Tuesday, April 23, 2013

तुलसी (Tulsi), मुलेठी और सौंफ के गुण-लाभ


तुलसी (Tulsi)

तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता। घरों तथा मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इसकी उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य रक्षक के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

तुलसी का पौधा

आज के जमाने में घरों में मनीप्लांट या अन्य सुन्दर सजावटी पौधे लगाये जाते हैं, वहीं तुलसी का पौधा भी जरूर नजर आता है। दरअसल, हम सभी जानते हैं कि तुलसी का पौधा लगा कर कई बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके रख-रखाव में भी विशेष परिश्रम नहीं करनी पड़ती। इसके पौधे के पास जाने से इससे स्पर्श हुई हवा से ही कई परेशानियां दूर हो जाती हैं।

स्पर्श और गंध में जादू
इसकी गंध युक्त हवा जहां-जहां जाती है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है। इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान के लिए श्वेत के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय (हल्का कालापन) लिये होते हैं।

काले पत्ते वाली तुलसी
कुछ विज्ञान काले पत्ते वाली तुलसी को औषधीय गुणों में उत्तम मानते हैं तो कुछ दोनों को ही सामान्य गुण वाली मानते हैं। इसके पत्ते मूल, बीज, जड़ तथा इसकी लकड़ी सभी उपयोगी होती है। इसके पत्तों की रस की मात्र बड़ों के लिए दो तोला (लगभग तीन चम्मच) तथा बीजों का चूर्ण एक से दो ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।

औषधीय गुणों में यह हृदय को बल देने वाली, भूख बढ़ाने वाली, वायु, कफ, खांसी-हिचकी, उल्टी, कुष्ठ (कोढ़), रक्त विकार, अपस्भार हिस्टीरीया और सभी प्रकार के बुखारों में उपयोगी है।

जीवाणुओं को नष्ट करता है
तुलसी में एक उड़नशील तेल होता है, जो हवा में मिलकर मलेरिया बुखार फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है। विद्वानों का मत है कि तुलसी के पत्तों के दो तोले रस में तीन माशे काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीने से मलेरिया में बहुत लाभ होता है।

और भी हैं औषधीय गुण
इसके पत्ते चाय के साथ या अनाज उबाल कर पिलाने से छाती की सर्दी में लाभ होता है। सर्दी के कारण जमा कफ बाहर निकल जाता है जिससे छाती के दर्द में आराम मिलता है।

बढ़े हुए कफ में इस का रस शहद में मिलाकर देना लाभकारी है। पुराने बुखार में इसके पत्तों का रस सारे शरीर पर मलने से लाभ होता है। आंतों में छिपे कीड़ों के लिये पत्तों का चूर्ण सेवन करना हितकर है। उल्टी में इसके पत्तों का रस और अदरख का रस मिला कर पिलाने से लाभ होता है। पेट साफ होता है।

दाद हो तो इसका रस लगाने से फायदा होता है। पुराना घाव हो तो इसके रस से घाव धोने से संक्रमण नहीं होता, उसमें कीड़े नहीं पड़ते, दुगर्न्ध दूर होती है। घाव भरता है।

इसका पाचांग फल-फूल पत्ते तना जड़ का चूर्ण बना कर नीबू के रस में घोल कर लगाने से दाद खाज एक्जिमा एवं अन्य चर्म रोगों में लाभकारी है।

शरीर के सफेद दाग, मुंह पर कील-मुहांसे, झाई पर इसका रस लगाना लाभकारी है। सांप काटे व्यक्ति को एक से दो मुट्ठी तुलसी के पत्ते चबवा दिये जाएं तो सांप का जहर मिट जाएगा। पत्ते खिलाने के साथ इसकी जड़ का चूर्ण मक्खन में मिला सांप काटी जगह पर लेप करना हितकर है। इसकी पहचान यह है कि लेप करते समय इसका रंग सफेद होगा लेकिन जैसे-जैसे जहर इस लेप से कम होगा, लेप का रंग काला होता जाएगा। तभी तुरन्त उस लेप को हटा दूसरा लेप लगा देना चाहिये। जब तक लेप का रंग काला होना बंद हो जाए तो समझना चाहिये ये जहर का असर खत्म हो गया।

