होते
हैं उनके फटने की संभावना अत्यधिक होती है.
अत : ताज एक्सप्रेस वे पर जाने से पहले अपने टायरों का दबाव सही कर लें और सुरक्षित सफ़र का आनंद लें. मेरी एक्सप्रेस वे अथोरिटी से भी येविनती है के वो भी वाहन चालकों को जागरूक करें ताकि यह सफ़र अंतिम सफ़र न बने.
अत : ताज एक्सप्रेस वे पर जाने से पहले अपने टायरों का दबाव सही कर लें और सुरक्षित सफ़र का आनंद लें. मेरी एक्सप्रेस वे अथोरिटी से भी येविनती है के वो भी वाहन चालकों को जागरूक करें ताकि यह सफ़र अंतिम सफ़र न बने.
देव और दानव में अन्तर
स निर्जित्य पुरीं लंकां
श्रेष्ठां तां कामरूपिणीम्।
विक्रमेण महातेजा हनूमान् कपिसत्त्ाम:।।
‘‘अर्थ- कपिश्रेष्ठ महातेजस्वी
हनुमान ने पराक्रम से कामरूपिणी लंका को जीता। ‘‘ कामवासना
रूपी लंका देखने में बड़ी लुभावनी स्वर्ण-कान्त, नयनाभिराम
मालूम देती है। उसे जीतना कठिन प्रतीत होता है। इस कामवासना रूपी स्वर्ण लंका में
असुर कुल आन्नदपूर्वक निवास करता है। सब असुर आंतरिक शत्रु, तब तक सुरक्षित है जब तक उनकी कामवासना रूपी लंका का दुर्ग सुरक्षित
है। इस रहस्य को समझते हुए हनुमान जी ने इस असुरपुरी का जीतना आवश्यक समझा और अपने
पराक्रम से, ब्रह्मचर्य से, शील, संयम एवं सदाचार से उस काम वासनारूपी लंका को जीता। असुरता को परास्त
करना है तो काम वासना को जीतना आवश्यक है। यह विजये ब्रह्मचर्य द्वारा ही संभव है।
हनुमान जी की भाँति हम सबको वासना रूपिणी लंका जीतने का प्रयत्न करना चाहिए।
धन्या देवा: सगन्धर्वा: सिद्धाश्य ये महर्षय:।
मम पश्यन्ति ये वीरं रामं राजीवलोचनय:।।
अर्थ- देवता, गन्धर्व
सिद्ध तथा ऋषिगण धन्य है, जो मेरे
राजीव-लोचन वीर राम को देखते है। वे लोग धन्य है जो परमात्मा को देखते है, परमात्मा सबके निकट है, सबके
भीतर है, चारों और है, उससे एक
इंच भूमि भी खाली नहीं है, फिर भी
माया ग्रस्त लोग उसे देख नहीं पाते, समझते है
कि न जाने परमात्मा मुझसे कितनी दूर है, न जाने
उसे प्राप्त करना, उसके
दर्शन करना कितना कठिन है? वे अपनी
अंधी आँखों से इश्वर को नहीं देखते और बुराईयों में डूबे रहते है। जिनके नेत्र खुल
गए है, उनको अपने भीतर और चारों ओर जर्रे-जर्रे में परमात्मा के दर्शन होते
है। इस दिव्य झाँकी से उनका अन्त:करण तृप्त हो जाता है। और सात्विक कर्म, स्वभावों की कस्तुरी जैसी महक उनके भीतर उठती रहती है। एसें
दिव्यदश्री व्यक्तियों को देव गन्धर्व, सद्धि, ऋषि की पदवी देते हुए इस श्लोक में उनकी सराहना की है और उन्हें धन्य
कहा गया है।
हितं महार्थ मृर्द हेतु-संहितं व्यतीत कालायति संप्रतिक्षमम्।
निशम्य यद्वाक्यमुपस्थितज्वर: प्रसंगवानुत्त्रमेतदब्रवी त।।
अर्थ- तीनों कालों में हितकारी, सप्रमाण, कोमल और अर्थयुक्त विभीषण के वचन सुनकर रावण को बड़ा क्रोध आया और
उसने कहा। ‘‘ इन
व्यक्तियों को इस बात का प्रयोजन नहीं रहता कि क्या उचित है क्या अनुचित? क्या कल्याणकर है क्या अकल्याणकर? उन्हें
तो अपन अंहकार, अपना
स्वार्थ सर्वोपरि प्रतीत होता है उनकी जो अपनी सनक होती है उसके अतिरिक्त और किसी
बात को वे सुनना नहीं चाहते। रावण पर विभीषण के हितकारी,सप्रमाण कोमल और अर्थयुक्त
वचनों का कुछ अच्छा प्रभाव नहीं हुआ वरन् उल्टा कुपित होकर प्रत्युत्तर देने लगा।
‘‘अन्धें के आगे रोवे अपने
नयना खोवे ‘‘ की
लोकोक्ति को इस श्लोक में नीति वचन के रूप में समझाया है। जो लोग मदोन्मत्ता हो
रहे है वे दूसरों की उचित बात को भी नहीं समझते। उनको समझाने का दूसरा रास्ता है।
धर्मात्मा राक्षसश्रेष्ठ: संप्राप्तो·यं विभीषण:।
लंकैश्वर्यमिदं श्रीमान्ध्रुवं प्राप्नोत्यकटंकम्।।
‘‘अर्थ-राक्षस श्रेष्ठ, धर्मात्मा विभीषण आ रहे है, वे ही
लंका के शत्रुहीन राज्य का उपयोग करगे। ‘‘ जो चाहे शासक परिवार का हो, वैभवयुक्त
