Friday, November 9, 2012

कब निर्मल होगी अपनी गंगा

कब निर्मल होगी अपनी गंगा
देश के बड़े इलाके की जीवनधारा कही जाने वाली राष्ट्रीय नदी गंगा में बढ़ता प्रदूषण, चिंता का विषय है। तमाम कोशिशों के बाद भी यह प्रदूषण थमने को नाम नहीं ले रहा। गंगा का निर्मल पानी दिन--दिन और भी जहरीला हुआ है। अब तो इसका पानी लोगों को कैंसर का रोगी बना रहा है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्र्री प्रोगा्रम यानी एनसीआरपी के एक अध्यन का निष्कर्ष है कि गंगा में इतनी ज्यादा धातुएं और घातक रयायन घुल गए है कि इस पानी के संपर्क में आने वाले लोग कैंसर से पीड़ित होने लगे है। शोध के मुताबिक गंगा किनारे रहने लोगों में पित्त्ााशय, किडनी, भोजन नली, प्रोस्टेट, लीवर, यूरिनरी ब्लैडर और स्किन कैंसर होने का सबसे ज्यादा खतरा है। गंगा के किनारे रहने वाले हर 10,000 लोगों में 450 पुरूष और 1000 महिलाए, पित्त्ा की थैली के कैंसर से पीड़ित है। उत्त्ार प्रदेश में वाराणसी, बिहार के वैशाली और पटना के गा्रमीण तथा बंगाल के मुर्शिदाबाद और दक्षिणी 24 परगना के बीच के क्षेत्र का कैसर का हट जोन माना गया है। अध्ययन के मुताबिक पित्त्ा की थैली के दूसरे सबसे ज्यादा मरीज भारत में गंगा किनारे बसते है। दुनियाँ में सर्वाधिक प्रोस्टेट कैंसर के मरीज भी इस क्षेत्र में रहते है।
यह हालात तब है जब केंद्र और राज्य सरकारें दोनों बरसों से गंगा को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए एक साथ मुहिम छेड़े हुए है। गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हार्इ कोर्ट भी कर्इ बार दिशा-निर्देश जारी कर चुके है। 3 मर्इ 2010 को इलाहाबाद हार्इ कोर्ट ने उत्त्ार प्रदेश तथा उत्त्ाराखंड सरकार को गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ने और गंगा के आसपास पॉलथीन के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था लेकिन अभी तक अमल में नहीं किया गया जा सका है। गंगा के किनारे अनेक शहर, कस्बे और गांव बसे है, जहां से हर रोज करीब 13 बिलियन लीटर प्रदूषित पानी गंगा में प्रवाहित होता है। यही नहीं, सैकड़ों फैक्ट्रियां भी गंगा को प्रदूषित करने का काम कर रही है। इनसे प्रतिदिन निकलने वाला लगभग 260 मिलियन लीटर औद्योगिक कचरा पश्चिमी गंगा को जहरीला बना रहा है। गंगा में फेंके जाने वाले कुल कचरे में लगभग 80 फीसदी शहरी कचरा होता है। शहरी कचरा गंगा के प्राकृतिक स्वरूप को नष्ट कर रहा है, वहीं औद्योगिक कचरा पानी को जहरीला बना रहा है।
ऋषिकेश से इलाहाबाद तक गंगा के आसपास कोर्इ 146 बड़ी औद्यागिक इकाइयां है। इसमें चीनी मिल, पेपर फैक्ट्री, फटिर््रलाइजर फैक्ट्री, तेल शोधक कारखाने तथा चमड़ा उद्योग प्रमुख है। गंगा सबसे ज्यादा उत्त्ार प्रदेश में प्रदुषित होती है। उत्त्ार प्रदेश में 50 प्रतिशत प्रदूषित पानी गंगा में मिल जाता है। अकेले इलाहाबाद में ही 50 से अधिक ऐसे बड़े नाले है जो गंगा और यमुना में गंदगी प्रवाहित करते है। गंगा क्षेत्र में 8250 एमएलडी प्रदूषित पानी पैदा होता है, जबकि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटो की क्षमता सिर्फ 3500 एमएलडी पानी को ही प्रदूषणमुक्त करने की है। गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए कोशिशें खूब हुर्इ, मगर उसका असर कहीं नहीं दिखलार्इ देता। सबसे पहले साल 1979 में केंद्रिय जल प्रदूषण निवारक और नियंत्रण बोर्ड ने गंगा में प्रदूषण पर अपनी दो व्यापक रिपोर्टे पेश की थी। इन्ही के आधार पर अप्रैल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट ने गंगा एक्शन प्लान को मंजूरी दी। यह पूरी तरह से केंद्र सरकार की योजना थी। राजीव गांधी ने गंगा को पांच साल के भीतर प्रदूषणमुक्त करने का वादा किया। इस प्लान के तहत उत्त्ार प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के 25 शहरो में 261 परियोजनाए शुरू की जानी थी। बहरहाल, इस मुहिम पर अब तक कोर्इ 2 हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो गए, लेकिन इतना पैसा खर्च होने और 27 सालों की कोशिशों के बाद भी गंगा पहले से ज्यादा गंदी और प्रदूषित है। सबसे बड़ी वजह, इस प्लान में कोर्इ वास्तविक असरदार प्लान होना था।
गंगा एक्शन प्लान के तहत फंड की बर्बादी बड़े पैमाने पर हुर्इ। आवंटित फंड का ज्यादातर हिस्सा सीवर लाइनें बिछाने और इनके लिए जमीन खरीदने पर खर्च कर दिया गया। खर्च का कोर्इ व्यवस्थित ऑडिट तक नहीं हुआ। केंद्र ने गंदे पानी के ट्रीटमेंट लिए प्लांट तो लगवा दिए, लेकिन शहरों का गंदा पानी प्लांटों तक नहीं पहुंच सका। कहीं सीवर लाइने नहीं बिछीं, तो कहीं पर प्लांट नहीं बने। मसलन बनारस में एक हजार करोड़ रूपये खर्च करके सीवर लाइन डाल दी गर्इ। जब सीवर लाइन बिछार्इ गर्इ, तब लोगों ने सीवर प्लांट का विरोध करना शुरू कर दिया। इसके चलते पूरा प्रोजेक्ट ही फेल हो गया। कर्इ बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट आज बेकार पड़े है। 2000 में पेश रिपोर्ट में सीएजी ने कहा कि गंगा एक्शन प्लान के तहत शुरू किए गए 45 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों में से 19 ने कोर्इ काम नहीं किया। इसका कारण संयंत्रों को बीजली मिल पाना, तकनीकी खामियों को दूर किया जाना और राज्य सरकारों द्वारा फंड रिलीज करना बताया। जाहिर है राज्य सरकारों को उत्साह दिखाना होगा।
खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। केंद्र और जिम्मेदार राज्य सरकारें कागजों में फंड रिजीज करने की बजाय यदि जमीनी तौर पर कुछ ठोस कदम उठाएं, तो हालात बदल सकते है। गंगा किनारे बसे शहरों और उद्योगों से निकल रहे प्रदूषित जल और रासायनिक कचरे को जब तक गंगा में बहाने पर रोक नहीं लग जाती, गंगा शुद्धि के नाम पर कितने भी रूपये फूंक दिए जाए, कुछ सुधार नहीं होगा।
                                     जाहिद खान

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