Monday, November 5, 2012

गन्दगी का ही परिणाम



संसार में सौदर्य बना रहे गन्दगी और कुत्सा भड़के इसलिए गन्दगी को ढककर रखा जाता है और फूलों को सजाकर रखा जाता है। बच्चे दस्त करते है तो उस पर तुरन्त मिट्टी या राख डाली जाती है ताकि  दुर्गन्ध तुरन्त रूक जाये इसी तरह चारित्रिक गन्दगी को ढकना चाहिए। संभव है हमारी माँ के भी कदम डगमागये हों पर हमारी संस्कृति में नारी के माता स्वरूप की ही कल्पना की गई कामिनी या रमणी रूप में नहीं। गन्दगी चर्चाओं से लोगों में नाराजी की अपेक्षा गन्दगी कल्पनायें ही जागृत होती है इसलिए ऐसी चर्चायें ही नहीं करनी चाहिए।
जब की आज यह चर्चायें चटखारे ले लेकर की जाती है गर्म गर्म सुर्खियों में छपती है इतना ही नहीं बेशर्मी की हद देखें की उससे भी घटिया चित्र छापे जाते है इन सुर्खियों समाचारों नंगे चित्रों से जनमानस में कितनी गन्दगी उभरती होगी। उस गन्दगी का ही परिणाम आज सिसकियाँ दिलाने वाले समाचार प्रतिदिन पढ़ने को मिलते है। एक तो कोढ़ उस पर खाज। एक तो करेला सो भी नीम चढ़ा। एक ओर पब संस्कृति और उसे सहमति देने वाला मीडिया, सिनेमा, चित्रकार ,कवि ,पत्रकार। अकेला और निहत्था अभिमन्यु और चक्रव्यूह-अपना भारतीय दर्शन भारतीय संस्कृति। यह आज का जलता हुआ प्रश्न है जिसे चाहिए संस्कारों की ऐसी शीतल बयारी जो आने वाली पीढ़ी का जीवन बचा सकें और उसे कुँए में गिरने से रोक सके।
गायत्री उपवन से साभार

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