हो, राज्य का हो, आमतौर पर
उसके विरोधी बहुत रहते है। परन्तु वे लोग इसके अपवाद रहते है, जो धर्मात्मा है, जिनका
दृष्टि कोण निष्पक्ष है, जो
उतर्दायितव नेतृत्व, शासन और
न्याय की बागडोर अपने हाथ में रखते हुए भी किसी के शत्रु नहीं बनते। विभीषण की
भाँति न्यायपूर्ण दृष्टि रखकर हम सर्वप्रिय रह सकते है।
यो वजपाताशनि संनिपातान्न चुक्षुभे नापि चचाल राजा।
स रामबाणाभिहतो भृशातश्चचाल चापं च मुमोच वीर:
अर्थ-’’जा रावण वज्रपात तथा अग्नि के प्रहार से विचलित नहीं हुआ था वह राम
के बाणों से आहत होकर बहुत दुखी हुआ और उसने बाण चलाये।’’ जो लोग बड़े सहासी और लड़ाकू और योद्धा होते है, ससारिक कठिनायों की कुछ परवाह नहीं करते। कठिन प्रहार सहन करके भी
अपना प्रराक्रम प्रदर्शित करते है। उन वीर प्रकृति के लोगों को भी राम के बाणों से, अन्तरात्मा के शाप से व्यथित होना पड़ता है। कुचली हुर्इ आत्मा जब
क्रन्दन करती है, जीवन धन
को बुरी तरह बर्बाद करने के लिए कुबुद्धि को शाप देती है तो अन्तस्तल में हाहाकार
मच जाता है। उस आत्म-ताड़ना से बड़े-बड़े पाषाण हृदय भी विचलित हो जाते है। अपने
बाहुबल से लोग कमजोरों को सताते है और उनको लुट कर, परास्त
कर अपनी विजयश्री पर अभिमान करते है, छोटे-मोटे
प्रराक्रम पर उन्हें बड़ा अभिमान रहता है। पर पाप के दण्ड स्वरूप कोई दैवी प्रहार
उन पर होता है तो उनके होश गुम हो जाते है। अहंकारीयों को याद रखना चाहिए कि उनसे
भी बलवान सत्ता
मौजूद है। कमजोर को सताया जा सकता है पर कमजोर की हाय का मुकाबला
करना कठिन है, वह
बड़े-बड़ों की एठ को सीधा कर देती है। इसलिये हमें इश्व्रयी कोष का और दैवी दण्ड
का ध्यान रखते हुए अपने आचरण को ठिक रखना चाहिये।
यस्य विक्रममासाद्य राक्षसा निधनं गता:।
तं मन्ये राघवं वीरं नारायणमपातकम्।।
अर्थ-’’जिसके पराक्रम से राक्षसों की मृत्यु हुई , उस
निष्कलमष वीर राम को धन्य है। ‘‘
उस वीर पुरूष का पराक्रम धन्य है, जो स्वयं
निष्पाप रहता है और कषाय-कल्मषों को मार भगाता है। स्वार्थ के लिए बहुत लोग
पराक्रम दिखाते है, पराक्रम
करने के लोभ से अहंकारग्रसत हो जाते है। ऐसा तो साधारण व्यक्तियों में भी देखा
जाता है, पर धन्य है वे जो अपने पराक्रम का उपयोग केवल असुरत्व विनाश के लिए
करते है और उस पराक्रम का तनिक भी दुरूपयोग न करके अपने को जरा भी पाप-पंक में
गिरने नहीं देते। पराक्रम और की यही बात श्रेष्ट है।
न ते ददृशिरे रामं दहन्तमरिवाहिनीम्।
मोहिता: परमास्त्रेण गान्धर्वेण महात्मना।।
अर्थ-’’ महात्मा
राम ने दिव्य गन्धर्वास्त्र के द्वारा राक्षसों को मोहित कर दिया था, इसी से वे सेना को नष्ट करने वाले राम को नहीं देख सकते थे।’’ अज्ञानियों की बुद्धि ऐसी भ्रम विमोहिता होती है कि उन्हें यह सुझ
नहीं पड़ता कि उनकी सेना का संहार कौन कर रहा है? उन्हें
कष्ट कोन दे रहा है? उन्हें
इसका कारण ज्ञात ही नहीं होता। समझते है कि हमारे शत्रु हमें हानि पहुँचा रहे है, पर असल में बात यह है कि अपनी असत् प्रणाली ही फलित होकर विपत्ति का
कारण बन जाती है। इश्वारयी प्रकिया के द्वारा वे पाप
ही कष्ट बन जाते है। अज्ञानी लोग कष्टों का कारण सांसारिक परिस्थितियों को समझते
है, पर वस्तुत: स्थिति यह है कि उनका पाप ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता
है। अदृश्य इश्वर उन पापों को ही गन्धर्व-बाण की तरह उन पर फेंकता है और उससे वे
आहत होते है।
प्रणम्य देवताभ्यश्च ब्राह्मणेभ्यश्च मैधिली।
बद्धांजलिपुटा चेदमुवाचाग्नि-समीपत:।।
अर्थ-’’ देवता और
ब्राह्मणों को प्रणाम करके सीता ने हाथ जोड़ कर अग्नि के समीप जाकर कहा।’’ सच्ची आत्मायें किसी बात को प्रकट करने से पूर्व देव और ब्राह्मणों