बिच्छू या ततैया, बर्र आदि के डंक मारने पर तुलसी का रस लगाने से और पिलाने से दर्द दूर होता है।

खांसी, श्वास में तुलसी के पत्तों का रस वासा के पत्तों का रस एक से दो चम्मच मिला कर पीने से लाभ होता है। बल पौरुष बढ़ाने, शरीर को बलवान बनाने में तुलसी बीज का चूर्ण चमत्कारी है। यह बलवर्धक, शीघ्र पतन व नपुंसकता नाशक और पौष्टिक होता है। इसके सेवन से असमय वृद्धा अवस्था नहीं आती, शरीर बलवान चेहरा कान्तिमान होता है।

बच्चों के लिवर की कमजोरी में इसका काढ़ा पिलाना बहुत लाभकारी है। कान के दर्द में इसके पत्तों का रस गर्म कर कान में टपकाने से दर्द में चैन मिलता है।

इसकी मंजरी (फूल) सौंठ, प्याज रस और शहद मिलाकर चाटने से सूखी खांसी और दमा में लाभ होता है। इसे पत्तों का चूर्ण या मंजरी का चूर्ण सूंघने से जुकाम (सायनोसायटिस) नाक की दुर्गन्ध दूर होती है तथा मस्तक के कीड़े नष्ट होते हैं।

दांत दर्द में तुलसी के पत्ते तथा काली मिर्च साथ पीस कर गोली बना कर खाने से लाभ होता है। तुलसी के पत्ते और जीरा मिलाकर पीस कर शहद से लेने से मरोड़ और दस्त में लाभ होता है।

मुलेठी के गुण

मुलेठी बहुत गुणकारी औषधि है। मुलेठी के प्रयोग करने से न सिर्फ आमाशय के विकार बल्कि गैस्ट्रिक अल्सर के लिए फायदेमंद है। इसका पौधा 1 से 6 फुट तक होता है। यह मीठा होता है इसलिए इसे यष्टिमधु भी कहा जाता है। असली मुलेठी अंदर से पीली, रेशेदार एवं हल्की गंधवाली होती है। यह सूखने पर अम्ल जैसे स्वाद की हो जाती है। मुलेठी की जड़ को उखाड़ने के बाद दो वर्ष तक उसमें औषधीय गुण विद्यमान रहता है। इसका औषधि के रूप में प्रयोग बहुत पहले से होता आया है। मुलेठी पेट के रोग, सांस संबंधी रोग, स्तन रोग, योनिगत रोगों को दूर करता है। ताजी मुलेठी में पचास प्रतिशत जल होता है, जो सुखाने पर मात्र दस प्रतिशत ही शेष रह जाता है। ग्लिसराइजिक एसिड के होने के कारण इसका स्वाद साधारण शक्कर से पचास गुना अधिक मीठा होता है। आइए हम आपको मुलेठी के गुणों के बारे में बताते हैं।

मुलेठी के गुण -
मुलेठी को काली-मिर्च के साथ खाने से कफ ढीला होता है। सूखी खांसी आने पर मुलेठी खाने से फायदा होता है। इससे खांसी तथा गले की सूजन ठीक होती है।

अगर मुंह सूख रहा हो तो मुलेठी बहुत फायदा करती है। इसमें पानी की मात्रा 50 प्रतिशत तक होती है। मुंह सूखने पर बार-बार इसे चूसें। इससे प्‍यास शांत होगी।

गले में खराश के लिए भी मुलेठी का प्रयोग किया जाता है। मुलेठी अच्‍छे स्‍वर के लिए भी प्रयोग की जाती है।

मुलेठी महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। मुलेठी का एक ग्राम चूर्ण नियमित सेवन करने से स्त्रियां, अपनी, योनि, सेक्‍स की भावना, सुंदरता को लंबे समय तक बनाये रख सकती हैं।

