Tuesday, July 2, 2013

महिलाएँ निम्न आत्मघाती कदमों से बचें

महिलाएँ निम्न आत्मघाती कदमों से बचे व विवेकशील बने
महिलाएँ यदि कुछ बातों में समझदारी से काम ले तो वो अपने जीवन को नरक होने से बचा सकती है व समाज को भी एक नर्इ दिशा दे सकती है :-
1. महिलाएँ एक या दो से अधिक बच्चे पैदा करने का स्पष्ट विरोध करे। यह उनके शारीरिक,मानसिक,व आत्मिक उन्नति के विरुद्ध है। यही राष्ट्र हित के लिए अनिवार्य है। शारीरिक, मानसिक व आर्थिक दृष्टि से कमजोर महिलाएँ अथवा पुरुष यदि अपना बच्चा न पैदा करने का निर्णय ले,यह उनके लिए बहुत लाभकारी होगा।विषाक्त वातावरण के प्रभाव से लडकियाँ लिकोरिया जैसे रोगो के चपेट मे आने से कमजोर होती जा रही है व बच्चा पैदा करने का अथवा सर्जरी का दबाव सहना उनके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है ! यह कैसी विडम्बना है कि हम इसका कभी आंकलन नहीं करते कि महिला बच्चा पैदा करने में शारीरिक , मानसिक रूप से स्वस्थ है या नहीं ! बस विवाह हुआ तो बच्चा पैदा करना ही है, फिर जब कुछ उलटी सीधी परिस्थितियां बनती है तो भगवन से शिकायत करते है कि  हमारे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? अरे ! भगवान से पूछ कर बच्चा पैदा किया था क्या ?भगवान ने तो नहीं कहा था कि बच्चे पैदा करो ? यदि भगवान द्वारा दिए हुए विवेक बुद्धि का समुचित उपयोग न कर मूढ़ मान्यताओं में उल्झोगे,तो कहीं न कहीं जीवन में कठिन समस्या में फँस ही जाओगे जिसको आजीवन भी भुगतना पड सकता है ! जैसे युधिष्ठिर ध्रुतक्रीडा के मोह वश एक बड़ी गलती कर बैठे जिसके लिय उन्हें आजीवन पश्चाताप करना पड़ा ! व्यक्ति भले ही धर्मनिष्ठ क्यों न हो परन्तु सदैव उसको अपनी विवेकबुद्धि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ! कार्य मूर्खतापूर्ण करे फिर समर्पण-समर्पण अथवा भगवान बचाओ-बचाओ चिल्लाते फिरे ! भगवान रक्षा करने आएगा लेकिन चोट तो लग ही चुकी होगी तो उसको सुधारने में भी समय लगेगा, हमें काफी समय तक दर्द सहना पड़ सकता है ! भारतीय मानसिकता का व्यक्ति सदा चमत्कारों को होते हुए ही देखना चाहता है! सृष्टि के नियमों में हेर-फेर केवल बहुत आवश्यक परिस्थितियों में ही किया जाता है ! अत: भलाई,विवेक बुद्धि से काम लेने में ही है!
2. महिलाएँ अपनी वेषभूषा शालीन रखें,जितना सम्भव हो भारतीय परिधान पहने। सलवार कुर्ता आज की परिस्थिति के अनुसार सर्वोत्तम हैं। एक या दो से अधिक साडी न खरीदें। साडियों के निर्माण में बहुत जल,मेहनत व विषैली गैसों व केमिकल्स का प्रयोग होता है जो समाज के लिए घातक हैं।
3. अनावश्यक चीजों को घर में खरीद-खरीद कर न डालें। इससे घर में स्वच्छ वायु नहीं रहती अधिकतर सजावट के समान एवं खिलौनों आदि पर सस्ते व खतरनाक केमिकल्स रहते हैं जो एलर्जी पैदा करते हैं। पर्दे इत्यादि कम लगाएँ जिसमें वायु का आवागमन बना रहे। प्लास्टिक का अधिक प्रयोग धीमा विष है। प्लास्टिक के डिब्बों में पडे अचार, चटनी, दवाइयाँ, शहद स्वास्थय पर बुरा प्रभाव डालते हैं। बेकार पडा सामान घर में नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है।
4. बच्चों को प्राकृतिक वातावरण में रखने का यथासम्भव प्रयास करें। A.C. आदि का अधिक प्रयोग बच्चों को आलसी,मोटा व नर्वस सिस्टम को कमजोर करता है। बच्चों को Internet के प्रयोग की खुली छूट न दें,उन पर निगरानी रखें। अन्यथा कम आयु में ही उनको pornographic sites देखने की आदत पड़ सकती है।
5. अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग घर में कम से कम करें। प्रत्येक अंग्रेजी दवा के side effect रहते है जो शरीर को कमजोर करते जाते हैं। ताकत की दवाएँ भी नुकसानदेह सिद्ध हो सकती है उनका प्रयोग सोच समझ कर करें।
6. चेहरे की लीपापोती की आदत कम से कम रखें। इससे उनकी त्वचा लम्बे समय तक साफ व सुन्दर और मजबूत बनी रहेगी। एक बार मद्रास हार्इकोर्ट में एक मुकद्दमा आया जिसमें fair & lovely के उच्च अधिकारियों को बुलाकर पूछा गया कि आप त्वचा को गोरा बनाने के लिए क्या डालते हैं ? उन्होंने उत्तर दिया  सूअर की चर्बी का तेल क्या आप जानते हैं:- अधिकतर शेम्पु आँखों के लिए नुकसानदायक होते हैं। इसलिए कम उम्र में ही चश्मा व अन्य रोग पनप रहें हैं।
7. बाज़ार से आ रहे डिब्बा बन्द दूध, आचार, चटनी, रस, मुरब्बे, पेय पदार्थ कम प्रयोग करें। इनमें preservatives जैसे सोडियम बेन्जोएट अधिक मिले हो सकते हैं जो शरीर पर विषैला प्रभाव छोडते हैं।
8. भोजन की पवित्रता का ध्यान रखें। मोटा आटा व छिलके वाली दालें प्रयोग करें। बारीक आटा गठिया व बवासीर जैसे भयानक रोगों की जननी हैं। खाना बनाते व खाते समय शांत व प्रसन्न रहें। जो महिलाएँ अनिच्छा से चिडचिडे मन से भोजन तैयार करती है घर में चिडचिडापन व कलह बढती है। क्योंकि उनके हाथों से उस प्रकार की तरगें निकलती हैं। जहाँ तक सम्भव हो भोजन बनाने का कार्य काम वालों से न करवाएँ इससे घर में नीच वृतियाँ व संस्कार पनपने लगते हैं। भोजन न तो अधिक पकाएँ न अधिक तलें।
9. दिनचर्या सही रखना बहुत जरूरी है। रात्रि में भोजन देर से न करें। प्रात:काल जल्दी उठने की आदत अवश्य डालें। इससे बहुत से ग्रह नक्षत्रों,देव पितृो के कोप से परिवार की रक्षा होती है। अभक्ष्य जैसे अण्डा,मीट,लाल मिर्च,तेज मसालों के सेवन से सावधान रहें।
10. घर में वातावरण अच्छा रखें। बडे बूढों के साथ यथासम्भव आत्मीयता बनाएँ। बडे बूढों की आत्मा को दुखी रखने से परिवार में संकट पैदा होते रहते हैं। छोटी मानसिकता से बचें। सयुंक्त परिवार में रहने, परिश्रमी बने रहने से महिलाओं का नर्वस सिस्टम व मस्कुलर पावर अच्छी बनी रहती हैं। मशीनी जीवन पर अधिक आधारित होने पर 40 वर्ष के उपरान्त व्यक्ति अनेक समस्याओं से घिरने लगता है। परन्तु अपनी शक्ति, सामर्थ्य से अधिक श्रम भी न करें। यह भी उचित नहीं है। प्रत्येक चीज मर्यादा में रखें। घर में टी.वी. सीरियल देखने की सीमा बाँधे,दो से अधिक सीरियल न देखें। महिलाएँ स्वयं तो टी.वी. के सामने से हटना नहीं चाहती, बच्चों पर गुस्सा करती है कि सारा दिन कार्टून देखता है।
11. महिलाएँ अपने बच्चो में आध्यात्मिक संस्कारो का बीजारोपण अवश्य करें! समय विषमता की और बढ रहा है ! दैवीय सरंक्षण प्रत्येक परिवार के लिए अनिवार्य है! बच्चो के हाथ से उनके जन्म दिन व अन्य पर्वों पर गरीब बच्चो को,कापियाँ, पेन्सिलें,बिस्कुट आदि बटवाएँ जिस से उनमे देने की भावना का उदय हो व  वो देवता बने ! नियमित रूप से बच्चों को सुबह अथवा सायं कुछ न कुछ जप चालीसा आदि अवश्य करने का अभ्यास करवाएं ! यह भी ध्यान रखें कि बच्चों पर अधिक देर तक जप व ध्यान करने का दबाव  न डालें ! वह उसकी प्रकृति के प्रतिकूल होगा, उसे सहज भाव से करने दें!
