Thursday, April 11, 2013

समस्या कहीं तो समाधान कहीं


यह लेख वतस्तुत: भारत की जनता के लिए लिखा गया है। भारत की जनता का रहन-सहन, चाल-चलन, चिन्तन आचरण सब कुछ बिगड़ता जा रहा है। उन्होंने अपने पुरातन सूत्रों को ताक पर रखकर पश्चिम के खराब तौर-तरीकों को अपनाना प्रारम्भ कर दिया है। पश्चिम में अधिकांश जगह जलवायु ठण्डी है, चेतना की स्थिति कम संवेदनशील है। यदि हम उसका अन्धानुकरण करेंगे तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।
व्यक्ति दिनोंदिन समस्याओं से ग्रस्त होता जा रहा है परन्तु समाधान ढूँढता है ज्योतिषियों व पण्डितों के पास। एक बार एक महिला अपनी बेटी को लेकर मेरे पास आयी। बेटी को कुछ नर्वस सिस्टम से सम्बन्धित रोग परेशान कर रहा था। कहने लगी कि हमने सब चिकित्सकों, ज्योतिषियों से इलाज कराया पर रोग काबू नहीं आया। मैं लड़की व माँ से उनकी रुचियों व दिनचर्या के बारे में छानबीन करने लगा। एक घण्टे के भीतर लड़की के पास कर्इ फोनकाल आयी। मैंने पूछा कि वह कितने मोबाइल रखती है उसने उतर दिया - चार। उसकी हर जेब में एक मोबाइल था। उसने बताया कि उसे जन्मदिन पर ये मोबाइल उसके सम्बन्धियों ने भेंट दिये हैं।
मैंने उसे बड़े सरल से पाँच समाधान दिए।
                     1.         सर्वप्रथम मोबाइल एक वर्ष के लिए कोर्इ न रखें।
                     2.         प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें व उगते सूर्य को प्रणाम करें।
                     3.         प्रतिदिन आधा घण्टा आसन प्राणायाम ध्यान करें।
                     4.         अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करें।
                     5.         पन्द्रह दिन में एक बार अस्वाद-व्रत करें।
ऐसा करने वह तीन माह में स्वस्थ हो गयी। उसकी माता जी हजारों रूपए व समय बरबाद कर चुकी थी। अनेक प्रकार के ग्रह-शान्ति व ज्योतिष उपाय कर चुकी थी पर समस्या सुलझ नहीं रही थी।
लेखक ज्योतिष व कर्मकाण्ड का विरोधी नहीं है। परन्तु कठिनार्इ यह है कि हम लोग अनेक प्रकार के एच्छिक व अनैच्छिक विषों के शिकार बनते चले जा रहे हैं जो हमारी समस्याओं के मूलभूत कारण हैं। यदि हमने इन कारणों को दूर न किया तो हमारी समस्याएँ बढ़ती चली जाएंगी।
क्या कोर्इ ज्योतिष कर्मकाण्ड विष के प्रभाव को समाप्त करने में सक्षम है। हर विद्या की अपनी एक सीमा होती है। उस सीमा के भीतर ही उससे सहायता ली जा सकती है। सोमनाथ के मन्दिर पर गजनवी के आक्रमण के समय तान्त्रिकों ने आश्वासन दिया कि उनका तन्त्र गजनवी की सेना का सामना कर लेगा, जो कि मूर्खतापूर्ण बात थी। तन्त्र से दो चार दस व्यक्तियों का सामना हो सकता था, हजारों की सेना का नहीं।
हमें हमारी समस्याओं से निजात पाने के लिए अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम पैदा करना होगा। उनके मौलिक सूत्रों को जीवन में अपनाना होगा। विशेषकर ब्रह्मचर्य आश्रम की दृढ़ता व महता पर ध्यान देना होगा। अन्यथा व्यक्ति के जीवन को मजबूत आधार कहाँ से मिल पाएगा। विद्यालयों, महाविद्यालयों में लड़के-लड़कियों के बीच बढ़ती घनिष्टता को रोकना आवश्यक है। लड़कों व लड़कियों के Sections अलग-अलग रखने चाहिएं जिससे उनके interactions कम से कम हो सकें। Co-education वाले सिस्टम को रोकने का प्रयास करना चाहिए। लड़कियों के ड्रेसस को अनुशासित करने की बहुत आवश्यकता है। आज तकनीकी कॉलेजों में लड़कियाँ पार्टियों में खुले आम ​ड्रिंक करने लगी हैं। मात्र 10-12 वर्ष के अन्दर-अन्दर नारी जाति ने सब मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ाकर रख दी हैं।
उनकी मौलिक प्रवृति ही बदलती जा रही है। लज्जा, मर्यादा व शालीनता नारी के आभूषण माने जाते रहे हैं। परन्तु देखा-देखी यह सब कुछ पिछड़ेपन के प्रतीक समझे जाने लगे हैं। कैसे नारी जाति अपनी सन्तानों को श्रेष्ठ चरित्र दे पाएगी यह ठीक प्रत्येक संस्कृति-प्रेमी के भीतर कचोटती है। अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्र को प्रेम करने वाले लोग एकजुट होकर कुछ कठोर कदम उठाकर समाज को अनुशासित करने का प्रयास करें, तभी समस्याओं का समाधान हो पाएगा। यदि हर मिशन अपने अहं व अपने स्वार्थ में ही जिएगा तो उसमें व आम आदमी में क्या अन्तर है। जो संवेदनशील है। सनातन धर्म से प्यार करते हैं, भारत माँ की पीड़ा को समझते हैं ऊँचे पदों पर बैठे हैं ऐसे व्यक्ति एकजुट होकर कुछ सामूहिक निर्णय लें। भले ही उससे उन्हें उनके पदों को त्याग करना पड़े। जब तक त्याग व बलिदान का भाव हममें नही आएगा, तब तक समस्याओं का समाधान कहाँ निकलेगा।
                                    जय भारत! जय हिन्द!

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