मुलेठी की जड़ पेट के घावों को समाप्‍त करती है, इससे पेट के घाव जल्‍दी भर जाते हैं। पेट के घाव होने पर मुलेठी की जड़ का चूर्ण इस्‍तेमाल करना चाहिए।

मुलेठी पेट के अल्‍सर के लिए फायदेमंद है। इससे न केवल गैस्ट्रिक अल्सर वरन छोटी आंत के प्रारम्भिक भाग ड्यूओडनल अल्सर में भी पूरी तरह से फायदा करती है। जब मुलेठी का चूर्ण ड्यूओडनल अल्सर के अपच, हाइपर एसिडिटी आदि पर लाभदायक प्रभाव डालता है। साथ ही अल्सर के घावों को भी तेजी से भरता है।

खून की उल्टियां होने पर दूध के साथ मुलेठी का चूर्ण लेने से फायदा होता है। खूनी उल्‍टी होने पर मधु के साथ भी इसे लिया जा सकता है।

हिचकी होने पर मुलेठी के चूर्ण को शहद में मिलाकर नाक में टपकाने तथा पांच ग्राम चूर्ण को पानी के साथ खिला देने से लाभ होता है।

मुलेठी आंतों की टीबी के लिए भी फायदेमंद है। --  (आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति)

सौंफ के लाभ

सौंफ में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं, जिनका सेवन करने से स्वास्‍थ्‍य को फायदा होता है। सौंफ हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद होती है। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, आयरन, पोटैशियम जैसे तत्व पाये जाते हैं। सौंफ का फल बीज के रूप में होता है और इसके बीज को प्रयोग किया जाता है। पेट की समस्याओं के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। आइए जानते हैं सौंफ खाना स्वास्‍थ्‍य के लिए कितना फायदेमंद हो सकता है।

सौंफ खाने से पेट और कब्ज की शिकायत नहीं होती। सौंफ को मिश्री या चीनी के साथ पीसकर चूर्ण बना लीजिए, रात को सोते वक्त लगभग 5 ग्राम चूर्ण को हल्केस गुनगने पानी के साथ सेवन कीजिए। पेट की समस्या नहीं होगी व गैस व कब्ज दूर होगा।

आंखों की रोशनी सौंफ का सेवन करके बढ़ाया जा सकता है। सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लीजिए। इससे आंखों की रोशनी बढती है।

डायरिया होने पर सौंफ खाना चाहिए। सौंफ को बेल के गूदे के साथ सुबह-शाम चबाने से अजीर्ण समाप्त होता है और अतिसार में फायदा होता है।

खाने के बाद सौंफ का सेवन करने से खाना अच्छे से पचता है। सौंफ, जीरा व काला नमक मिलाकर चूर्ण बना लीजिए। खाने के बाद हल्के गुनगुने पानी के साथ इस चूर्ण को लीजिए, यह उत्तम पाचक चूर्ण है।

खांसी होने पर सौंफ बहुत फायदा करता है। सौंफ के 10 ग्राम अर्क को शहद में मिलाकर लीजिए, इससे खांसी आना बंद हो जाएगा।

यदि आपको पेट में दर्द होता है तो भुनी हुई सौंफ चबाइए इससे आपको आराम मिलेगा। सौंफ की ठंडाई बनाकर पीजिए। इससे गर्मी शांत होगी और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।

यदि आपको खट्टी डकारें आ रही हों तो थोड़ी सी सौंफ पानी में उबालकर मिश्री डालकर पीजिए। दो-तीन बार प्रयोग करने से आराम मिल जाएगा।

हाथ-पांव में जलन होने की शिकायत होने पर सौंफ के साथ बराबर मात्रा में धनिया कूट-छानकर, मिश्री मिलाकर खाना खाने के पश्चात 5 से 6 ग्राम मात्रा में लेने से कुछ ही दिनों में आराम हो जाता है।

अगर गले में खराश हो जाए तो सौंफ चबाना चाहिए। सौंफ चबाने से बैठा हुआ गला भी साफ हो जाता है।

रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा में चमक आती है।



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