1- रशिया जो सबसे बड़ा देश था व धर्म को
अफीम की गोली बनाकर धार्मिकत, आध्यात्मिकता
व आस्तिकता का घोर विरोधी था वही धीरे-धीरे एक बड़ी आध्यात्मिक शक्ति के रूप में
पनप रहा है। वहाँ के लोगों में श्री मद् भागवत् गीता के प्रति इतनी श्रृद्धा पैदा
हो गयी कि प्रशासन को मजबूर होकर सन् 2011
में गीता जी को प्रतिबंधित करना पडा। जिसकी तीव्र प्रतिक्रिया पूरे विश्व में
हुर्इ।
2- दुनियाँ की महाशक्ति अमेरिका व पश्चिम
लोग अपनी संस्कृति से इतने परेशान हो चुके है कि वो एक बड़े परिवर्तन की आशा भारत
से लगाए बैठे है। वो चाहते है कि भारत के पुन: कोर्इ विवेकानंद जैसा तपस्वी आए व
उनका मार्गदर्शन करें। वहां लोगों में भारतीय परम्पराओं व रीतिरीवाजों को अपनाने
की एक होड़ प्रारम्भ होती नजर आ रही है। इस संदर्भ में सन् 2011 में USA में हुए एक सर्वे में बडे़ चौकने वाले तथ्य सामने आए है।
3- भारत के लोगों में गौशालाओं, आयुर्वेद, योगाभ्यास, जैविक खेती व प्राकृतिक चिकित्या की ओर
पुन: रूचि जाग रही है। स्वामी रामदेव जी व अन्य ऐसे मिशन इसीलिए इतनी जल्दी भारत व
पूरी दुनियाँ में प्रसिद्ध हो गए।
4- भारत के अनेक र्इमानदार एवं कर्मनिष्ठ
सपूतों के कारण यहाँ व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ है। जनता यह
भलीभाँति जान चुकी है कि राजनीति व प्रशासन में बड़े पैमाने पर ऐसे काले अंग्रेज
विद्यमान है जिन्हें यहाँ की मट्टी से कोर्इ लगाव नहीं है वो मात्र यहाँ से धन
इकठ्ठा कर अपनी पीढ़ीयों के लिए विदेशों में व स्विस बैकों में जमा कर रहें है।
दुर्भाग्य से अभी इसका कोर्इ विकल्प सामने नहीं आ रहा है क्योंकि देवत्व अभी बिखरा
है जिस दिन देवत्व संगठित होकर दुर्गा शक्ति रचेगा (अवतरण होगा) उसी दिन इस
भ्रष्टाचार रूपी असुर ध्वस्व होते देर नहीं लगेगी। आशा है आने वाला युवा वर्ग इस
कमजोरी को समझेगा और अपने अहं, अपने
मान सम्मान को तिलांजलि देकर एक विशाल सगंठन की मशाल प्रज्वलित करेगा तभी भारत माँ
के दुख, पीड़ा का अंत सम्भव है।
5- आध्यात्मिक व नैतिक क्रांति का दौर सन्
2011 से अन्ना हजारे जी के सत्याग्रह से
बड़े वेग से प्रारंभ हुआ है वो भीतर ही भीतर सुलग रहा है धीरे-2 वो भारत व सम्पूर्ण विश्व का कायाकल्प
करने में समर्थ हो सकेगा। उससे प्रेरणा पाकर अनेक स्तरो पर (घर, परिवार, समाज, शहर, प्रांत) असुरो के विरूद्ध यह सत्याग्रह प्रारंभ हो जाएगा।
काल चला चुका है परिवर्तन का चक्र
अरब क्रान्ति की शुरुआत टयूनिशिया नामक
एक छोटे से अरब देश से 17 दिसंबर, 2010 को हुर्इ। जनता के इस आंदोलन ने वहाँ के राष्ट्रपति ‘जीने-अल-अबीदीन बेन अली’ को तथा प्रधानमंत्री धनौची को बर्खास्त
करके छोड़ा। 337 लोगों की शहादत लेने के पश्चात 14 जनवरी, 2011 को आंदोलन ने इस राष्ट्र में एक नर्इ शुरुआत का द्वार खोला। 29 दिसंबर, 2010 को अल्जीरिया में प्रारंभ हुआ आंदोलन अपने अभीष्ट को प्राप्त करते
हुए जनवरी, 2012 को समाप्त हुआ। इस आंदोलन में आठ