का श्रद्धापूर्वक ध्यान रखती है, अर्थात्
वे यह सोचती है कि इस कथन के संबंध में श्रेष्ठ लोग कहेगें? चाहे दुनियाँ भर के मुर्ख लोग किसी बात को पसन्द करें पर यदि थोड़े
से देव और ब्राह्मण अर्थात् श्रेष्ट पुरूष उसे त्याज्य ठहाराते है। तो वह कार्य
सच्ची आत्माओं के लिए त्याज्य ही होगा। दूसरे सतोगुणी अन्त:करण वाले व्यक्ति चाहे
वैभव में कितने ही बड़े क्यों न हो जाए, ब्रह्म-कर्मा
उच्च चरित्र वाले व्यक्तियों के लिए वे सदा ही झुकते है ।
सीता ने अग्नि के समीप जाकर कहा। हमें जो कुछ कहना हो तो अन्त:करण
में निवास करने वाली ज्योति के समक्ष उपस्थित होकर कहना चाहिए। छल, कपट, असत्य की
वाणी उन्हीं के मुख से निकलती है जो इश्वर से दूर रहते है। अग्नि के समीप जाकर, अन्त:ज्योति के समक्ष उपस्थित होकर यदि हम अपना मुख खोंले, वाणी से उच्चारण करें तो सदा सत्य ही निकलेगा।
(From Gayatri Mahavigyan Part II, Shri Ram)
Tuesday, April 23, 2013
गाय का महत्व
गाय के दूध, घृत, दधी, गोमूत्र और गोबर के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार होता है। पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।
इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है। गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।
गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।
गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।
चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।
गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है।
यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है।
अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है। गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।
गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।
गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।
चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।
गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है।
यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है।
अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
तुलसी (Tulsi), मुलेठी और सौंफ के गुण-लाभ
तुलसी (Tulsi)
तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की
शोभा नहीं बनता। घरों तथा मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है।
धार्मिक दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य
रक्षक के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
तुलसी का पौधा |
आज के जमाने में घरों में मनीप्लांट या
अन्य सुन्दर सजावटी पौधे लगाये जाते हैं, वहीं
तुलसी का पौधा भी जरूर नजर आता है। दरअसल, हम
सभी जानते हैं कि तुलसी का पौधा लगा कर कई बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके
रख-रखाव में भी विशेष परिश्रम नहीं करनी पड़ती। इसके पौधे के पास जाने से इससे
स्पर्श हुई हवा से ही कई परेशानियां दूर हो जाती हैं।
स्पर्श और गंध में जादू
इसकी गंध युक्त हवा जहां-जहां जाती है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है।
इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर
पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते
समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है।
वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन
श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान के लिए श्वेत
के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय (हल्का कालापन)
लिये होते हैं।
काले पत्ते वाली तुलसी
कुछ विज्ञान काले पत्ते वाली तुलसी को
