एक बार स्वामी रामकृश्ण मिशन के सदस्यों में विभिन्न आध्यात्मिक मत मतान्तरों व गतिविधियों को लेकर वाद विवाद छिड़ गया। विवाद इतना बढ़ा कि मठ में आगन्तुकों से लेकर हर
कोई परेशान होने लगा। स्वामी रामकृष्ण परमहंस शरीर छोड़ चुके थे व स्वामी विवेकानन्द विदेश प्रवास पर थे। अन्त में स्वामी
ब्रह्मानन्द (राखाल) जी की अन्तचेर्तना में एक युक्ति सूझी। सबको सन्देश दिया गया कि राखाल सन्ध्या समय सबको ध्यान
कराएँगे।
स्वामी
ब्रह्मानन्द जी के नेतृत्व में सांयकालीन सभी सदस्य ध्यान के लिए एकत्र हुए। स्वामी जी की
ध्यान साधना से सभी अन्तमुर्खी हो गए व कुछ की चेतना उच्च स्तर पर पहुँचने लगी। चेतना
के उच्च स्तर पर वो लोग अपनी गलतियों व मूखर्ताओं को सोच-सोचकर बड़े शर्मिंदा होने लगे। कुछ तो अपने अपशब्दों के लिए दूसरों से क्षमा माँगने लगे
व कुछ गले मिलकर फूट-फूट कर रोने लगे। शीघ्र ही चारों ओर प्रेम, अस्मीयता का वातावरण
दिखने लगा। इस प्रकार स्वामी जी ने लोगों की चेतना को ऊँचा उठाकर उनके
भीतर व्याप्त मनमुटाव समाप्त किया ।
मानव
जीवन, परिवार व समाज में अनेक प्रकार के
झगड़े झन्झट, वाद-विवाद चलते रहते हैं। परन्तु यदि लोगों की चेतना को ऊँचा उठाने
का प्रचार किया जाए तो बहुत प्रकार की समस्याओं
का स्वत: ही समाधान हो जाएगा। अतिमानस क्षमताओं से सम्पन्न कुछ व्यक्ति यह कहने लगे हैं कि धरती तेजी से एक नए आयाम
(New Dimension) में प्रवेश करने जा रही है। यह नया आयाम
जन चेतना को ऊँचा उठाने का देवात्मा हिमालय का एक प्रयास है जिससे युग की समस्याओं को बिना विनाश के हल किया जा सके। साधना की मानसिकता वाले व्यक्ति शीघ्र ही इस प्रक्रिया का लाभ उठाकर अपनी चेतना
से परमात्म चेतना को जोड़ने में सफल हो सकेगें व अल्प प्रयास में ही शांति, शक्ति आनन्द के केन्द्र बन जाएंगें।
यदि हम ध्यान का नियमित अभ्यास करें व चेतना को उच्च मनोभूमि (विज्ञानमय, आनंदमय कोष ) की ओर चढ़ाएं तो हम न केवल अपने दैनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने मे सक्षम होंगे, अपितु अपनी प्रतिभा का बहुमुखी विकास भी कर सकते हैं। इससे आगे बढ़ने पर प्रसुप्त शक्तियों के केंद्र जाग्रत कर सिद्ध पुरुषों की श्रेणी मे भी जा सकते हैं ।
यदि हम ध्यान का नियमित अभ्यास करें व चेतना को उच्च मनोभूमि (विज्ञानमय, आनंदमय कोष ) की ओर चढ़ाएं तो हम न केवल अपने दैनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने मे सक्षम होंगे, अपितु अपनी प्रतिभा का बहुमुखी विकास भी कर सकते हैं। इससे आगे बढ़ने पर प्रसुप्त शक्तियों के केंद्र जाग्रत कर सिद्ध पुरुषों की श्रेणी मे भी जा सकते हैं ।
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