लोगों को शहादत देनी पड़ी। जॉर्डन में 14
जनवरी, 2011 को प्रारंभ हुआ आंदोलन अभी तक चल रहा
है। अक्टूबर, 2012 में बादशाह अब्दुल्लाह ने अपनी
पार्लियामेंट को भंग कर नए चुनाव का संदेश दिया है।
ओमान में 17 जनवरी, 2011 को आंदोलन प्रारंभ हुआ और मर्इ 2011 को
समाप्त हुआ। सुल्तान क्वाब्बास को जनता के आगे झुकने के लिए विवश होना पड़ा। इस
आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव मिश्र का था। अपने विरूद्ध आवाज उठाने वालेां को
कुचलने के लिए निरंकुश एवं कुख्यात होस्नी मुबारक को बंदी बनाकर उनके खिलाफ मुकदमा
प्रारंभ किया गया। तीस वर्ष तक मिश्र में शासन एवं सत्ता का बेखौफ सुख उठाने वाले
मुबारक जनता के क्रोध का अंदाजा न लगा सके। उन्हें अपनी सेना एवं सामर्थ्य का
अतिशय गुमान था। उस गुमान को तहरीर चौक में विशाल जन आंदोलन ने बौना साबित कर यह
सिद्ध कर दिया कि काल ही एकमात्र सर्वविजेता है और दूसरा कोर्इ नहीं। 25 जनवरी, 2011 को यह आंदोलन प्रारंभ हुआ और देश में शांति और अमन की स्थापना के
लिए अग्रसर है। डेट्रॉयट न्यूज (10
फरवरी, 2011) के अनुसार इस आंदोलन में 743 लोगों को शहादत देनी पड़ी।
आंदोलन की इस श्रृंखला में यमन भी
अछूता नहीं रहा। इस राष्ट्र में तानाशाह अली अब्दुल्लाह सालेह के अत्याचार एवं
अनाचार से उपजे असंतोष के परिणामस्वरूप उठा आंदोलन 27 जनवरी,
2011 को प्रारंभ हुआ
और लगभग एक वर्ष तक चलने के पश्चात 27
फरवरी, 2012 को समाप्त हुआ। इसकी समाप्ति अभी
अब्दुल्लाह के अवसान के पश्चात हुर्इ। वाशिंगटन पोस्ट अखबार के अनुसार इस आंदोलन में
लगभग 2000 लोगों को जान गँवानी पड़ी। सुडान में 30 जनवरी, 2011 से प्रारंभ हुआ आंदोलन अभी जारी है। ठीक इसी प्रकार बहरीन में 14 फरवरी, 2011 को जारी आंदोलन अपनी चरम पर है। इसमें अभी तक 110 लोगों की जान जा चुकी है। 19
फरवरी, 2011 को ऐसा ही आंदोलन कुवैत में प्रारंभ
हुआ। सउदी अरब में भी इस आंदोलन की आँच पहुँच गर्इ है। यहाँ भी 11 मार्च, 2011 को यह असंतोष भड़का है और अपने अभिष्ट की प्रतीक्षा में है। मोरक्को
में यह आंदोलन 20 फरवरी, 2011 से चलकर अप्रैल, 2012
में समाप्त हुआ और लेबनान में 27
फरवरी, 2011 से दिसंबर, 2011 तक चला। इस क्रम में सीरिया एवं
लीबिया का जन आंदोलन सबसे भीषण है। लीबिया में 17 फरवरी,
2011 को जन आंदोलन
भड़का और अय्याष शासक मुअम्मर गद्दाफी को
समाप्त कर भी थमा नहीं है। 23
अगस्त, 2011 को गद्दाफी की सत्ता उखड़ गर्इ। अभी
तक इस आंदोलन में 25 से 30 हजार लोगों की जान जा चुकी है। इस भीषण एवं भयानक आंदोलन से सारा
स्तब्ध है।
सीरिया में 15 मार्च, 2011 को सुलगा सिविल वार अभी जारी है। इस भीषण आंदोलन ने अभी तक 44 हजार लोगों को काल-कवलित कर लिया है।
तानाशाही समाप्त करने एवं राष्ट्र में सुशासन लाने के लिए जारी यह आंदोलन विश्व के
उन देशों की सत्ता के लिए एक चेतावनी है, जो
जनता के संशोधनों एवं अधिकारों पर कुंडली मारकर बैठी हुर्इ है। इस प्रकार इन