औषधीय गुणों में उत्तम मानते हैं तो कुछ दोनों को ही सामान्य गुण वाली मानते हैं।
इसके पत्ते मूल, बीज, जड़ तथा इसकी लकड़ी सभी उपयोगी होती है। इसके पत्तों की रस की मात्र
बड़ों के लिए दो तोला (लगभग तीन चम्मच) तथा बीजों का चूर्ण एक से दो ग्राम की
मात्रा में लिया जाता है।
औषधीय गुणों में यह हृदय को बल देने
वाली, भूख बढ़ाने वाली, वायु, कफ, खांसी-हिचकी, उल्टी, कुष्ठ (कोढ़),
रक्त विकार, अपस्भार हिस्टीरीया और सभी प्रकार के
बुखारों में उपयोगी है।
जीवाणुओं को नष्ट करता है
तुलसी में एक उड़नशील तेल होता है, जो हवा में मिलकर मलेरिया बुखार फैलाने
वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है। विद्वानों का मत है कि तुलसी के पत्तों के दो तोले
रस में तीन माशे काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीने से मलेरिया में बहुत लाभ होता
है।
और भी हैं औषधीय गुण
इसके पत्ते चाय के साथ या अनाज उबाल कर
पिलाने से छाती की सर्दी में लाभ होता है। सर्दी के कारण जमा कफ बाहर निकल जाता है
जिससे छाती के दर्द में आराम मिलता है।
बढ़े हुए कफ में इस का रस शहद में
मिलाकर देना लाभकारी है। पुराने बुखार में इसके पत्तों का रस सारे शरीर पर मलने से
लाभ होता है। आंतों में छिपे कीड़ों के लिये पत्तों का चूर्ण सेवन करना हितकर है।
उल्टी में इसके पत्तों का रस और अदरख का रस मिला कर पिलाने से लाभ होता है। पेट
साफ होता है।
दाद हो तो इसका रस लगाने से फायदा होता
है। पुराना घाव हो तो इसके रस से घाव धोने से संक्रमण नहीं होता, उसमें कीड़े नहीं पड़ते, दुगर्न्ध दूर होती है। घाव भरता है।
इसका पाचांग फल-फूल पत्ते तना जड़ का
चूर्ण बना कर नीबू के रस में घोल कर लगाने से दाद खाज एक्जिमा एवं अन्य चर्म रोगों
में लाभकारी है।
शरीर के सफेद दाग, मुंह पर कील-मुहांसे, झाई पर इसका रस लगाना लाभकारी है। सांप
काटे व्यक्ति को एक से दो मुट्ठी तुलसी के पत्ते चबवा दिये जाएं तो सांप का जहर
मिट जाएगा। पत्ते खिलाने के साथ इसकी जड़ का चूर्ण मक्खन में मिला सांप काटी जगह
पर लेप करना हितकर है। इसकी पहचान यह है कि लेप करते समय इसका रंग सफेद होगा लेकिन
जैसे-जैसे जहर इस लेप से कम होगा, लेप
का रंग काला होता जाएगा। तभी तुरन्त उस लेप को हटा दूसरा लेप लगा देना चाहिये। जब
तक लेप का रंग काला होना बंद हो जाए तो समझना चाहिये ये जहर का असर खत्म हो गया।
बिच्छू या ततैया, बर्र आदि के डंक मारने पर तुलसी का रस
लगाने से और पिलाने से दर्द दूर होता है।
खांसी, श्वास में तुलसी के पत्तों का रस वासा के पत्तों का रस एक से दो
चम्मच मिला कर पीने से लाभ होता है। बल पौरुष बढ़ाने, शरीर को बलवान बनाने में तुलसी बीज का
चूर्ण चमत्कारी है। यह बलवर्धक, शीघ्र
पतन व नपुंसकता नाशक और पौष्टिक होता है। इसके सेवन से असमय वृद्धा अवस्था नहीं
आती, शरीर बलवान चेहरा कान्तिमान होता है।
बच्चों के लिवर की कमजोरी में इसका
काढ़ा पिलाना बहुत लाभकारी है। कान के दर्द में इसके पत्तों का रस गर्म कर कान में
टपकाने से दर्द में चैन मिलता है।
इसकी मंजरी (फूल) सौंठ, प्याज रस और शहद मिलाकर चाटने से सूखी
खांसी और दमा में लाभ होता है। इसे पत्तों का चूर्ण या मंजरी का चूर्ण सूंघने से
जुकाम (सायनोसायटिस) नाक की दुर्गन्ध दूर होती है तथा मस्तक के कीड़े नष्ट होते
हैं।
दांत दर्द में तुलसी के पत्ते तथा काली
मिर्च साथ पीस कर गोली बना कर खाने से लाभ होता है। तुलसी के पत्ते और जीरा मिलाकर
पीस कर शहद से लेने से मरोड़ और दस्त में लाभ होता है।
मुलेठी के गुण
मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी
के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद
है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे यष्टिमधु भी कहा जाता
