Wednesday, July 31, 2013

धम्मं शरणं गच्छामि, बुद्धं शरणं गच्छामि - सनातन धर्म

आज पूरा विश्व अनेक प्रकार के संकटो से गुजर रहा है। हर व्यक्ति पीड़ा पतन रोग शोक से ग्रस्त होता जा रहा है। अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के निवारण के लिए ग्रह नक्षत्र, पितृ दोष आदि के पता नहीं कितने उपाय करता घूमता है, परन्तु जीवन से अशांति, अन्धकार, स्वास्थ्य, खुशियाँ छिनती जा रही है। अपनी आत्मरक्षा हेतु व्यक्ति बहुत प्रकार से उछल कूद कर रहा है। कुछ व्यक्ति सब कुछ करके थक चुके हैं, अनेक प्रकार के देवी देवताओं के पूजन, पितृ शांति, ग्रह दोष निवारण जिसने जो बताया वो किया परन्तु मुसीबतें ज्यों की त्यों। ऐसा क्यों हो रहा है? खुशहाल जीवन के लिए हमारे ऋषियों ने कुछ नियम बताए थे। व्यक्ति ने हर स्तर पर उन नियमों की उपेक्षा कर दी है। व्यक्तिगत स्तर पर, पारिवारिक, समाजिक व राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऋषियों के संविधान की उपेक्षा करने से दिनोंदिन स्थिति दयनीय होती जा रही है। वो कौन से नियम है वो कौन सा रास्ता है जिसको अपनाकर व्यक्ति शांत, स्वस्थ, सन्तुष्ट, सुखी व समृद्ध हो जाता है, यही खोजने का प्रयास हमने अपनी पुस्तक ‘‘ सनातन धर्म का प्रसाद ’’ में किया है। पुस्तक को डाक द्वारा मंगाने का खर्च सौ रूपया है। Soft copy free download कर सकते है।
      महात्मा बुद्ध के समय में भी यही स्थिति उत्पन्न हो गयी थी कर्मकाण्ड के आडम्बर बढ़ गए थे। उन्होंने उदघोष किया- ‘‘बुद्धि शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि’’ अर्थात विवेक-बुद्धि से सोचो श्रेष्ठ चिन्तन व आचरण ही धर्म है, उसको अपनाओं। शुद्ध, सात्विक, संयमित जीवन ही सब सुखो का आधार है। ईश्वरीय कृपा पाने के भी तर्क सम्मत नियम है, यों ही इधर-उधर के टण्ट-घण्ट करने से समय व धन की बरबादी के अलावा कुछ निकलने वाला नहीं है। इस सृष्टि में सब कुछ नियमबद्ध है, तर्क सम्मत है। उन नियामों को समझना व उन पर चलना ही एक मात्र विकल्प हैं।
जहाँ गौ हत्या होती है, गरीब को सताया जाता है, कन्या का शील हरण होता है, वहाँ लोगो का ब्रह्य तेज नष्ट हो जाता है एंव भागवत के अनुसार 28 प्रकार के नरक प्राप्त होते हैं।
‘‘मत सता गरीब और सज्जन को, वह रो देगा।
 यदि खुदा ने सुन लिया, तो तुझे जड़ से खो देगा।।’’

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