12. कुछ वर्षो पूर्व घर में महिलाएं गो के लिए पहली रोटी अवश्य निकालती थी। यह बुहत ही अच्छा नियम था। आज यह बहुत ही कम स्थानों पर सम्भव है कि रोटी गाय तक पहुंच जाए। इसके लिए पांच रूपये प्रतिदिन निकाला जाए व गौशाला में भिजवाया जाए। जहां गाय घुमती हो वहां मोहल्ले में खाली स्थान पर उनके लिए छोटा चबूतरा एवं पानी के लिए कुण्ड बनवाया जाए। एक-एक सप्ताह उनमें पानी भरने की साफ सफार्इ की डयूटी पांच-पांच परिवारों की लगार्इ जाए। महिलाएं अपने घर में दो बाल्टी रख सकती है एक में बेकार कचरा, दूसरे में गाय के खाने योग्य समान यह समान सांयकाल चबूतरे पर भेजा जाए। चबूतरो पर घास आदि की व्यवस्था भी की जा सकती है। इससे गायो को जगह-जगह कूड़ा खाने व पालीथीन खाने के लिए मजबूर नहीं  होना पडेगा। इस प्रकार गायों की सेवा में महिलाएं बहुत नेक भूमिका निभा सकती है।
13. प्राय: यह देखा गया है कि महिलाएँ तरह-तरह के व्रत रखती हैं,कथा कहानियाँ,पुराण पढ़ती हैं,सत्संगों में जाती हैं। परन्तु यदि वो अपनी बुराइयां त्यागनेका व्रत नहीं ले पाती तो अन्य कोइ देवी देवता उन्हें शरण नहीं देने वाला। अत: महिलाएँ निम्न प्रकार के व्रत अवष्य लें। जैसे -
1. प्रात:काल से 40 दिन तक सूर्योदय से पूर्व अवश्य उठेंगे।
2. हफ्त दस दिन टी वी या तो बिल्कुल ना देखेंगे या मात्र एक सीरियल दखेंगे।
3. एक से चालीस दिन लाल मिर्च बिल्कुल नहीं खांएगें।
4. एक माह मोटे आटे की रोटी खाएंगे। खाना बनाते समय मन षान्त व पवित्र रखें। गायत्री, मृत्युन्जय अथवा अन्य मन्त्र का मन ही मन जप करते हुए भोजन बनाएं।
5. एक माह सौन्दर्य प्रसाधन (लाली लिपिस्टिक) का उपयोग नहीं करेंगे।
6. चालीस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे।
7. तीन माह तक सप्ताह में एक दिन अस्वाद व्रत करेंगे।
8. एक सप्ताह किसी पर क्रोध अथवा चिड़चिड़ाएंगे नहीं।
9. नौ दिन तक चाय, काफी, कोल्ड ​ड्रिंक नहीं पीएंगे।
10. महिलाएं व्यर्थ में ग्रह-नक्षत्रों ज्योतिशियों के चक्कर काटती घूमती हैं। कुछ सामान्य नियमों का पालन उनके व परिवार के अनेक प्रकार के गलत प्रभावों से दूर रख सकता है।
11. प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर सूर्य प्रणाम, सूर्य स्नान करें। यह उगते हुए सूर्य को ही करना होता है। पांच बार गायत्री मन्त्र व पांच बार विष्वानि देवमन्त्र से अपने जीवन में प्रकाश की प्रार्थना करें।
12. शनिवार को पीपल के पेड़ पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यह पेड़ यदि किसी मन्दिर में हो तो अधिक उपयक्त है।
13. हफ्ते में एक या दो दिन एक एक घण्टे गौषला में रहें जहाँ देसी गांय हों। जो सेवा बन पड़े करने का प्रयास करें।
14. चालीस दिन में एक बार किसी भी यज्ञ में उपस्थित रहे। यज्ञाग्नि से बहुत लाभ मिलता है।
बहुत से लोगों की चेतना संवेदनषील होती है उन पर किसी भी प्रकार का बुरा व अच्छा दोनों प्रकार का प्रभाव जल्दी असर करता है। अत: उन लोगों के लिए इन नियमों का पालन अनिवार्य हो जाता है ऐसे लोग स्वस्थ, सकारात्मक व आध्यात्मिक वातावरण में अधिक रहें।नाने में महिलाओं की भूमिका पुरूषों से अधिक है हम कहते:- "जागेगी भर्इ जागेगी, नारी शक्ति जागेगी", इस कथन से क्या औचित्य है ? सर्वप्रथम नारी की विवके शक्ति तो जगाएं वह इन दस नियमों पर चलने का प्रयास करें। अन्यथा खाली नारा लगाया, प्रसाद खाया व लौट के बुद्वु घर को आया। और घर आकर लाली लिपिस्टिक से चेहरा सजाया, टी. वी. इन्टरनेट से चरित्र व संस्कार गंवाया, घर में क्लेष, कलह, कामचोरी का वातावरण बनाया, घर में निकम्मी, चरित्रहीन औलाद को उपजाया, समाज में दुख, दरिद्रता, व्यभिचार फैलाया, समाज में आसुरी प्रवृतियों ने घेरा जमाया, धरा पर चारों ओर त्राहि-2 हाहाकार है आया, जरा सोचो यह कहाँ से है आया ? आगे कुछ कहने में मैंने स्वयं को असमर्थ पाया।

पूज्य गुरूदेव अपनी बेटियों से बहुत प्यार करते हैं,नारियों की स्वाधीनता व दुःख निवारण के लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष किया व 21वीं सदी नारी सदी घोशित की। शांतिकुंज की नीवं वन्दनीया माता जी व छ: देवकन्याओं के तप के आधार पर रखी गयी थी। क्या उनकी बेटियाँ उनके अरमानों को पूरा नहीं करेगीं ? यह प्रश्न, यह चुनौति गायत्री परिवार से जुडी हर नारी के सामने खडी है व उनको समाज के लिए कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित कर रही है।


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