है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार
एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की
जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। इसका औषधि के
रूप में प्रयोग बहुत पहले से होता आया है। मुलेठी पेट के रोग, सांस संबंधी रोग, स्तन रोग, योनिगत रोगों को दूर करता है। ताजी
मुलेठी में पचास प्रतिशत जल होता है, जो
सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत ही शेष रह जाता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण
इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है। आइए हम आपको मुलेठी के
गुणों के बारे में बताते हैं।
मुलेठी के गुण -
मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से
कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा
गले की सूजन ठीक होती है।
अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्यास शांत होगी।
गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्छे स्वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।
मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से स्त्रियां, अपनी, योनि, सेक्स की भावना, सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।
मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्त करती है, इससे पेट के घाव जल्दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्तेमाल करना चाहिए।
मुलेठी पेट के अल्सर के लिए फायदेमंद
है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर
में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव
डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।
खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।
हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।
मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है। -- (आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति)
सौंफ के लाभ
सौंफ में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं, जिनका सेवन करने से स्वास्थ्य को
फायदा होता है। सौंफ हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद होती है। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, आयरन, पोटैशियम जैसे तत्व पाये जाते हैं।
सौंफ का फल बीज के रूप में होता है और इसके बीज को प्रयोग किया जाता है। पेट की
समस्याओं के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। आइए जानते हैं सौंफ खाना स्वास्थ्य
के लिए कितना फायदेमंद हो सकता है।
सौंफ खाने से पेट और कब्ज की शिकायत
नहीं होती। सौंफ को मिश्री या चीनी के साथ पीसकर चूर्ण बना लीजिए, रात को सोते वक्त लगभग 5 ग्राम चूर्ण को हल्केस गुनगने पानी के
साथ सेवन कीजिए। पेट की समस्या नहीं होगी व गैस व कब्ज दूर होगा।
आंखों की रोशनी सौंफ का सेवन करके
बढ़ाया जा सकता है। सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा
सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लीजिए। इससे आंखों की रोशनी बढती है।
डायरिया होने पर सौंफ खाना चाहिए। सौंफ
को बेल के गूदे के साथ सुबह-शाम चबाने से अजीर्ण समाप्त होता है और अतिसार में
फायदा होता है।
खाने के बाद सौंफ का सेवन करने से खाना
अच्छे से पचता है। सौंफ, जीरा व काला नमक मिलाकर चूर्ण बना
लीजिए। खाने के बाद हल्के गुनगुने पानी के साथ इस चूर्ण को लीजिए, यह उत्तम पाचक चूर्ण है।
खांसी होने पर सौंफ बहुत फायदा करता
है। सौंफ के 10 ग्राम अर्क को शहद में मिलाकर लीजिए, इससे खांसी आना बंद हो जाएगा।
यदि आपको पेट में दर्द होता है तो भुनी