आंदोलनों में अभी तक अंतरराष्ट्रीय आँकड़ों के अनुसार अनुमानित 77 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी
है। इन आंदोलनों से यह प्रतीत होता है कि अब और तानाशाही एवं जनता के विरूद्ध
षडयंत्र स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कहते हैं कि काल मर्यादा एवं सीमा से अधिक
सुख, भोग एवं अत्याचार को बर्दाश्त नहीं
करता है। शायद इसी का परिणाम हैं ये आंदोलन।
निम्न विडम्बनाओं का शीघ्र अंत हो
सतोगुण वुद्धि हेतु गौसंवर्धन-
यदि भारत में सात्विकता, साधना एंव देवत्व का अवतरण होना है तो
गौधन पर ध्यान देना अति आवश्यक है। शास्त्रों के अनुसार गौ माता में सभी देवी
देवताओं का वास है। कोर्इ भी साधक अपनी सुक्ष्म दृष्टि से यह आसानी से अनुभव कर
सकता है कि गौ सात्विकता व सकारात्मक उर्जा का श्रेष्ठ केंद्र है। मुझे मेरे बहुत
से मित्रो ने बताया कि गौ माता अपने पालने वाले की विपत्ति अपने उपर ले लेती है।
ये बड़े ही रोमांचकारी किस्से है जिनकी चर्चा फिर कभी की जाएगी।
गौ हत्या पर अविलम्ब रोक लगें। बड़े
उचे एवं भव्य मन्दिरों के निर्माण के स्थान पर गौशलाओं का निर्माण किया जाए समाज
सेवी, संत, महंत तुरंत अपनी खाली पड़ी जगहों में गौ माता को शरण प्रदान करें। गौ
सेवा के बिना मन्दिर, आश्रम व शक्तिपीठें एक प्रकार से अधूरे
है। गौधन पर बड़े पैमाने पर शौध की जाए और ऐसे विकल्प तैयार किए जाए जिसमें भारत
का हर नागरिक गौधन की रक्षा एवं सेवा के लिए तत्पर रहें।
गौशाला के नाम पर हर व्यक्ति एक बडे project की कल्पना करने लगता है। निसदेंह बड़ी गौशालाओं केा निर्माण कठिन
कार्य है। छोटी गौशालाओं का निर्माण अधिक संख्या में करना एक बहुत ही सराहनीय
प्रयास सिद्ध हो सकता है। गौशला का एक नियम हो जिसमें 3/4 (75%) गाय दूध देने वाली व 1/4 (25%) गाय बेसहारा रखी जाए। गौशला का infrastructure समाज से लिया जाए परंतु बाद में self-sustainable बनाया जाए। छोटी गौशाला में 11, 14 से लेकर 24 तक गाय रखी जा सकती है। प्रत्येक पांच
गायों पर एक कर्मचारी रखा जा सकता है।
समाजिक संस्थाओं पर अंकुश
कोर्इ भी ट्रस्ट, संस्था या व्यक्ति एक सीमा से अधिक
जमीन खरीदते है तो उसके उययोग का ब्यौरा अवश्य प्रस्तुत करें। समस्याओं के इस दौर
में न तो कोर्इ इन्सान व न ही कोर्इ भगवान महलों में वास करें। अधिकतर संस्थाओ के
पास कमरें, हाल, जमीने अनुपयोगी पडी है। बड़ी संस्थाँए उभरती छोटी संस्थाओं की मदद
करे। भारत के लोग भेडाचाल के चलते किसी भी तपस्वी को ब्रहमज्ञानी बना देते है व
उसे दान देकर मालामाल कर देते है। कुछ समय पश्चात् उन ज्ञानी जी की तपस्या साधना
समाप्त हो जाती है और वो काले धंधों में लिप्त पाए जातें है। पहले सभी ब्रहमज्ञानी
अपने जीते जी स्ंवय को छुपाकर रखते थे उदाहरण के लिए श्री अरविंद, रमण आजीवन मौन रहें। नीम करौरी के बाबा, रामकृष्ण परमंहस, युगऋषि श्री राम आचार्य सदा अपने
