भारत की संस्कृति अथवा जीवनशैली को यदि समझना हो तो गायत्री मंत्र व उसके
भावार्थ पर मनन करना होगा। गायत्री मंत्र में वह आध्यात्मिक जीवन दृष्टि निहित है
जिसको आत्मसात कर भारतवासी सम्पूर्ण विश्व में वन्दनीय माने जाते थे। दुर्भाग्यवश
विदेशी सभ्यताओ का कुप्रभाव भारत के लोगों पर पड़ा और वो उनकी चकाचौंध व दबाव में
अपनी असलियत से दूर होते चले गए। भारत का नागरिक इतना शानदार और जानदार जीवन जीता
था जिसका अनुकरण करने के लिए सारी दुनिया के लोग भारत आते थे। समय के साथ हम बहुत
कुछ खोते चले गये जिस कारण आज हमारा भारत गंदगी और गरीबी के कुचक्र में उलझ गया।
परन्तु अब भारत की आत्मा जाग रही है पुन: गायत्री मंत्र भारतवासियो को उनके देवत्व
की याद दिला रहा है। पुन: गायत्री मंत्र मेरे देशवासियों को परमात्मा को समर्पित
होकर आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए झकझोर रहा हैं।
इस सृष्टि पर सतयुगी वातावरण लाने के लिए ऋषि विश्वामित्र समेत अनेक ऋषियों ने
अपनी तप शक्ति झोंक दी है। जन सामान्य सविता देवता के माध्यम से उनकी कृपा को
प्राप्त कर अपने रोग शोक,
पाप,
पीड़ा व प्रारब्धों का निवारण कर सकता है। आज, जब सब कुछ प्रदूषित हो चला है मात्र सविता देवता की आरोग्य दायिनी शक्ति ही एक
मात्र जीवन का सम्बल है। पर्यावरण, जलवायु, नदियाँ, फसलें सब कुछ मानवीय दुर्बुद्धि की भेंट चढ़ गयी हैं।
गायत्री मंत्र के देवता सविता हैं। गायत्री मंत्र में परमात्मा के सविता
स्वरूप का वरण व ध्यान करके सन्मार्ग पर चलने की प्रार्थना की गई है। हम गायत्री
मंत्र का अर्थ ऐसे समझ सकते हैं। गायत्री मंत्र के चार भाग हैं।
(1) ओम भूर्भुव: स्व: - इस विश्व ब्रह्याण्ड में तीनों लोको में ईश्वरीय चेतना, दिव्य चेतना सर्वत्र विद्यमान हैं। वही हमें प्राण शक्ति प्रदान करती है तथा
दुखों को दूर कर सुख सौभाग्य प्रदान करती है। वही चेतना परमात्मा, भगवान, अल्लाह अथवा God के नाम से सभी धर्मो में जानी जाती है।
(2) तत्सवितुर्वरेण्यं - हमें उसी सूर्य के समान तेजस्वी परमात्मा का वरण करना हैं
(वही वरेण्य है) अर्थात उन्हीं का स्मरण करना है उन्हीं को समर्पण करना है उन्हीं
के अनुशासन को जीवन में अपनाना है।
(3) भर्गो देवस्य धीमही - उस परमात्मा के तेज को अपनी अंतरात्मा में धारण करते
हैं। वह तेज दो कार्य करता है - पहला उससे हमारे पाप, कषाय-कल्मष, रोग-शोक सब भस्मीभूत होते चले जाते है। दूसरा हमारे अंदर देवत्व उभरने लगता
हैं।
(4) धियो यो न: प्रचोदयात् - वह परमात्मा हमारी बुद्धि को प्रेरित करें। हमें नहीं
पता कि हमारे लिए क्या उचित है क्या अनुचित। परमात्मा हमें वह प्रेरणा दे जो हमारे
लिए हितकारी हो। विचारो को,
बुद्धि को सर्वदा सन्मार्गगामी बनाने के लिए संकल्पित रहना
चाहिए।
इस प्रकार हम देखते है कि गायत्री मंत्र एक प्रकार की प्रार्थना है। एक प्रकार
की चिन्तन पद्धति है जिसको अपनाकर ही हम सबका कल्याण सम्भव हैं। आइए हम गायत्री
मंत्र की साधना से अपनी विवेक शक्ति को जागृत करें व भोगवाद भौतिकवाद से बाहर आकर
आत्मतेज, आत्मशांति व निर्वाण प्राप्त करें।
अति उत्तम ! अन्यत्र जहाँ भी मन्त्र का अर्थ देखा वहां मात्र व्याख्या दी गयी . यहाँ पहले सटीक शाब्दिक अर्थ देकर फिर व्याख्या दी है . सुस्वागतम् .
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