हुई सौंफ चबाइए इससे आपको आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए। इससे गर्मी
शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।
यदि आपको खट्टी डकारें आ रही हों तो
थोड़ी सी सौंफ पानी में उबालकर मिश्री डालकर पीजिए। दो-तीन बार प्रयोग करने से
आराम मिल जाएगा।
हाथ-पांव में जलन होने की शिकायत होने
पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट-छानकर, मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात 5 से 6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही
दिनों में आराम हो जाता है।
अगर गले में खराश हो जाए तो सौंफ चबाना
चाहिए। सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला भी साफ हो जाता है।
रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून
साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा में चमक आती है।
पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च
भारत के कई
वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या
हैं | पेप्सी और कोका
कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये फॉर्मूला टॉप सेक्रेट है, ये बताया नहीं जा
सकता | लेकिन आज के युग
में कोई भी सेक्रेट को सेक्रेट बना के
नहीं रखा जा सकता | तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, तो वैज्ञानिको का कहना है इसमे कुल 21 तरह के जहरीले कैमिकल मिलाये जाते हैं ! इसमें पहला जहर जो मिला होता है - सोडियम मोनो ग्लूटामेट, और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने
वाला रसायन है, फिर दूसरा जहर है - पोटैसियम सोरबेट - ये भी कैंसर करने वाला है, तीसरा जहर है - ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल
(BVO) - ये भी कैंसर करता है | चौथा जहर है - मिथाइल बेन्जीन - ये किडनी
को ख़राब करता है, पाँचवा जहर है - सोडियम बेन्जोईट - ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है, फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है - एंडोसल्फान
- ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है ऐसे करते करते
इस में कुल 21 तरह के जहर मिलये जाते हैं !
ये 21 तरह के जहर तो एक तरफ है और हमारे देश के पढ़े लिखे लोगो के दिमाग का हाल देखिये -बचपन से उन्हे किताबों मे पढ़ाया जाता है ! की मनुष्य को प्राण वायु आक्सीजन अंदर लेनी चाहिए और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलनी चाहिए ये जानने के बावजूद भी गट गट कर उसे पे रहे हैं !और पीते ही एक दम नाक मे जलन होती और वो सीधा दिमाग तक जाती है !और फिर दूसरा घूट भरते है गट गट गट !और हमारा दिमाग इतना गुलाम हो गया है ! आज हम किसी बिना coke pepsi के जहर के किसी भी शादी विवाह पार्टी के बारे मे सोचते भी नही !कार्बन डाईऑक्साइड - जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को "कार्बोनेटेड वाटर" कहा जाता है | और इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते |
पहले अमीर खान ये जहर बिकवाता था अब उसका भांजा बिकवाता है ! अमिताभ बच्चन,शरूखान ,रितिक रोशन लगभग सबने इस कंपनी का जहर भारत मे बिकवाया है !क्यूंकि इनके लिए देश से बड़ा पैसा है !
पूरी क्रिकेट टीम इस दोनों कंपनियो ने खरीद रखी है ! और हमारी क्रिकेट टीम की कप्तान धोनी जब नय नय आये थे! तब मीडिया मे ऐसे खबरे आती थी ! रोज 2 लीटर दूध पीते हैं धोनी ! ये दूध पीकर धोनी बनने वाला धोनी आज पूरे भारत को पेप्सी का जहर बेच रहा है ! और एक बात ध्यान दे जब भी क्रिकेट मैच की दौरान water break होती है तब इनमे से कोई खिलाड़ी pepsi coke क्यूँ नहीं पीता ??? ?? क्यूँ कि ये सब जानते है ये जहर है ! इन्हे बस ये देश वासियो को पिलाना है !