चमत्कारो व साधनाओं को गुप्त रखते रहें।
उनके शरीर छोड़ने के पश्चात ही लोगों को उनके कारनामों का पता चला। पंरतु आज चारो
ओर विज्ञापनों व चमत्कारों द्वारा लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
व्यक्ति इन चमत्कारों के चक्कर में न उलझकर अपने कर्म आचरण सही करे, तपस्वी व श्रेष्ठ जीवन का मार्ग चुने
अन्यथा निराशा ही हाथ लगेगी। कोर्इ भी
दैवी शक्ति भ्रष्ट, विलासी व दुष्ट व्यक्ति की मदद नहीं
करती। अत: मन्दिर में हाथ जोडनें के साथ-2
आत्मचिंतन कर अपने अमानवीय क्रियाकलापों पर तुरंत विराम लगाए और शास्त्रों द्वारा
निर्देशित मार्ग पर चलने का प्रयास करें।
जड़ी बूटी प्रशिक्षण एवं स्वदेशी
चिकित्सा पद्धति
भारत के हर व्यक्ति को देसी जड़ी
बूटीयों ज्ञान हों व स्वदेशी चिकित्सा पद्धति के प्रति आस्था हों। जरा सी बीमारी
हुयी तुरंत ऐलोपैथी दवा खा ली यह प्रचलन बहुत ही घातक है सामान्य प्रयोग की
महत्वपूर्ण जड़ी बूटीयाँ हर व्यक्ति के उद्यान में हो जैसे तुलसी, नीम, ग्वारपाठा, कालमेथ, वासा, गिलोय आदि। 75 प्रतिशत बीमारीयों के समाधान इन जड़ी
बूटीयों से निकल आते है, इनके विषय में यदि थोड़ी सी भी उचित
जानकारी हों। अंग्रेजी दवाइयों का प्रचलन होने से व्यक्ति भीतर ही भीतर खोखला होता
जा रहा है ज्ौसे ही 40 वर्ष की उम्र पार करता है किसी न किसी
भयानक रोग के शिकजें में जा फसता है। अंग्रेजी दवाइयों का अपनी महत्व है पंरतु
उन्हें द्वितीय स्थान पर रखना चाहिए। अंग्रेजी दवाओं की तुलना में देसी दवाओं के Side Effects न के बराबर है।
महिलाओं द्वारा सभ्यता एवं पवित्रता का
समावेश
पश्चिम की सभ्यत, संस्कृति व वेशभूषा की नकल करने में
भारत की महिलाएँ किसी से कम नहीं हैं। इस नकल के चक्कर में उन्होंने अपनी दिव्यता
खो डाली। यहाँ महिलाओं में एक विशेष प्रकार की शालीनता, लज्जा, सौम्यता स्वाभाविक रूप से पायी जाती है। जिस कारण नारी को देवी की
उपमा दी जाती रही है। भारत की महिलाएँ अपने गुणों व संस्कारों के कारण पूरे विश्व
में एक विशेष पहचान रखती है। परंतु पश्चिम की नकल से उनमें एक प्रकार की बनावट घर
करती जा रही है। यदि नारी अपनी सहजता व दिव्यता खोकर पश्चिम की वेशभूषा व प्रचलन
अपनाएगी तो इसका बहुत भयावह परिणाम पूरे समाज को भुगतना पडेगां भडकाउ लिबास व आचरण
पुरूष वर्ग का कामुकता व व्याभिचार की आँधी में बहा ले जाएगां जिससे समाज में या
तो यौन आचरण की स्वच्छन्दता की माँग उठेगी अन्यथा बलात्कार व हत्याओं की बाढ
आएगीं। समय रहते यदि नारी न चेती तो इस पाप का बोझ उसको घनघोर नरक में ले जाएगा। कामुक चिन्तन व
आचरण पुरूष को निस्तेज कर देगा वह वीर्यहीन होता जाएगा व नारी ल्यूकोरिया जैसे
भयानक रोगों से ग्रसित होती जाएगी। उम्र बढने के साथ-साथ स्तन कैंसर जैसे दर्दनाक
रोग बाँहे फैलाए नारी जाति का इन्तजार कर रहे होगे व उसके दुष्कर्मो का दण्ड उसको
मिलेगा। इसलिए नारी सावधान होकर अपनी पवित्रता व दिव्यता की रक्षा करे और पुरूष