ज्यादातर लोगों से पूछिये कि "आप ये
सब क्यों पीते हैं ?" तो कहते हैं कि "ये बहुत अच्छी
क्वालिटी का है" | अब पूछिये कि "अच्छी क्वालिटी का क्यों है" तो कहते
हैं कि "अमेरिका का है" | और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं |
तो ऐसे लोगों को ये जानकारी दे दूँ कि
अमेरिका की एक संस्था है FDA (Food and Drug Administration) और भारत में भी ऐसी ही एक संस्था है, उन दोनों के दस्तावेजों के आधार पर मैं
बता रहा हूँ कि, अमेरिका में जो पेप्सी और कोका कोला बिकता है और भारत में जो
पेप्सी-कोक बिक रहा है, तो भारत में बिकने वाला पेप्सी-कोक, अमेरिका में बिकने वाले पेप्सी-कोक से 40 गुना ज्यादा जहरीला होता है, सुना आपने ? 40 गुना, मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूँ | और हमारे शरीर की एक क्षमता होती है जहर
को बाहर निकालने की, और उस क्षमता से 400 गुना ज्यादा जहरीला है, भारत में बिकने वाला पेप्सी और कोक | तो सोचिए बेचारी आपकी किडनी का क्या हाल
होता होगा !जहर को बाहर निकालने के लिए !ये है पेप्सी-कोक की क्वालिटी, और वैज्ञानिकों का कहना है कि जो ये
पेप्सी-कोक पिएगा उनको कैंसर, डाईबिटिज, ओस्टियोपोरोसिस, ओस्टोपिनिया, मोटापा, दाँत गलने जैसी 48 बीमारियाँ होगी |
पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ - स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं, आपने सुना होगा (ठंडा मतलब टाइलेट कालीनर )तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं,देश के पढ़े लिखे मूर्ख लोग समझते है कि ये बात किसी ने ऐसे ही बना दी है !
पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ - स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं, आपने सुना होगा (ठंडा मतलब टाइलेट कालीनर )तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं,देश के पढ़े लिखे मूर्ख लोग समझते है कि ये बात किसी ने ऐसे ही बना दी है !
इसके पीछे तथ्य है, ध्यान से पढ़े !तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर harpic और पेप्सी-कोक की Ph value एक ही है | मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास
करता हूँ | Ph एक इकाई होती है जो acid की मात्रा बताने का काम करती है !और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है | शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है ! और (7 Ph) को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है, और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या
सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते जितना acid आप मिलाते जाएंगे ये मात्रा कम होती जाती
है | जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में
डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा | इस्तेमाल कर के देखिएगा |
और हम लोगो का हाल ये है ! घर मे मेहमान
को आती ये जहर उसके आगे करते है ! दोस्तो हमारी महान भारतीय संस्कृति मे कहा गया
है ! अतिथि देवो भव ! मेहमान भगवान का रूप है ! और आप उसे टॉइलेट साफ पीला रहे हैं
!!
अंत मे राजीव भाई कहते हैं ! कि देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा इस जहर को पीता ! और नपुंसकता कि बीमारी सबसे ज्यादा ये जहर पीकर हो रही है ! और कहीं न कहीं मुझे लगता है ! ये pepsi coke पूरी देश पूरी जवान पीढ़ी को खत्म कर देगा ! इस लिए हम सबको मिलकर स्कूलों कालेजो मे जा जा कर बच्चो को समझना चाहिए ! राजीव भाई जा कहना है ! आप बस स्कूल कालेजो मे जाते ही उनके सामने इस pepsi coke से वहाँ का टाइलेट साफ कर के दिखा दी जीए ! एक मिनट ही वो मान जाएंगे !
और बच्चे अगर मान गये तो उनके घर वाले खुद पर खुद मान जाएंगे ! वो एक कहावत हैं न son is a father of father ! बच्चा बाप का बाप होता है ! तो बच्चो को समझाये ! बच्चे ये जहर छोड़े बड़े छोड़े और इस दोनों अमेरीकन कंपनियो को अपने देश भगाये ! जैसे हमने east india company को भगाया था !!
अंत मे राजीव भाई कहते हैं ! कि देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा इस जहर को पीता ! और नपुंसकता कि बीमारी सबसे ज्यादा ये जहर पीकर हो रही है ! और कहीं न कहीं मुझे लगता है ! ये pepsi coke पूरी देश पूरी जवान पीढ़ी को खत्म कर देगा ! इस लिए हम सबको मिलकर स्कूलों कालेजो मे जा जा कर बच्चो को समझना चाहिए ! राजीव भाई जा कहना है ! आप बस स्कूल कालेजो मे जाते ही उनके सामने इस pepsi coke से वहाँ का टाइलेट साफ कर के दिखा दी जीए ! एक मिनट ही वो मान जाएंगे !
और बच्चे अगर मान गये तो उनके घर वाले खुद पर खुद मान जाएंगे ! वो एक कहावत हैं न son is a father of father ! बच्चा बाप का बाप होता है ! तो बच्चो को समझाये ! बच्चे ये जहर छोड़े बड़े छोड़े और इस दोनों अमेरीकन कंपनियो को अपने देश भगाये ! जैसे हमने east india company को भगाया था !!
वन्देमातरम !!!!!!!!!!
From : (Rajiv Dixit Facebook)
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