वर्ग की शक्ति बनकर उनके भीतर भी श्रेष्ठ भावों का संचार करें। नारी समाज को सशक्त
बनाने में भी महत्वपूर्ण भुमिका निभा सकती है परन्तु उच्छृखल नारी के बारे में यह कहना ही ठीक होगा- “नारी
नरकस्य द्वार”‘।
आशा है भारत की नारी सीता, सवित्रि, लक्ष्मीबार्इ,
निवेदिता एवं श्री माँ की तरह त्याग, तपस्या, पवित्रता एवं साधना के द्वारा समस्त मानव जाति का उद्वार करने के लिए
पूर्ण प्रयास करेगी। इतिहास साक्षी है एक नारी की करूणा ने कुमरिल भट्ट को वेदों
का उद्वार करने के लिए प्रोत्साहित किया था। रक्षा बन्धन व भार्इ दूज के अवसर पर
नारियाँ अपने भार्इयों को भारत माता और गौमाता की रक्षा के लिए अपनी कमार्इ का एक
अंश लगाने के लिए प्रेरित करें। अपने लिए छोटे मोटे उपहारो व स्वार्थो को तिलांजलि
देकर एक महान उदेद्श्य के लिए जीवन की आहुति समर्पित करें। नारी ही बच्चे की प्रथम
गुरू है वह ही भारत माता है वह ही जगत् जननी है जिस दिन वह जाग जााएगी यह राष्ट्र
सोने का शेर हो जाएगा। जागो भारत माता जागो इस राष्ट्र में त्याग, तप, तितिक्षा
की त्रिवेणी बहा दो अब ओर विलम्ब नहीं सहा जाता। आपकी सन्तानों की दीन हीन हालत
सुधारों, उनको पीड़ा व पतन से मुक्त करोओं।
आरक्षण रूपी कोढ़ पर रोक
जो भी आरक्षण का लाभ उठाकर एक सीमा से
अधिक धन कमा रहे है उनकी 20 प्रतिशत की कटौती कर एक समाज कल्याण
कोष बनाया जाए जिसमें समाज के गरिब वर्ग की सहायता की जाए। धीरे-2 आरक्षण को समाप्त करते हुए हर गरीब की
जरूरत पूरी की जाए। आरक्षण परम्परा व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाती है और
कहीं न कहीं उसकी योग्यता पर एक प्रश्न चिंह खड़ा करती है जिससें व्यक्ति के भीतर
एक हीन भावना पनपती है। व्यक्ति को स्ंवय की व समाज की नजरों में गिराने वाली
आरक्षण परम्परा भिक्षावृति के समान एक कोढ़ की तरह फैल रही है। जिसके चलते समर्थ व
सशक्त वर्ग भी आरक्षण की माँग करने लगे है।
खुशहाली लाने हेतु जनसख्याँ नियन्त्रण
प्रकृति इस बढ़ती हुर्इ जनसख्याँ करे
इससे अच्छा है कि भारत सरकार इस ओर कुछ कडे कदम उठाए। दो से अधिक बच्चे उत्पन करना
एक निन्दनीय कार्य माना जाए। जो व्यक्ति सरकारी सुविधाओं जैसे आरक्षण, पीला कार्ड व विभिन्न प्रकार की छुटो
का लाभ उठाते है उन्हें अधिकतम दो बच्चों तक बाध्य किया जाए। अन्यथा उन्हें आंशिक
अथवा पूर्ण रूप से उन सुविधाओं से वंचित कर दिया जाए।
राजनैतिक व प्रशासनिक सेवा में उच्च
चरित्र वाले व्यक्ति का चयन
गुण्डागर्दी व भ्रष्टाचार फैलाने वाले
नेताओं से जनता सावधान रहें। श्रेष्ठ छवि के व्यक्तियों को चुना जाए। व्यक्तिगत
हितों से समाज एवं राष्ट्र हित को अधिक महत्व दिया जाए। जो लोग व्यक्तिगत हितो को
महत्व देकर समाज में गलत लोगों का साथ देते है वो अपनी आने वाली पीढी के लिए गढां
खोदते है उनका अंजाम वहीं होता है जो लादेन को पालने पर अमेरिका का हुआ था।
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